लोकतांत्रिक व्यवस्था से और दूर ले जाते हुए चीन ने अपने अर्धस्वायत्त क्षेत्र हांगकांग के चुनावी तंत्र में कई ऐसे बदलाव कर दिए हैं, जिससे हांगकांग के शासन में उसका दखल और बढ़ जाएगा.
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चीन ने हांगकांग की विधायिका के लिए जनता द्वारा सीधे चुने जाने वाले प्रतिनिधियों की सीटों में भारी कमी की है. उनकी संख्या पहले के मुकाबले एक चौथाई से भी कम कर दी गई है. यह भी तय किया गया है कि हांगकांग का शासन चलाने वाले ज्यादातर विधायक सीधे सीधे एक बीजिंग-समर्थक समिति चुनेगी. माना जा रहा है कि हांगकांग में लोकतंत्र के समर्थन में तेज हो रहे आंदोलन को कुचलने के लिए चीन ने यह कदम उठाया है.
चीन की सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ ने लिखा है कि हांगकांग के मिनी चार्टर 'बेसिक लॉ' में बदलावों का राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने आदेश दे दिया है.
हांगकांग के 75 लाख निवासियों को अब तक नए बदलावों की पूरी जानकारी नहीं मिली है. चीन की संसद में हांगकांग की ओर से अकेले प्रतिनिधि टैम यू-चुंग ने इस बाबत मीडियाकर्मियों से बातचीत में बताया कि हर उम्मीदवार का डॉसियर बनेगा जिसका मूल्यांकन सुरक्षा सेवाएं भी करेंगी. उन्होंने कहा, "राष्ट्रीय सुरक्षा समिति और राष्ट्रीय सुरक्षा पुलिस हर उम्मीदवार पर अपनी रिपोर्ट पेश करेगी जिससे रिव्यू कमेटी को उनकी योग्यता तय करने में मदद मिलेगी."
दुनिया की कुछ प्रमुख संसदें
जन प्रतिनिधि सभाओं का आजकल के शासन में अहम स्थान है. कहीं इन्हें लोकतंत्र के मंदिर कहा जाता है तो कहीं इनके अधिकार खतरे में हैं.
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चीन
चीन की राष्ट्रीय पीपुल्स कांग्रेस दुनिया की सबसे बड़ी और सबसे कमजोर संसद है. इसके करीब 3000 सदस्य हैं. हर पांच साल पर इसका चुनाव होता है. एक सदन वाली चीनी संसद को कानून बनाने, सरकार की गतिविधियों की निगरानी और प्रमुख अधिकारियों के चुनाव का अधिकार है. लेकिन असल में सारे फैसले देश कम्युनिस्ट पार्टी लेती है, जिसका चीन में एकछत्र राज है.
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जर्मनी
जर्मन संसद बुंडेसटाग की 598 सीटों में आधे का चुनाव देश भर में बंटे चुनाव क्षेत्रों में होता है जबकि बाकी को पार्टियों को मिले मतों के अनुपात में बांटा जाता है ताकि उनकी सीटें वोट के अनुपात में हों. संसद में प्रतिनिधित्व पाने के लिए वोटों की न्यूनतम सीमा 5 प्रतिशत है. सरकार के मुकाबले संसद की ताकत में लगातार इजाफा हो रहा है.
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ब्रिटेन
ब्रिटेन की संसद दो सदनों वाली है. हाउस ऑफ लॉर्ड्स और हाउस ऑफ कॉमंस. 650 सदस्यों वाले हाउस ऑफ कॉमंस का चुनाव हर पांच साल पर होता है. संसद के दूसरे सदन हाउस ऑफ लॉर्ड्स में 804 सदस्य हैं जो लॉर्ड टेम्पोरल और लॉर्ड स्पीरिचुअल में बंटे हैं.
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अमेरिका
कांग्रेस के नाम से जानी जाने वाली अमेरिकी संसद के भी दो सदन हैं. उपरी सदन सीनेट के 100 सदस्य हैं, जिनका कार्यकाल छह साल का होता है. हर राज्य से दो सदस्य चुने जाते हैं. निचले सदन हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव के 435 सदस्यों का चुनाव दो साल पर होता है.
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फ्रांस
फ्रांस की संसद के दो सदनों का नाम सीनेट और नेशनल एसेंबली है. सीनेट की 348 और नेशनल एसेंबली की 577 सीटें हैं. फ्रांस में राष्ट्रपति प्रधानमंत्री और मंत्रियों को नियुक्त करता है और उस पर कोई दबाव नहीं है कि ये अधिकारी संसद में बहुमत की पार्टी के हों. नेशनल एसेंबली अविश्वस प्रस्ताव पास कर सरकार को गिरा जरूर सकती है.
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भारत
ब्रिटेन की गुलामी में रहे भारत की संसद भी ब्रिटेन की संसद के नमूने पर बनी है, लेकिन यहां सम्राट के बदले राष्ट्रपति राज्य प्रमुख हैं. निचले सदन लोक सभा के 542 सदस्यों का चुनाव पांच साल के लिए सीधे निर्वाचन से होता है, जबकि उपरी सदन राज्य सभा के सदस्यों का चुनाव प्रांतीय विधान सभाओं के द्वारा छह साल के लिए होता है.
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पाकिस्तान
दो सदनों वाली पाकिस्तान संसद में ऊपरी सदन का नाम सीनेट और निचले सदन क नाम नेशनल एसेंबली है. नेशनल एसेंबली के 342 सदस्यों का चुनाव पांच साल के लिए वयस्क मतदान के आधार पर होता है. 60 सीटें महिलाओं के लिए और 10 सीटें धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए सुरक्षित हैं. सीनेट के सदस्य छह साल के लिए चुने जाते हैं.
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बांग्लादेश
बांग्लादेश की संसद का नाम जातीयो संसद है. 350 सदस्यों वाली संसद का कार्यकाल 5 वर्षों का है और 50 सीटें महिलाओं के लिए सुरक्षित हैं, जिनकी नियुक्ति पार्टी द्वारा जीती गई सीटों पर होती है. बांग्लादेश में संसद में बहुमत दल का नेता प्रधानमंत्री बनता है और संसद ही राष्ट्रपति का चुनाव करती है.
नेपाल की वर्तमान संसद देश की दूसरी संविधान सभा है. देश के 2015 के संविधान के अनुसार नेपाली संसद के दो सदन हैं, निचला सदन प्रतिनिधि सभा है जिसके 275 सदस्यों का चुनाव सीधे मतदान से होता है. ऊपरी सदन राष्ट्रीय सभा के 59 सदस्य छह साल के लिए चुने जाते हैं.
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कनाडा
उत्तरी अमेरिका में बसे कनाडा की संसद के भी दो सदन हैं. निचले सदन के 338 सदस्य चुनाव क्षेत्रों में सीधे मतदान से चुने जाते हैं. उपरी सदन सीनेट के 105 सदस्यों की नियुक्ति प्रधानमंत्री की सलाह पर देश के गवर्नर जनरल एक एक को बुलाकर करते हैं. संसदीय कार्रवाई लगभग ब्रिटेन जैसी है.
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रूस
रूस की 616 सदस्यों वाली संसद के दो सदन हैं. निचले सदन का नाम स्टेट डूमा है और उसके 450 सदस्यों में आधा निर्वाचन क्षेत्रों से चुना जाता है और आधा पार्टी को मिले वोटों के आधार पर. संसद के ऊपरी सदन संघीय परिषद के लिए रूस की सभी 85 संघीय इकाईयां दो दो सदस्य भेजती हैं.
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तुर्की
तुर्की की संसद का नाम 'ग्रैंड नेशनल एसेंबली ऑफ टर्की' है, लेकिन उसे मजलिस के नाम से पुकारा जाता है. 550 सदस्यों वाली संसद का चुनाव पार्टी सूची के आधार पर आनुपातिक पद्धति से होता है. संसद में पहुंचने के लिए पार्टियों को कम से कम 10 प्रतिशत मत पाना जरूरी है. संविधान में संशोधन के जरिये संसद के अधिकारों में भारी कटौती का प्रस्ताव है.
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यूरोपीय संसद
751 सदस्यों वाली यूरोपीय संसद यूरोपीय संघ की सीधे निर्वाचित संस्था है. यूरोपीय आयोग और यूरोपीय संघ की परिषद के साथ मिलकर वह यूरोपीय संघ की विधायिका वाली जिम्मेदारी को पूरा करती है. भारत के बाद यह दूसरी सबसे ज्यादा लोकतांत्रिक मतदाताओं की प्रतिनिधि सभा है.
चीन की कम्युनिस्ट पार्टी इस प्रक्रिया के माध्यम से सुनिश्चतित करना चाहती है कि एक "देशभक्त" हांगकांगवासी ही उसकी विधायिका के लिए लिए चुनाव में खड़ा हो. नए कानून के अनुसार, हांगकांग की विधायिका में सीटों की संख्या 70 से बढ़ाकर 90 कर दी जाएगी. लेकिन इन 90 में से केवल 20 सीटों पर ही हांगकांग के लोगों के जरिए सीधे तौर पर चुने लोग बैठेंगे. अब तक कुल 70 में से आधी सीटों यानि 35 पर जनता के चुने प्रतिनिधि होते थे.
90 में से बाकी की 40 सीटों पर प्रतिनिधियों का चुनाव एक चीन-समर्थक समिति चुनेगी. बची हुई 30 सीटों के लिए प्रतिनिधि तमाम उद्योग धंधों और विशेष समूहों से चुने जाएंगे, जिन्हें 'फंक्शनल कंस्टीचुएंसी' कहा जाता है. यह समूह भी पारंपरिक रूप से चीन का वफादार रहा है.
मार्च की शुरुआत में बीजिंग में कम्युनिस्ट पार्टी के हजारों प्रतिनिधि अपनी संसद की सालाना बैठक के लिए जुटे थे. बैठक में अंतरराष्ट्रीय जगत को चेतावनी दी गई कि वो हांगकांग के मामले में दखल ना दे और ऐसा करने वालों का चीन कड़ाई से विरोध करेगा. चीन ने इसी बैठक में घोषणा की थी कि वह हांगकांग की चुनावी व्यवस्था में बड़े बदलाव करने वाला है जिससे हांगकांग की बागडोर "देशभक्त" लोगों को सौंपी जा सके. पिछले साल भी चीन ने हांगकांग के लिए जो नया राष्ट्रीय सुरक्षा कानून बनाया था उसका इस्तेमाल कर अब तक कई दर्जन लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है.
हांगकांग में क्या गुल खिला रहा है चीन का नया कानून
हांगकांग में चीन का नया राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लागू होने के पहले ही दिन वहां पुलिस ने कम से कम 70 लोगों को गिरफ्तार कर लिया है. गिरफ्तार हुए सभी लोगों को जेल में लंबा समय बिताना पड़ सकता है.
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पहला दिन
विवादित राष्ट्रीय सुरक्षा कानून हांगकांग में लागू हो चुका है. शहर की मुख्य कार्यकारी कैरी लैम ने प्रेस वार्ता में नए राष्ट्रीय सुरक्षा कानून की प्रतियां जारी कीं. आलोचकों का कहना है कि इस तरह का कड़ा कानून चीन की मुख्य भूमि पर भी नहीं है.
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वर्षगांठ
एक जुलाई को हांगकांग को ब्रिटेन द्वारा चीन को सौंपे जाने की वर्षगांठ भी होती है. कैरी लैम ने अधिकारियों और अतिथियों के साथ हांगकांग स्पेशल एडमिनिस्ट्रेटिव रीजन की स्थापना की 23वी वर्षगांठ भी मनाई.
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विरोध
हांगकांग की सड़कों पर लोकतांत्रिक प्रदर्शनकारियों ने नए कानून के विरोध में रैली निकाली. हजारों लोग रैली में शामिल हुए और "अंत तक प्रतिरोध" और "हांगकांग आजादी" जैसे नारे लगाए.
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"न्याय के लिए"
प्रदर्शनकारियों का कहना था कि उन्हें जेल जाने का डर है लेकिन न्याय की की खातिर विरोध करना जरूरी है.
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चेतावनी
प्रदर्शनकारियों को रोकने के लिए पुलिस के दंगा रोकने वाले दल ने सड़कों पर गश्त लगाई, लेकिन विरोध रैली फिर भी निकाली गई.
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पहली गिरफ्तारियां
रैली में लोगों ने विरोध के कई बैनर भी लहराए. एक व्यक्ति, जिसके पास हांगकांग की आजादी का एक झंडा था, नए सुरक्षा कानून के तहत गिरफ्तार होने वाला पहला व्यक्ति बन गया.
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"राजद्रोह"
पुलिस ने जगह जगह लोगों को रोकने के लिए घेराबंदी की थी. नारे लगाते और बैनर लहराते प्रदर्शनकारियों को पहली बार नए कानून के तहत पुलिस कार्रवाई की चेतावनी दी गई. उन्हें कहा गया कि उन पर 'राजद्रोह' के साजिश के लिए कार्रवाई हो सकती है.
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दमन
पुलिस ने प्रदर्शनकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की. जमा लोगों को तीतर-बितर करने के लिए पानी की बौछारों का भी इस्तेमाल किया गया.
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पुलिस बनाम प्रदर्शनकारी
प्रदर्शनकारियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए हांगकांग पुलिस को काफी आलोचना झेलनी पड़ी है. इस तरह के दृश्य हांगकांग में पिछले साल हुए प्रदर्शनों के दौरान भी देखने को मिले थे.
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पत्रकारों पर हमला
रैली के दौरान पुलिस ने पत्रकारों को भी नहीं बख्शा और उनके खिलाफ पेप्पर स्प्रे का इस्तेमाल किया.
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सन 1997 में ब्रिटेन ने हांगकांग को चीन को सौंपा था और अगले 50 सालों के लिए उसके कुछ राजनीतिक अधिकारों का वादा लिया था. आलोचकों का मानना है कि चीन उन वादों को तोड़ रहा है और हांगकांग में लगातार अपना दखल बढ़ाता जा रहा है. 2019 में चीन हांगकांग के लिए प्रत्यर्पण बिल ले कर आया था जिसका कड़ा विरोध होने पर उसे स्थगित करना पड़ा था. चीन अब हांगकांग की चुनावी व्यवस्था में बदलाव लाकर यह सुनिश्चित कर लेना चाहता है कि फिर वहां ऐसा होना संभव ही ना हो सके. दूसरी ओर, बीते दो सालों से वहां चीन के दखल को कम करने और लोकतांत्रिक सुधारों की मांग को लेकर विरोध प्रदर्शन अब भी जारी हैं.