ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के वैज्ञानिकों ने अंटार्कटिका के दक्षिणी महासागर के वेडेल, अमुंडसेन और रॉस समुद्रों में पाए जाने वाले टुफ्के ऑक्टोपसों का अध्ययन किया. उन्होंने इन ऑक्टोपसों के जेनेटिक प्रोफाइल में 'आखिरी इंटरग्लेशियल युग' से संयोजकता या कनेक्टिविटी पाई.
'आखिरी इंटरग्लेशियल युग' 1,30,000 साल से 1,15,000 साल पहले का समय था जब धरती का तापमान आज से ज्यादा था, समुद्र की सतह का स्तर भी आज से ज्यादा था और बर्फ की चादरें आज से छोटी थीं.
क्या हुआ होगा लाखों साल पहले
गुरूवार को 'साइंस' पत्रिका में छपे इस अध्ययन के नतीजों के मुताबिक इस खोज से एक ऐसे सवाल का जवाब मिला जिस पर लंबे समय से बहस चल रही है. वह सवाल है कि क्या पश्चिमी अंटार्कटिक में बर्फ की चादर उसी युग में टूटी थी.
पश्चिमी अंटार्कटिक बर्फ की चादर का सबसे बड़ा ग्लेशियर, पाइन आइलैंड ग्लेशियरतस्वीर: ESA/dpa/picture-alliance
अध्ययन का नेतृत्व करने वाले ऑस्ट्रेलिया के जेम्स कुक विश्वविद्यालय के जैन स्ट्रगनेल ने कहा, "यह जेनेटिक कनेक्टिविटी तभी संभव है अगर आखिरी इंटरग्लेशियल युग में पश्चिमी अंटार्कटिक बर्फ की चादर पूरी तरह से टूट गई हो जिससे आज के वेडेल, अमुंडसेन और रॉस समुद्रों के बीच समुद्री रास्ते खुल गए हों."
पोस्टडॉक्टोरल रिसर्च फेलो सैली लाउ ने कहा, "इसकी वजह से ओक्टोपसों को नए खुले रास्तों से हो कर घूमने का मौका मिला होगा और इस क्रम में जेनेटिक सामग्री साझा की गई होगी, जो आज की आबादी के डीएनए में नजर आता है."
अनुमान लगाने में मिलेगी मदद
स्ट्रगनेल के मुताबिक आखिरी इंटरग्लेशियल ऐसा युग था जब "औसत वैश्विक तापमान पूर्वऔद्योगिक समय के मुकाबले 0.5 से 1.5 डिग्री सेल्सियस ज्यादा गर्म था और वैश्चिक समुद्र का स्तर आज के मुकाबले पांच से दस मीटर ज्यादा ऊंचा."
ये बर्फ पिघली तो आएगी तबाही
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स्ट्रगनेल ने आगे कहा, "पश्चिमी अंटार्कटिक बर्फ की चादर इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि वो इस समय वैश्विक समुद्री सतह के स्तर के बढ़ने में अंटार्कटिका में सबसे बड़ा योगदान दे रही है. अगर वह पूरी तरह से टूट जाए तो दुनिया में समुद्र की सतह तीन से पांच मीटर तक बढ़ सकती है."
उन्होंने यह भी कहा कि जिस समय वैश्विक तापमान आज के जैसा था उस समय यह बर्फ की चादर कैसे बनी थी यह समझने से हमें भविष्य में समुद्री के स्तर का बेहतर अनुमान लगाने में मदद मिलेगी.
सीके/एए (डीपीए)
प्रलयकारी ग्लेशियर के टूटने का खतरा
ग्लोबल वॉर्मिंग ने अंटार्कटिका के सबसे बड़े हिमखंडों में से एक थ्वेट्स को खतरे में डाल दिया है. अगर इस ग्लेशियर से बर्फ टूटी तो बहुत सारा पानी समुद्र में जाएगा और उसके जलस्तर को नाटकीय रूप से बढ़ा देगा.
तस्वीर: NASA/AFP
प्रलय का बड़ा खतरा
यह ग्लेशियर जितना विशालकाय है, खतरा उतना ही बड़ा है. इसका आकार 1,92,000 वर्ग किलोमीटर है यानी लगभग युनाइटेड किंग्डम जितना. इसका एक तिहाई हिस्सा बर्फ के तैरते हुए टुकड़े हैं, जिनमें दरारें बढ़ती जा रही हैं.
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कांच की तरह बिखर सकती है बर्फ
शोधकर्ताओं को डर है कि इस हिमखंड में कुछ नाटकीय बदलाव हो रहे हैं. यह संभव है कि अगले तीन से पांच साल में 45 किलोमीटर लंबा बर्फ का एक टुकड़ा कार के शीशे की तरह चूर-चूर हो जाए.
तस्वीर: NASA/AFP
समुद्र जल स्तर बढ़ने का खतरा
अगर बर्फ का यह टुकड़ा टूटता है तो विशाल मात्रा में बर्फ पानी में जाकर पिघल जाएगी. इससे और ज्यादा बर्फ के टुकड़े टूटेंगे.
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ऐसा कई जगह हो रहा है
अगर ऐसा होता है तो यह अकेली घटना नहीं होगी. जुलाई 2017 में पश्चिमी अंटार्कटिका में ए68 नाम का एक हिमशैल लार्सन सी आइस शेल्फ से टूट कर अलग हो गया था. वैसे तो बर्फ के टुकड़े यूं टूटते रहते हैं लेकिन सर्दियों में ऐसा होने का खतरा वैज्ञानिकों को हैरान कर रहा है.
वैज्ञानिकों का मानना है कि थ्वेट्स के साथ जो हो रहा है उसकी वजह जलवायु परिवर्तन है. बर्फ के नीचे के पानी का तापमान बढ़ रहा है जिस कारण बड़े हिस्से पिघल गए हैं और ग्लेशियर गुफाएं बन गई हैं. पिछले 30 साल में यह प्रक्रिया बेहद तेज हुई है.
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25 इंच बढ़ जाएगा स्तर
यदि थ्वेट्स ग्लेशियर पूरी तरह टूट जाता है और इसकी सारी बर्फ पिघल जाती है तो समद्र का जलस्तर 25 इंच या 65 सेंटीमीटर तक बढ़ सकता है.
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प्रयलकारी ग्लेशियर
थ्वेट्स का टूटना प्रलयकारी हो सकता है. इस कारण आसपास के ग्लेशियर भी टूट सकते हैं. पूरे पश्चिमी अंटार्कटिका में बर्फ पिघल सकती है. नतीजा होगा जलस्तर में 3.3 मीटर की बढ़त. इसीलिए इस ग्लेशियर को प्रलयकारी कहा जाता है.