2015 से सत्ता मौजूद जस्टिन ट्रूडो ने इस बार चुनाव जल्दी करवाकर एक पासा फेंका था जो उनके पक्ष में पड़ा है. सोमवार को उनकी पार्टी ने सत्ता पर पकड़ बनाए रखी. हालांकि लिबरल पार्टी को बहुमत हासिल नहीं हो पाया.
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चुनाव जीतने का ऐलान करते हुए कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने ओटावा में अपने परिवार के साथ एक रैली को संबोधित किया. उन्होंने कहा, "आप (कनाडाई) लोग हमें फिर से एक स्पष्ट जनादेश के साथ वापस भेज रहे हैं कि महामारी से गुजरना है और बेहतर दिन लाने हैं.”
चुनाव प्रचार के दौरान जस्टिन ट्रूडो की हालत कमजोर दिख रही थी और एकबारगी लगने लगा था कि वह सरकार बनाने के लिए जरूरी सीटें हासिल करने से पिछड़ सकते हैं. लेकिन नतीजा 2019 के चुनावों वाला ही रहा, जिसमें ट्रूडो ने अल्पमत की सरकार बनाई और चलाई थी.
बहुमत से फिर चूके
मुख्य विपक्षी दल कंजर्वेटिव पार्टी की नेता एरिन ओ'टूल ने हार स्वीकार कर ली है. उनकी पार्टी दूसरे नंबर पर रही और उसे 121 सीटों पर बढ़त है. सीबीसी और सीटीवी ने अनुमान जाहिर किया है कि ट्रूडो की लिबरल पार्टी को निचले सदन हाउस ऑफ कॉमन्स में बहुमत नहीं मिलेगा. यानी उन्हें किसी पार्टी के समर्थन की जरूरत होगी.
देश के चुनाव आयोग इलेक्शन कनाडा के मुताबिक लिबरल पार्टी पिछली बार से एक सीट ज्यादा 156 सीटों पर बढ़त में है. ओंतारियो और क्यूबेक में उसे 111 सीटें मिल रही हैं. हाउस ऑफ कॉमन्स में 338 सीटें हैं और बहुमत के लिए किसी दल को 170 की जरूरत है.
तस्वीरों मेंः कनाडा का यह 'ग्रेटेस्ट आउटडोर मेला'
पृथ्वी का 'ग्रेटेस्ट आउटडोर' मेला
अपने आपको धरती पर 'ग्रेटेस्ट आउटडोर शो' कहने वाला मेला कैलगरी स्टैम्पीड कोरोना के कारण बंद रहने के बाद इस साल लौट आया है. देखिए, कनाडा के इस सवा सौ साल पुराने उत्सव की झलकियां...
तस्वीर: Todd Korol/REUTERS
कनाडा की धरती पर
कैलगरी स्टैम्पीड कनाडा के अलबर्टा प्रांत के कैलगरी में होने वाला एक रोडियो शो है. यह वहां की संस्कृति का उत्सव है, जिसमें रोडियो तो हिस्सा लेते ही हैं, साथ ही एक विशाल प्रदर्शनी भी होती है.
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दस लाख से ज्यादा पर्यटक
कैलगरी स्टैम्पीड मेले को देखने के लिए हर साल दस लाख से ज्यादा लोग आते हैं. 2020 में कोरोना वायरस के कारण यह मेला नहीं हो पाया था, जो कि लगभग नौ दशक के इतिहास में पहली बार हुआ. लेकिन इस बार जुलाई में मेला शुरू हो गया है.
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1886 में शुरुआत
कैलगरी मेले की शुरुआत 1886 में मानी जाती है, जब कैलगरी एंड डिस्ट्रिक्ट एग्रीकल्चरल सोसायटी ने पहला मेला आयोजित किया था. लेकिन तब इसका स्वरूप और नाम ऐसा नहीं था.
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1912 में पहला रोडियो
1912 में अमेरिकी उद्योगपति गाई वीडिक ने पहला रोडियो और मेला आयोजित कराया. उसे स्टैम्पीड नाम दिया गया. 1919 में वह कैलगरी लौटे और दूसरे विश्व युद्ध के सैनिकों के सम्मान में विक्ट्री स्टैम्पीड आयोजित की.
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1923 से सालाना मेला
कैलगरी स्टैम्पीड को सालाना मेला होने का सम्मान 1923 से मिला, जब इसे एक अन्य प्रदर्शनी के साथ मिलाकर कैलगरी एग्जीबिशन एंड स्टैम्पीड नाम से आयोजित किया जाने लगा.
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विशालकाय मेला
यह मेला अब दुनिया के सबसे बड़े रोडियो शो में शुमार है. इसमें आयोजित होने वाली चकवैगन रेस और रोडियो शो का कनाडा में सीधा प्रसारण होता है.
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कैलगरी की पहचान
इस मेले ने कैलगरी शहर को ऐसी पहचान दी है कि बहुत बार शहर को स्टैम्पीड सिटी या काऊटाउन भी कह दिया जाता है. इस दौरान शहर का पूरा माहौल ही मेले जैसा होता है. जगह जगह पैनकेक ब्रेकफास्ट और बार्बेक्यू आयोजित होते हैं.
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आलोचना
मेले में जानवरों के साथ बर्ताव को लेकर मेले की आलोचना भी होती रही है. पशु अधिकार कार्यकर्ता घोड़ों की दौड़ और रोडियो शो को अमानवीय बताते हैं. हालांकि हिस्सा लेने वालों का कहना है कि वे अपने जानवरों का बहुत ख्याल रखते हैं.
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आदिवासियों की भागीदारी
मेले में सैकड़ों आदिवासी हिस्सा लेते हैं. इंडियन विलेज नाम से एक विशेष आयोजन होता है और आदिवासी संस्कृति को प्रदर्शित किया जाता है, जो पर्यटकों के बीच सबसे लोकप्रिय चीजों में से एक है.
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कैलगरी क्वीन
मेले में हर साल एक रानी और दो राजकुमारियां चुनी जाती हैं. अल्बर्टा की 19 से 24 साल की महिलाओं के बीच से ये चुनाव एक प्रतियोगिता के जरिए होता है. इस प्रतियोगिता में घुड़सवारी एक अहम कौशल होता है.
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कंजरवेटिव पार्टी को पॉप्युलर वोट में जीत मिलती दिख रही थी लेकिन लिबरल पार्टी को शहरी इलाकों में भारी समर्थन मिला है, जहां ज्यादातर सीटें हैं. ओ'टूल ने हार स्वीकार करते हुए अपने समर्थकों से कहा, "हमारा समर्थन बढ़ा है. पूरे देश में हमारा समर्थन बढ़ा है. लेकिन स्पष्ट है कि हमें कनाडा वासियों का समर्थन पाने के लिए और काम करने की जरूरत है. मैं और मेरा परिवार कनाडा के लिए इस यात्रा पर पूरी तरह प्रतिबद्ध हैं.”
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ट्रूडो का करिश्मा
49 वर्षीय जस्टिन ट्रूडो एक करिश्माई नेता साबित हुए हैं. उनके पिता पिएरे ट्रूडो एक किसान थे और लिबरल पार्टी से प्रधानमंत्री भी बने थे. 2015 में जस्टिन ट्रूडो पूरे बहुमत से सत्ता में आए थे लेकिन 2019 में उनका बहुमत छिन गया था और उन्होंने चार साल अल्पमत की सरकार चलाई.
अब दोबारा अल्पमत में होना का अर्थ होगा कि अहम प्रस्ताव पारित कराने के लिए ट्रूडो को फिर से न्यू डेमोक्रैटिक पार्टी पर निर्भर रहना होगा, जिसके नेता भारतीय मूल के जगमीत सिंह हैं.
कोविड-19 की महामारी के दौरान ट्रूडो ने जो काम किया, उसके भरोसे पर उन्होंने जल्दी चुनाव कराए थे. उन्होंने वैक्सीन का सहारा लेकर महामारी का मुकाबला करने की बात कही जिसका 48 वर्षीय कंजर्वेटिव नेता ने विरोध किया. ओ'टूल ने टीकाकरण को स्वैच्छिक बनाने और वायरस रोकने के लिए ज्यादा टेस्ट करने की नीति का समर्थन किया था.
देखिएः भारतीय मूल के नेता छाए दुनियाभर में
भारतीय मूल के नेता जो विश्व भर में छाए
अब तक कई भारतीय मूल के लोग दुनिया भर की सरकारों में तमाम अहम पद संभाल चुके हैं. अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा से लेकर मॉरीशस, फिजी, गुयाना जैसे देशों में भी भारतवंशी नेताओं का लंबा इतिहास रहा है.
तस्वीर: Kirsty Wigglesworth/AP/dpa
ऋषि सुनक
ऋषि सुनक ब्रिटेन के पहले प्रधानमंत्री बन रहे हैं जो भारतीय मूल के हैं. कंजरवेटिव पार्टी के सदस्य ऋषि सुनक फरवरी 2020 से ब्रिटिश कैबिनेट में वित्त मंत्री रहे हैं. इसके पहले वह ट्रेजरी के मुख्य सचिव थे. ऋषि सुनक 2015 में रिचमंड (यॉर्क) से संसद सदस्य के रूप में चुने गए थे. सुनक भारत की कंपनी इन्फोसिस के सह-संस्थापक नारायण मूर्ति और लेखिका सुधा मूर्ति के दामाद हैं.
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कमला हैरिस
अमेरिका में नवंबर में होने वाले राष्ट्रपति चुनावों में डेमोक्रैट पार्टी की ओर से उपराष्ट्रपति पद की उम्मीदवार चुनी गई हैं कमला हैरिस. वह डेमोक्रैट पार्टी की ओर से अमेरिकी कांग्रेस में पांच सीटों पर काबिज भारतीय मूल के सीनेटरों में से एक हैं. कमला हैरिस की मां का नाम श्यामला गोपालन है. किशोरावस्था तक कमला हैरिस अपनी छोटी बहन माया हैरिस के साथ अकसर तमिलनाडु के अपने ननिहाल में आया करती थीं.
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निक्की हेली
संयुक्त राष्ट्र में अमेरिका की दूत रह चुकीं निक्की हेली का नाम बचपन में निमरता निक्की रंधावा था. 2016 में अमेरिका के राष्ट्रपति बने डॉनल्ड ट्रंप के प्रशासन में जगह पाने वाली वह भारतीय मूल की पहली राजनेता बनीं. इससे पहले वह दो बार साउथ कैरोलाइना की गवर्नर रह चुकी थीं. उनके पिता अजीत सिंह रंधावा और मां राजकौर रंधावा का संबंध पंजाब के अमृतसर जिले से है. शादी के बाद उन्होंने ईसाई धर्म अपना लिया.
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बॉबी जिंदल
भारतीय मूल के अमेरिकी नागरिक के रूप में सबसे पहले बॉबी जिंदल लुइजियाना के गवर्नर बने थे. इस तरह निक्की हेली अमेरिका में किसी राज्य की गवर्नर बनने वाली भारतीय मूल की दूसरी अमेरिकी नागरिक हुईं. जिंदल एक बार रिपब्लिकन पार्टी की ओर से अमेरिका के राष्ट्रपति पद के लिए दावेदारी भी पेश कर चुके हैं. उनके माता पिता भारत से अमेरिका जाकर बसे थे.
तस्वीर: picture-alliance/ZUMA Press
प्रीति पटेल
ब्रिटेन की पहली भारतीय मूल की गृह मंत्री बनीं पटेल हिंदू गुजराती प्रवासियों के परिवार से आती हैं. माता-पिता पहले अफ्रीका के युगांडा जाकर बसे थे जहां उनका जन्म हुआ. 1970 के दशक में उनका परिवार ब्रिटेन आकर बसा. 2010 में कंजर्वेटिव पार्टी से चुनाव जीतकर ब्रिटिश संसद पहुंची प्रीति पटेल खुद बाहर से आकर देश में शरण लेने के इच्छुकों के प्रति काफी सख्त रवैया रखती हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/PA Wire/S. Rousseau
अनीता आनंद
कनाडा की कैबिनेट में भारतीय मूल के लोगों की भरमार है. पब्लिक सर्विसेज एंड प्रोक्योरमेंट की केंद्रीय मंत्री अनीता इंदिरा आनंद कनाडा की कैबिनेट में शामिल होने वाली पहली हिंदू महिला हैं. इससे पहले वह टोरंटो विश्वविद्यालय में कानून की प्रोफेसर थीं. भारत से आने वाले इनके माता पिता मेडिकल पेशे से जुड़े रहे. मां स्वर्गीया सरोज राम अमृतसर से और पिता एसवी आनंद तमिलनाडु से आते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/empics/A. Wyld
नवदीप बैंस
ट्रूडो कैबिनेट में साइंस, इनोवेशन एंड इंडस्ट्री मंत्री नवदीप बैंस कनाडा के ओंटारियो प्रांत में जन्मे थे. सिख धर्म के मानने वाले इनके माता पिता भारत से वहां जाकर बसे थे. 2004 में केवल 26 साल की उम्र में उन्होंने अपना पहला चुनाव जीता और कनाडा की संसद में लिबरल पार्टी के सबसे युवा सांसद बने. अपने राजनीतिक करियर में बैंस ने हमेशा इनोवेशन को ज्यादा से ज्यादा बढ़ावा देने की दिशा में काम किया है.
तस्वीर: picture-alliance/empics/The Canadian Press/D. Kawai
हरजीत सज्जन
भारत के पंजाब के होशियारपुर में जन्मे हरजीत सज्जन इस समय कनाडा के रक्षा मंत्री हैं. कनाडा की सेना में लेफ्टिनेंट-कर्नल के रूप में सेवा दे चुके सज्जन इससे पहले 11 सालों तक पुलिस विभाग में भी काम कर चुके हैं. पंजाब में ही जन्मे नेता हरबंस सिंह धालीवाल 1997 में कनाडा की केंद्रीय कैबिनेट के सदस्य बनने वाले पहले भारतीय-कनाडाई थे.
तस्वीर: Reuters/C. Wattie
महेन्द्र चौधरी
दक्षिणी प्रशांत महासागर क्षेत्र में बसे द्वीपीय देश फिजी में भारतीय मूल के लोग ना केवल सांसद या मंत्री बल्कि देश के प्रधानमंत्री तक बने हैं. यहां की 38 फीसदी आबादी भारतीय मूल की ही है. लेबर पार्टी के नेता चौधरी को 1999 में देश का प्रधानमंत्री चुना गया. लेकिन एक साल के बाद ही एक सैन्य तख्तापलट से सरकार गिर गई. एक बार फिर 2006 के संसदीय चुनाव जीत कर वह वित्त मंत्री बने.
तस्वीर: Getty Images/R. Land
लियो वरादकर
2017 में आयरलैंड के सबसे युवा प्रधानमंत्री बने लियो वरादकर कंजरवेटिव फिन गेल पार्टी से आते हैं. डब्लिन में पैदा हुए और पेशे से डॉक्टर वरादकर 2007 में पहली बार सांसद बने. 2015 में समलैंगिक विवाह पर आयरलैंड में हुए जनमत संग्रह के दौरान उन्होंने सार्वजनिक तौर पर घोषित किया कि वे खुद समलैंगिक हैं. उनके पिता अशोक मुंबई से आए एक डॉक्टर थे और आयरलैंड में मिरियम नाम की एक नर्स के साथ शादी कर वहीं बस गए.
तस्वीर: DW/G. Reilly
एंतोनियो कॉस्ता
पुर्तगाल के प्रधानमंत्री एंतोनियो कॉस्ता भारत में गोवा से ताल्लुक रखते हैं. 2017 में वह प्रवासी भारतीय सम्मान से नवाजे गए थे. खुद सोशलिस्ट विचारधारा के समर्थन कॉस्ता ज्यादा से ज्यादा प्रवासियों के अपने देश में आने का स्वागत करते हैं. पहले उनके पिता गोआ से मोजाम्बिक गए और फिर उनका परिवार पुर्तगाल में बसा.
तस्वीर: Getty Images/AFP/K. Tribouillard
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चुनाव का ऐलान कराते वक्त ट्रूडो ने कहा था कि उन्हें कोरोनावायरस से लड़ने के लिए अपनी योजना पर जनादेश की जरूरत है. लिबरल पार्टी की नीति में आर्थिक बहाली के लिए अरबों डॉलर खर्च करने का प्रस्ताव है, जो जीडीपी का 23 प्रतिशत तक होगा.
कैब्रिज ग्लोबल पेमेंट्स के मुख्य रणनीतिकार कार्ल शामोटा कहते हैं कि चुनाव के नतीजे यथास्थिति बनाए रखेंगे और मोटे तौर पर यह सुनिश्चित करेंगे कि अर्थव्यवस्था को जो समर्थन सरकारी खर्च के जरिए मिल रहा है, वह जारी रहेगा. ब्रिटिश कोलंबिया यूनिवर्सिटी में राजनीति शास्त्र के प्रोफेसर जेराल्ड बाएर कहते हैं कि यह चुनाव जस का तस रखने वाला साबित हुआ.