खेती से ग्रीन हाउस उत्सर्जन में भारत तीसरे नंबर पर
७ मई २०२४
विश्व बैंक का कहना है कि अगर दुनियाभर में खेती के तौर-तरीके बदल लिए जाएं तो ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में इस दशक के आखिर तक बड़ी कमी आ सकती है.
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विश्व बैंक ने अपनी ताजा रिपोर्ट में कहा है कि खेती के तौर-तरीकों में कमी करके ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी की जा सकती है. रिपोर्ट के मुताबिक ग्रीन हाउस गैसों के कुल उत्सर्जन तीन चौथाई के लिए विकासशील देश और उसके एक तिहाई के लिए कृषि उद्योग ही जिम्मेदार है.
इसमें से दो तिहाई उत्सर्जन मध्यम आय वाले देशों से आता है. जिन दस देशों में कृषि के कारण सबसे ज्यादा उत्सर्जन होता है उनमें पहले तीन स्थानों पर चीन, ब्राजील और भारत हैं. रिपोर्ट कहती है कि कृषि व खाद्य उद्योग सालाना लगभग 16 गीगाटन कार्बन उत्सर्जन करता है जो दुनिया की गर्मी और बिजली उत्पादन के कारण होने वाले उत्सर्जन का लगभग छठा हिस्सा है.
दुनिया के सबसे बड़े उत्सर्जकों में है भारत सरकार की एक कंपनी
एक नई रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया में 2016 के बाद से अभी तक हुए कुल कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में अधिकांश के लिए सिर्फ 57 उत्पादक जिम्मेदार हैं. इस सूची में भारत सरकार की एक जानी मानी कंपनी का नाम भी शामिल है.
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सिर्फ 57 उत्पादक
गैर-लाभकारी संगठन "इन्फ्लुएंसमैप" की एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया में 2016 के बाद से अभी तक हुए कुल कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में अधिकांश के लिए सिर्फ 57 जीवाश्म ईंधन और सीमेंट के उत्पादक जिम्मेदार हैं. रिपोर्ट का नाम "कार्बन मेजर्स" है.
तस्वीर: blickwinkel/IMAGO
80 प्रतिशत योगदान
समाचार एजेंसी रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक इस सूची में कुछ देश, सरकारी कंपनियों और निवेशकों के स्वामित्व वाली कंपनियों समेत 57 उत्पादक शामिल हैं. 2016 से 2022 के बीच दुनिया के कुल कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में 80 प्रतिशत योगदान इन सबका ही रहा.
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अरामको
अरामको सऊदी अरब की राष्ट्रीय तेल कंपनी है. इसे राजस्व के लिहाज से दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी कंपनी माना जाता है. "कार्बन मेजर्स" रिपोर्ट के मुताबिक यह दुनिया की सबसे बड़ी उत्सर्जक कंपनी है.
रिपोर्ट में रूसी बहुराष्ट्रीय कंपनी गैजप्रॉम दूसरे नंबर पर है. रूस की सरकार के पास इस कंपनी की सबसे ज्यादा हिस्सेदारी है. इसे शेयर बाजार में लिस्टेड दुनिया की सबसे बड़ी प्राकृतिक गैस कंपनी के रूप में जाना जाता है.
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कोल इंडिया
रिपोर्ट में गैजप्रॉम के बाद स्थान है भारत की कोयला कंपनी "कोल इंडिया" का. इस पर पूरी तरह से भारत सरकार का स्वामित्व है. इसे दुनिया के सबसे बड़े सरकारी कोयला उत्पादक के रूप में जाना जाता है.
तस्वीर: Manish Chandra Mishra
ताक पर पेरिस समझौता
रिपोर्ट के मुताबिक 2015 में संयुक्त राष्ट्र के पेरिस समझौते पर दुनिया भर के देशों के हस्ताक्षर करने के बाद अधिकांश कंपनियों ने अपने जीवाश्म ईंधन उत्पादन को घटाने की जगह बढ़ा दिया है. तब से कई सरकारों और कंपनियों ने उत्सर्जन के कड़े लक्ष्य तय किए हैं, लेकिन उन्होंने पहले से ज्यादा जीवाश्म ईंधन बनाए और जलाए हैं. इससे उत्सर्जन बढ़ा है.
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अमीर और गरीब देशों को सलाह
विश्व बैंक के वरिष्ठ प्रबंध निदेशक आक्सेल वान ट्रोट्सेनबुर्ग ने कहा, "अपने ग्रह की रक्षा के लिए हमें खाना पैदा करने और उपभोग करने के तरीके बदलने होंगे.”
रिपोर्ट में कहा गया है कि कृषि और खाद्य उद्योग के पास लगभग कार्बन उत्सर्जन में एक तिहाई की कमी करने का बड़ा मौका है. ‘सस्ते और आसानी से उपलब्ध' उपाय अपनाकर इस समस्या से निपटा जा सकता है. रिपोर्ट में सरकारों से अनुरोध किया गया है कि इस समस्या के निपटान में ज्यादा निवेश किया जाए.
नेट जीरो से बचेगी हमारी पृथ्वी...
07:10
विश्व बैंक ने मध्यम आय वाले देशों से आग्रह किया है कि ऐसे बदलाव करें जिनसे पशुपालन और भूमि के इस्तेमाल में कम कार्बन उत्सर्जन हो. एक बयान में वान ट्रोट्सेनबुर्ग ने कहा, "मध्यम आय वाले देश जंगल, पारिस्थितिकी तंत्र और खाद्य उत्पादन के तौर-तरीकों में बदलाव करने मात्र से 2030 तक कृषि और खाद्य उद्योग के उत्सर्जन को एक तिहाई तक कम कर सकते हैं.”
इस बदलाव के लिए धन जुटाने के लिए इन देशों को बर्बादी बढ़ाने वाली कृषि सब्सिडी घटाने की सलाह दी गई है. साथ ही रिपोर्ट में चौथे सबसे बड़े ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जक देश अमेरिका और अन्य धनी देशों को सलाह दी गई है कि मध्यम आय वाले देशों की मदद करे और "अधिक उत्सर्जन वाले खाद्य उत्पादों से सब्सिडी कम करें.”
गरीब देशों के लिए विश्व बैंक की सलाह है कि "ज्यादा उत्सर्जन करने वाला ऐसा ढांचा बनाने से बचें, जिसे अमीर देशों को भी अब हटा देना चाहिए.”
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भारी निवेश की जरूरत
रिपोर्ट के लेखक इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि कृषि और खाद्य उद्योग में उत्सर्जन कम करने के लिए जो निवेश करना होगा, उसका लाभ कीमत से कहीं ज्यादा होगा. उन्होंने लिखा है, "2050 तक कार्बन उत्सर्जन को नेट जीरो तक लाने के लिए और 2030 तक कृषि व खाद्य उद्योग के उत्सर्जन को आधा करने के लिए 260 अरब डॉलर की जरूरत होगी. इससे लगभग दोगुना धन हर साल कृषि सब्सिडी पर खर्च किया जाता है, जो पर्यावरण के लिए नुकसानदेह है. सब्सिडी कम करने से इस निवेश के लिए कुछ धन मिल सकता है लेकिन नेट जीरो का लक्ष्य हासिल करने के लिए और ज्यादा धन की जरूरत होगी.”
कहां-कहां से निकलती है मीथेन
मीथेन गैस कार्बन डाई ऑक्साइड से भी ज्यादा खतरनाक ग्रीन हाउस गैस है. अब जबकि वैश्विक स्तर पर इसकी निगरानी की जा रही है तो पता चल रहा है कि मीथेन के कुछ अप्रत्याशित स्रोत भी हैं. देखिए, कहां से निकल रही है मीथेन.
तस्वीर: ALEXANDER NEMENOV/AFP via Getty Images
पर्माफ्रोस्ट
उत्तरी साइबेरिया में रूस के यमाल और गीडा प्रायद्वीपों में बने विशाल गड्ढों में से मीथेन निकल रही है. वैज्ञानिकों का अंदाजा है ऐसा वहां मौजूद बैक्टीरिया के कारण हो रहा है. लेकिन इन गड्ढों के बनने की ठोस वजह वैज्ञानिकों को भी पता नहीं है.
तस्वीर: ALEXANDER NEMENOV/AFP via Getty Images
हिमखंडों से पिघलकर निकलता पानी
दुनियाभर में हिमखंड तेजी से पिघल रहे हैं. ये हिमखंड मीथेन का बहुत बड़ा स्रोत हैं जो हजारों साल तक छिपे रहे हैं. 2023 में कोपेनहागेन यूनिवर्सिटी के एक अध्ययन में पता चला कि कनाडा के यूकोन इलाके में हिमखंडों के पानी में मीथेन का स्तर वातावरण से 250 गुना ज्यादा था.
तस्वीर: Sebnem Coskun/Anadolu/picture alliance
जल बांध
बिजली बनाने के लिए नदियों पर बनाए गए बांध मीथेन के सबसे बड़े स्रोतों में से एक हैं. हर साल इन बांधों से कुल मिलाकर लगभग एक अरब टन मीथेन निकलती है. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि बांध की झील में रुका पानी तलहटी में सड़ जाता है.
तस्वीर: The Office of Prime Minister, Tanzania
प्रदूषित नदियां
झीलें और नदियां दुनिया के कुल मीथेन उत्सर्जन के लगभग आधे के लिए जिम्मेदार हैं. ये स्रोत जितने ज्यादा प्रदूषित होंगे, मीथेन का उत्सर्जन उतना ही ज्यादा होता है.
गायों की डकार से निकलने वाली मीथेन वैज्ञानिकों के लिए लंबे समय से सिरदर्द बनी हुई है. कृषि क्षेत्र मानव-जनित मीथेन का सबसे बड़ा स्रोत है और उसमें भी मवेशियों से उत्सर्जन सबसे ज्यादा होता है.
तस्वीर: Cavan Images/IMAGO
दलदल
दलदली जमीन दुनियाभर में मीथेन उत्सर्जन का सबसे बड़ा स्रोत है. मौसम परिवर्तन के कारण बारिश और बाढ़ के कारण दलदली जमीन भी बढ़ रही है. लॉरेंस बर्कली नेशनल लैबोरेटरी के मुताबिक बोरियल आर्कटिक क्षेत्र में कार्बन उत्सर्जन पिछले दो दशक में 9 फीसदी बढ़ चुका है.
तस्वीर: Amanda Perobelli/REUTERS
कचरे के ढेर
कृषि और ईंधन के बाद शहरों के बाहर बने कचरे के ढेर मीथेन के तीसरे सबसे बड़े स्रोत हैं. 2022 में हुए एक अध्ययन में बताया गया कि मुंबई के कचरे के ढेर से हर घंटे लगभग 9.8 टन या सालाना 85 हजार टन मीथेन उत्सर्जित हो रही है.
तस्वीर: YASUYOSHI CHIBA/AFP
जंगल की आग
दुनियाभर में जंगलों में आग की संभावनाएं और बारंबारता बढ़ रही है. इससे मीथेन उत्सर्जन भी बढ़ रहा है. 2020 में अमेरिका की 20 सबसे बड़ी जंगलों की आग से जितनी मीथेन निकली उतनी बीते 19 साल में निकली मीथेन से सात गुना ज्यादा थी.
तस्वीर: Jorge Nunez/ZUMA/picture alliance
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रिपोर्ट के मुताबिक फिलहाल कार्बन उत्सर्जन घटाने के लिए जो कुल निवेश किया जा रहा है, कृषि व खाद्य उद्योग में उसका हिस्सा मात्र 2.4 फीसदी है. हालांकि रिपोर्ट इस बात को लेकर भी आगाह करती है कि कार्बन उत्सर्जन घटाने के लिए बदलाव करते वक्त इस बात का ध्यान रखा जाए कि लोगों की नौकरियां ना जाएं और खाद्य आपूर्ति प्रभावित ना हो.
रिपोर्ट कहती है, "कुछ ना करने के खतरे कहीं बड़े हैं. इससे ना सिर्फ लोगों की नौकरियां जाएंगी बल्कि खाद्य आपूर्ति भी प्रभावित होगी. और हमारा ग्रह रहने लायक नहीं बचेगा.”