बहुत सारे मानवीय संकट ऐसे होते हैं जिन पर मीडिया का ध्यान कम ही जाता है और दुनिया के बहुत से लोगों की अनदेखी के साए में वे संकट घिरते जाते हैं. नतीजा होता हैः जरूरतमंदों के प्रति हमदर्दी और समर्थन में आती कमी.
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जाम्बिया के दक्षिण में स्थित विक्टोरिया फॉल, पानी के एक विशाल पर्दे की तरह दिखता है. यूनेस्को की विश्व विरासत सूची में शामिल, 1700 मीटर (एक मील से ज्यादा) की चौड़ाई वाला, ये दुनिया का सबसे चौड़ा जलप्रपात है. जाम्बेजी नदी का पानी नीचे 110 मीटर गहरी खाई में गिरता है और उसकी फुहारें इतनी शक्तिशाली और विशाल हैं कि नजदीकी वर्षावन भीग उठता है. यग एक अद्भुत कुदरती नजारा है लेकिन शेष जाम्बिया की तस्वीर, पानी के इस विशाल जखीरे से काफी अलग है.
दक्षिणी अफ्रीका के कई अन्य देशों की तरह जाम्बिया पर भी लंबी लंबी अवधि वाले सूखे की मार पड़ती है. फसलें सूख जाती हैं. कुपोषण चौतरफा है और देश के एक करोड़ 84 लाख निवासी बेहाल हैं.
ये हैं 2022 के सबसे बड़े खतरे
वर्ल्ड इकनॉमिक फोरम ने 2022 में दुनिया की सबसे बड़ी चुनौतियों पर अपनी सालाना रिपोर्ट ‘ग्लोबल रिस्क्स रिपोर्ट 2022’ जारी की है. इसमें बताए गए सबसे बड़े खतरे कौन से हैं, जानिए...
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भारत के निराश युवा
वर्ल्ड इकनॉमिक फोरम के मुताबिक भारत के लिए सबसे बड़े खतरों में मतिभ्रम से जूझ रहे युवा भी हैं. इसके अलावा राज्यों के खराब होते आपसी रिश्ते, तकनीक आधारित प्रशासन की विफलता, बढ़ता कर्ज और डिजिटल असमानता भारत के सामने सबसे बड़े खतरे हैं.
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सबसे बड़े अंतरराष्ट्रीय खतरे
इस रिपोर्ट में दुनिया के लिए जो सबसे बड़े खतरे बताए गए हैं, वे हैं पर्यावरण का संकट, बढ़ती सामाजिक असमानता, साइबर असुरक्षा और कोविड से दुनिया के अलग-अलग हिस्सों का असमान उबार.
रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया के सामने जो दस सबसे बड़े खतरे हैं उनमें से छह तो जलवायु परिवर्तन से ही जुड़े हैं. उत्सर्जन को कम करने वाली तकनीक का इस्तेमाल ना कर पाने का दुनिया को बड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है.
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बढ़ती असमानता
रिपोर्ट कहती है कि दुनिया की समरसता खतरे में हैं क्योंकि गैरबराबरी बढ़ रही है. आय में असमानता और वैक्सीन तक पहुंच में इतनी अधिक गैरबराबरी है कि एक हिस्सा दूसरे से बहुत ज्यादा पीछे है.
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विस्थापन
लोगों के लिए ना चाहते हुए भी प्रवासन के लिए मजबूर होना एक बड़ा खतरा माना गया है. यह भी पर्यावरण परिवर्तन से जुड़ा है जो लोगों को अपनी बसी-बसाई जिंदगी छोड़ दूसरी जगह जाने पर मजबूर कर रहा है.
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बढ़ता कर्ज
कोरोनावायरस महामारी ने पूरी दुनिया में ही उद्योग-धंधों को प्रभावित किया है. इस कारण महंगाई और कर्ज बढ़ा है जो एक बड़े खतरे के रूप में सामने आया है क्योंकि इससे लौटना मुश्किल होता जा रहा है.
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डीडबल्यू से इंटरव्यू में केयर संगठन की जर्मन इकाई में संचार निदेशक साबीने विल्के कहती हैं, "जाम्बिया में 12 लाख लोग भुखमरी के शिकार हैं और 60 फीसदी आबादी गरीबी रेखा से नीचे रहती है. हम इसे एक खास तरह के स्थायी संकट की तरह देखते हैं.” विल्के बताती हैं कि कोई युद्ध या भूकंप होता "तो हम कहते कि उनकी वजह से ये संकट पैदा हुआ था. जाम्बिया एक ऐसा देश है जहां हम जलवायु परिवर्तन के नाटकीय प्रभाव देखते हैं- बार बार पड़ता और बहुत गंभीर सूखा. लोग सूखे के असर से उबर ही नहीं पाते और लगातार मानवीय सहायता के मोहताज बने रहते हैं.”
जाम्बिया में हालात भले ही कितने चिंताजनक या नाटकीय क्यों न हो, अंतरराष्ट्रीय मीडिया में उसकी कवरेज बहुत ही कम होती है. इस तरह ये उन संकटों में से एक है जो बड़े पैमाने पर अनदेखे, उपेक्षित रह जाते हैं और जिन्हें केयर ने अपने अध्ययन "सफरिंग इन साइलेंसः द मोस्ट अंडर-रिपोर्टेड ह्युमैनिटेरियन क्राइसेस ऑफ 2021” (एक खामोश यातनाः 2021 के सबसे कम चर्चित मानवीय संकट) में जगह दी है. छठी बार ऐसा हुआ है कि सालाना मीडिया विश्लेषण ने ऐसे दस संकट सूचीबद्ध किए हैं, जिनमें से हर एक संकट का असर कम से कम दस लाख लोगों पर पड़ा है लेकिन अंतरराष्ट्रीय ऑनलाइन मीडिया में जिसकी ना के बराबर रिपोर्टिंग हुई है.
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मानवता का संकेत
रिपोर्ट के प्राक्कथन में केयर यूके के सीईओ लॉरी ली ने लिखा है कि "जलवायु संकट की तीव्रता ने दुनिया भर में कई सारी आपात स्थितियों को भड़का दिया है. इस रिपोर्ट में दर्ज 10 में से सात संकट उसी से उभरे हैं. और इसके केंद्र में है एक गहरी नाइंसाफी. दुनिया में सबसे ज्यादा गरीब लोग, जलवायु परिवर्तन की सबसे ज्यादा मार झेल रहे हैं- गरीबी, पलायन, भुखमरी, लैंगिक असमानता, और सिकुड़ते जाते संसाधन- जबकि जलवायु परिवर्तन के लिए वे कतई जिम्मेदार नहीं हैं.”
"सफरिंग इन साइलेंस” की सह-लेखिका साबिने विल्के कहती हैं, "हम ये संकेत देना चाहते हैं कि मानवाधिकार संकट सिर्फ अपनी राजनीतिक प्रासंगिकता या मीडिया में अपनी उपस्थिति से ही ध्यान न खींचे, कितने लोग कहां और कैसे ये बर्बादी झेलने को विवश हैं इसे छोड़, दुनिया को उनकी ओर देखना चाहिए.”
संयुक्त राष्ट्र, मानवीय संकटों का विश्लेषण करने वाले एनजीओ एकेप्स (एसीएपीएस), मानवीय सूचना पोर्टल रिलीफवेब और अपनी खुद की सूचना से मिले डाटा के आधार पर केयर ने उन देशों की शिनाख्त की जहां कम से कम दस लाख लोग संघर्ष या जलवायु की तबाहियों से प्रभावित थे. 40 प्रमुख संकटों की एक आखिरी सूची तैयार की गई और फिर जनवरी 2021 से सितंबर 2021 के दरमियान अंग्रेजी, जर्मन, फ्रेंच, अरबी और स्पानी भाषा में प्रकाशित 18 लाख ऑनलाइन लेखों के आधार पर उनका मीडिया विश्लेषण किया गया है. केयर की रिपोर्ट में उन दस संकटों के बारे में बताया गया है जिन्हें मीडिया में बिल्कुल भी तवज्जो नहीं मिली.
रिपोर्ट के मुताबिक जाम्बिया इस सूची में सबसे ऊपर है, उसके बाद यूक्रेन, मलावी, द सेंट्रल अफ्रीकी रिपब्लिक, ग्वाटेमाला, कोलम्बिया, बुरुंडी, नाइजर, जिम्बाव्वे और होंडुरास के आपतकालों का उल्लेख है. केयर की 2020 की लिस्ट में मेडागास्कर का नाम सबसे ऊपर था.
यूक्रेन पर किसी का ध्यान नहीं
वैसे तो भुला दिए गए संकटों में यूक्रेन का नंबर दूसरा है, लेकिन हैरानी हो सकती है कि अपनी सीमा पर रूसी सेना के जमावड़े की खबरों से इधर वो काफी सुर्खियों में आ गया है. लेकिन ये भी सच्चाई है कि ये संघर्ष सितंबर 2021 में खड़ा हुआ था.
केयर की शोधकर्ता विल्के के मुताबिक, "यूक्रेन को नवंबर और दिसंबर में कहीं ज्यादा तवज्जो मिली थी खासकर यूरोपीय मीडिया में. और अब वो शायद इस साल लिस्ट में नहीं दिखेगा जैसे कि पहले दिखता था.”
केयर के पूर्व विश्लेषणों में सबसे ज्यादा विस्मृत संकटों का केंद्र अफ्रीका है. 2021 में छह थे, और जाम्बिया और द सेंट्रल अफ्रीकी रिपब्लिक के साथ मलावी का नाम भी था. अपने यहां जारी गृहयुद्ध की वजह से उसका नाम इस सूची में था. मलावी में हर रोज दस लाख से ज्यादा लोग भूखे रह जाते हैं.
पाकिस्तान में बेड़ियां तोड़ती यह आदिवासी महिला
पाकिस्तान के उत्तर-पश्चिमी आदिवासी इलाके में महिलाओं को राजनीति में हिस्सा लेने की इजाजत नहीं है. लेकिन दुनिया बीबी ने कई चुनौतियों से पार पाते हुए स्थानीय काउंसिल में सीट जीती है.
तस्वीर: Saba Rahman/DW
मर्दों की दुनिया में दुनिया बीबी की जीत
दुनिया बीबी 58 साल की हैं. पढ़ना-लिखना तो वह नहीं जानतीं लेकिन गांव-देश की राजनीतिक हलचलों से पूरी तरह वाकिफ रहती हैं. हर सुबह उनके पति उन्हें अखबार पढ़कर सुनाते हैं. बीबी ने हाल ही में मोहमांद जिले की याकामंद काउंसिल में चुनाव जीता है. उन्होंने बड़े राजनीतिक दलों की उम्मीदवारों को हराया.
तस्वीर: Saba Rahman/DW
मर्दों का अधिपत्य
बीबी उस इलाके में राजनीति कर रही हैं जहां मर्दों की चलती है. महिलाओं को तो पुरुषों के बिना घर से बाहर जाने तक की इजाजत नहीं है. उन्होंने डॉयचेवेले को बताया कि एक महिला के लिए यहां का प्रतिनिधि होना जरूरी था.
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महिला शिक्षा है प्राथमिकता
दोपहर बाद बीबी अपने पोते-पोतियों के साथ चाय पीती हैं और उनसे उनकी पढ़ाई के बारे में पूछती हैं. वह कहती हैं कि पाकिस्तान के आदिवासी इलाके की तरक्की के लिए शिक्षा जरूरी है. वह कहती हैं, “हमारे इलाके में लड़कियों को स्कूल जाने की इजाजत नहीं है इसलिए वे अपने फैसले खुद नहीं ले पातीं. मैं इसे बदलना चाहती हूं.”
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पति का साथ मिला
बीबी के पति अब्दुल गफ्फूर ने अपनी पत्नी का भरपूर साथ दिया है. वह कहते हैं कि इलाके में महिलाओं के मुद्दों के बारे में पुरुष ज्यादा नहीं जानते, इसलिए मैंने अपनी पत्नी को चुनाव लड़ने के प्रोत्साहित किया.
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बच्चों को गर्व है
बीबी के बच्चों को अपनी मां पर गर्व है. उनका बेटा अली मुराद नेशनल कॉलेज ऑफ आर्ट्स से ग्रैजुएट है. मुराद कहते हैं, “आमतौर पर लोग सोचते हैं कि आदिवासी महिलाओं का घर के बाहर क्या काम. मेरी मां ने यह सोच बदली है.”
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घर-बाहर दोनों की संभाल
बीबी घर के सारे काम बराबर संभालती हैं. लकड़ी लाने से लेकर कपड़े धोने और खाना बनाने तक सारे काम करते हुए वह कहती हैं कि काम-काज उन्हें सेहतमंद रखता है.
तस्वीर: Saba Rahman/DW
तालिबान से अपील
बीबी पड़ोसी देश में तालिबान सरकार से अपील करती हैं कि वे भी महिलाओं को सशक्त करें, उनकी पढ़ाई पर ध्यान दें. वह कहती हैं, “अगर वे ऐसा करेंगे तो ना सिर्फ अफगानिस्तान बल्कि पाकिस्तान के कबायली इलाकों में भी स्थिरता आएगी."
तस्वीर: Saba Rahman/DW
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पांच साल से कम उम्र के 39 फीसदी बच्चे कुपोषण की वजह से अविकसित हैं. करीब आधे बच्चे प्राइमरी स्कूल के चार साल भी पूरे नहीं कर पाते. देश में कोविड टीकाकरण अभियान की रफ्तार सुस्त है. एचआईवी संक्रमण की ऊंची दर ने देश के स्वास्थ्य सिस्टम पर अतिरिक्त बोझ डाल दिया है. करीब 10 फीसदी आबादी संक्रमित है जिनमें बहुत से बच्चे हैं.
होंडुरास में स्त्री हत्याएं
संकटों से सबसे ज्यादा यातना सहते हैं स्त्रियां और बच्चे. केयर के शोधकर्ताओं ने ये पाया है, खासकर होंडुरास में. एक करोड़ में से करीब एक तिहाई आबादी मानवीय सहायता पर निर्भर है. नौकरियों की कमी और बढ़ते अपराधों के अलावा भ्रष्टाचार की वजह से युवा पीढ़ी विदेशों का रुख कर रही है. केयर रिपोर्ट के लेखकों के मुताबिक, "होंडुरास में लोग अक्सर यही कहते हैं कि गरीबी भी यहां ऐसे ही रह गई है जैसे कि यहां अधिकांश महिलाएं बच्चों के साथ घरों में अकेली रह जाती हैं.”
रिपोर्ट के मुताबिक कोविड महामारी की शुरुआत से महिलाओं के खिलाफ हिंसा की दर में भी तीव्रता आई है. होंडुरास में 2021 के आंकड़ों के मुताबिक हर 29 घंटे में एक औरत मारी जाती है. यहां महिलाओं की हत्या की दर, लातिन अमेरिका के किसी भी हिस्से से 50 फीसदी ज्यादा है.
विस्मृत संकटों की सुर्खियां बहुत ही कम बनती हैं, इस तथ्य की आंशिक वजह तो ये हो सकती है कि संकटग्रस्त इलाकों का जर्जर बुनियादी ढांचा रिपोर्टरों के लिए सुगम नहीं होता है. ये बात भी है कि लोगों में दूर जगहों की अपेक्षा अपने घर के करीब की खबरों को पढ़ने-देखने के लिए ज्यादा उत्सुकती पाई जाती है.
सहायता की संयत दलील
केयर शोधकर्ता कहते हैं, "हम लोग वैश्विक मीडिया की बनाई प्राथमिकताओं पर हैरान हैं. उदाहरण के लिए, प्रिंस हैरी और उनकी पत्नी मेगन का ओप्रा विनफ्रे के साथ इंटरव्यू हुआ तो इस बारे में ऑनलाइन मीडिया पर 3,60,000 से ज्यादा खबरें छपीं. दूसरी तरफ सिर्फ 512 खबरें ही ये बता पाईं कि जाम्बिया के दस लाख से ज्यादा लोग भुखमरी के शिकार हैं.
अक्सर मीडिया में आने से संकटग्रस्त देशों में फौरी नतीजे देखने को मिल जाते हैं. इससे जिंदगी और मौत का अंतर पता चल सकता है. केयर की संचार निदेशक विल्के कहती हैं, "जब संकटों पर मीडिया का ध्यान जाता है, तो उन्हें राजनीतिक तवज्जो भी मिलती है.”
विल्के के मुताबिक यूरोपीय आयोग जैसी सहायता एजेंसियां और दाता संगठन, ज्यादा हाई-प्रोफाईल संकटों पर ध्यान देते हैं. "लेकिन हम बार बार यही नोट करते हैं कि जब हम इन डोनर्स यानी दाताओं से बात करते हैं, तो हमें पहले समझाना पड़ता है, जाम्बिया क्यों. इस साल तो हमने उसके बारे में कुछ नहीं सुना- ऐसा कहा जाता है. तो ये एक बिल्कुल सीधा जुड़ाव हैः कम ध्यान दिए जाने का मतलब कम फंडिंग मिलना, और इसका मतलब है तकलीफें कम करने के मौके और कम होते जाना.”
रिपोर्टः राल्फ बोजेन
अब महिला पुतलों के सिर कटवा रहा तालिबान
अफगानिस्तान के हेरात प्रांत में कपड़ा और अन्य दुकानदारों को अपनी दुकान के महिला पुतलों का सिर काटने के लिए मजबूर किया जा रहा है. इस आदेश को लेकर स्थानीय दुकानदार गुस्से में हैं जबकि बाहर आदेश का मजाक उड़ाया जा रहा है.
तस्वीर: Haroon Sabawoon/AA/picture alliance
महिला पुतलों के सिर काटने का आदेश
अफगानिस्तान में तालिबान ने सभी दुकानदारों को महिला पुतलों के सिर काटने का आदेश दिया है. तालिबान का तर्क है कि इस तरह का इंसानी बुत इस्लामिक कानूनों का उल्लंघन करता है. हेरात के एक शख्स की दुकान पर इन पुतलों के सिर काटने का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया, जिसका अफगानिस्तान के अंदर और बाहर काफी मजाक उड़ाया जा रहा है.
तस्वीर: Sayed Aqa Saeedi/dpa/picture alliance
महिलाओं और लड़कियों पर पाबंदियां
अगस्त में सत्ता में लौटने के बाद से ही तालिबान ने इस्लामिक कानूनों की कट्टर व्याख्या को लोगों पर लागू किया है. लोगों की आजादी पर कई तरह की पाबंदियां लग गई हैं, खासकर महिलाओं और लड़कियों पर. हालांकि कट्टर इस्लामिक गुट ने इन पुतलों को लेकर अब तक कोई औपचारिक राष्ट्रीय नीति या प्रतिबंध घोषित नहीं किए हैं लेकिन कई स्थानीय धड़े ऐसी चीजों को अनैतिक बताकर लोगों पर नकेल कसने का काम कर रहे हैं.
तस्वीर: Jalil Rezayee/dpa/picture alliance
स्कार्फ से ढंकने की कोशिश रही बेकार
हेरात में सदाचार को बढ़ावा देने और बुराई को रोकने के मंत्रालय के प्रमुख अजीज रहमान ने बुधवार को ऐसा आदेश दिए जाने की पुष्टि भी की. आदेश आने के बाद कुछ दुकानदारों ने स्कार्फ या बैग से ढंककर पुतलों का सिर छिपाने की कोशिश की लेकिन यह बेकार रही. रहमान ने यह भी कहा, "अगर वे सिर्फ सिर ढकेंगे या पूरे पुतले को ही छिपा देंगे तो अल्लाह उनकी दुकान, या घर में नहीं घुसेगा और उन्हें आशीर्वाद भी नहीं देगा."
तस्वीर: Haroon Sabawoon/AA/picture alliance
गुस्से में कपड़ा विक्रेता
6 लाख की आबादी वाले इस शहर के कई दुकानदार आदेश को लेकर गुस्से में हैं. एक कपड़ा विक्रेता बशीर अहमद कहते हैं, "आप देख सकते हैं, हमने सिर काट दिए हैं." उन्होंने यह भी बताया कि हर डमी का दाम करीब साढ़े तीन हजार होता है. उनके मुताबिक "जब कोई पुतले ही नहीं होंगे तो हम अपना सामान कैसे बेचेंगे? जब कोई कपड़ा ढंग से पुतले को पहनाया गया हो तभी वो ग्राहकों को वह पसंद आता है."
तस्वीर: Jalil Rezayee/dpa/picture alliance
शासन के कट्टर कानून
15 अगस्त को सत्ता में वापसी के बाद तालिबान ने 1996 से 2001 के दौरान पहले शासन के कट्टर कानूनों को इस बार हल्का रखने का वादा किया था. तब भी इंसान जैसी दिखने वाली नकली चीजों को बैन किया गया. ये कड़ी पाबंदियां फिर वापस आ रही हैं. नई पाबंदियों में लोगों को दिन में पांच दफा नमाज के लिए आने, मर्दों को दाढ़ी बढ़ाने और पश्चिमी कपड़े ना पहनने के लिए प्रेरित करने की बात भी स्थानीय रिपोर्ट्स में कही गई है.
तस्वीर: Mohd Rasfan/AFP/Getty Images
लड़कियों के ज्यादातर स्कूल बंद
महिलाएं इन पाबंदियों का खासा नुकसान झेल रही हैं और धीरे-धीरे उनकी सार्वजनिक जिंदगी खत्म होती जा रही है. लड़कियों के ज्यादातर स्कूल बंद कर दिए गए हैं. महिलाओं को ज्यादातर सरकारी नौकरियों में शामिल होने से रोक दिया गया है. पिछले हफ्ते एक नए आदेश में महिलाएं के लंबी यात्राओं पर अकेली जाने पर भी रोक लगा दी गई है. उन्हें किसी न किसी पुरुष रिश्तेदार को साथ लेकर ही यात्रा करनी होगी.
तस्वीर: Allauddin Khan/AP/picture alliance
शराब बेचने वालों पर छापेमारी
तालिबान ने शराब बेचने वालों पर छापेमारी तेज कर दी है. ड्रग्स के आदी लोगों को निशाना बनाया जा रहा है और संगीत को भी बैन कर दिया है. तालिबान के सत्ता में आने ने अफगानिस्तान की पहले से ही मदद पर आधारित अर्थव्यवस्था को बर्बाद कर दिया है. अमेरिका ने जहां कई बिलियन डॉलर की आर्थिक मदद पर रोक लगा दी है, वहीं अफगानिस्तान को मिलने वाली ज्यादातर अंतरराष्ट्रीय मदद भी रोक दी गई है.