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विज्ञानऑस्ट्रेलिया

ऑक्टोपस के डीएनए में लाखों साल पुरानी घटना का सुराग

२२ दिसम्बर २०२३

ऑक्टोपस के डीएनए पर हुए एक शोध से पता चला है कि 1,20,000 साल पहले जब अंटार्कटिका में एक बर्फ की चादर पिघली थी, तब धरती का तापमान आज जैसा ही रहा होगा.

ऑक्टोपस
ऑक्टोपसतस्वीर: Britta Pedersen/dpa-Zentralbild/picture alliance

ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के वैज्ञानिकों ने अंटार्कटिका के दक्षिणी महासागर के वेडेल, अमुंडसेन और रॉस समुद्रों में पाए जाने वाले टुफ्के ऑक्टोपसों का अध्ययन किया. उन्होंने इन ऑक्टोपसों के जेनेटिक प्रोफाइल में 'आखिरी इंटरग्लेशियल युग' से संयोजकता या कनेक्टिविटी पाई.

'आखिरी इंटरग्लेशियल युग' 1,30,000 साल से 1,15,000 साल पहले का समय था जब धरती का तापमान आज से ज्यादा था, समुद्र की सतह का स्तर भी आज से ज्यादा था और बर्फ की चादरें आज से छोटी थीं.

क्या हुआ होगा लाखों साल पहले

गुरूवार को 'साइंस' पत्रिका में छपे इस अध्ययन के नतीजों के मुताबिक इस खोज से एक ऐसे सवाल का जवाब मिला जिस पर लंबे समय से बहस चल रही है. वह सवाल है कि क्या पश्चिमी अंटार्कटिक में बर्फ की चादर उसी युग में टूटी थी.

पश्चिमी अंटार्कटिक बर्फ की चादर का सबसे बड़ा ग्लेशियर, पाइन आइलैंड ग्लेशियरतस्वीर: ESA/dpa/picture-alliance

अध्ययन का नेतृत्व करने वाले ऑस्ट्रेलिया के जेम्स कुक विश्वविद्यालय के जैन स्ट्रगनेल ने कहा, "यह जेनेटिक कनेक्टिविटी तभी संभव है अगर आखिरी इंटरग्लेशियल युग में पश्चिमी अंटार्कटिक बर्फ की चादर पूरी तरह से टूट गई हो जिससे आज के वेडेल, अमुंडसेन और रॉस समुद्रों के बीच समुद्री रास्ते खुल गए हों."

पोस्टडॉक्टोरल रिसर्च फेलो सैली लाउ ने कहा, "इसकी वजह से ओक्टोपसों को नए खुले रास्तों से हो कर घूमने का मौका मिला होगा और इस क्रम में जेनेटिक सामग्री साझा की गई होगी, जो आज की आबादी के डीएनए में नजर आता है."

अनुमान लगाने में मिलेगी मदद

स्ट्रगनेल के मुताबिक आखिरी इंटरग्लेशियल ऐसा युग था जब "औसत वैश्विक तापमान पूर्वऔद्योगिक समय के मुकाबले 0.5 से 1.5 डिग्री सेल्सियस ज्यादा गर्म था और वैश्चिक समुद्र का स्तर आज के मुकाबले पांच से दस मीटर ज्यादा ऊंचा."

ये बर्फ पिघली तो आएगी तबाही

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स्ट्रगनेल ने आगे कहा, "पश्चिमी अंटार्कटिक बर्फ की चादर इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि वो इस समय वैश्विक समुद्री सतह के स्तर के बढ़ने में अंटार्कटिका में सबसे बड़ा योगदान दे रही है. अगर वह पूरी तरह से टूट जाए तो दुनिया में समुद्र की सतह तीन से पांच मीटर तक बढ़ सकती है."

उन्होंने यह भी कहा कि जिस समय वैश्विक तापमान आज के जैसा था उस समय यह बर्फ की चादर कैसे बनी थी यह समझने से हमें भविष्य में समुद्री के स्तर का बेहतर अनुमान लगाने में मदद मिलेगी.

सीके/एए (डीपीए)

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