सुप्रीम कोर्ट में भारत सरकार ने कहा कि एक बार में तीन तलाक को गैरसंवैधानिक घोषित किए जाने के बाद भी देश में ऐसे मामले सामने आ रहे हैं.
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भारतीय संसद ने मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) अधिनियम 2019 बनाया है. इसके तहत एक बार में तीन तलाक देना जु्र्म है. सुप्रीम कोर्ट में दायर एक हलफनामे में केंद्र सरकार ने तीन तलाक देने वाले पुरुषों को तीन साल की सजा के प्रावधान को सही बताया है, साथ ही कहा है कि सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने 2017 में फैसला सुनाया कि यह प्रथा असंवैधानिक थी, केंद्र ने कहा यह अब भी बेरोकटोक बनी हुई है. केंद्र की दलील है कि इसलिए इस प्रथा को रोकने के लिए एक निवारक कानून बनाना आवश्यक है.
केंद्र सरकार का 177 पन्नों का हलफनामा हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में दायर किया गया है. यह उन याचिकाओं के जवाब में दाखिल किया गया है जिसमें मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) अधिनियम 2019 की संवैधानिकता को चुनौती दी गई है. इस अधिनियम के तहत तीन तलाक दंडनीय अपराध है और इसमें अधिकतम तीन साल कैद की सजा का प्रावधान है.
तीन तलाक कानून को दी गई चुनौती
तीन तलाक कानून को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दाखिल की गईं हैं. सरकार ने इन याचिकाओं पर की जाने वाली सुनवाई का विरोध करते हुए दायर हलफनामे में कहा है कि सुप्रीम कोर्ट के तीन तलाक को असंवैधानिक करार दिए जाने के बावजूद रिपोर्टें बताती हैं कि तीन तलाक की प्रथा अब भी मौजूद है.
हलफनामे में कहा गया है शायरा बानो मामले में फैसले से तीन तलाक की घटनाओं में कमी नहीं आई है. ऐसे तलाक के पीड़ितों की मदद के लिए राज्य के हस्तक्षेप की जरूरत है.
हलफनामे में तर्क दिया गया कि "अकेले विधायिका, वर्तमान सरकार की अध्यक्षता में यह निर्धारित कर सकती है कि देश के लोगों के लिए क्या अच्छा है और क्या नहीं."
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तीन तलाक के मामले जारी-केंद्र
केंद्र का कहना है कि भले ही शायरा बानो मामले में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड तीन तलाक की प्रथा को नियंत्रित करने के लिए दिशानिर्देश निर्धारित करने पर सहमत हो गया था, लेकिन मीडिया में आ रही रिपोर्टों से पता चलता है कि यह अब भी जारी है.
सुप्रीम कोर्ट ने 22 अगस्त 2017 को शायरा बानो बनाम भारत संघ व अन्य के अपने फैसले में तलाक ए बिद्दत या एक मुस्लिम पति द्वारा घोषित ट्रिपल तलाक और अपरिवर्तनीय तलाक के किसी अन्य समान रूप को असंवैधानिक घोषित किया था.
इसके बाद केंद्र सरकार ने मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) अधिनियम 2019 बनाया था और इस तरह के तलाक को अपराध घोषित कर दिया था.
इस कानून को चुनौती देते हुए संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21 और 25 के उल्लंघन के लिए अधिनियम की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए कई याचिकाएं दायर की गईं हैं.
2019 अधिनियम के खिलाफ याचिकाओं में जमीयत उलेमा-ए-हिंद की एक याचिका भी शामिल है. जिसमें तर्क दिया गया है कि एक मुस्लिम पति को तीन तलाक देने पर सजा भुगतना होगा, वहीं एक अन्य धर्म का व्यक्ति सजा के डर के बिना अपनी पत्नी को छोड़ सकता है.
केरल के सुन्नी मुस्लिम विद्वानों और मौलवियों के सबसे बड़े धार्मिक संगठनों में से एक समस्त केरल जमीयतुल की एक अन्य याचिका में दावा किया गया है कि नए कानून का एकमात्र उद्देश्य "मुस्लिम पतियों को दंडित करना" है.
अधिनियम को असंवैधानिक बताकर दाखिल की गईं याचिकाओं पर सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट तैयार हो गया है. कोर्ट इस मुद्दे पर नवंबर में सुनवाई करेगा.
लड़ाई की नौबत आये तो साथी से तलाक ले लेता है यह परिंदा
अल्बाट्रोस समुद्री पक्षी हैं और ज्यादातर पूरी जिंदगी जोड़े में बिताते हैं लेकिन शर्मीले नर अल्बाट्रोस को उनके साथी से अलग रहना पड़ता है. समुद्री परिंदों के व्यक्तित्व से जुड़ी दिलचस्प बातें वैज्ञानिकों ने पता लगाई हैं.
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परिंदों का व्यक्तित्व
वैज्ञानिकों की एक रिसर्च ने पहली बार इन परिंदों के व्यक्तित्व से जुड़ी बातें सामने रखी हैं और इनमें तलाक जैसी बातें भी दिखी हैं. हालांकि वैज्ञानिकों के मुताबिक इन परिंदों में तलाक के मामले महज 13 फीसदी ही हैं.
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अल्बाट्रोस का अकेलापन
दक्षिणी गोलार्ध में पाये जाने वाले घुमक्कड़ अल्बाट्रोस के पंखों का फैलाव किसी भी परिंदे की तुलना में सबसे ज्यादा होता है. तीन मीटर से ज्यादा विस्तार वाले पंखों के मालिक अकसर अकेले जिंदगी बिताते हैं.
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50 साल की जिंदगी
इन परिंदों की जिंदगी 50 साल से ज्यादा होती है. ज्यादातर अकेले रहने वाले परिंदे दो साल में एक बार अपने साथी के पास होते हैं और इसी दौरान प्रजनन होता है. बच्चे को पाल कर तैयार करने में एक साल का समय और काफी मेहनत लगती है इसलिये ये एक साल आराम करते हैं.
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प्रजनन में असफलता पर तलाक
वैज्ञानिकों का कहना है कि किसी एक साथी के साथ प्रजनन में सफलता जब बहुत घट जाती है तो ये फिर दूसरे साथी की ओर मुड़ जाते हैं. तलाक की प्रवृत्ति इनमें कैसे उभरती है यह जानने के लिये वैज्ञानिकों ने एक अनोखा डाटाबेस तैयार किया है.
तस्वीर: A.Rouse/WILDLIFE/picture alliance
साथी को रिझाने का तरीका
प्रजनन के लिये साथी को रिझाने के लिये ये अपने पंखों को फैला कर मुंह से आवाज निकालते हैं और फिर आमतौर पर चारों ओर नाचते हैं. कई बार इसी दौरान कोई दबंग बाहरी नर बीच में घुस जाता है. ऐसी हालत में शर्मीले नर लड़ने की बजाय तलाक स्वीकार कर लेते हैं.
नर की संख्या मादा की तुलना में ज्यादा होती हैं. वजह है मादा अल्बाट्रोस का उन इलाकों में भटकना जहां उनके मछलियों के जाल में फंसने की आशंका होती है. अधिक नर होने से मादा को तुरंत नर मिल जाता है लेकिन नर को मादा के लिये इंतजार करना होता है, कई बार 4 साल तक.
ये परिंदे सालों साल अपने साथी के साथ रिश्ते में रहते हैं और नये परिंदों से रिश्ता जोड़ने से बचते हैं. पिछले साल एक रिसर्च में पता चला कि जलवायु परिवर्तन की वजह से भी चिड़ियों में तलाक हो रहे हैं क्योंकि सागर में घटती मछलियों की वजह से उन्हें खाना ढूंढने दूर जाना पड़ता है.
दबंग और उत्साही अल्बाट्रोस की तुलना में शर्मीले अल्बाट्रोस के तलाक की आशंका दोगुनी ज्यादा होती है. हालांकि मादा अल्बाट्रोस में इस बात को लेकर कोई फर्क नहीं दिखा. वैज्ञानिक पहली बार किसी जंगली जीव में तलाक और उनके व्यक्तित्व में संबंध दिखा पाये हैं.
आमतौर पर अल्बाट्रोस इंसानों से नहीं डरते और रिसर्चरों ने करीब 2000 चिड़ियों पर इस बात को परखा है. वैज्ञानिक आसानी से उनके पास उनके घोसलों तक जाकर उनके पैरों में छल्ले पहनाते रहे.
1959 से ही वैज्ञानिक घुमक्कड़ अल्बाट्रोस के पजेसन द्वीप पर मौजूद बस्ती की निगरानी कर रहे हैं. यह दक्षिणी हिंद महासागर के क्रोजेट द्वीप समूह पर है. वैज्ञानिक इनके पैरों में नंबर के साथ एक छल्ला डाल देते हैं.