सरकारों ने किया बच्चों की निजता से खिलवाड़ः रिपोर्ट
विवेक कुमार
२६ मई २०२२
मानवाधिकार संस्था ह्यूमन राइट्स वॉच ने कुछ पत्रकारों के साथ मिलकर उन तकनीकों की जांच की है, जिनके जरिए बच्चों को ऑनलाइन शिक्षा दी गई. इस रिपोर्ट में डराने वाले नतीजे मिले हैं.
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तुर्की के इस्तांबुल में रहने वाला 9 साल का रोडिन सुबह आठ बजे उठता है. नहा धोकर वह अपनी ऑनलाइन क्लास में बैठ जाता है. और उम्मीद करता है कि किसी को पता नहीं चल पाएगा कि वह उनींदा है या उसने होमवर्क पूरा नहीं किया है.
ब्रेक में रोडिन दोस्तों से चैट करता है. स्क्रीन पर मस्तीभरी तस्वीरें बनाता है. और उसके बाद गणित की क्लास में खास ध्यान देता है. शाम को वह अपने होमवर्क की तस्वीर ग्रुप में पोस्ट करता है. यह सब करते हुए रोडिन को, और उसके माता-पिता को इस बात का जरा भी भान नहीं है कि कोई पल-पल उसे देख रहा है.
वैश्विक जांच
ट्रैकिंग करने वाली तकनीकों का पूरा एक अदृश्य जाल है, जो रोडिन की ऑनलाइन गतिविधियों पर नजर रखता है. ह्यूमन राइट्स वॉच की एक ताजा रिपोर्ट बताती है कि लॉग इन करते ही रोडिन के बारे में तमाम सूचनाओं पर नजर रखी जा रही होती है, जैसे कि वह कहां है, घर के किस कमरे में कितनी देर बिता रहा है, स्क्रीन पर क्या कर रहा है, दोस्तों से क्या बात कर रहा है आदि.
घर घर पहुंचता ट्रॉली स्कूल
फूलों से सजी लकड़ी की बनी यह ट्रॉली असल में एक स्कूल है, जो बच्चों के पास पहुंचती है. पढ़ाई को कैसे घर-घर पहुंचा रहा है ट्रॉली स्कूल, देखिए...
तस्वीर: Lisa Marie David/REUTERS
गरीब बच्चों के लिए ट्रॉली स्कूल
दक्षिणी फिलीपींस में यह ट्रॉली स्कूल उन बच्चों तक शिक्षा पहुंचा रहा है जिनका स्कूल पहुंचना मुश्किल है. लकड़ी की बनी इस सुंदर सी ट्रॉली पर बैठे ये युवा शिक्षक खुद भी छात्र हैं.
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स्वयंसेवी शिक्षक
स्वयंसेवक के तौर पर काम करने वाले ये छात्र छोटे बच्चों तक इस ट्रॉली की मदद से पहुंचते हैं और उन्हें पढ़ाते हैं. हर ट्रॉली पर चार छात्र होते हैं, दो आगे और दो पीछे बैठते हैं और अपने पांवों से ट्रॉली को धकेलते हैं.
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किताबें, व्हाइटबोर्ड और टीचर
ट्रॉली अपने आप में पूरा स्कूल है. यहां रंगीन चार्ट हैं, किताबों का ढेर है और एक वाइटबोर्ड भी है. तागकावायन शहर में यह स्कूल हफ्ते में तीन बार गरीब छात्रों के समुदायों में जाता है.
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नौ छात्र बने शिक्षक
नौ छात्र इन स्कूलों के लिए स्वयंसेवी शिक्षक के तौर पर काम कर रहे हैं. उन्हीं में से एक शाइरा बेर्डिन बताती हैं, "यह करना बहुत जरूरी है, खासकर ऐसे समय में जब बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे हैं." गांव में पहुंचकर ये छात्र ट्रॉली को रेलवे ट्रैक से उतारकर बगल में रख देते हैं और बच्चों को पढ़ाते हैं.
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दान की सामग्री
ट्रॉली को एक स्कूटर की तरह धकेला जाता है. ये स्वयंसेवी शिक्षक एक दिन में लगभग 60 बच्चों को पढ़ाते हैं. बीते साल नवंबर में यह प्रयास शुरू हुआ था और शिक्षण सामग्री दान के जरिए ही जुटाई गई है.
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ह्यूमन राइट्स वॉच की यह रिपोर्ट वैश्विक स्तर पर प्रयोग की जा रही शिक्षण तकनीक की एक खोजी पड़ताल के बाद तैयार की गई है. इस तकनीक को 49 देशों की सरकारों ने महामारी के दौरान बच्चों को शिक्षा उपलब्ध कराने के लिए इस्तेमाल किया था. इस तकनीक का इस्तेमाल करने वाले 164 उत्पादों का तकनीकी और नीतिगत विश्लेषण करने के बाद ह्यूमन राइट्स वॉच का कहना है कि इस तकनीक के इस्तेमाल के जरिए सरकारों ने बच्चों की निजता का या तो सीधे तौर पर उल्लंघन किया या फिर उसे खतरे में डाला.
सरकारों ने नहीं दिया ध्यान
रिपोर्ट कहती है, "महामारी के दौरान बच्चों को वर्चुअल क्लास रूम तक पहुंचाने की जल्दबाजी में बहुत कम सरकारों ने इस बात की जांच की कि जिन तकनीकों या उत्पादों का प्रयोग किया जा रहा है, वे सुरक्षित भी हैं या नहीं. नतीजा यह हुआ कि जिन बच्चों के परिवार इंटरनेट और उत्पादों का खर्च वहन कर सकते थे, या जिन्होंने ऐसा करने के लिए जीतोड़ मेहनत की, अपने ही बच्चों की निजता से खिलवाड़ कर बैठे."
मानवाधिकारों के लिए काम करने वाली अंतरराष्ट्रीय संस्था ह्यूमन राइट्स वॉच ने पिछले साल मार्च से अगस्त के बीच यह विश्लेषण किया. 164 उत्पादों के विश्लेषण में पता चला कि 89 प्रतिशत यानी 146 उत्पाद ऐसे थे जिनका काम करने का तरीका बच्चों की निजता को खतरे में डाल रहा था, डाल सकता था या फिर उन्होंने ऐसा कर ही दिया.
शिक्षा में बंगाल अव्वल, बिहार फिसड्डी
भारत सरकार की इकनॉमिक अडवाइजरी काउंसिल टु द प्राइम मिनिस्टर (EAC-PM) ने 2021 का फाउंडेशनल लिटरेसी ऐंड न्यूमरेसी इंडेक्स जारी किया है. यह इंडेक्स बताता है कि 10 साल से कम उम्र के छात्रों का ज्ञान किस स्तर पर है.
तस्वीर: Satyajit Shaw/DW
सबसे ऊपर पश्चिम बंगाल
इस इंडेक्स में पश्चिम बंगाल के बच्चों को सबसे होनहार बताया गया है. यह बड़े राज्यों की श्रेणी का नतीजा है. सबसे खराब नंबर बिहार को मिले. तमिलनाडु दूसरे और महाराष्ट्र तीसरे नंबर पर रहा.
तस्वीर: Satyajit Shaw/DW
छोटे राज्यों में केरल अव्वल
छोटे राज्यों की श्रेणी में सबसे ज्यादा ज्ञान केरल के बच्चों में पाया गया. सबसे बुरा हाल झारखंड का रहा. दूसरे नंबर पर हिमाचल प्रदेश और तीसरे पर पंजाब का नंबर था.
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केंद्र शासित प्रदेश
यूटी कैटिगरी में लक्षद्वीप सबसे ऊपर रहा जबकि लद्दाख का प्रदर्शन सबसे खराब रहा.
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उत्तर पूर्वी राज्य
उत्तर पूर्वी राज्यों की कैटिगरी अलग थी. वहां मिजोरम को अव्वल नंबर दिया गया जबकि अरुणाचल प्रदेश को सबसे कम.
तस्वीर: dpa/picture alliance
औसत से भी नीचे
इस अध्ययन में पाया गया कि आधे से ज्यादा राज्यों का स्कोर राष्ट्रीय औसत (28.05) से नीचे था.
तस्वीर: picture alliance/ZUMA Press
पैमाने
इस अध्ययन में विभिन्न राज्यों को 41 मानकों पर परखा गया. इसके लिए पांच स्तंभ तय किए गए थे जिनमें शिक्षा तक पहुंच, आधारभूत स्वास्थ्य, नतीजे और प्रशासन शामिल हैं
तस्वीर: picture-alliance / su5/ZUMA Press
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रिपोर्ट कहती है,"ये उत्पाद खुफिया तरीके और बिना माता-पिता की सहमति लिए बच्चों पर नजर रख रहे थे. बहुत से मामलों में वे बच्चों के बारे में ऐसी जानकारियां जुटा रहे थे जैसे कि वे कौन है, कैसा व्यवहार करते हैं, उनके परिजन और दोस्त कौन हैं और उनके परिवार किस तरह की तकनीक या उत्पाद खरीदने की क्षमता रखते हैं."
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बच्चों को दिखाए गए विज्ञापन
रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया के सबसे ज्यादा आबादी वाले 49 देशों की सरकारों ने बच्चों के अधिकारों का उल्लंघन किया है. संस्था में बाल अधिकारों पर काम करने वाले तकनीकी शोधकर्ता ह्ये जुंग हान कहती हैं, "स्कूलों में बच्चे सुरक्षित होने चाहिए, फिर चाहे वे शारीरिक रूप से वहां मौजूद हों या ऑनलाइन हाजिर हों. बिना जांच किए तकनीकों के इस्तेमाल की सिफारिश करके सरकारों ने कंपनियों के लिए बच्चों की जासूसी के दरवाजे खोल दिए और उनकी बेहद निजी जिंदगी को उघाड़ दिया."
असली जिंदगी का नायकः सड़क को बनाया स्कूल
दीप नारायण नायक पश्चिम बंगाल के एक छोटे से गांव जोबा अट्टापाड़ा गांव में स्कूल टीचर हैं. वह नाम से ही नहीं, जज्बे से भी नायक हैं.
लॉकडाउन के कारण स्कूल बंद हो गए तो दीप नायारण नायक को अपने छात्रों के पीछे छूट जाने की चिंता हुई. उन्होंने बच्चों तक पहुंचने का तरीका निकाला. उन्होंने गलियों की दीवारों को रंगकर बोर्ड बना दिया और वहीं क्लास लेने लगे.
तस्वीर: Rupak De Chowdhuri/REUTERS
पढ़ाई भी, सिखाई भी
पिछले कई महीनों से नायक इसी तरह अपने छात्रों को पढ़ा रहे हैं ताकि उनके बच्चे लॉकडाउन के कारण शिक्षा से महरूम न रह जाएं. वह लोक गीतों से लेकर हाथ धोने की जरूरत तक बच्चों को हर तरह का ज्ञान देते हैं.
तस्वीर: Rupak De Chowdhuri/REUTERS
कोई बच्चा छूटे नहीं
नायक बताते हैं कि उनकी क्लास में ज्यादातर बच्चे ऐसे हैं जिनके परिवार से पहली बार कोई स्कूल आया. तो वह उन्हें पीछे नहीं छूटने देना चाहते.
तस्वीर: Rupak De Chowdhuri/REUTERS
माता पिता भी खुश
बच्चों के माता पिता भी उनकी इस कोशिश से खुश हैं. एक बच्चे के पिता ने बताया कि पहले तो बच्चे यूं ही गलियों में भटकते रहते थे, नायक की इस कोशिश ने उन्हें फिर से पढ़ाई में लगा दिया है.
तस्वीर: Rupak De Chowdhuri/REUTERS
गांव नहीं पहुंची ऑनलाइन पढ़ाई
हाल ही में आए एक सर्वे के मुताबिक भारत के गांवों में सिर्फ 8 प्रतिशत बच्चे ही लॉकडाउन के दौरान ऑनलाइन पढ़ाई कर पाए और 37 फीसदी तो बिल्कुल नहीं पढ़ पाए.
इस रिपोर्ट के ज्यादातर ऑनलाइन लर्निंग प्लैटफॉर्म बच्चों के डेटा को विज्ञापन तकनीकों को उपलब्ध करवा रहे थे. ऐसा करके बच्चों को व्यवहार आधारित विज्ञापनों की दायरे में लाया गया और बहुत से मामलों में ऐसे विज्ञापन दिखाए भी गए.
ह्यूमन राइट्स वॉच ने #उत्पादनहींहैंबच्चे (#StudentsNotProducts) नाम से एक वैश्विक अभियान शुरू किया है, जिसके जरिए माता-पिता, शिक्षकों और बच्चों को जागरूक किया जा रहा है और उन्हें निजता व अन्य बाल अधिकारों के लिए आवाज उठाने के लिए प्रेरित किया जा रहा है.
हान ने कहा, "पढ़ाई करने के बदले बच्चों को अपनी निजता खोने की जरूरत नहीं पड़नी चाहिए. सरकारों को तुरंत बच्चों संबंधी आंकड़ों की सुरक्षा के लिए कदम उठाने चाहिए और कानून लाने चाहिए ताकि बच्चों की जासूसी रोकी जा सके."