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टीबी का टीका नस में देना है ज्यादा असरदार: रिसर्च

२ जनवरी २०२०

वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि एक सदी से भी ज्यादा पुराने टीबी के टीके का कहीं बेहतर इस्तेमाल किया जा सकता है. उनका मानना है कि टीके को शरीर में अलग तरीके से लगाने भर से उसे और कारगर बनाया जा सकता है.

Mycobacterium Tuberculosis
तस्वीर: picture-alliance/BSIP/NIAID

बंदरों पर किए एक शोध में अमेरिकी वैज्ञानिकों ने टीबी के टीके को सीधे नसों के जरिए खून में इंजेक्ट किया, जिससे उनमें नाटकीय रूप से सुधार देखने को मिला. आज के समय में टीबी का शॉट त्वचा के भीतर दिया जाता है. टीबी दुनिया के सबसे घातक संक्रामक रोगों में एक है, अनुमान है कि 2018 में ही इस बीमारी से करीब डेढ़ करोड़ लोगों की मौत हुई है. वैज्ञानिकों ने बुधवार को अपने शोध को जारी करते हुए कहा कि, "यह उम्मीद जगाने वाला है." हालांकि शोध के वरिष्ठ लेखक और अमेरिका के राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थान के डॉ. रॉबर्ट सेडेर कहते हैं कि इंसानों पर इसके इस्तेमाल से पहले अधिक सुरक्षा अध्ययन की जरुरत होगी.

टीबी से हर साल दुनिया भर में 17 लाख लोगों की मौत हो जाती है, अधिकतर मौतें गरीब देशों में होती है. फिलहाल टीबी से बचने के लिए बच्चों को बीसीजी का टीका लगाया जाता है, लेकिन इससे मिलने वाला प्रतिरक्षा तंत्र कुछ सालों में अपना असर खो देता है. यह टीका फेफड़ों के संक्रमण के खतरों से बचाने में बहुत कम प्रभावी है. टीबी के ज्यादातर टीके मांसपेशियों या त्वचा पर लगाए जाते हैं, कुछ साल पहले सेडेर के दिमाग में सीधे रक्तप्रवाह में टीका देने का आइडिया आया था. उन्होंने मलेरिया के मरीज की नस में सीधे मलेरिया का टीका लगाया और पाया कि टीका बेहतर ढंग से काम कर रहा है. उसके बाद उन्होंने जानना चाहा कि क्या टीबी का टीका भी इसी तरह से प्रतिक्रिया देगा.

इंसानों पर शोध में अभी समय लगेगा. तस्वीर: DW

राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थान के शोधकर्ताओं ने यूनिवर्सिटी ऑफ पीट्सबुर्ग के साथ मिलकर कुछ बंदरों पर इसका प्रयोग किया, जो टीबी पर इंसान की तरह प्रतिक्रिया देते हैं. उन्होंने कई तरह से टीबी के शॉट देने के प्रयोग किए, जिसमें मास्क के जरिए बंदरों को भाप देना भी शामिल था. टीका देने के 6 महीने बाद वैज्ञानिकों ने बंदरों के फेफड़ों में सीधे टीबी का बैक्टीरिया डाला और उसके बाद संक्रमण का अध्ययन किया. कुछ बंदरों को आज की तरह त्वचा पर दिए जाने वाले टीके के शॉट दिए गए, हालांकि उसमें दवा की खुराक ज्यादा थी, जिन बंदरों को यह टीका दिया गया था वह उनके मुकाबले थोड़े ज्यादा सुरक्षित थे जिन्हें टीका नहीं दिया गया था.

मास्क के जरिए भाप की खुराक कारगर साबित नहीं हुई. लेकिन 10 में से 9 बंदरों की नसों में सीधे दी गई टीबी की दवा कारगर साबित हुई. शोधकर्ताओं की यह रिसर्च प्रतिष्ठित 'नेचर' पत्रिका में छपी है. शोधकर्ताओं ने 6 जानवरों में संक्रमण का निशान नहीं पाया और 3 जानवरों के फेफड़ों में टीबी के बैक्टीरिया का स्तर बहुत कम पाया. इस प्रयोग के बाद शोधकर्ता इस नतीजे पर पहुंचे कि अगर टीका देने के तरीके को बदला जा सके तो इंसानों में टीबी पर काबू पाने में ज्यादा सफलता मिल सकती है. हालांकि शोधकर्ताओं का कहना है कि इस बारे में जानवरों में अतिरिक्त सुरक्षा अनुसंधान चल रहा है. सेडेर ने उम्मीद जताई है कि इंसानों में इस तरह के प्रयोग का पहला चरण शुरू करने में 18 महीने लगेंगे. पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा टीबी के मरीज भारत में हैं जिनकी तादाद फिलहाल करीब बीस लाख सत्तर हजार है.

एए/आरपी (एपी)

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