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समाजफ्रांस

शार्ली एब्दो: सुप्रीम लीडर का मजाक उड़ाए जाने से नाराज ईरान

५ जनवरी २०२३

फ्रेंच व्यंग्य पत्रिका शार्ली एब्दो के नए अंक ने नया विवाद खड़ा कर दिया है. उसमें छपे ईरान के सुप्रीम नेता अयातोल्ला अली खमेनेई के कार्टूनों से ईरान नाराज है. 2015 के हमलों के बाद से गुप्त ठिकाने से चलती है पत्रिका.

Frankreich Schießerei in der Zeitschrift Charlie Hebdo (2015)
तस्वीर: Yui Mok/empics/picture alliance

अपने प्रकाशन से विवाद खड़ा करने के लंबे रिकॉर्ड वाली फ्रेंच व्यंग्य पत्रिका शार्ली एब्दो का नया अंक चर्चा में है. पत्रिका ने दिसंबर में एक अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता का आयोजन किया और दुनिया भर से कार्टूनिस्टों को ईरान में जारी विरोध प्रदर्शनों के संदर्भ में सुप्रीम नेता अयातोल्ला अली खमेनेई के कार्टून भेजने को कहा. फ्रांस के न्यूजस्टैंड पर पत्रिका 4 जनवरी से बिकनी शुरू हुई है. पत्रिका ने अपने मुखपत्र पर ऐसा कार्टून छापा जो ईरानी महिलाओं की अधिकारों की लड़ाई को दिखाती है. अंदर ऐसे कार्टून भी छपे हैं जो खमेनेई और उनका साथ देने वाले मौलवियों का अपमान करने वाले लगते हैं.

ताजा अंक में क्या है

कार्टून बनाने वाले ज्यादातर कलाकारों ने ये दिखाया कि कैसे ईरान की सरकार अपने यहां प्रदर्शनों को दबाने के लिए प्रदर्शनकारियों को मृत्युदंड देने का रास्ता अपना रही है. मैगजीन के डायरेक्टर और इस अंक पर काम करने वाले लॉरां सोरिस ने पत्रिका के संपादकीय में लिखा, "ईरानी पुरुषों और महिलाओं को अपना समर्थन दिखाने का हमारा यह एक तरीका था जो आजादी के लिए अपनी जिंदगी दांव पर लगा रहे हैं, ऐसा धर्मतंत्र जिसने वहां 1979 से उन्हें दबा कर रखा है."

तेहरान में फ्रांसीसी दूतावास पर चार्ली एब्दो कैरिकेचर के खिलाफ लिखे नफरत भरे संदेश तस्वीर: UGC

ईरान के विदेश मंत्री होसैनी अमीर-अब्दोल्लाहियान ने इसके खिलाफ "एक असरदार प्रतिक्रिया" देने की बात कही है और तेहरान-स्थित एक फ्रेंच रिसर्च संस्थान को बंद करवा दिया. उन्होंने ट्विटर पर लिखा, "हम फ्रेंच सरकार को उसकी हद से बाहर नहीं जाने देंगे. उन्होंने गलत रास्ता चुना है."

अक्टूबर 2020 में मैगजीन ने तुर्की के नेता रेचेप तैय्यप एर्दोआन का एक कार्टून अपने फ्रंट पेज पर छापा था. उसके खिलाफ तुर्की की कड़ी प्रतिक्रिया आई थी और उसने पत्रिका पर नस्लवादी होने का आरोप लगाया था. फ्रेंच राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों ने जब कार्टूनिस्टों के पक्ष में बयान दिया तो कई मुस्लिम बहुल देशों में इसका विरोध हुआ और फ्रेंच चीजों का बहिष्कार करने के अभियान चले.

हमलों के बावजूद जज्बा नहीं बदला 

पुलिस सुरक्षा में काम करने वाले इस मैगजीन का ऑफिस भी अब किसी गुप्त जगह पर है. सात साल पहले इस्लामी आतंकियों के हिंसक हमले की चपेट में आने के बाद से ऐसा करना पड़ा. उस दौरान हुए हमलों में कुल 12 लोगों की जान चली गई थी जिनमें कई मशहूर कार्टूनिस्ट शामिल थे. फिर भी अपने मूल विचार को आगे बढ़ाते हुए पत्रिका बड़े नेताओं, दूसरे महत्वपूर्ण लोगों का मजाक उड़ाना जारी रखे हुए है.

पैगंबर मुहम्मद को लेकर उसके कार्टून सबसे ज्यादा विवादित रहे हैं. कई मुसलमान इसे ईशनिंदा मानते हैं और इसका सबक सिखाने के लिए 2015 में पत्रिका के दफ्तर पर हमला किया गया था. 2020 में एक फ्रेंच कोर्ट में इस मामले की सुनवाई के समय मैगजीन के डायरेक्टर लॉरां सोरिस ने कहा, "पछतावा करने को कुछ है ही नहीं." उस हमले में खुद भी घायल हुए इस कार्टूनिस्ट ने कहा, "यह देख कर पछतावा जरूर होता है कि आजादी को बचाने के लिए लोग कितना कम लड़ते हैं. अगर हम अपनी आजादी के लिए नहीं लड़ते तो गुलामों की तरह जीते हैं और इससे बहुत खतरनाक विचारधारा को बढ़ावा मिलेगा."

फ्रांस में कैसे मिलती है इतनी आजादी 

2015 के हमलों के बाद यूरोप समेत विश्व के कई देशों ने फ्रांस और अभिव्यक्ति की आजादी के हक में आवाज उठाई थी. लेकिन आलोचक कहते हैं कि पत्रिका जान बूझ कर मुसलमानों को भड़काने का काम करती है और तथाकथित इस्लामविरोधी टिप्पणियां करती है. यह भी सही है कि पत्रिका में केवल इस्लाम ही नहीं कैथोलिक पोप समेत सभी धर्मों का कभी ना कभी मजाक उड़ाया गया है.       

असल में फ्रांस में नफरत फैलाने वाली बातें फैलाने के खिलाफ कड़े कानून हैं. इसमें किसी नस्ल या धार्मिक समूह के खिलाफ भेदभावपूर्ण या भड़काने वाली बातें फैलाने को अपराध माना गया है. लेकिन किसी धर्म या धार्मिक नेता के खिलाफ कुछ भी कहने या चित्रित करने पर कोई रोक नहीं लगाई है. यहां नेताओं या दूसरी सार्वजनिक हस्तियों के पास अपने खिलाफ झूठ या अफवाहें फैलाने के खिलाफ कार्रवाई करने का हक है लेकिन किसी की निंदा करने या मजाक उड़ाने के खिलाफ नहीं.

आरपी/एमजे (एएफपी)

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