भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान एजेंसी (इसरो) के साथ-साथ पूरा देश बुधवार की उस शाम का बेसब्री से इंतजार कर रहा है जिस शाम चंद्रयान-3 को चांद की सतह पर उतरना है.
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चंद्रयान-3 का विक्रम लैंडर प्रज्ञान रोवर के साथ बुधवार को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास उतरेगा. भारत के पहले चंद्रमा मिशन, चंद्रयान-1 ने चांद के दक्षिणी ध्रुव पर पानी के सबूत जुटाने में अहम योगदान दिया था. इस खोज को आगे बढ़ाने के इरादे से भेजा गया चंद्रयान-2 मिशन, 2019 में लैंडिंग के दौरान क्रैश हो गया था.
इसरो ने सोमवार को बताया कि चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर और चंद्रयान-3 के लैंडर मॉड्यूल के बीच दोतरफा संपर्क हुआ है. इस बारे में इसरो ने एक ट्वीट भी किया है. इस पोस्ट में इसरो ने लिखा, "वेलकम बडी!, चंद्रयान-2 ऑर्बिटर ने औपचारिक रूप से चंद्रयान-3 लैंडर मॉड्यूल का स्वागत किया."
इसरो ने यह भी बताया कि चंद्रयान-3 की लैंडिंग का सीधा प्रसारण किया जाएगा. निर्धारित कार्यक्रम के मुताबिक इसरो कल यानी बुधवार को शाम पांच बजे के बाद चंद्रयान-3 के लैंडर मॉड्यूल को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव की सतह पर उतारने की कोशिश कर रहा है.
भारत में लोग चंद्रयान-3 की लैंडिंग को लेकर खासे उत्साहित हैं और जगह-जगह लोग इसकी सफल लैंडिंग के लिए पूजा पाठ भी कर रहे हैं. चंद्रमा पर चंद्रयान-3 की सफल लैंडिंग के लिए वाराणसी के कामाख्या मंदिर में हवन का आयोजन किया गया.
भारत-रूस के साथ-साथ चांद पर पहुंचने की कितनी संभावना?
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अहम हैं वो 15 मिनट
चंद्रयान-3 के लैंडर को 25 किलोमीटर की ऊंचाई से लैंड कराने की कोशिश की जाएगी. इस प्रक्रिया में 15 से 17 मिनट लगेंगे. इसे "15 मिनट्स ऑफ टेरर" यानी खौफ के 15 मिनट्स कहा जाता है. चंद्रयान-2 की लैंडिंग के आखिरी 15 मिनट अहम साबित हुए थे.
इसरो के अहमदाबाद केंद्र के निदेशक निलेश एम देसाई ने चंद्रयान-3 की लैंडिंग को लेकर बताया है कि 23 अगस्त को चंद्रयान-3 की लैंडिंग से कुछ घंटे पहले निर्णय लिया जाएगा कि लैंडिंग के लिए समय उचित है या नहीं. देसाई ने कहा कि अगर कोई बाधा होती है तो लैंडिंग को 27 अगस्त तक के लिए बढ़ा देंगे.
चंद्रयान-2 मिशन को भेजे जाने के समय इसरो प्रमुख रहे के सिवन ने बताया कि चंद्रयान-3 मिशन योजना के तहत आगे बढ़ रहा है और चंद्रमा की सतह पर उसकी सॉफ्ट लैंडिंग योजना के मुताबिक होगी. उन्होंने कहा कि हम उम्मीद कर रहे हैं कि इस बार यह सतह पर उतरने में सफल रहेगा.
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मिशन पर क्या करेंगे लैंडर विक्रम और रोवर प्रज्ञान
चांद की सतह पर सफलतापूर्वक लैंड करने के बाद चंद्रयान-3 के लैंडर विक्रम और रोवर प्रज्ञान अगले दो हफ्ते तक वहां से डाटा इसरो को भेजेंगे. रोवर के पेलोड्स में जो उपकरण लगे हैं, वे चांद से जुड़ा डाटा भेजेंगे. ये चांद के वातावरण से जुड़ी जानकारियां लैंडर को भेजेंगे.
चंद्रमा का दक्षिणी ध्रुव बहुत ऊबड़-खाबड़ है, इसलिए वहां किसी यान का उतरना बेहद मुश्किल माना जाता है. लेकिन तब भी विभिन्न देश वहां पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं क्योंकि वैज्ञानिकों का मानना है कि वहां बर्फ मौजूद है, जिससे ईंधन, पानी और ऑक्सीजन निकाली जा सकती हैं, जो मानव जीवन के लिए आवश्यक हैं.
इसरो के प्रमुख एस सोमनाथ ने कहा, "पृथ्वी के 14 दिनों के दौरान रोवर असल में कितनी दूरी तय करेगा, इसका अनुमान अभी नहीं लगाया जा सकता है. क्योंकि यह कई चीजों की गणना के आधार पर किया जाएगा."
अगर यह अभियान सफल रहता है तो रूस, अमेरिका और चीन के बाद चंद्रमा की सतह पर उतरने वाला भारत मात्र चौथा देश होगा. चार साल पहले ऐसी एक कोशिश तब नाकाम हो गयी थी जब चांद की सतह पर उतरने से कुछ ही पल पहले चंद्रयान-2 से वैज्ञानिकों का संपर्क टूट गया था.
भारत ने ऐसे अंतरिक्ष के सपने को हकीकत में बदला
'नंगे भूखों का देश आसमान को छूने चला है' - भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम पर पश्चिम के कुछ देशों की ऐसी ही प्रतिक्रिया थी. लेकिन भारतीय वैज्ञानिकों की मेहनत ने ऐसे आलोचकों को बगलें झांकने पर मजबूर कर दिया.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Indian Space Research Organisation
1962
भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने विक्रम साराभाई के अगुवाई में इंडियन नेशनल कमेटी फॉर स्पेस रिसर्च की स्थापना की. संस्थापकों में साराभाई के साथ वैज्ञानिक केआर रमणनाथन भी थे.
तस्वीर: Keystone/Getty Images
1963
केरल के थुंबा गांव में पहला रॉकेट प्रक्षेपण केंद्र बनाने की तैयारी हुई. विषुवत रेखा के करीब होने के वजह से इस जगह का चुनाव किया गया. लेकिन बिल्कुल उपयुक्त जमीन पर सेंट मैरी माग्देलेने चर्च था. साराभाई ने चर्च के पादरी से बातचीत की. अंतरिक्ष में भारत का सपना पूरा करने के लिए चर्च ने भी अपनी जमीन विज्ञान के नाम कर दी.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
1963
चर्च की जमीन पर बने थुंबा इक्वेटोरियल रॉकेट लॉचिंग स्टेशन से ही भारत ने पहली बार ऊपरी वायुमंडल तक जाने वाला रॉकेट लॉन्च किया. यह भारत के अंतरिक्ष इतिहास का पहला प्रक्षेपण था.
तस्वीर: Getty Images/AFP/S. D´Souza
1969
अंतरिक्ष रिसर्च को भारत के विकास से जोड़ने के इरादे से एक खास संगठन इसरो की स्थापना की गई. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की स्थापना में भी विक्रम साराभाई का अहम योगदान था.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
1971
आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा में स्पेस सेंटर की स्थापना की गई. लेकिन इसी साल विक्रम साराभाई का निधन भी हुआ. उनके निधन के बाद मशहूर गणितज्ञ सतीश धवन इसरो के चैयरमैन बने. धवन की याद में अब श्रीहरिकोटा के सेंटर को सतीश धवन स्पेस सेंटर कहा जाता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/ISRO
1975
19 अप्रैल 1975 को भारत ने अपना पहला उपग्रह आर्यभट्ट अंतरिक्ष में लॉन्च किया. पूरी तरह भारत में ही डिजायन की गई इस सैटेलाइट को रूस के सहयोग से अंतरिक्ष में भेजा गया. भारत के अंतरिक्ष अनुसंधान में यह घटना भी मील का पत्थर है.
तस्वीर: ISRO
1979
भारत ने पहली एक्सपेरिमेंटल रिमोट-सेंसिंग सैटेलाइट भास्कर-1 अंतरिक्ष में भेजी. इसके द्वारा भेजी गई तस्वीरों से जंगलों और मौसम के बारे में जानकारियां मिली.
तस्वीर: picture-alliance/AP
1980
भारत ने पहली बार अंतरिक्ष तक जाने वाले रॉकेट सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल-3 (एसएलवी-3) का परीक्षण किया. इसके सफल परीक्षण के बाद भारत खुद अपने उपग्रह अंतरिक्ष में भेजने में सक्षम हो गया. भारत के पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ही इस प्रोजेक्ट डायरेक्टर थे. 1980 में इसी रॉकेट की मदद से सैटेलाइट रोहिणी को अंतरिक्ष में भेजा गया.
तस्वीर: Getty Images/AFP/S. Kodikara
1984
एक संयुक्त मानव मिशन के तहत सोवियत संघ और भारत ने अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरिक्ष में भेजा. इसी अभियान के जरिए राकेश शर्मा अंतरिक्ष में पहुंचने वाले पहले भारतीय एस्ट्रोनॉट बने. शर्मा ने सोवियत अंतरिक्ष स्टेशन में आठ दिन बिताए.
तस्वीर: Dibyangshu Sarkar/AFP/Getty Images
1993
भारत ने बेहद भरोसेमंद लॉन्च व्हीकल पीएसएलवी बनाया. 1994 के बाद से अब तक पीएसएलवी भारत का सबसे भरोसेमंद रॉकेट बना रहा. इसने दर्जनों सैटेलाइटें और चंद्रयान व मंगलयान जैसे ऐतिहासिक मिशनों को अंजाम दिया.
तस्वीर: Imago Images/Hindustan Times
1999
पीएसएलवी लॉन्च व्हीकल की मदद से भारत ने विदेशी सैटेलाइटों को भी अंतरिक्ष में स्थापित करना शुरू किया. भारत अब तक 33 देशों की 200 से ज्यादा सैटेलाइट्स अंतरिक्ष में पहुंचा चुका है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/Raveendran
2008
इस मोड़ तक आते आते भारत अंतरिक्ष के मामले में बड़ी शक्ति बन गया. देश ने संचार, प्रसारण, शोध और सामरिक उद्देश्यों के लिए सैटेलाइटों का बड़ा नेटवर्क खड़ा किया. 2008 में चांद को छूने की ख्वाहिश में भारत ने भरोसेमंद पीएसएलवी से चंद्रयान-1 भेजा. यह भी ऐतिहासिक सफलता थी.
तस्वीर: picture alliance/Indian Space Research Organisati/ISRO
2014
जनवरी 2014 में भारत ने पहले अंतरग्रहीय मिशन का आगाज करते हुए मंगलयान भेजा. सितंबर में मंगल की कक्षा में पहुंचे मंगलयान ने अंतरिक्ष में भारत की कामयाबी का एक और झंडा गाड़ा.
तस्वीर: Getty Images/Afp/Sajjad Hussain
2017
एक ही रॉकेट से 104 सैटेलाइटों की उनकी कक्षा में स्थापित कर भारत ने सबको चौंका दिया.
तस्वीर: AFP/Getty Images/Manjunath Kiran
2018
15 जुलाई को भारत ने चंद्रमा के लिए अपना दूसरा मानवरहित मिशन चंद्रयान-2 भेजा. चंद्रयान-1 के जरिए दुनिया को चांद पर पानी होने के ठोस सबूत मिले. चंद्रयान-2 अब रिसर्च को और गहराई में ले जाएगा.