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कानून और न्यायभारत

दिल्ली के लिए केंद्र सरकार को अध्यादेश की जरूरत क्यों पड़ी

आमिर अंसारी
२३ मई २०२३

दिल्ली पर केंद्र के अध्यादेश के बाद केजरीवाल सरकार और केंद्र सरकार के बीच तनातनी बढ़ गई है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अध्यादेश ने दिल्ली सरकार की अधिकारियों की ट्रांसफर-पोस्टिंग की उम्मीदों पर पानी फेर दिया.

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवालतस्वीर: DW/S. Kumar

11 मई को भारत की शीर्ष अदालत ने दिल्ली सरकार को बड़ी राहत देते हुए फैसला दिया कि पब्लिक ऑर्डर, पुलिस और जमीन को छोड़कर बाकी सभी सेवाएं दिल्ली सरकार के नियंत्रण में होगी. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि इन सेवाओं पर दिल्ली सरकार का विधायी और प्रशासकीय नियंत्रण होगा यानी अफसरों के तबादले और पोस्टिंग सरकार के हाथ में होगी.

सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में पांच जजों की बेंच ने कहा था दिल्ली पूर्ण राज्य नहीं है लेकिन अनुच्छेद 239 एए के तहत उसे विशेष दर्जा मिला हुआ है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी कहा था अफसरों पर चुनी हुई सरकार का ही नियंत्रण होना चाहिए. नहीं तो प्रशासन की सामूहिक जिम्मेदारी प्रभावित होगी.

कोर्ट के इस आदेश को दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार ने बड़ी जीत करार दिया था लेकिन इस फैसले के एक हफ्ते बाद 19 मई को केंद्र सरकार ने एक अध्यादेश जारी कर दिया. इसने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट दिया. केंद्र सरकार "राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली (संशोधन) अध्यादेश, 2023" लेकर आई है.

क्या कहता है अध्यादेश

अध्यादेश में कहा गया है कि अफसरों की ट्रांसफर और पोस्टिंग से जुड़ा अंतिम निर्णय लेने का हक उपराज्यपाल को वापस दे दिया गया है. मतलब यह है कि अब अधिकारियों की ट्रांसफर और पोस्टिंग उपराज्यपाल ही करवाएंगे.

अधिकारियों के ट्रांसफर और पोस्टिंग से संबंधित मुद्दों पर निर्णय लेने के लिए अध्यादेश के जरिए केंद्र सरकार एक वैधानिक निकाय, राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण की स्थापना करेगी.

प्राधिकरण में तीन सदस्य होंगे, जिनमें मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव और प्रमुख गृह सचिव शामिल हैं. जिसका मतलब है कि निर्वाचित मुख्यमंत्री के निर्णय को दो वरिष्ठ गैर-निर्वाचित नौकरशाह वीटो या खारिज कर सकते हैं. प्राधिकरण में फैसले बहुमत के आधार पर होंगे और अगर उपराज्यपाल इस प्राधिकरण के फैसले से सहमत नहीं होंगे तो वह इन फैसलों को पुनविर्चार के लिए दोबारा प्राधिकरण के पास भेज देंगे.

इसी अध्यादेश के तहत दिल्ली में सेवा दे रहे 'दानिक्स' कैडर के ग्रुप ए अधिकारियों के तबादले और अनुशासनात्‍मक कार्रवाई के लिए "राष्ट्रीय राजधानी लोक सेवा प्राधिकरण" गठित किया गया है. दानिक्स यानी दिल्ली, अंडमान-निकोबार, लक्षद्वीप, दमन एंड दीव, दादरा एंड नागर हवेली सिविल सर्विसेज.

11 मई को सुप्रीम कोर्ट ने दिया था अहम फैसलातस्वीर: picture-alliance/AP Photo/A. Qadri

क्या अध्यादेश के जरिए पलटा जा सकता है कोर्ट का फैसला

अब सवाल यह है कि क्या राष्ट्रपति के हस्ताक्षर वाला अध्यादेश सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट सकता है. संविधान के अनुच्छेद 123 में राष्ट्रपति के अध्यादेश जारी करने की शक्तियों का वर्णन है. अगर संसद नहीं चल रही है और मुद्दा बहुत महत्वपूर्ण है तो अध्यादेश लाया जा सकता है लेकिन अध्यादेश को संसद में छह सप्ताह के भीतर पारित कराना होता है.

जानकार कहते हैं केंद्र सरकार ने जो पुनविर्चार याचिका सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की है उस पर फैसला आने के बाद अध्यादेश आता तो बेहतर होता. नेशनल एकेडमी ऑफ लीगल स्टडीज एंड लॉ यूनिवर्सिटी, हैदराबाद के पूर्व वाइस चांसलर और संविधान मामलों के विशेषज्ञ प्रोफेसर फैजान मुस्तफा कहते हैं, "केंद्र सरकार ने कोर्ट की कोई अवमानना नहीं की है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले को बदला जाना रूटीन प्रक्रिया है. जिस-जिस विषय पर संसद कानून बना सकती है उस पर केंद्र सरकार अध्यादेश भी ला सकती है. जाहिर है कि इस मामले में संसद को कानून बनाने का अधिकार है तो उसे अध्यादेश लाने का भी अधिकार है."

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आठ दिनों बाद ही अध्यादेश लाया गया. इस तेजी पर मुस्तफा कहते हैं कि संसद के पास शक्तियां हैं कि वह कानून बनाकर कोर्ट के किसी भी फैसले को पलट सकती है लेकिन कानून सीधे तौर पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का विरोधाभासी नहीं हो सकता है.

अध्यादेश में कहा गया है कि दिल्ली में जो कुछ भी फैसले होते हैं उनका राष्ट्रीय महत्व है, देश के और नागरिक भी उससे प्रभावित होते हैं साथ ही देश की अंतरराष्ट्रीय छवि भी उससे प्रभावित होती हैं क्योंकि यहां देशों के उच्चायोग हैं. इसलिए केंद्रीय सरकार का उसमें दखल होना चाहिए.

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संविधान और लोकतंत्र को नहीं मानती बीजेपी: आप

आम आदमी पार्टी का कहना है कि मोदी सरकार द्वारा लाए गए अध्यादेश से साफ हो गया है कि बीजेपी और प्रधानमंत्री मोदी देश के संविधान, लोकतंत्र, संघीय ढांचे और सुप्रीम कोर्ट को नहीं मानते हैं.

आप के राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने मीडिया से कहा कि यह अध्यादेश भारत के संघीय ढांचे को समाप्त करने, संविधान को खत्म करने और सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों के फैसले को पलटने की कार्यवाही है.

वहीं दिल्ली बीजेपी का कहना है कि केंद्र सरकार के अध्यादेश के बारे में आम आदमी पार्टी लोगों को यह संदेश देना चाहती है कि यह उनके खिलाफ है. बीजेपी के मुताबिक इस अध्यादेश से दिल्ली के लोगों के हितों का कोई लेना-देना नहीं है. दिल्ली बीजेपी के अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा ने कहा, "आप सरकार ने दिल्ली सरकार के अधिकारियों में डर का ऐसा माहौल पैदा कर दिया है कि कोई अधिकारी काम करना नहीं चाहता है. इस अस्थिरता भरे माहौल को बेहतर बनाने के लिए ही केंद्र सरकार को अध्यादेश लाना पड़ा."

इस बीच दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा कि वह राष्ट्रीय राजधानी में सविर्सेज को राज्य सरकार के नियंत्रण से हटाने के लिए लाए गए अध्यादेश के खिलाफ पूरे देश का दौरा करेंगे और विपक्षी दलों के नेताओं से मुलाकात करेंगे. मंगलवार को केजरीवाल पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से भी मुलाकात करने वाले हैं. आम आदमी पार्टी ने इस मुद्दे पर 11 जून को दिल्ली रामलीला मैदान में रैली करने का भी ऐलान किया है.

फैजान कहते हैं कि अब इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसला का इंतजार करना चाहिए और साथ ही कहते हैं कि सरकार को यह शक्ति प्राप्त थी कि वह यह अध्यादेश लाए क्योंकि अनुच्छेद 239 एए में सर्विसेज के मामले में स्पष्टता पूरी नहीं है. संसद को वह स्पष्टता लाने का अधिकार है.

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