चीन ने निकाला विदेशी प्रतिबंधों से निपटने का रास्ता
११ जून २०२१
चीन पर दुनिया के कई देशों ने कड़े प्रतिबंध लगा रखे हैं. अब उसने एक कानून पास किया है, जो उसे 'अन्यायपूर्ण' लगने वाले विदेशी प्रतिबंधों के खिलाफ कदम उठाने के अधिकार देता है.
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गुरुवार, 10 जून को चीन की नेशनल पीपल्स कांग्रेस की स्थायी समिति ने एक कानून को मंजूरी दे दी, जिसके जरिए चीन को उन विदेशी प्रतिबंधों के खिलाफ कदम उठाने के अधिकार मिल गए, जिन्हें वह अन्यायपूर्ण मानता है. इस कानून के तहत चीन ऐसे कदम उठा सकेगा, जो उसके नागरिकों या व्यापारिक प्रतिष्ठानों के खिलाफ विदेशों में लगाए गए प्रतिबंधों का जवाब होंगे.
चीन के सरकारी टीवी चैनल सीसीटीवी ने खबर दी है कि यह कानून चीन के नागरिकों और व्यापारिक प्रतिष्ठानों पर पश्चिमी देशों खासकर अमेरिका द्वारा लगाए गए 'एकतरफा और पक्षपाती' प्रतिबंधों के खिलाफ कदम उठाने के अधिकार देता है. आमतौर पर चीन में किसी कानून पर वोटिंग तब होती है, जब उसकी तीन बार समीक्षा हो चुकी हो. इस कानून की यह दूसरी ही समीक्षा थी. पहली समीक्षा गुपचुप तौर पर अप्रैल में की गई थी. इस कानून के बारे में कोई जानकारी सार्वजनिक नहीं की गई है.
प्रतिबंधों की वजह
चीन का कहना है कि उसे 'पक्षपातपूर्ण' प्रतिबंधों के खिलाफ आत्मरक्षा का अधिकार है. उसका दावा है कि उसे अमेरिका के खिलाफ अपने हितों की रक्षा करनी है, जो बंधुआ मजदूरी, नजरबंदी शिविर और शिनजियां प्रांत में अल्पसंख्यकों की पुनर्शिक्षा जैसे 'झूठों' का इस्तेमाल उसके खिलाफ प्रतिबंध लगाने के लिए कर रहा है.
आखिर वुहान में है क्या
लाखों लोगों की जान ले लेने वाला कोरोना वायरस क्या चीन के वुहान की एक लैब से निकला था? इस सच्चाई का पता लगाने की कोशिशों ने चीन के इस शहर के बारे में उत्सुकता जगा दी है.
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चीन का महत्वपूर्ण शहर
वुहान चीन के हुबेई प्रांत की राजधानी है. इसका स्थान चीन के सबसे ज्यादा आबादी वाले शहरों में नौवें पायदान पर है और यह चीन के नौ 'राष्ट्रीय केंद्रीय शहरों' में से एक है.
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महामारी का जनक
दिसंबर 2019 में कोविड-19 महामारी फैलाने वाला एसएआरएस-सीओवी-दो कोरोना वायरस सबसे पहले वुहान में ही पाया गया था. जनवरी 2020 में दुनिया की सबसे पहली तालाबंदी यहीं लगी थी.
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मांस के बाजार पर नजर
अभी तक माना यही जाता है कि इस वायरस के फैलने की शुरुआत वुहान के मछली और मांस के बाजारों से हुई. लेकिन साथ ही साथ ऐसी अटकलें भी लगती रही हैं कि इस वायरस पर वुहान में स्थित एक प्रयोगशाला में शोध चल रहा था और इसके वहां से लीक होने की वजह से महामारी फैली.
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लैब का रहस्य
वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी को तरह तरह के वायरसों पर शोध के लिए जाना जाता है. ऐसे आरोप लगते आए हैं कि यहां के शोधकर्ता अक्सर यहां से काफी दूर स्थित कुछ गुफाओं में चमगादड़ों के सैंपल लेने जाते थे और वहीं से यह वायरस प्रयोगशाला पहुंचा और फिर लीक हुआ.
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अधूरे निष्कर्ष
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस साल की शुरुआत में वायरस की उत्पत्ति की जांच शुरू की थी और एक जांच दल को वुहान भेजा था. लेकिन दल वायरस के स्रोत का निर्णायक रूप से पता नहीं लगा सका. डब्ल्यूएचओ की टीम ने जांच के बाद निर्धारित किया कि लैब से वायरस का प्रसार "बेहद नामुमकिन" है.
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अटकलें जारी
इस अध्ययन से इस विवाद का अंत नहीं हुआ. अब अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने अमेरिका की खुफिया एजेंसियों से कहा है कि वे कोरोना वायरस की उत्पत्ति की जांच करें और 90 दिनों के भीतर जांच के नतीजों को सामने रखें.
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पारिस्थितिक प्रमाण मौजूद
कई विशेषज्ञों का मानना है कि चूंकि रोगाणुओं पर जिम्मेदारी के साथ काम करने के लिए कोई बाध्यकारी अंतरराष्ट्रीय मानक नहीं हैं, इसलिए इस तरह के लीक जैसे हादसे बिलकुल हो सकते हैं. वुहान से करीब 1000 मील दूर वो गुफाएं हैं जहां कोरोना वायरस के संभावित पूर्वज वायरस वाले चमगादड़ रहते हैं. इस बात की जानकारी है कि वुहान के वैज्ञानिक सैंपल लेने इन गुफाओं तक नियमित रूप से जाते थे.
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बना हुआ है रहस्य
लेकिन इसके बावजूद अभी भी निर्णायक रूप से यह कहना संभव नहीं है कि वायरस की उत्पत्ति प्राकृतिक रूप से नहीं बल्कि वुहान की लैब से हुई थी. देखना होगा कि अमेरिकी खुफिया एजेंसियां क्या पता लगा पाती हैं.
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पश्चिमी देशों के मानवाधिकार संगठन चीन पर शिनजियांग प्रांत में अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न का आरोप लगाते हैं. ऐसी कई रिपोर्ट सामने आ चुकी हैं, जिनमें कहा गया है कि चीन उइगर मुसलमानों को योजनाबद्ध तरीके से प्रताड़ित कर रहा है. पश्चिमी देश, जैसे अमेरिका और यूरोपीय संघ इसे मानवाधिकारों का उल्लंघन मानते हैं और इस आधार पर कई तरह के प्रतिबंध लगा चुके हैं. लेकिन चीन का कहना है कि ये प्रतिबंध राजनीतिक विचाराधाराओं से प्रेरित हैं और चीन को दबाने के लिए लगाए जा रहे हैं.
मानवाधिकारों के लिए काम करने वाली संस्था एमनेस्टी ने अपनी नई रिपोर्ट प्रकाशित की है, जिसमें चीन पर 'इस्लाम को नष्ट करने' करने की कोशिश का आरोप लगाया गया है. यह रिपोर्ट कहती है कि चीन की सरकार ने पश्चिमी शिनजियांग प्रांत में 'बड़े पैमाने पर योजनाबद्ध' तरीके से शोषण किया है.
हाल ही में अमेरिका ने संसद में एक प्रस्ताव पास किया था, जिसके तहत चीन की कई बड़ी कंपनियों जैसे वावे और जेडटीई को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बताया है. इसके जवाब में चीन कहता है कि उसे अपने संस्थानों, उद्योगों और नागरिकों के हितों की सुरक्षा के लिए कुछ कानूनी रास्ते तैयार करने होंगे.
कई देशों में हैं ऐसे कानून
चीन ऐसा कानून बनाने वाला पहला देश नहीं है. दुनिया में कई जगह ऐसे कानून बनाए जा चुके हैं. 2018 में रूस ने अपने हितों की सुरक्षा को आधार बताते हुए ऐसे ही कुछ कानून पास किए थे. इन कानूनों में देश की सुरक्षा, संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के साथ-साथ नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करने की बात कही गई थी. उसने प्रतिबंधों के खिलाफ ऐसे कदमों की एक सूची भी प्रकाशित की थी. इनमें प्रतिबंध लगाने वाले देश से सहयोग बंद करना और उनके उत्पादों का व्यापार अपने यहां प्रतिबंधित कर देना शामिल था.
पिछले सितंबर में चीन के वाणिज्य मंत्रालय ने भी ऐसी ही एक सूची जारी की थी. 'अविश्वसनीय संस्थानों की सूची' के नाम से जारी इस लिस्ट को जानकारों ने अमेरिका के प्रतिबंधों के जवाब में उठाया गया कदम बताया था. इस सूची में चीन के राष्ट्रीय हितों को नुकसान पहुंचाने वाली कंपनियों और लोगों के खिलाफ सख्त जुर्माने लगाने का प्रावधान किया गया था. हालांकि चीन दावा करता है कि ऐसे कानून या सूचियां किसी देश से उसके रिश्तों को प्रभावित नहीं करेंगी.
वीके/एए (डीपीए, केएनए)
चीन ने कब-कब बदली अपनी जनसंख्या नीति
चीन को दशकों से अपने नागरिकों पर बच्चे पैदा करने को लेकर कड़े नियम लागू करने वाले देश के रूप में जाना जाता है. जानिए कब कब बदली चीन की जनसंख्या नीति.
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एक-बच्चा नीति
चीन ने 1979 में अपनी विवादास्पद एक-बच्चा नीति की शुरुआत की थी. उस समय चीन की सरकार का कहना था कि गरीबी मिटाने और अर्थव्यवस्था को विकसित करने की कोशिशों को तेजी से बढ़ रही जनसंख्या की वजह से नुकसान पहुंच रहा था.
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कइयों के दो बच्चे थे
शहरों में जो लोग अपने अपने माता पिता की इकलौती संतान थे उन्हें दो बच्चे पैदा करने की अनुमति थी. ग्रामीण इलाकों में भी कई लोगों पर कुछ ढीले प्रतिबंध लागू थे, जिसकी वजह से ऐसे कई लोग थे जिनके दो बच्चे थे.
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बेटों की चाहत
2015 में चीन में अवैध रूप से जन्मपूर्व भ्रूण का लिंग जानने के लिए की जाने वाली जांच और अनचाहे लिंग के भ्रूण के गर्भपात को रोकने के लिए अभियान शुरू किया. सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ के मुताबिक ऐसा लैंगिक असुंतलन की समस्या से निपटने के लिए किया गया. चीन में पारंपरिक रूप से बेटों के प्रति झुकाव है.
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दो-बच्चा नीति
2016 में चीन ने लोगों को दो बच्चे पैदा करने की अनुमति दी. ऐसा बुजुर्गों की बढ़ती जनसंख्या से निपटने और कम होती श्रमिक संख्या को बढ़ाने के लिए किया गया.
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गिरी जन्म दर
लेकिन दो-बच्चा नीति के बावजूद, 2019 में हर 1000 व्यक्तियों पर जीवित जन्मे बच्चों की संख्या 10.48 के रिकॉर्ड कम स्तर पर पहुंच गई. 2018 में यह संख्या 10.94 थी.
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बदलती हकीकत
2019 के मुकाबले 2020 में चीन में जन्म लेने वाले बच्चों की संख्या में 15 प्रतिशत गिरावट आई. कोरोना वायरस के आने से अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ा और परिवार बढ़ाने के फैसलों पर भी.
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"समावेशी" नीति
चीनी सरकार ने मार्च 2021 में कहा कि वो देश की जनसंख्या नीति को "और समावेशी" बनाएगी और बच्चे पालने के खर्च को भी कम करने की कोशिश करेगी. देश में तेजी से बढ़ती बुजुर्गों की आबादी को लेकर चिंताएं बढ़ती जा रही हैं.
तस्वीर: Aly Song/REUTERS
थमती जनसंख्या वृद्धि
मई में हुई जनगणना में सामने आया कि पिछले दशक में चीन की जनसंख्या बढ़ने की गति 1950 के दशक के बाद से अभी तक की सब्सि धीमी गति रही. इससे सरकार पर लोगों को और बच्चे पैदा करने के लिए प्रलोभन देने का दबाव और बढ़ गया. 31 मई 2021 को एक बड़े नीतिगत बदलाव के तहत लोगों को तीन बच्चे पैदा करने की इजाजत दे दी गई. (रॉयटर्स)
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दो से ज्यादा बच्चों की जरूरत
ग्वांगडोंग की जनसंख्या विकास अकादमी के निदेशक डॉन्ग यूशेंग जैसे विशेषज्ञों ने कहा कि अगर सरकार जल्द अधिकतम दो बच्चे पैदा करने की नीति को खत्म नहीं करती है तो अगले पांच सालों में हर साल में एक करोड़ से भी कम बच्चे पैदा हो सकते हैं.