एक अध्ययन से पता चला है कि चार धाम तीर्थस्थल पर्यटकों की एक सीमित संख्या को ही झेल सकते हैं. अगर भीड़ बढ़ती रही तो धराली जैसी और घटनाएं हो सकती हैं. ऐसे में इसके आसपास के गांवों को विकसित करने की जरूरत है.
पिछले साल केदारनाथ के पास भूस्खलन की घटना हुई थी, इसके बाद फंसे श्रद्धालुओं को निकालने के लिए एनडीआरएफ की तैनाती की गई थीतस्वीर: NDRF/AFP/Getty Images
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हर साल लाखों श्रद्धालु चार धाम यात्रा के लिए उत्तराखंड आते हैं. हिमालय में स्थित गंगोत्री, यमुनोत्री, बद्रीनाथ और केदारनाथ में भारी भीड़ जुटती है. लेकिन ये स्थान सीमित संख्या में ही पर्यटकों का दबाव सह सकते हैं. साल 2000 के दशक की शुरुआत में पर्यटकों की भीड़ लगभग 10 लाख थी. यह हाल के वर्षों में 30 लाख से अधिक हो गई है.
पर्यटकों की संख्या बढ़ने से स्थानीय सुविधाओं पर दबाव बढ़ता जा रहा है. हाल में प्रकाशित अध्ययन के मुताबिक बिना नियंत्रण यात्रियों के आने से हिमालय के नाजुक पर्यावरण को नुकसान पहुंच रहा है. यहां ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं. तापमान लगातार बढ़ रहा है. बादल फटने जैसी चरम मौसम घटनाएं बार-बार हो रही हैं.
आ रहे हैं क्षमता से अधिक पर्यटक
इस अध्ययन में उत्तराखंड के चार धाम क्षेत्रों के आसपास के इलाकों में ईको‑टूरिज्म की संभावना पर बात की गई है ताकि भीड़ एक ही स्थान पर ना इकट्ठी हो. रिपोर्ट को तैयार करने में जी.बी. पंत राष्ट्रीय हिमालय पर्यावरण संस्थान समेत कई संस्थान शामिल थे. शोधकर्ताओं ने दस अलग‑अलग अहम मानकों जैसे बर्फ से ढके क्षेत्र, जमीन की ढलान, जलवायु और वहां की पेड़-पौधों की स्थिति का अध्ययन किया. इसके आधार पर उन्होंने चार धाम की पर्यटक वहन क्षमता का अनुमान लगाया.
दरअसल हर क्षेत्र एक सीमा तक ही इंसानों की संख्या झेल सकता है. इसे ही वहन क्षमता कहते हैं. अध्ययन में इसे दो तरह से स्टडी किया गया है. भौतिक वहन क्षमता से पता लगाया गया कि केवल क्षेत्रफल और इंफ्रास्ट्रक्चर के आधार पर अधिकतम कितने लोग एक समय में एक स्थान पर मौजूद हो सकते हैं. लेकिन यह मानक पर्यावरण या सामाजिक स्थिरता को नहीं दर्शाता है. ऐसे में वास्तविक वहन क्षमता बताती है कि बिना पर्यावरण, संसाधनों और स्थानीय समुदाय को क्षति पहुंचाए कितने पर्यटक सुरक्षित रूप से आ सकते हैं.
अध्ययन में बताया गया है कि हर दिन बद्रीनाथ की वास्तविक वहन क्षमता 11,833 से 15,778 और केदारनाथ की 9,833 से 13,111 पर्यटकों के बीच होनी चाहिए. वहीं यमुनोत्री के लिए ये सीमा 6,133 से 8,178 और गंगोत्री के लिए 4,620 से 6,160 पर्यटक है. इसका मतलब है कि यदि पर्यटकों की भीड़ इस सीमा के भीतर हो, तो पर्यावरण सुरक्षित रहेगा. संसाधन और बुनियादी ढांचे पर भी भार कम पड़ेगा.
दुनिया के सबसे लोकप्रिय तीर्थ स्थल
पूरी दुनिया में कोरोनावायरस से जुड़े अधिकांश प्रतिबंध हटा लिए गए हैं और पर्यटन बढ़ रहा है. आइए आपको बताते हैं दुनिया के सबसे लोकप्रिय तीर्थ स्थलों के बारे में, जहां लाखों लोग नियमित रूप से जाते हैं.
तस्वीर: Pressebildagentur ULMER/picture alliance
सेंट पीटर्स बेसिलिका, इटली
सैकड़ों सालों से कैथोलिक ईसाई श्रद्धालु सेंट पीटर्स बेसिलिका को देखने दुनिया के कोने कोने से रोम जाते रहे हैं. इस चर्च को पीटर द अपॉसल के नाम से जाना जाता है. ऐसे मान्यता है कि उनकी कब्र इसी चर्च के नीचे है. हर साल करीब दो करोड़ लोग इस धार्मिक तीर्थ यात्रा पर जाते हैं, जिस वजह से यह दुनिया का सबसे लोकप्रिय तीर्थ स्थल है.
तस्वीर: Pressebildagentur ULMER/picture alliance
चर्च ऑफ द होली सेपल्कर, यरुशलम
इस्लाम, ईसाई धर्म और यहूदी धर्म तीनों में यरुशलम की एक पवित्र शहर के रूप में मान्यता है. जहां कभी यरुशलम का पहला मंदिर स्थित था वो टेम्पल माउंट यहूदी धर्म में सबसे पवित्र स्थल माना जाता है. वहीं पर अल-अक्सा मस्जिद भी है, जिसे इस्लाम में तीसरी सबसे पवित्र जगह माना जाता है. यहां से थोड़ी ही दूर स्थित है चर्च ऑफ द होली सेपल्कर, जहां ईसाई यीशु मसीह की खाली कब्र को देखने जाते हैं.
कोरोना वायरस महामारी के होने तक दो लाख से ज्यादा श्रद्धालु हर साल कामिनो दे सांतियागो तीर्थ यात्रा पूरी करने के लिए सांतियागो दे कोम्पोस्तेला के कैथेड्रल जाते हैं. तीर्थ यात्रियों की संख्या अब फिर बढ़ गई है, लेकिन वो महामारी से पहले के समय जैसी नहीं है. स्थानीय लोग बढ़ते शोर, कचरे और तोड़फोड़ की शिकायत करने लगे हैं.
तस्वीर: Toni Vilches/IMAGO
लुर्देस, फ्रांस
माना जाता है फ्रांस के लुर्देस स्थित ग्रोट्टो ऑफ मसाबिएल के पानी में उपचारात्मक गुण है. 1858 में 14 साल के एक किशोर ने दावा किया था कि वर्जिन मेरी ने उसे दर्शन दिए थे. जब से शहर में उपचार संबंधी कई चमत्कारों का दावा किया गया है. आज भी करीब 50 लाख लोग हर साल यहां आते हैं.
तस्वीर: Fred Scheiber/(AFP
मक्का, सऊदी अरब
हर साल करीब बीस लाख मुस्लिम सऊदी अरब के शहर मक्का में वार्षिक तीर्थ हज के लिए आते हैं. मक्का को हजरत मुहम्मद की जन्म-स्थली और इस्लाम के शुरुआत की जगह माना जाता है. श्रद्धालुओं की भीड़ के प्रबंधन के लिए आयोजकों ने एक व्यापक तंत्र बनाया है. कोरोना वायरस महामारी के दौरान हज के लिए सिर्फ कुछ हजार सऊदी नागरिकों को ही अनुमति दी गई थी.
तस्वीर: -/Saudi Press Agency/dpa/picture alliance
लुंबिनी, नेपाल
लुंबिनी को बौद्ध धर्म के संस्थापक सिद्धार्थ गौतम का जन्म-स्थल माना जाता है. यह छोटा सा शहर नेपाल में हिमालय की पहाड़ियों के तले भारत की सीमा के करीब स्थित है. हर साल हजारों श्रद्धालु गौतम बुद्ध की पूजा करने के लिए माया देवी मंदिर में जमा होते हैं.
हर साल गर्मी के अयनांत के समय कई पेगन मान्यताओं को मानने वाले और कई पर्यटक दक्षिणी ब्रिटेन में स्टोनहेंज आते हैं. ये सभी स्टोनहेंज के विशेष वातावरण को महसूस करने के लिए आतुर रहते हैं. इस इमारत को नवपाषाण युग और कांस्य युग के बीच बनाया गया था. यहां हर साल करीब 15 लाख लोग आते हैं.
तस्वीर: Ben Birchall/PA Wire/picture alliance
अलग किस्म के तीर्थ स्थल
स्टार वार्स फिल्मों के प्रशंसकों के लिए तुनिशिया एक तरह का तीर्थ स्थल ही बन गया है. इन फिल्मों के कुछ हिस्से उत्तर अफ्रीका के इसी देश में 12 अलग अलग स्थानों पर फिल्माए गए थे. बाद में शूटिंग दूसरे देशों में हुई लेकिन प्रशंसक आज भी तुनिशिया ही आते हैं.
तस्वीर: Fetih Belaid/AFP/Getty Images
लॉर्ड ऑफ द रिंग्स, न्यूजीलैंड
न्यूजीलैंड के विविध नजारों में पथरीले पहाड़, हरे मैदान और अलग अलग तरह की प्राकृतिक खूबसूरती शामिल है. इस विविधता ने इसे लार्ड ऑफ द रिंग्स उपन्यास के फिल्मांकन के लिए आदर्श जगह बना दिया. लाखों फैंटसी प्रेमी हर साल असली होब्बिटोन की तलाश में न्यूजीलैंड पहुंच जाते हैं.
तस्वीर: Achim Prill/Zonnar/IMAGO
हैरी पॉटर, लंदन
लंदन के किंग्स क्रॉस स्टेशन के प्लैटफॉर्म नौ तीन बटा चार से हैरी पॉटर के सभी प्रशंसक चिरपरिचित हैं. यही वो प्लैटफॉर्म है जहां से मशहूर हॉगवर्ट्स एक्सप्रेस ट्रेन निकलती है. पॉटर प्रेमी लंदन पहुंचते ही इस जादुई जगह पर जरूर जाते हैं. (मार्टिन कॉक)
तस्वीर: Stefan Kiefer/imageBROKER/picture alliance
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अध्ययन में भौतिक वहन क्षमता का आकलन भी किया गया है. वास्तविक वहन क्षमता की तरह इसमें पर्यावरण, संसाधनों या सुरक्षा पर पड़ने वाले प्रभाव की चिंता नहीं की जाती. शोधकर्ताओं के अनुसार वास्तविक वहन क्षमता, भौतिक क्षमता से बहुत कम है.
केदारनाथ की भौतिक वहन क्षमता लगभग 24,500 पर्यटक प्रति दिन है. बद्रीनाथ की भौतिक वहन क्षमता लगभग 29,500, गंगोत्री की लगभग 20,000 और यमुनोत्री की लगभग 10,000 पर्यटक है.
इस अध्ययन में सहभागी प्रियंका मैती डीडब्लू को बताती हैं, "विकास करते समय वास्तविक वहन क्षमता का ध्यान रखना चाहिए, भौतिक वहन क्षमता का नहीं. अभी यह सीमा के भीतर है. इस अध्ययन के लिए वर्ष 2019 का डाटा इस्तेमाल किया गया है. इसके अनुसार बद्रीनाथ में प्रतिदिन लगभग 6,073, केदारनाथ में 4,878, गंगोत्री में 2,586 और यमुनोत्री में 2,271 पर्यटक आए."
हालांकि पूरे साल में चार धाम आने वाली यात्रियों की भीड़ में इजाफा हो रहा है. प्रियंका आगे कहती हैं, "पिछले 24 वर्षों (2000 से 2024) में औसतन हर साल बद्रीनाथ में 28,784 और केदारनाथ में 39,671 यात्रियों की अधिक भीड़ जुड़ रही है. जबकि गंगोत्री और यमुनोत्री में हर साल 28,784 पर्यटक बढ़ रहे हैं. यदि यह बढ़ती रही, तो भविष्य में ये स्थल सुरक्षित सीमा (वास्तविक वहन क्षमता) से अधिक भीड़ देख सकते हैं.”
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सरकारी परियोजनाओं का उल्टा असर
इस भीड़ को ध्यान में रखते हुए सरकार ने कई योजनाओं की शुरुआत की. लेकिन उसका पर्यावरण पर नकारात्मक असर देखने को मिल रहा है. चार धाम सड़क परियोजन का मकसद भले ही तीर्थयात्रियों के लिए यात्रा को आसान बनाना हो लेकिन इसने पर्वतीय क्षेत्रों पर भारी दबाव डाला है.
लगभग 889 किलोमीटर लंबी इस सड़क परियोजना के तहत निर्माण के लिए 17.5 हेक्टेयर वनभूमि का रास्ते के लिए उपयोग किया गया. बड़े पैमाने पर पहाड़ों की कटाई की गई. जिससे क्षेत्र की ढलानों की स्थिरता कमजोर हुई और जल निकासी तंत्र में बदलाव आया.
इसका असर ये हुआ कि इस परियोजना के कारण भूस्खलन की घटनाएं बढ़ गईं. दरअसल पहाड़ी और हिमालयी इलाके में सड़क निर्माण, सुरंग और पुल बनाने से ढलानों पर दबाव बढ़ता है. जिससे भूस्खलन, चट्टानों के गिरने और हिमस्खलन जैसी घटनाओं का खतरा बढ़ता है. वर्ष 2013 में केदारनाथ आपदा और इस वर्ष उत्तराखंड में कई आपदाओं के पीछे यही मुख्य कारण रहा है.
क्या हिंदुओं को भी मिलती है तीर्थ सब्सिडी ?
भारत सरकार ने हज यात्रा के लिए मिलने वाली सब्सिडी खत्म कर दी है. कहा जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार ऐसा किया जा रहा है. भारत में राज्य सरकारें हिंदुओं को भी कई तरह की तीर्थयात्राओं के लिए सब्सिडी देती हैं.
तस्वीर: Jasvinder Sehgal
असम
वरिष्ठ नागरिकों के लिए कांग्रेस पार्टी ने 2004-05 में धर्मज्योति योजना शुरू की थी. इसमें 20 के समूह में जाने वाले यात्रियों को बस यात्रा का आधा खर्च दिया जाता है. इसके अलावा मौजूदा बीजेपी सरकार ने पुण्यधाम यात्रा 2017 में शुरू की जिसके तहत सरकार जगन्नाथ मंदिर, मथुरा, वृंदावन, अजमेर शरीफ और वैष्णो देवी की यात्रा का खर्च उठाती है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/M. Tauseef
दिल्ली
दिल्ली की कैबिनेट ने इसी हफ्ते मुख्यंत्री तीर्थ यात्रा योजना शुरू की है. इसके तहत हर विधानसभा सीट से 1100 वरिष्ठ नागरिकों को तीर्थयात्रा कराई जाएगी जिसका पूरा खर्च सरकार देगी. यात्रा का लाभ सिर्फ उनको मिलेगा जिनकी वार्षिक कमाई 3 लाख रुपये से कम है. यात्रियों को 2 लाख के इंश्योरेंस के अलावा आने जाने, ठहरने और भोजन का खर्च मिलेगा.
तस्वीर: picture alliance/DINODIA
गुजरात
राज्य में 2001 से ही कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए सब्सिडी योजना चल रही है. सिंधु दर्शन और श्रावण तीर्थदर्शन योजना इस साल से शुरू की गयी है. मानसरोवर के लिए 23 हजार रुपये की सब्सिडी मिलती है. सिंधु दर्शन के लिए 15,000 और श्रावण तीर्थ दर्शन के लिए 50 लोगों के समूह में जाने वाले यात्रियों को बस यात्रा का आधा खर्च मिलता है.
तस्वीर: picture alliance/DINODIA
हरियाणा
मौजूदा सरकार 50 बुजुर्ग यात्रियों को सिंधु दर्शन यात्रा के लिए 10 हजार रुपये देती है. 50 दूसरे यात्रियों को मानसरोवर की यात्रा के लिए 50 हजार रुपये मिलते हैं.
तस्वीर: DW/R. Chakraborty
मध्यप्रदेश
मुख्यमंत्री तीर्थ दर्शन योजना के तहत हर साल मध्य प्रदेश के वरिष्ठ नागरिकों को इसका लाभ मिलता है. उन्हें बद्रीनाथ, केदारनाथ, जगन्नाथपुरी, द्वारका, वैष्णोदेवी, गया, हरिद्वार, शिर्डी, तिरुपति, अजमेर शरीफ, काशी, श्रावण बेलागोला और वेलांकन्नी चर्च की यात्रा के लिए सरकार मदद देती है. इसके अलावा तीर्थ के लिए विदेश जाने वालों को भी 30 हजार रुपये या फिर यात्रा का आधा खर्च सब्सिडी के रूप में दिया जाता है.
तस्वीर: picture-alliance/akg-images/A.F. Kersting
कर्नाटक
कर्नाटक के निवासियों को सरकार की तरफ से चार धाम यात्रा के लिए 20 हजार रुपये प्रति यात्री दिए जाते हैं. कांग्रेस पार्टी की सरकार ने यह योजना 2014 में शुरू की थी. इससे पहले बीजेपी सरकार ने मानरोवर यात्रा के लिए 30 हजार रुपये प्रति यात्री सब्सिडी शुरू की थी. 2017 में एक और सब्सिडी शुरू की गई जिसके तहत राज्य में तीर्थ पर जाने वाले सभी धर्मों के लोगों को खर्च का 25 फीसदी हिस्सा मिलता है.
तस्वीर: Milap Chand Sharma
राजस्थान
2013 में कांग्रेस पार्टी की सरकार ने वरिष्ठ नागरिकों के लिए रेल से मुफ्त तीर्थयात्रा योजना शुरू की. पिछले साल बीजेपी सरकार ने इसका नाम बदल, इसमें विमान यात्रा को भी शामिल करा दिया. वर्तमान में 13 तीर्थस्थलों के लिए यह सुविधा दी जाती है. 2013 से लेकर अब तक 80 हजार से ज्यादा लोगों ने इस योजना का लाभ लिया है.
तस्वीर: Reuters
तमिलनाडु
तमिलनाडु में हिंदुओं को मानसरोवर और मुक्तिनाथ की यात्रा के लिए सब्सिडी दी जाती है. यहां येरुशलम की यात्रा पर जाने वाले ईसाई भी सब्सिडी पा सकते हैं. मानसरोवर और मुक्तिनाथ की सब्सिडी 2012 में शुरू की गई. इसके तहत मानसरोवर जाने वाले यात्रियों को 40 हजार और मुक्तिनाथ की यात्रा के लिए 10 हजार रुपये की सब्सिडी दी जाती है. येरुशलम जाने वालों को 20000 रुपये मिलते हैं.
तस्वीर: Getty Images/AFP/A. Gharabli
उड़ीसा
2016 में सरकार ने वरिष्ठ नागरिक तीर्थ यात्रा योजना शुरू की जिसमें वरिष्ठ नागरिकों को तीर्थ यात्रा का पूरा खर्च दिया जाता है. सरकार ने इसके लिए पहले वर्ष में 5 करोड़ रुपये की रकम निर्धारित की थी.
तस्वीर: picture-alliance/akg-images/A. F. Kersting
उत्तर प्रदेश
भारत के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में बीजेपी की सरकार आने का बाद सब्सिडी दोगुनी कर दी गई. यहां कैलाश मानसरोवर की यात्रा करने वालों को अब एक लाख रुपये प्रति यात्री सरकार की तरफ से दिया जाएगा. इसके अलावा समाजवादी पार्टी की सरकार ने श्रावण यात्रा के लिए विशेष रेलगाड़ी की व्यवस्था की थी, जिसमें वरिष्ट नागरिक ही सफर कर सकते हैं.
तस्वीर: DW/S. Waheed
उत्तराखंड
2014 में कांग्रेस पार्टी की सरकार ने मेरे बुजुर्ग, मेरे तीर्थ नाम से योजना शुरू की जिसमें वरिष्ठ नागरिकों को राज्य के तीर्थस्थलों की यात्रा कराई जाती है. बीजेपी की सरकार आने के बाद इसका नाम बदल दिया गया. साथ ही पीरन कलियार दरगाह समेत कई और तीर्थ स्थानों को भी इसमें शामिल किया गया. राज्य का संस्कृति मंत्रालय कैलाश मानसरोवर की यात्रा करने वालों को इस साल से 30 हजार रूपये की सब्सिडी देगा.
तस्वीर: Jasvinder Sehgal
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वहीं जंगलों की कटाई से मिट्टी सूखने लगी है. पिछले कुछ वर्षों में जंगल में आग की घटनाएं बढ़ी हैं. इसकी आग और वाहनों से निकलने वाला धुआं ग्लेशियरों पर प्रभाव डालता है. पिछले 30 वर्षों में हिमालयी क्षेत्रों का मौसम गर्म होता जा रहा है. यह धीरे-धीरे हो रहा है, लेकिन लगातार बढ़ रहा है. शोधकर्ताओं ने वर्ष 2002 से 2020 तक के डाटा को स्टडी किया. पाया गया कि बर्फ से ढका क्षेत्र लगभग हर साल कम हो रहा है.
गंगोत्री ग्लेशियर में सबसे ज्यादा बर्फ पिघली है. इस अवधि के बीच बर्फ हर साल लगभग 22 मीटर तक कम हुई है. हर साल यमुनोत्री में 20 मीटर, बद्रीनाथ में 17.32 मीटर, और केदारनाथ में 14.14 मीटर की दर से बर्फ घटती रही है. इसका असर स्कीइंग जैसे खेलों पर पड़ा है. साथ ही इसके कारण ट्रेकिंग मार्गों और पर्वतारोहण रूटों में भी बदलाव देखने को मिला है.
लोगों की भीड़ को संभालने के लिए निर्माण से हो रहा है नुकसान
चार धाम अब केवल तीर्थस्थान नहीं रहे हैं. धार्मिक यात्रा अब पर्यटन में बदल गई है. यहां कई दुकानें और होटल खुल गए हैं. अवैध सीमेंट निर्माण तेजी से हो रहा है. वर्ष 2023 में प्राचीन तीर्थस्थल जोशीमठ का धंसना इसके दुष्प्रभाव का उदहारण है. रिपोर्ट के मुताबिक विशेषज्ञों ने चेतावनी दी थी, फिर भी निर्माण को अनुमति दी गई और शहर में पर्यटकों के लिए होटल बनाकर विस्तार किया गया.
पर्यटकों के आने से बढ़ा कचरा भी बड़ी समस्या बन गया है. केदारनाथ में पीक सीजन यानी अप्रैल से जुलाई के बीच प्रतिदिन 1.5 से 2 टन कचरा उत्पन्न होता है. इसके निस्तारण के लिए कोई सरकारी नीति अब तक नहीं बनी है.
परेशान करने वाली बात यह है कि ये भीड़ केवल कुछ हिस्सों में ही बढ़ी और उन्हें प्रभावित कर रही है. भारी भीड़ के बावजूद, चमोली, उत्तरकाशी और रुद्रप्रयाग के ग्रामीणों के जीवनस्तर में कोई खास सुधार नहीं हुआ. उत्तरकाशी में 80.10 प्रतिशत, चमोली में 60.07 प्रतिशत और रुद्रप्रयाग में 53.74 प्रतिशत परिवारों की मासिक आय 58.15 अमेरिकी डॉलर से कम है. साल 2025 में लगभग 60 लाख तीर्थयात्री आए और राज्य को करीब 89 करोड़ अमेरिकी डॉलर का लाभ हुआ. मगर स्थानीय विकास नहीं हुआ.
हिमालयी क्षेत्र में क्यों होता है प्राकृतिक आपदाओं का अधिक खतरा
भारत में हिमालयी क्षेत्र 13 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में फैला हुआ है. इनमें उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और सिक्किम जैसे राज्य शामिल हैं. मॉनसून के दौरान, इन इलाकों को अधिक प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ता है.
तस्वीर: Aqil Khan/AP/picture alliance
नाजुक होते हैं पर्वतीय क्षेत्रों के ईकोसिस्टम
इंटरनेशनल माउंटेन कॉन्फ्रेंस की वेबसाइट पर प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक, हिमालय जैसे पर्वतीय क्षेत्र अपनी जटिल बनावट, नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र और लगातार बदलती जलवायु परिस्थितियों की वजह से विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं के प्रति काफी अधिक संवेदनशील होते हैं.
तस्वीर: Federation Studios
कई रूपों में आती हैं प्राकृतिक आपदाएं
भारत का हिमालयी क्षेत्र कई प्रकार की प्राकृतिक आपदाओं का सामना करता है, जिसमें भूस्खलन, भूकंप, बादल फटना और ग्लेशियर लेक की वजह से आने वाली बाढ़ शामिल है. ये आपदाएं आबादी क्षेत्र, बुनियादी ढांचे और जैव विविधता के लिए गंभीर खतरे पैदा करती हैं.
एक अध्ययन के मुताबिक, हिमालय क्षेत्र में बसे विभिन्न इलाकों में मॉनसून के दौरान जल-संबंधी आपदाएं आती हैं. इस दौरान आमतौर पर बादल फटने और अचानक बाढ़ आने की घटनाएं दर्ज की जाती हैं. बादल फटने के दौरान, किसी एक इलाके में बहुत कम समय में बहुत अधिक बारिश होती है.
तस्वीर: @suryacommand/X
निचले इलाकों में मचती है तबाही
हिमालयी क्षेत्र में अधिकतर नदियां संकरी घाटियों से होकर बहती हैं. बादल या ग्लेशियर झील के फटने की स्थिति में पानी के तेज बहाव के साथ बड़ी मात्रा में मलबा भी आ जाता है. इससे नदियों के रास्ते अवरुद्ध हो जाते हैं और निचले इलाकों में अचानक बाढ़ की स्थिति बन जाती है.
तस्वीर: Uttarakhand's State Disaster Response Force/AFP
आपदाओं में रही 44 फीसदी हिस्सेदारी
डाउन टू अर्थ पत्रिका में प्रकाशित हुए एक विश्लेषण के मुताबिक, साल 2013 से 2022 के दौरान पूरे देश में 156 आपदाएं दर्ज की गईं, जिनमें से 68 आपदाएं केवल हिमालयी क्षेत्र में हुईं. देश के भौगोलिक क्षेत्र में 18 फीसदी की हिस्सेदारी रखने वाले हिमालयी क्षेत्र की आपदाओं में हिस्सेदारी 44 फीसदी रही.
तस्वीर: Ashwini Bhatia/AP Photo/picture alliance
बाढ़ का रहता है सबसे अधिक खतरा
भारतीय हिमालयी क्षेत्र में सबसे ज्यादा खतरा बाढ़ आने का होता है. सन 1903 से लेकर अब तक इस क्षेत्र में 240 आपदाएं दर्ज की गई हैं. इनमें से 132 बाढ़ संबंधी आपदाएं हैं. इसके बाद, भूस्खलन की 37, तूफान की 23, भूकंप की 17 और चरम तापमान की 20 आपदाएं दर्ज की गई हैं.
तस्वीर: Uttarakhand's State Disaster Response Force/AFP
सिक्किम में हुई थी करीब 180 लोगों की मौत
अक्टूबर 2023 में सिक्किम राज्य में भारी बारिश के चलते एक ग्लेशियर झील फूट गई थी और उसके बाद इलाके में बाढ़ आ गई थी. इस आपदा में करीब 180 लोगों की मौत हो गई थी. जानकारों के अनुसार, जलवायु परिवर्तन के कारण पर्वतीय क्षेत्र गर्म हो रहे हैं और ऐसी घटनाओं का खतरा बढ़ रहा है.
फरवरी 2021 में उत्तराखंड में अचानक आई बाढ़ में दो हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट बह गए थे. पानी के तेज बहाव के साथ चट्टानें और मलबा धौलीगंगा नदी घाटी में पहुंच गया था. इस दौरान, 200 से अधिक लोगों की मौत हुई थी. इससे पहले, साल 2013 में भी उत्तराखंड में भारी तबाही मची थी.
तस्वीर: Sajjad Hussain/AFP/Getty Images
विकास परियोजनाओं से बढ़ रहा खतरा
विशेषज्ञों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन और पर्वतीय क्षेत्रों में चल रहीं विकास परियोजनाओं से प्राकृतिक आपदाओं का खतरा बढ़ा है. एक अध्ययन के मुताबिक, हिमालयी क्षेत्र राष्ट्रीय औसत की तुलना में अधिक तेजी से गर्म हो रहा है, इससे भविष्य में आपदाओं की संख्या और बढ़ सकती है.
तस्वीर: Francis Mascarenhas/REUTERS
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विशेषज्ञों ने दिए सुझाव
अध्ययन को लीड कर रहे प्रोफेसर जगदीश चंद्र कुनियाल से डीडब्लू ने बात की. उनका मानना है कि चार धाम के आसपास के क्षेत्रों में पर्यटकों की इस भीड़ को बांटा जाए. वहां ईको-टूरिज्म विकसित किया जाए ताकि ग्रामीणों को भी इसका लाभ मिल सके. साथ ही उनका कहना है कि निर्माण के समय ऊंचाई और ढलान का ध्यान भी रखा जाना चाहिए.
जगदीश कहते हैं, "200 मीटर से अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्र पर्यटन विकास के लिए कम उपयुक्त माने गए हैं. इसलिए पर्यटन विकास उन जगहों पर किया जाए जो कम ऊंचाई और कम ढलान वाली हों."
वह आगे कहते हैं, "अभी पर्यटक केवल चार धाम के रास्ते पर ही सीमित है. वे वहीं रुकते हैं. खाना खाते हैं. आगे बढ़ते हैं. जिससे उस रास्ते पर भीड़भाड़ बढ़ती है. जरुरी है कि पर्यटन का विकेंद्रीकरण हो. जैसे बद्रीनाथ के बगल में तप्त कुंड, ब्रह्म कपाल और केदारनाथ के पास चोराबारी और वासुकि ताल को विकसित किया जाना चाहिए. आसपास के क्षेत्रों जैसे पंडुकेश्वर, गोविंद घाट, जोशीमठ और औली का ‘ऑल वेदर टूरिज्म' के रूप में विकास हो सकता है. ताकि ग्रामीणों को पर्यटन से फायदा मिल सके और एक ही जगह पर पर्यटकों की भीड़ भी ना रहे."
जगदीश चंद्र कुनियाल ने चार धाम के निकटवर्ती ऐसे अन्य और क्षेत्रों की पहचान की है. उन्होंने ‘घाम तापो' पर्यटन का सुझाव भी दिया है. सर्दियों के मौसम में हिमालय क्षेत्र में आसमान साफ और सूरज खिला रहता है. यह समय भी पर्यटन के लिए अच्छा माना जाता है. पर्यटकों को यह जानकारी दी जानी चाहिए कि चार धाम क्षेत्र में गैर-यात्रा मौसम में भी घूमने आया जा सकता है. इससे हिमालयी क्षेत्रों में पर्यटन के महीनों की अवधि बढ़ाई जा सकेगी. यह केवल सबसे ज्यादा यात्रा वाले महीनों तक ही सीमित नहीं रहेगी.
इसके साथ ही पर्वतीय गांवों में होम स्टे की योजना, वाहन पार्किंग की व्यवस्था, और स्थानीय समुदाय आधारित जिम्मेदार पर्यटन को विकसित करना जैसे सुझाव भी शोधकर्ताओं ने दिए है. सुरक्षित यात्रा के लिए मोबाइल ऐप भी लॉन्च किया जाना चाहिए. ये सब कदम पर्यटन को सुरक्षित, सुविधाजनक और सतत बनाने में मदद करेंगे.