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समाज

कोरोना और अम्फान की दोहरी मार से बढ़ते बाल विवाह

प्रभाकर मणि तिवारी
२६ जून २०२०

पश्चिम बंगाल में मई में आए अम्फान तूफान के बाद बाल विवाह के मामले तेजी से बढ़े हैं. बीते एक महीने के दौरान सरकार को ऐसी दो सौ शिकायतें मिली हैं. 

पश्चिम बंगाल मदरसा बोर्ड और यूनीसेफ के सहयोग से चलने वाला 'मीना मंच' बाल विवाह के खिलाफ जागरूकता फैलाने का काम करता है. (मुर्शिदाबाद, पश्चिम बंगाल की नवंबर, 2018 की तस्वीर)
पश्चिम बंगाल मदरसा बोर्ड और यूनीसेफ के सहयोग से चलने वाला 'मीना मंच' बाल विवाह के खिलाफ जागरूकता फैलाने का काम करता है. (मुर्शिदाबाद, पश्चिम बंगाल की नवंबर, 2018 की तस्वीर)तस्वीर: DW/P. Samanta 

बंगाल पहले भी बाल विवाह के लिए सुर्खियों में रहा है. बीच में यह सिलसिला कुछ थम-सा गया था. लेकिन अब लॉकडाउन और खास कर अम्फान के बाद इसमें काफी तेजी आई है. कई मामले ऐसे हैं जिनकी शिकायत ही पुलिस प्रशासन तक नहीं पहुंची है.

कलकत्ता हाईकोर्ट ने पश्चिम बंगाल बाल अधिकार संरक्षण आयोग की एक रिपोर्ट के आधार पर बढ़ते बाल विवाह पर गहरी चिंता जताते हुए राज्य सरकार को इस बारे में हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया है. आयोग ने बाल विवाह रोकने के लिए तीन हेल्पलाइन नंबर भी जारी किए हैं. जहां लड़कियां हाल विवाह के खिलाफ शिकायत कर सकती हैं.

बाल विवाहों के लिए बदनाम रहा है बंगाल

पश्चिम बंगाल खासकर लड़कियों के बाल विवाह के लिए पहले भी बदनाम रहा है. सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद इस पर ठोस तरीके से अंकुश नहीं लगाया जा सका है. नेशनल फेमिली हेल्थ सर्वे (एनएफएचएस) की ताजा रिपोर्ट में इस मामले में बंगाल को अव्वल बताया गया था.

यह स्थिति तब है जब ममता बनर्जी सरकार ने बाल विवाह पर अंकुश लगाने के लिए कन्याश्री समेत कई योजनाएं शुरू की हैं. कलकत्ता हाईकोर्ट ने आयोग की ओर से दायर रिपोर्ट पर सुनवाई के दौरान कहा कि बचपन बचाओ आंदोलन ने भी हाल में सुप्रीम कोर्ट में दायर एक रिपोर्ट में अम्फान तूफान के बाद बंगाल में 136 बाल विवाह होने का दावा किया है. हाईकोर्ट की खंडपीठ ने सरकार से ऐसे मामले रोकने के लिए ठोस कदम उठाने का भी निर्देश दिया है.

राज्य सरकार क्या कर रही है

अदालत के निर्देश के बाद राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने हेल्पलाइन नंबर जारी करने के साथ ही राज्य में बढ़ते बाल विवाह पर अंकुश लगाने के लिए संबंधित पक्षों के साथ मिल कर एक ठोस रणनीति बनाने का फैसला किया है. आयोग में बाल विवाह और बाल तस्करी के मामले देखने वाले आयोग की विशेष सलाहकार सुदेष्णा राय बताती हैं, "हमें अब तक 198 शिकायतें मिली हैं. जांच के बाद इनमें से 134 शिकायतें सही पाई गईं. हमने शिकायत के आधार पर कार्रवाई करते हुए उत्तर 24-परगना जिले में 54 और दक्षिण 24-परगना जिले में बाल विवाह के 60 मामलों को रोकने में कामयाबी हासिल की है. हेल्पलाइन नंबर जारी करने के बाद आयोग को रोजोना औसतन चार शिकायतें मिल रही हैं.”

आयोग की अध्यक्ष अनन्या चटर्जी चक्रवर्ती कहती हैं, "हमने दो जून को हेलपलाइन शुरू की थी. उसके बाद अब तक बाल विवाह और बाल तस्करी की सैकड़ों शिकायतें मिल चुकी हैं. कोरोना की वजह से जारी लॉकडाउन औऱ अम्फान तूफान ने ज्यादातर लोगों का रोजगार छीन लिया है. ऐसे में बाल विवाह और तस्करी बढ़ना तय है.”

आयोग का कहना है कि बाल विवाह के ज्यादातर मामलों में लड़कियों को दूसरे शहरों में ले जाकर कोठों पर बेच दिया जाता है. लड़की के गरीब मां-बाप के पास इसकी जानकारी हासिल करने का कोई उपाय नहीं होता और डर के मारे वह लोग पुलिस के पास भी नहीं जाते.

अचानक क्यों आया उछाल

लेकिन आखिर अचानक बाल विवाह के मामले क्यों बढ़ रहे हैं? सुदेष्णा बताती हैं, "हमें अपनी तहकीकात के दौरान इसकी दो प्रमुख वजहों की जानकारी मिली है. लड़की के माता-पिता अपनी गरीबी के चलते बाल विवाह कर जिम्मेदारी-मुक्त होना चाहते है.

इसके अलावा कुछ मामलों में गरीबी से आजिज आकर उज्ज्वल भविष्य की उम्मीद में लड़की ही किसी के साथ भाग जाती है.” बाल अधिकार औऱ बाल तस्करी के मुद्दे पर काम करने वाले संगठनों का कहना है कि राज्य के ग्रामीण इलाकों में तो कम उम्र में विवाह की परंपरा बरसों से जारी है. लेकिन अब लाकडाउन ने लोगों का रोजगार छीन लिया है. ऊपर से रही-सही कसर अम्फान तूफान ने पूरी कर दी है. ऐसे में लोग लड़कियों का कम उम्र में ही विवाह कर रहे हैं.

ज्यादातर मामलों में लड़कियों या उसकी सहेलियां ही पुलिस-प्रशासन को बाल विवाह की सूचना देती रही है. लेकिन सामाजिक संगठन शक्तिवाहिनी के ऋषिकांत कहते हैं, "ज्यादातर मामले प्रशासन तक नहीं पहुंच पाते. यही वजह है कि बाल विवाह के मामले में पुलिस और दूसरे संगठनों के आंकड़ों में जमीन-आसमान का फर्क होता है.” आयोग की एक सदस्य बताती हैं, "बाल विवाह की ज्यादातर शिकायतें राज्य के उत्तर व दक्षिण 24-परगना, पूर्व व पश्चिम मेदिनीपुर, नदिया, मालदा और मुर्शिदाबाद जिलों से आ रही हैं. इस मामले में यह जिले पहले से ही बदनाम रहे हैं. अब कोविड-19 औऱ अम्फान की दोहरी मार से परिस्थिति और गंभीर हो गई है.”

राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग की सचिव संघमित्रा घोष कहती हैं, "यह मुद्दा बेहद संवेदनशील है. हम कोरोना महामारी और अम्फान तूफान जैसे दो विपदाओं के बीच में फंसे हैं. ऐसे में बाल विवाह और मानव तस्करी के मामले बढ़ जाते हैं. हम स्थानीय लोगों में इसके खिलाफ जागरुकता फैलाने का प्रयास कर रहे हैं.”

अम्फान तूफान की सीधी मार

राज्य सरकार को भी इस समस्या की गंभीरता का अहसास है. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अम्फान के बाद राहत कार्यो का जायजा लेने के लिए दक्षिण 24-परगना जिले के काद्वीप में बीती 23 मई को आयोजित बैठक में पुलिस से बाल विवाह औऱ मानव तस्करी के मामलों पर कड़ी निगरानी रखने का निर्देश दिया था. बावजूद इसके ऐसे मामले लगातार बढ़ रहे हैं.

गैर-सरकारी संगठन सेव द चिल्ड्रेन के उपनिदेशक (पूर्व) चित्तप्रिय साधु कहते हैं, "पश्चिम बंगाल में पहले से ही दूसरे राज्यों के मुकाबले ज्यादा बाल विवाह होते रहे हैं. नेशनल फेमिली हेल्थ सर्वे (एनएफएचएस) की चौथी रिपोर्ट में कहा गया था कि 20 से 24 साल की 41 फीसदी महिलाओं का विवाह 18 साल से कम उम्र में ही हो गया था.” दक्षिण 24-परगना जिले में बाल विवाह और मानव तस्करी के मामले देखने वाली पुलिस अधिकारी काकोली घोष कुंडू बताती हैं, "हमें बाल विवाह की कई शिकायतें मिल रही हैं. कई मामलों में तो हमें कामयाबी मिल रही है. लेकिम लॉकडाउन खत्म होने के बाद ऐसी लड़कियों की तस्करी के प्रयास तेज होने का अंदेशा है.”

कोलकाता के प्रेसीडेंसी विश्वविद्यालय में समाज विज्ञान पढ़ाने वाली सुकन्या सर्वाधिकारी कहती हैं, "इतिहास गवाह है कि किसी बड़ी प्राकृतिक विपदा के बाद राज्य में बाल विवाह और बच्चों की तस्करी के मामले अप्रत्याशित रूप से बढ़ जाते हैं. वर्ष 1943 में बंगाल के भयावह अकाल के दौर में भी ऐसा ही हुआ था.” 

भारतीय प्रबंधन संस्थान (आईआईएम), कोलकाता में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर रहे अनूप सिन्हा कहते हैं, "अम्फान के बाद ऐसे मामलों का तेजी से बढ़ना कोई आश्चर्यजनक नहीं है. गरीबी ही इस समस्या की मूल वजह है. ऐसे में सरकार की भूमिका बेहद अहम हो जाती है. ऐसे परिवारों की शिनाख्त कर पंचायतों के जरिए उनको आर्थिक सहायता पहुंचा कर समस्या की गंभीरत को काफी हद तक कम किया जा सकता है. कोई विकल्प नहीं होने की वजह से ही गरीब परिवार बाल विवाह का विकल्प चुन रहे हैं.” सिन्हा कहते हैं कि सरकार इस समस्या पर काबू पाने के लिए पंचायतों के साथ इलाके में सक्रिय गैर-सरकारी संगठनों की भी सहायता ले सकती है. हाईकोर्ट ने भी इस मामले में पंचायतों की भागीदारी की बात कही है.

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