इंटरनेट ने बहुत सारी चीजें आसान बना दी हैं, यहां तक कि धार्मिक आयोजन भी. बहुत से लोग धर्मार्थ संस्थाओं को चंदा भी ऑनलाइन देने लगे हैं. लेकिन सावधान, वे लोगों की मदद करने के बदले घृणा के प्रचारक भी हो सकते हैं.
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चैरिटी संस्थाओं के बारे में जानकारी का सबसे बड़ा स्रोत होने का दावा करने वाली वेबसाइट गाइडस्टार ने अब एक और फीचर जोड़ दिया है. इसमें उन गैरमुनाफा संगठनों के बारे में जानकारी है जिन्हें चंदे पर टैक्स से छूट मिली है, लेकिन जिनपर लोगों के बीच विद्वेष और घृणा फैलाने के आरोप हैं. गाइडस्टार खुद को निष्पक्ष सूचना का प्लेटफॉर्म बताता है जहां 20 लाख संगठनों के बारे में जानकारी है. हाल ही में उसने उन 46 संगठनों को एक सूची में रखा है जिन्हें सदर्न पॉवर्टी लॉ सेंटर ने हेटग्रुप बताया है.
गाइडस्टार के सीईओ जैकब हैरल्ड ने कहा है कि वेबसाइट पर नया फीचर इस बात का संकेत है कि इस क्षेत्र में हम अपनी भूमिका किस तरह देखते हैं. उन्होंने कहा कि डाटा का नया स्रोत उस बदलाव का प्रतीक है. उन्होंने नये फीचर को अमेरिका में हाल के दिनों में असहिष्णु बहस में वृद्धि का जवाब भी बताया.
चंदों पर चलते राजनीतिक दल
लोकतंत्र में राजनीतिक दल लोगों के विचार के विकास में योगदान देते हैं और उनका समर्थन जीतकर उनके हित में प्रशासन चलाते हैं. लेकिन सदस्यों से पर्याप्त धन न मिले तो पार्टियों को चंदे पर निर्भर होना पड़ता है.
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बढ़ा खर्च
राजनीतिक दलों का खर्च बढ़ा है. वहीं उनका जनाधार खिसका है. लोकतांत्रिक संरचना के अभाव में सदस्यों की भागीदारी कम हुई है. पैसों की कमी चंदों से पूरी हो रही है, जिसका सही हिसाब किताब नहीं होता.
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जुलूस
खर्च इस तरह के जुलूसों के आयोजन पर भी है. चाहे चुनाव प्रचार हो या किसी मुद्दे पर विरोध या समर्थन व्यक्त करने के लिए रैलियों का आयोजन. नेताओं को लोकप्रियता दिखाने के लिए इसकी जरूरत होती है.
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रैलियां
लोकप्रियता का एक पैमाना स्वागत में सड़कों पर उतरने वाली भीड़ है. इस भीड़ का इंतजाम स्थानीय पार्टी इकाई को करना होता है. कार्यकर्ताओं को लाने ले जाने का भी खर्च होता है.
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छोटी पार्टियां
राष्ट्रीय पार्टियों के कमजोर पड़ने से लगभग हर राज्य में प्रांतीय पार्टियां बन गई हैं. स्थानीय क्षत्रपों को भी अपनी पार्टी चलाने के लिए पैसे की जरूरत होती है.
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कहां से आए धन
बहुत से प्रांतों में आर्थिक विकास न होने के कारण चंदा दे सकने वाले लोगों की कमी है. फिर पैसे के लिए चारा घोटाला होता है या चिटफंड घोटाला.
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पैसे की लूट
फिर सहारा स्थानीय कंपनियों का लेना पड़ता है. बंगाल में सत्ताधारी त्रृणमूल के कुछ नेता घोटालों के आरोप में जेल में हैं, जनता सड़कों पर उतर रही है.
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नजरअंदाज नियम
भारत का चुनाव आयोग दुनिया के सबसे सख्त आयोगों में एक है. उसने स्वच्छ और स्वतंत्र चुनाव करवाने में तो कामयाबी पाई है लेकिन राजनीतिक दलों को लोकतांत्रिक और पारदर्शी बनाने में नाकाम रहा है.
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पारदर्शिता संभव
भारत जैसे लोकतंत्र को चलाने वाली बहुत सी राजनीतिक पार्टियां खुद कानूनों का पालन नहीं करतीं. आम आदमी पार्टी अकेली पार्टी है जो चंदे के मामले में पारदर्शी है.
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प्राथमिकता क्या
सालों से सत्ता में रही और स्वच्छ प्रशासन के लिए जिम्मेदार रही पार्टियां या तो जुलूस, धरना, प्रदर्शन में वक्त गुजार रही है...
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दलगत राजनीति
...या फिर जीत का जश्न मनाने, नए प्रदेशों पर कब्जा करने की योजना बनाने और वहां सत्ता में आने की तैयारी करने में.
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परेशान जनता
तो देश के बड़े हिस्से को पानी, बिजली जैसी आम जरूरत की चीजें उपलब्ध नहीं है. अभी भी लोगों को पीने के पानी के लिए लाइन में खड़ा होना पड़ता है.
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चेतावनी वाली सूची में शामिल संगठनों के कई नेताओं ने कहा है कि वे गाइडस्टार से संपर्क करेंगे और अपने प्रोफाइल से बैन हटाने की मांग करेंगे. कुछ संगठनों ने तो अलाबामा स्थित लॉ सेंटर पर अपने लेबल का इस्तेमाल संगठनों को बदनाम करने के लिए करने का आरोप लगाया है. सेंटर फॉर इमीग्रेशन स्टडीज के मार्क क्रिकोरियान कहते हैं, "यह अपमान है. गाइडस्टार अब इस अपमान का साथी है."
जर्मनी में भी अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय धर्मार्थ संस्थाएं हैं, जो दुनिया भर में जरूरतमंद लोगों की मदद में लगे हैं. अंतरराष्ट्रीय आपदाओं में जरूरत पड़ने पर जर्मन सरकार भी उनकी मदद लेती है और उनके जरिये मदद मुहैया कराती है. राहत संस्थाएं आक्शियोन डॉयचलंड हिल्फ्ट में जर्मनी की राहत संस्थाएं एकजुट हैं. पिछले समय में खाकर पाकिस्तान में स्थित कई मुस्लिम राहत संस्थाओं पर चंदे में इकट्टा धन के गलत इस्तेमाल के आरोप लगे हैं.
एके/एमजे (एपी)
तीन धर्म एक छत
जर्मनी की राजधानी बर्लिन में एक प्रोजेक्ट के जरिए तीन धर्मों को एक छत के नीचे एक किया जा रहा है. यहां मुसलमान, कैथोलिक और यहूदी धर्मावलम्बी एक ही जगह प्रार्थना कर सकेंगे. यह प्रार्थनागृह आम लोगों के चंदे से बनेगा.
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एक छत के नीचे
बर्लिन में जल्द ही एक ऐसी जगह होगी जहां तीन धर्मों के लोग एक ही छत के नीचे प्रार्थना और ईश वंदना कर सकेंगे. यह प्रार्थना भवन तीन अब्राहमी धर्मों इस्लाम, ईसाइयत और यहूदियों को एक साथ लाएगा.
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तीन की पहल
हाउस ऑफ वन के विचार को पास्टर ग्रेगोर होबैर्ग, रब्बी तोविया बेन-चोरिन और इमाम कादिर सांची अमली जामा पहना रहे हैं. कादिर सांची का कहना है कि तीनों धर्म अलग अलग रास्ता लेते हैं लेकिन लक्ष्य एक ही है.
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इतिहास वाली जगह
जहां इस समय साझा प्रार्थना भवन बन रहा है वहां पहले सेंट पेट्री चर्च था जिसे शीतयुद्ध के दौरान नष्ट कर दिया गया. आर्किटेक्ट ब्यूरो कुइन मालवेजी ने हाउस ऑफ वन बनाने के लिए चर्च के फाउंडेशन का इस्तेमाल किया है.
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शुरुआती संदेह
शुरू में कोई मुस्लिम संगठन इस प्रोजेक्ट में शामिल नहीं होना चाहता था. बाद में तुर्की के मॉडरेट मुसलमानों का संगठन एफआईडी राजी हो गया. उन्हें दूसरे इस्लामी संगठनों के उपहास का निशाना बनना पड़ा.
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आलोचना का निशाना
इस प्रोजेक्ट को नियमित रूप से आलोचना का निशाना बनाया गया है. कैथोलिक गिरजे के प्रमुख प्रतिनिधि मार्टिन मोजेबाख को शिकायत है कि इमारत की वास्तुकला इसकी धार्मिकता का प्रतिनिधित्व नहीं करती.
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चंदे पर भरोसा
हाउस ऑफ वन प्रोजेक्ट के संचालक इसके विकास में आम लोगों की भूमिका के महत्व से वाकिफ हैं. इसलिए वे चंदे पर भरोसा कर रहे हैं. इमारत बनाने में 43.5 लाख ईंटें लगेंगी. हर कोई इन्हें खरीद सकता है.
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शांति की कोशिश
इस प्रोजेक्ट के कर्णधारों की उम्मीद है कि नई इमारत तीनों धर्मों के लोगों के बीच सांस्कृतिक आदान प्रदान का केंद्र बनेगी और इसकी वजह से पारस्परिक आदर पैदा होगा. पड़ोसी के बारे में जानना उन्हें करीब लाता है.