अमेरिका के उत्तर कैरोलाइना प्रांत में पहाड़ियों के बीच बने एक मछलीघर में रहने वाली स्टिंग रे मछली बच्चे देने वाली है. लेकिन वह कभी किसी नर मछली के संपर्क में नहीं आई है.
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हल्के भूरे रंग की शार्लोट का आकार एक बड़ी प्लेट जितना है. इस गोल स्टिंग रे मछली ने अपना अधिकतर जीवन अपालचियान पहाड़ियों के मछलीघर में बिताया है.
उसका कुदरती आवास 3,700 किलोमीटर दूर दक्षिणी कैरोलाइना के समुद्र में है. लेकिन वह उत्तरी कैरोलाइना में अकेली ही रही है. आठ साल में उसने कभी किसी नर मछली के साथ समय नहीं बिताया है. इसलिए जब वह मोटी होने लगी तो विशेषज्ञों को लगा कि उसके पेट में ट्यूमर है. पर वे गलत थे.
मछलीघर मालिक का कहना है कि शार्लोट गर्भ से है. अल्ट्रासाउंड में इस बात का पता चला है और अगले दो हफ्ते में वह चार बच्चे देने वाली है.
हेंडरसनविल कस्बे में एक्वेरियम एंड शार्क लैब की निदेशक ब्रेंडा रामेर ने पत्रकारों को शार्लोट से मिलवाते हुए कहा, "ये रही हमारी प्यारी जो कह रही है, हैपी वैलंटाइंस डे, चलो कुछ बच्चे पैदा करें.”
लुप्त होते जलकाक पक्षी से मछली पकड़ने की परंपरा
जलवायु परिवर्तन के असर के कारण नदी में मछलियां कम हो रही हैं, इस वजह से जलकाक पक्षी से मछली पकड़ने की परंपरा भी लुप्त होती जा रही है.
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सदियों पुरानी परंपरा
युइचिरो अडाची का काम मछली पकड़ना है लेकिन वे जाल फेंककर मछली नहीं पकड़ते हैं. वे मछली पकड़ने के लिए जलकाक पक्षी का इस्तेमाल करते हैं. युइचिरो इस पेशे में अचानक नहीं आए. उनके परिवार की सत्रह पीढ़ियों ने इस तरह से मछली पकड़ कर अपना जीवन यापन किया है.
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पक्षी को ट्रेनिंग
इस तरह से मछली पकड़ने के लिए मछुआरे जलकाक पक्षी को ट्रेनिंग देते हैं. यह पक्षी पानी के भीतर गोता मारकर मछली को पकड़कर लाता है.
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उकाई परंपरा के 1,300 साल
जलकाक पक्षी से मछली पकड़ने की इस तकनीक का जापानी नाम उकाई है. जापानियों ने इस परंपरा को 1,300 सालों से कायम रखा है. लेकिन अब इस परंपरा को गिनती के लोगों ने ही कायम रखा हुआ है.
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पर्यटकों की पसंद
उकाई मुख्य रूप से पर्यटकों के कारण जीवित है. यहां पर्यटक रात के अंधेरे में एक विशेष नाव में बैठे हैं और मछली पकड़ने की इस परंपरा को देख रहे हैं.
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बदलते मौसम की मार
युइचिरो अडाची कहते हैं, "आजकल नदी में पहले की तरह मछलियां नहीं मिलती हैं. बाढ़ को रोकने के लिए नदी में बांध बना दिया गया है. बदलते मौसम के कारण भी मछलियां अब कम दिखती हैं."
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नदी में बढ़ता तापमान
विभिन्न पर्यावरणीय अध्ययनों के मुताबिक जापान की नागारा नदी का तापमान अब 30 डिग्री सेल्सियस से अधिक है. ऐसी गर्मी में मछलियों का जीवन खतरे में है.
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कौन संभाले परंपरा
48 साल के युइचिरो अडाची अब अपने 22 साल के बेटे को इस परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए तैयार कर रहे हैं. लेकिन उनका बेटा कंप्यूटर पर मशीन टूल्स बनाना सीख रहा है. अडाची के पास अब 16 ऐसे पक्षी हैं.
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जिस टैंक में शार्लोट रहती है, उसमें पांच छोटी शार्क मछलियां भी हैं. इसलिए जब शार्लोट के गर्भवती होने की खबर बाहर आई तो यह अफवाह फैल गई कि वह किसी शार्क मछली के कारण गर्भवती हुई है. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि रामेर ने मजाक में यह बात कह दी थी. लेकिन कुछ स्थानीय मीडिया चैनल इस खबर को चलाने लगे.
विज्ञान कहता है कि ऐसा असंभव है. स्टिंग मछलियों के एक विशेषज्ञ ने कहा किसी स्टिंग रे मछली के लिए शार्क मछली से यौन संबंध बनाना संभव ही नहीं है.
कई जीवों में होता है ऐसा
इस मछलीघर की देखभाल टीम एको नाम की एक गैरसरकारी संस्था करती है. इसका मकसद स्थानीय स्कूली बच्चों और जलीय-जीवन में रुचि रखने वाले लोगों की विज्ञान के प्रति जागरूकता बढ़ाना है.
वैज्ञानिकों का कहना है कि यह पारथेनोजेनेसिस प्रक्रिया का मामला है. यह एक तरह की पुनरोत्पादन प्रक्रिया है जिसमें कुछ मादाएं बिना नर से संबंध बनाए भी गर्भवती हो जाती हैं. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि जन्म के वक्त उनके भीतर कोई अंडा रह जाता है.
आजाद होने वाली है 50 साल से कैद 2,268 किलो वजनी व्हेल लोलिता
50 साल बाद आजाद होगी किलर व्हेल लोलिता
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कहानी लोलिता की
57 साल की लोलिता एक ओर्का है. ओर्का व्हेल एक किलर व्हेल होती हैं. लोलिता को 1970 में सिएटल के पास पकड़ा गया था. लोग इसको टोकी नाम से भी पुकारते हैं. इसका वजन करीब 2268 किलो है.
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लोलिता के अब अच्छे दिन आने वाले हैं
मियामी सीएक्वारियम ने कहा कि वह गैर लाभकारी फ्रेंड्स ऑफ लोलिता के साथ करार पर पहुंच गया है. लोलिता अब सीएक्वारियम में करतब नहीं करती है. वह रिटायर हो चुकी है.
लोलिता को अगले दो साल में प्रशांत महासागर में छोड़ दिया जाएगा. वह अपने प्राकृतिक निवास स्थान यानी समंदर में रहने चली जाएगी. जब लोलिता को पकड़ा गया था तो वह मात्र चार साल की थी. लोगों को उम्मीद है कि वह खुले समंदर में शिकार कर पाएगी.
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लोलिता के दीवाने
सीएक्वारियम में लोलिता को देखने हर दिन हजारों लोग पहुंचते हैं. सालों से लोलिता लोगों का मनोरंजन कर रही थी. मार्च 2022 में लोलिता को रिटायर कर दिया गया था. लोलिता की रिहाई के लिए लंबा संघर्ष चला.
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आजादी के लिए कागजी कार्यवाही
लोलिता की आजादी उतनी आसान नहीं है. मियामी हेराल्ड की रिपोर्ट के मुताबिक लोलिता को उसके प्राकृतिक निवास में वापस लाने की योजना को संघीय मंजूरी की जरूरत है. मियामी डेड काउंटी मेयर डानिएला लेविन कावा का कहना है कि लोलिता को आजाद करने के लिए काफी कागजी कार्रवाई की जरूरत है.
लोलिता की मां जिसका नाम ओशियन सन है, आज भी प्रशांत उत्तर पश्चिम में आजाद घूम रही है. उसकी उम्र अनुमानित 90 साल है. यही कारण है कि अधिकार कार्यकर्ताओं की दलील है कि लोलिता भी लंबी आयु तक जिंदा रह सकती है.
यह एक बेहद दुर्लभ प्रक्रिया है. कुछ कीट-पतंगों, मछलियों, पक्षियों और उभयचारी जीवों में ऐसे मामले मिलते हैं. लेकिन स्तनधारियों में ऐसे मामले नहीं होते.
कोस्टा रिका में एक मादा मगरमच्छ ने 2018 में इसी प्रक्रिया के तहत अंडे दिये थे. हालांकि मगरमच्छों में मादाएं ऐसे अंडे देती हैं जिनमें से बच्चे नहीं निकलते, लेकिन इस मगरमच्छ के दिये अंडे सामान्य लग रहे थे.
और कमाल तब हुआ जब उनमें से एक ने इनक्यूबेटर में बढ़ना शुरू कर दिया. हालांकि यह अंडा भी पूरी तरह परिपक्व नहीं हो पाया लेकिन उसके अंदर से एक अधूरा तैयार मगरमच्छ का बच्चा निकला.
वैज्ञानिक कहते हैं कि बहुत संभव हो पेट्रोसॉर्स और डायनोसोर्स में भी ऐसा ही हुआ होगा. वैसे वर्जिन बर्थ से पैदा हुए बच्चों के बचने की संभावना कम ही होती है. डॉ. बूथ कहते हैं कि कुछ बच्चे वयस्क हो जाते हैं लेकिन वे सबसे स्वस्थ जीव नहीं होते.
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वर्जिन बर्थ
स्टिंग रे में ऐसा होने का शायद यह पहला मामला है. अटलांटा स्थित जॉर्जिया एक्वेरियम में रिसर्च साइंटिस्ट कैडी लियोन्स कहती हैं कि शार्लोट की प्रेग्नेंसी इस प्रजाति में संभवतया ऐसा पहला मामला है.
लेकिन लियोन्स के मुताबिक यह कोई हैरतअंगेज बात नहीं है क्योंकि शार्क, स्केट्स और अन्य रे मछलियों में ऐसा हो चुका है. वह कहती हैं, "मैं बिल्कुल हैरान नहीं हूं क्योंकि कुदरत ऐसा करने के जरिये खोज ही लेती है.”
3डी प्रिंटर से निकली मछली, पकने को तैयार
इस्राएल की एक टेक कंपनी ने 3डी प्रिंटर से मछली बनाई है, जो पकाए जाने के लिए एकदम तैयार है. इस मछली को लैब में ही कोशिकाओं से बनाया गया है.
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3डी प्रिंटर से निकली मछली
इस्राएली कंपनी ने फिश-फिलेट बनाया है, जिसके लिए मछली को थ्रीडी प्रिंटर से प्रिंट किया गया. यह फिलेट रेडी-टु-कुक है.
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लैब में बनी मछली
इस मछली को जानवरों की कोशिकाओं का इस्तेमाल करके लैब में ही तैयार किया गया. स्टेकहोल्डर्स फूड नाम की फूड-टेक कंपनी ने इसे बनाया है.
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कैसे बनी मछली?
स्टेकहोल्डर्स फूड ने सिंगापुर की मीट कंपनी उमामी मीट्स से समझौता किया है. उमामी मीट ने ग्रूपर मछली की कोशिकाएं निकालीं और उनसे फैट और मांसपेशियां बनाई गईं.
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फिर प्रिंटिंग
स्टेकहोल्डर्स ने खासतौर पर बनाई गई बायो-इंक के जरिए थ्रीडी प्रिंटर से इस मछली को प्रिंट किया.
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असली जैसी
कंपनी का दावा है कि इस मछली में वे सारे गुण हैं जो समुद्र से पकड़ी गई मछली में होते हैं.
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एंटीबायोटिक मुक्त
कंपनी कहती है कि प्रक्रिया बहुत स्वच्छ और पारदर्शी है और उत्पाद एंटीबायोटिक्स से पूरी तरह मुक्त है.
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2024 में शुरुआत
उमामी मीट्स अगले साल इस प्रोडक्ट को बाजार में उतारने की तैयारी कर रही है. सिंगापुर के बाद इसे अमेरिका और जापान के बाजारों में उतारा जाएगा.
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इस प्रक्रिया को वर्जिन बर्थ भी कहा जाता है. वर्जिन बर्थ यानी बिना नर और मादा के संभोग के बच्चे का पैदा होना एक अनूठी कुदरती प्रक्रिया है. इसमें मादा के शरीर में अंड-कोशिकाएं तैयार होती हैं. इनमें लगातार विभाजन होता रहता है और यह तब तक जारी रहता है जब तक कि एक बच्चे के लिए जरूरी कुल जीन्स में से आधे तैयार नहीं हो जाते.
इसके साथ ही कुछ सह-उत्पाद भी तैयार होते हैं जो तीन कोशिकीय हिस्सों होते हैं जिनमें क्रोमोसोम होते हैं. इन्हें पोलर बॉडीज कहा जाता है.
आमतौर पर ये पोलर बॉडी अलग हो जाते हैं लेकिन कभी कभार ऐसा होता है कि इन तीन में से एक पोलर बॉडी अंडे के साथ मिल जाता है और उसे एक बच्चे के पूरा होने के लिए जरूरी क्रोमोसोम उपलब्ध करा देता है. लियोन्स कहती हैं, "हमें नहीं पता कि ऐसा क्यों होता है. यह एक अद्भुत प्रक्रिया है.”