चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर गया चीन का अंतरिक्ष यान लौट आया है. पहली बार दक्षिणी ध्रुव से कोई यान नमूने लेकर लौटा है.
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चीन के चांग'ई-6 अंतरिक्ष यान ने विज्ञान जगत में एक नया इतिहास रच दिया है. चंद्रमा के दक्षिण ध्रुव से यह यान मंगलवार को पृथ्वी पर लौट आया. अपने साथ वह चांद के उस तरफ की मिट्टी और चट्टानें लेकर आया है, जो हमें पृथ्वी से नजर नहीं आता.
यह पहली बार है जब चंद्रमा की दूसरी तरफ के नमूने पृथ्वी पर लाए गए हैं. मंगलवार को चांग'ई-6 उत्तरी चीन के इनर-मंगोलियन इलाके में उतरा. इसके बाद चाइना नेशनल स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन के निदेशक जांग केजियान ने टीवी पर प्रसारित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि अभियान पूरी तरह सफल रहा.
हमें चांद चाहिए: कहानी, इंसान और चांद की
इंसानी विकास का क्रम, चांद को देखने-समझने की क्रमवार यात्रा भी है. इसके पड़ावों में कौतुक भी है, भक्ति भी. वो कभी प्रेम-कामना का रूपक है, कभी भाग्य बांचने की कक्षा. देखिए इस यात्रा की कुछ झलकियां.
हजारों साल पहले जब हमारे पुरखे रात के आसमां को तकते होंगे, तो दूर ऊंचाई में दिखता होगा एक रोशन गोला. कभी उजली रोशनी में डूबा, कभी मलाई की परत सा पीला, तो कभी बुझा-बुझा, निस्तेज. घटता-बढ़ता. दिन में दिखने वाले उस भभकते गोल से बिल्कुल अलग, जिसकी रोशनी में आंखें चौंधिया जाती हैं. तब चांद विस्मय और कौतुक का विषय रहा होगा.
तस्वीर: darkfoxeluxir/Imago Images
पहला कैलेंडर
सुबह होती है. सूरज उगता है. दिन ढलता है. चांद उगता है. हमारे लिए इस क्रम में कुछ नया नहीं, कोई कौतुहल नहीं. लेकिन प्राचीन मानवों के लिए यह तयशुदा चक्र समय मापने का एक भरोसेमंद जरिया था. इंसानों का सबसे शुरुआती कैलेंडर. कैंब्रिज आर्कियोलॉजिकल जर्नल में छपे एक पेपर में शीत युग के कुछ गुफा चित्रों को चांद पर आधारित कैलेंडरों का सबसे शुरुआती साक्ष्य माना गया.
तस्वीर: BORJA SUAREZ/REUTERS
जब इंसान शिकारी था...
शीत युगीन कई गुफा चित्रों में खास तरह के डॉट और डैश मिलते हैं, जो जानवरों के चित्र के नजदीक बने हैं. शोधकर्ताओं का कहना है कि ये चिह्न अलग-अलग मौसमों में जानवरों के बर्ताव को दिखाते हैं. चूंकि तब मानव शिकार पर निर्भर थे, ऐसे में प्रजनन चक्र जैसी जानकारियां उनके लिए बेहद अहम थीं. अनुमान है कि इन जानकारियों के लिए लूनर कैलेंडर का इस्तेमाल किया जाता था.
तस्वीर: RAMI AL SAYED/AFP
चंद्र देवता
आगे चलकर जब मानव सभ्यताएं विकसित हुईं, तो कई जगहों पर चांद धार्मिक-आध्यात्मिक मान्यताओं का हिस्सा बना. मसलन प्राचीन मिस्र में खोंसू, चंद्रमा के देवता माने जाते थे. विश्वास था कि इंसान के मरने के बाद की यात्रा में खोंसू उन्हें बुरी शक्तियों से बचाते हैं. सुमेरियन सभ्यता में नाना/सेन को चंद्रमा का देवता माना जाता था. वो सबसे लोकप्रिय देवताओं में थे.
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आज भी होती है चंद्रमा की पूजा
कई संस्कृतियों में चांद को पूजे जाने का भी चलन रहा है. प्राचीन रोम में देवी लूना, चंद्रमा का ही दिव्य रूप थीं. रूस ने चंद्रमा पर जो मिशन भेजा, उसका नाम भी लूना ही था. भारत के कई हिस्सों में आज भी चंद्रमा की पूजा होती है. यहूदी परंपरा में "रोश होदेश" चांद का महीना माना जाता है. इसकी शुरुआत शुक्लपक्ष के चांद की पहली झलक से शुरू होती है. इस्लाम में भी रमजान और ईद का चांद के देखे जाने से नाता है.
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गीत, साहित्य, कविताएं...
लोक परंपरा और साहित्य में चांद के दर्जनों रूप हैं. बच्चों की लोरी में वो चंदा मामा है. बाल कृष्ण की कहानी में यशोदा चांद दिखाकर उन्हें बहलाती हैं. पुराने समय से लेकर आज तक, साहित्य और गीत-संगीत में चांद कई तरह के रूपकों में इस्तेमाल होता आ रहा है. हिंदी फिल्मी गानों को ही लीजिए, तो चांद की उपमा वाले दर्जनों गाने आपको मुंहजुबानी याद होंगे.
1960 के दशक में जब चांद पर जाने की होड़ शुरू हुई, तो यह वाकई मानव सभ्यता के लिए बड़ी छलांग थी. सोवियत संघ और अमेरिका, दोनों दौड़ जीतना चाहते थे. सितंबर 1959 में सोवियत संघ का लूना2 चांद पर लैंड होने वाला पहला अंतरिक्षयान बना. इसके बाद कई "फर्स्ट" वाले पल आए. जैसे, पहली सॉफ्ट लैंडिंग. चांद की सतह की पहली तस्वीर. चांद के पास से पहली बार गुजरना.
तस्वीर: NASA/CNP/AdMedia/picture alliance
वन स्मॉल स्टेप फॉर अ मैन...
फिर आई चांद के इतिहास की सबसे यादगार तारीख: 16 जुलाई, 1969. इसी दिन नासा के अपोलो 11 मिशन ने पहली बार इंसान को चांद की सतह पर उतारा. नील आर्मस्ट्रॉन्ग और बज आल्ड्रिन ने चांद की जमीन पर पैर धरा. बाद में अपना अनुभव बताते हुए नील ने ऐतिहासिक पंक्ति कही: वन स्मॉल स्टेप फॉर अ मैन, वन जाइंट लीप फॉर मैनकाइंड. तस्वीर में: चांद की जमीन पर नील आर्मस्ट्रॉन्ग के जूते का निशान.
तस्वीर: NASA/Heritage Images/picture alliance
इतना अविश्वसनीय कि बहुतों को अब भी संदेह
यह इतनी अद्भुत उपलब्धि थी, इतनी हैरतअंगेज कि कई लोग आज तक इसपर यकीन नहीं कर पाए हैं. कन्सपिरेसी थिअरीज के कई मुरीद आज भी कहते हैं कि वो लैंडिंग एक झूठ थी. उनके तर्कों की एक मिसाल: जब चांद पर गुरुत्वाकर्षण नहीं है, तो झंडा फहराया कैसे? 2019 का एक चर्चित वायरल वीडियो है, जिसमें बज आल्ड्रिन ऐसे ही एक "लैंडिंग डिनायर" से नाराज होकर उसे घूंसा मारते हैं.
तस्वीर: NASA/Zuma/picture alliance
फिर से दौड़ लगी है...
अगस्त 2007 में एक रूसी झंडे की खूब चर्चा हुई. यह झंडा आर्कटिक की तलछटी में लगाया गया था. वहां के संसाधनों में हिस्सेदारी के लिए यह रूस की सांकेतिक दावेदारी मानी गई. तब पश्चिमी देशों ने रूस को याद दिलाया कि ये 15वीं सदी नहीं है कि झंडा गाड़ो और कहो, आज से ये जमीन हमारी! हाल के दशकों में चंद्रमा के लिए फिर से एक दौड़ शुरू हुई है. तो क्या चंदा किसी दिन रूप और शीतलता के रूपकों से हटकर संसाधन बन जाएगा?
तस्वीर: ingimage/IMAGO
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केजियान ने कहा, "मैं अब घोषणा करता हूं कि चांग'ई-6 लूनर एक्सप्लोरेशन मिशन ने पूरी सफलता हासिल की है.” चीनी वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि चांग'ई-6 जो नमूने लेकर आया है उनमें अन्य चीजों के साथ-साथ 25 लाख साल पुरानी ज्वालामुखीय चट्टानें भी होंगी, जो चंद्रमा के दो तरफ के भौगोलिक फर्क को समझने में मदद करेंगी.
चांद के दूसरे हिस्से पर सफलता
पृथ्वी से हम चंद्रमा के एक ही तरफ का हिस्सा देख पाते हैं. दूसरा हिस्सा हमेशा परे रहता है. पिछले कुछ समय से वैज्ञानिक उस हिस्से को जानने-समझने की कोशिश कर रहे हैं. पिछले साल भारत ने भी वहां चंद्रयान भेजा था. भारत चंद्रमा के उस हिस्से पर यान उतारने वाला पहला देश बना था. उसके बाद जापान और अमेरिका के यान भी उस हिस्से पर उतर चुके हैं.
चांद के उस हिस्से में बड़ी पहाड़ियां और उल्का पिंडों के गिरने से बने बड़े-बड़े गड्ढे हैं. जो हिस्सा पृथ्वी से नजर आता है, वह तुलनात्मक रूप से सपाट है.
आधी सदी बाद चांद पर अमेरिका
आधी सदी बाद एक अमेरिकी यान आखिरकार चांद पर उतर गया है. ओडिसियस नाम के यान ने चांद के दक्षिणी ध्रुव के पास लैंडिंग की.
तस्वीर: Gregg Newton/AFP/Getty Images
ओडिसियस चांद पर
लगभग 55 साल बाद अमेरिका का एक यान चांद पर दोबारा उतरा है. टेक्सस स्थित एक निजी कंपनी इंट्यूटिव मशीन्स का अंतरिक्ष यान चांद पर उतर गया.
तस्वीर: Intuitive Machines/Aton Chile/IMAGO
छह टांगों वाला ओडिसियस
ओडिसियस एक छह टांगों वाला रोबोट लैंडर है जो चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर मैलपर्ट नाम के एक क्रेटर के पास उतरा है. एक हफ्ते पहले इसे फ्लोरिडा से छोड़ा गया था.
अमेरिका ने पिछली बार 1972 में चांद को छुआ था जब अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा का यान अपोलो 17 चांद पर गया था. वह एक मानव मिशन था जिस पर दो अंतरिक्ष यात्री जीन सर्नन और हैरिसन श्मिट सवार थे.
अब तक सिर्फ पांच देश चांद पर अपना यान उतारने में कामयाब हुए हैं. इनमें अमेरिका के अलावा रूस, चीन, भारत और जापान शामिल हैं. जापान का यान पिछले हफ्ते ही चांद पर पहुंचा है.
तस्वीर: ESA/ESA/Euclid/Euclid Consortium/NASA
सात दिन का काम
ओडिसियस अपने साथ कई तरह के उपकरण लेकर गया है, जिनके जरिए नासा और अन्य निजी कंपनियां वैज्ञानिक प्रयोग करेंगी. यह सात दिन तक सौर ऊर्जा पर काम करने के लिए बनाया गया है.
तस्वीर: Gregg Newton/AFP/Getty Images
इंसान के लिए रास्ता
नासा चांद पर मानव बेस बनाने की कोशिश कर रही है, ताकि वहां से बाह्य अंतरिक्ष की गहराइयों को खोजा जा सके. इस मिशन की कामयाबी के बाद अब नासा अगले साल मानव मिशन को चांद पर भेजने की कोशिश करेगी.
तस्वीर: Gregg Newton/AFP/Getty Images
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चांद से पहले भी मिट्टी और चट्टानों जैसे नमूने लाए जा चुके हैं. अमेरिका और पूर्व सोवियत संघ के यान ऐसा कर चुके हैं. लेकिन वे नमूने इस तरफ से लाए गए थे, जो हमें नजर आता है. दूसरी तरफ से नमूने लाने वाला चीन पहला देश है.
चंद्रमा पर पहुंचने को लेकर पिछले कुछ सालों में होड़ लगातार बढ़ी है. खासकर चीन और अमेरिका के वैज्ञानिकों के बीच प्रतिद्वन्द्विता जारी है. इसके अलावा, रूस, जापान और भारत भी इस दौड़ के अहम खिलाड़ी हैं.
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महाशक्ति बनने की ओर चीन
2030 तक चीन अंतरिक्ष के क्षेत्र में एक महाशक्ति बनने की तैयारी कर रहा है. उसने और देशों को प्रोग्राम में शामिल होने का न्योता दिया है. पिछले साल अजरबैजान की राजधानी बाकू में चाइना नेशनल स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन कांग्रेस हुई थी जिसमें चीन ने अपने अंतरिक्ष अभियान चांग'ई-8 का ऐलान किया और अन्य देशों को भी इसमें शामिल होने को आमंत्रित किया.
धरती पर चांद जैसी जगह
रोबोट को अंतरिक्ष में भेजने के लिए ट्रेनिंग देने का एक अहम हिस्सा है उसे उसी माहौल में टेस्ट करना. पर बिना अंतरिक्ष में जाए ऐसा कैसे होगा? एक जगह है ऐसी.
तस्वीर: Giuseppe Di Stefano - Etna Walk/REUTERS
धरती पर अंतरिक्ष
यूरोप के सबसे सक्रिय ज्वालामुखी माउंट एटना का माहौल चांद जैसा या मंगल जैसा है. इसलिए रोबोट को अंतरिक्ष में भेजेने से पहले ट्रेनिंग के लिए यहां लाया गया है.
तस्वीर: Giuseppe Di Stefano - Etna Walk/REUTERS
आर्चेस
जर्मनी की अंतरिक्ष एजेंसी जर्मन एयरोस्पेस सेंटर (डीएलआर) और यूरोपीय स्पेस एजेंसी (ईएसए) मिलकर यह प्रोजेक्ट चला रहे हैं जिसका नाम है आर्चेस (ARCHES),
तस्वीर: Giuseppe Di Stefano - Etna Walk/REUTERS
रिमोट चालित रोबोट
2,600 मीटर की ऊंचाई पर इटली के सिसली इलाके में माउंट एटना पर रिमोट कंट्रोल से नियंत्रित कई रोबोट का परीक्षण किया गया.
तस्वीर: Giuseppe Di Stefano - Etna Walk/REUTERS
सारे अनुमान जरूरी
वैज्ञानिक उन सारी संभावित परिस्थितियों का आकलन कर लेना चाहते हैं जिनका सामना ये रोबोट चांद या मंगल पर अभियानों के दौरान कर सकते हैं.
तस्वीर: Giuseppe Di Stefano - Etna Walk/REUTERS
वैसा ही है माउंट एटना
डीएलआर के सिस्टम डिवेलपर बर्नहार्ड वोडेरमायर ने रॉयटर्स को बताया, "माउंट एटना ऐसी जगह है जिसकी तुलना चांद या मंगल के ढांचे से की जा सकती है. पिछले अभियानों के दौरान भी हमने इसका इस्तेमाल किया है."
तस्वीर: Giuseppe Di Stefano - Etna Walk/REUTERS
कैसे काम करेंगे रोबोट
चांद या मंगल पर रोबोट का एक काम नमूने जमा करना और उनकी वहीं जांच करना होता है. फिर उस डाटा को पृथ्वी पर वैज्ञानिकों को भेजा जाता है. यहां उसकी जांच कर ली जाती है कि प्रक्रिया में कोई बाधा तो नहीं आ रही.
तस्वीर: Giuseppe Di Stefano - Etna Walk/REUTERS
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चांग'ई-6 की सफलता पर चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने भी वैज्ञानिकों को बधाई दी. उन्होंने अपने संदेश में कहा, "अंतरिक्ष और तकनीक के क्षेत्र में एक शक्ति बनने की हमारे देश की कोशिशों की दिशा में यह एक ऐतिहासिक उपलब्धि है."
चांग'ई-6 को तीन मई को प्रक्षेपित किया गया था और उसकी यात्रा 53 दिनों की थी. वहां जाकर उसने चंद्रमा के धरातल पर खुदाई की और नमूने जुटाए.
चाइनीज अकैडमी ऑफ साइंसेज में जियोलॉजिस्ट जोंगयू ये ने बताया, "ये नमूने अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र के एक मूलभूत सवाल का जवाब दे सकते हैं कि वह क्या भौगोलिक गतिविधि है, जो चांद के दोनों तरफ को अलग-अलग करती है."