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समाजएशिया

प्रवासी मजदूरों के लिए रेंटल हाउसिंग स्कीम

क्रिस्टीने लेनन
१० जुलाई २०२०

शहरों में एक घर किराये पर ले पाना मजदूरों के बस की बात नहीं है. अब इस वर्ग के लिए केंद्र सरकार रेंटल हाउसिंग स्कीम की योजना ला रही है. इसके तहत प्रवासी मजदूरों के लिए उनके कार्यस्थल के पास ही रहने की व्यवस्था कराई जाएगी.

Indien Mumbai | Coronakrise: Arbeitsmigranten der Textilbranche während Ausgangssperre
तस्वीर: Reuters/F. Mascarenhas

कोरोना संकट का सबसे बुरा असर प्रवासी मजदूरों पर पड़ा है. काम के लिए शहर गए ये मजदूर लॉकडाउन के दौरान भोजन और छत दोनों से वंचित हो गए. ऐसे मजदूरों को आगे कोई मुश्किल ना आए, इसके लिए सरकार ने रेंटल हाउसिंग स्कीम को आगे बढ़ाने का फैसला किया है. आवास एवं शहरी कार्य मंत्रालय ने प्रधानमंत्री आवास योजना के अंतर्गत एक उप योजना के रूप में शहरी प्रवासियों और गरीबों के लिए कम किराये वाले आवासीय परिसरों यानी एआरएचसी योजना की शुरुआत की है. इसके तहत केंद्र सरकार की फंडिंग से तैयार किए गए खाली आवासीय परिसरों को कम किराये वाले आवासीय परिसरों में तब्दील किया जाएगा. राज्य सरकारें और केंद्र शासित प्रदेशों की ओर से ऐसे परिसरों के विकास के लिए एजेंसियों को बोली के जरिए चुना जाएगा. 25 साल का ही अनुबंध होगा, उसके बाद परिसर स्थानीय निकाय को सौंपना होगा. फिलहाल प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत सवा लाख से ज्यादा बने फ्लैट्स 107 शहरों में किराये पर दिए जाएंगे.

इस योजना में 600 करोड़ रूपये का प्रावधान किया गया है. केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर का कहना है कि कम किराये के आवासीय परिसरों के विकास को कैबिनेट ने मंजूरी दी है. इस योजना के शुरूआती चरण में लगभग 3 लाख शहरी प्रवासियों या गरीब लोगों को फायदा होगा. भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग महासंघ के प्रदीप टंडन ने सरकार के इस कदम की सराहना की है. उनके अनुसार रेंटल हाउसिंग स्कीम से न केवल प्रवासी मजदूरों, बल्कि अर्थव्यवस्था को भी फायदा पहुंचेगा.

कई लक्ष्यों को साधने की कोशिश

कोरोना संकट और इस दौरान लगाए गए लॉकडाउन ने प्रवासी मजदूरों की मुश्किलों को सबके सामने ला दिया. इसके आलावा इन मजदूरों की उपयोगिता भी सरकारों को समझ में आने लगी है. बिना प्रवासी मजदूरों को वापिस बुलाए अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाना मुश्किल होगा. लेकिन मुश्किल समय में अकेले छोड़ दिए गए मजदूरों को मनाना भी एक चुनौती है. सरकार प्राइवेट सेक्टर के साथ मिल कर एक ऐसा इकोसिस्टम तैयार करना चाहती है जहां शहरी प्रवासी मजदूरों की आवास और रोजगार दोनों समस्या हल हो जाएं. कार्यस्थल के पास ही घर मिलने से मजदूर और नियोक्ता दोनों को फायदा होगा. इससे मजदूरों को अनावश्यक यात्रा नहीं करना पड़ेगी और समय की बचत भी होगी.

तालाबंदी में फंसे मजदूरों की जंग

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इससे शहर के भीड़भाड़ और प्रदूषण में भी कमी आने का अनुमान है. साथ ही परिवहन सेवाओं पर भी दबाव कम होगा. इस योजना के शुरूआती चरण में सरकार द्वारा वित्तपोषित खाली पड़े आवासों को सस्ते उत्पादक उपयोग के लिए एआरएचसी में कवर किए जाएंगे. इनका किराया लोकल कॉपोर्रेशन तय करेंगी. किराया 1 से 3 हजार के बीच हो सकता है. इस स्कीम से निजी और सरकारी क्षेत्र की कंपनियों को जोड़ने के लिए सरकार प्रयास कर रही है. प्रकाश जावड़ेकर कहते हैं कि प्राइवेट सेक्टर द्वारा ऐसे हाउसिंग कॉम्प्लेक्स बनाने पर उन्हें विशेष प्रोत्साहन दिया जाएगा. इसमें 50 फीसदी फ्लोर एरिया रेशियो या फ्लोर स्पेस इंडेक्स तथा टैक्स छूट शामिल है.

मुंबई में आवास की समस्या

दिल्ली और मुंबई जैसे बड़े महानगरों में आवास एक बड़ी समस्या है. रेंटल हाउसिंग स्कीम या कम किराये के आवासीय परिसरों की उपलब्धता बढ़ाई जाती है, तो इसका सीधा फायदा लाखों प्रवासी कामगारों और लो इनकम ग्रुप के लोगों को होगा. शब्बीर उन लाखों प्रवासियों में से एक हैं जो एक छोटे से कमरे में 4-5 लोगों के साथ रहते हैं. ड्राइविंग जानने वाले बब्बन मियां असम से काम की तलाश में मुंबई आए और एक कंपनी में ड्राइवर बन गए. वे कहते है, "अगर कार्यस्थल के पास ही रियायती कीमत पर घर मिले तो मुंबई जन्नत हो जाएगी." गैर सरकारी संगठन डॉटर ऑफ द नेशन के बालकृष्ण नायक कहते हैं कि मुंबई में हजारों मजदूर निर्माणाधीन बिल्डिंग में ही अपना अधिकांश जीवन गुजार देते है. उनकी सुरक्षा और सेहत दोनों के लिए ऐसी जगह ठीक नही है.   

सरकार की यह योजना अच्छी है लेकिन इसे अमल में ला पाना किसी चुनौती से कम नहीं है. देश भर में करोड़ों ऐसे लोग हैं जो दूसरे शहर में जाकर काम, व्यापार या पढ़ाई कर रहे हैं. इनमें से अधिकतर आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग से आते हैं और इन्हें रियायती किराये वाले घर की जरूरत होगी. सामाजिक कार्यकर्त्ता बालकृष्ण नायक कहते हैं कि अकेले मुंबई में ही लाखों लोग ऐसे हैं जिन्हें न्यूनतम जरूरी सुविधा वाले घर की आवश्यकता है. सरकार अकेले सभी जरूरतमंदों को घर मुहैया नहीं करा सकती. वे कहते हैं कि निजी क्षेत्र बिना मुनाफा इस स्कीम को लागू करेंगे, इसमें संदेह है.

अतीत में मुंबई में कपड़ा मिल मालिकों ने कामगारों के लिए खुद चाल बनवाई थीं. थोड़े बदलाव के साथ यह मॉडल आज भी कारगर साबित हो सकता है, जहां नियोक्ता अपने कर्मचारियों के लिए आवास की व्यवस्था करें. इस आवासीय परिसर में साफ-सफाई, सुरक्षा और स्वास्थ्य को ध्यान में रखा जाना भी प्राथमिकता में शामिल होना चाहिए.

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