पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरीडोर को अपने देश के विकास में मील का पत्थर बताया है. लेकिन नए विवादों के बीच इस परियोजना के विरोध में तेजी में आ रही है.
विज्ञापन
पिछले साल चीन ने पाकिस्तान के साथ 41 अरब यूरो के आर्थिक प्रोजेक्ट की घोषणा की थी. चीन आर्थिक कॉरीडोर के साथ पाकिस्तान में अपना प्रभाव बढ़ाना चाहता है. साथ ही इसके जरिये वह अमेरिका और भारत के प्रभाव को भी कम करना चाहता है. यह आर्थिक कॉरीडोर अरब सागर में स्थित पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट को चीन के पश्चिमी शिनजियांग क्षेत्र के साथ जोड़ेगा. कॉरीडोर में रेल, रोड और तेल पाइपलाइन बनाने की भी योजना है.
बीते हफ्ते नवाज शरीफ ने कहा कि यह आर्थिक कॉरीडोर परियोजना पाकिस्तान के लिए गेमचेंजर साबित होगी. उनका यह भी मानना है कि यह परियोजना पूरे इलाके में शांति और समृद्धि लाएगी. पाकिस्तान लंबे समय से गंभीर आर्थिक संकट का सामना कर रहा है. विशेषज्ञों का मानना है कि चीनी मदद वाली ये परियोजना देश में इच्छित आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा दे सकती है.
देखिए, पाकिस्तान में दहशत के 10 साल
पाकिस्तान: दहशत के दस साल
अफगानिस्तान पर 2001 में तालिबान के खिलाफ अमेरिकी कार्रवाई के बाद से पाकिस्तान में इस्लामी कट्टरपंथियों ने हजारों लोगों की जान ली है. यहां तस्वीरों में पिछले एक दशक के कुछ प्रमुख कट्टरपंथी हमले.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/N. Khawer
2017- शाहबाज कलंदर की मजार पर हमला
सिंध प्रांत के सेहवान में 16 फरवरी 2017 को एक सूफी संत शाहबाज कलंदर की मजार को निशाना बनाया जिसमें 70 से ज्यादा लोग मारे गए. आतंकवादी संगठन इस्लामिक स्टेट ने हमले की जिम्मेदारी ली है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/Y. Nagori
2016 - क्वेटा पुलिस ट्रेनिंग कॉलेज
24 अक्टूबर को क्वेटा के पुलिस ट्रेनिंग कॉलेज पर तीन आतंकवादियों ने हमला किया. इस हमले में 60 से ज्यादा कैडेटों की मौत हो गई. इस साल के सबसे भयानक हमलों में से एक में तीनों आत्मघाती हमलावरों को मार डाला गया.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/J. Taraqai
2016 - क्वेटा में अस्पताल पर हमला
आतंकवादियों ने 8 अगस्त 2016 को क्वेटा के सरकारी अस्पताल पर आत्मघाती हमला किया. फायरिंग और उसके बाद हुए आत्मघाती हमले में 70 लोग मारे गए. निशाना वकीलों को बनाया गया था जो अस्पताल में बार एसोसिएशन के प्रमुख बिलाल अनवर कासी की लाश के साथ आए थे. उन्हें अज्ञात लोगों ने गोली मार दी थी.
तस्वीर: Getty Images/AFP/B. Khan
2016 - लाहौर में पार्क पर हमला
27 मार्च 2016 को लाहौर में एक लोकप्रिय पार्क पर आत्मघाती हमला हुआ जिसमें 75 लोग मारे गए. हमला ईसाई समुदाय पर लक्षित था जो ईस्टर मना रहे थे. मृतकों में 14 लोगों की शिनाख्त ईसाइयों के रूप में हुई, बाकी मुसलमान थे. तहरीके तालिबान से जुड़े गुट जमात उल अहरार ने जिम्मेदारी ली.
तस्वीर: Getty Images/AFP/A. Ali
2015 - कराची में एक बस को बनाया निशाना
कराची में सफूरा गोठ में 8 बंदूकधारियों ने एक बस पर हमला किया. फायरिंग में 46 लोग मारे गए. मरने वाले सभी लोग इस्माइली शिया समुदाय के थे. प्रतिबंधित उग्रपंथी गुट जुंदलाह ने हमले की जिम्मेदारी ली. हमले की जगह इस्लामिक स्टेट को समर्थन देने वाली पर्चियां भी मिली.
तस्वीर: STR/AFP/Getty Images
2014 - पेशावर में बच्चों पर क्रूर हमला
16 दिसंबर 2014 को तहरीके तालिबान से जुड़े 7 बंदूकधारियों ने पेशावर में आर्मी पब्लिक स्कूल पर हमला किया. आतंकियों ने बच्चों और स्टाफ पर गोलियां चलाईं और 154 लोगों को मार दिया. उनमें 132 बच्चे थे. यह पाकिस्तान में होने वाला अब तक का सबसे खूनी आतंकी हमला था.
तस्वीर: AFP/Getty Images/A Majeed
2013 - पेशावर में चर्च पर हमला
पेशावर में 22 सितंबर 2013 को ऑल सेंट चर्च पर हमला हुआ. यह देश के ईसाई अल्पसंख्यकों पर सबसे बड़ा हमला था. इस हमले में 82 लोग मारे गए. हमले की जिम्मेदारी तहरीके तालिबान पाकिस्तान से जुड़े एक इस्लामी कट्टरपंथी गुट जुंदलाह ने ली.
तस्वीर: Getty Images/AFP/B. Khan
2011 - चारसद्दा में पुलिस पर हमला
13 मई 2011 को खैबर पख्तूनख्वा प्रांत के चारसद्दा जिले में शाबकदर किले पर दोहरा हमला हुआ. दो आत्मघाती हमलावरों ने एक पुलिस ट्रेनिंग सेंटर के बाहर दस दिन की छुट्टी के लिए बस पर सवार होते कैडेटों पर हमला किया और 98 लोगों की जान ले ली. कम से कम 140 लोग घायल हो गए.
तस्वीर: Getty Images/AFP/H. Ahmed
2010 - कबायली इलाके पर दबिश
उत्तर पश्चिम के मोहमंद जिले में एक आत्मघाती हमलावर ने व्यस्त बाजार पर हमला किया और 105 लोगों की जान ले ली. केंद्र शासित कबायली इलाके में ये हमला 9 जुलाई को हुआ. माना जाता है कि हमले का लक्ष्य कबायली सरदारों की एक मीटिंग थी. जिम्मेदारी तहरीके तालिबान पाकिस्तान ने ली.
तस्वीर: Getty Images/AFP/A. Majeed
2010 - लाहौर नरसंहार
मई 2010 के आतंकी हमले को लाहौर नरसंहार के नाम से भी जाना जाता है. 28 मई को जुम्मे की नमाज के दौरान अल्पसंख्यक अहमदिया संप्रदाय की दो मस्जिदों पर एक साथ हमले हुए. 82 लोग मारे गए. हमले की जिम्मेदारी तहरीके तालिबान पाकिस्तान ने ली.
तस्वीर: Getty Images/N. Ijaz
2010 - वॉलीबॉल मैच को बनाया निशाना
पाकिस्तान के उत्तर पश्चिमी जिले बन्नू के एक गांव में वॉलीबॉल मैच चल रहा था. आतंकवादियों ने इस मैच को भी शांति में नहीं होने दिया. उस पर कार में रखे बम की मदद से आत्मघाती हमला हुआ. हमले में 101 लोग मारे गए. खेल का मैदान कत्लेआम का गवाह बना.
तस्वीर: Getty Images/AFP/N. Azam
2009 - लाहौर का बाजार बना निशाना
दिसंबर 2009 में लाहौर के बाजार में दो बम धमाके किए गए और देश के दूसरे सबसे बड़े शहर के भीड़ भरे बाजार में फायरिंग भी की गई. हमलों में कम से कम 66 लोग मारे गए. मरने वालों में सबसे ज्यादा तादाद महिलाओं की थी. इस हमले के साथ देश का प्राचीन शहर आतंकियों की जद में आ गया था.
तस्वीर: DW/T.Shahzad
2009 - नया निशाना पेशावर
पाकिस्तान के पश्चिमोत्तर में बसे शहर पेशावर के मीना बाजार में एक कार बम का धमाका किया गया. इस धमाके में 125 लोग मारे गए और 200 से ज्यादा घायल हो गए. पाकिस्तान की सरकार ने हमले के लिए तालिबान को जिम्मेदार ठहराया. लेकिन तालिबान और अल कायदा दोनों ने ही हमले में हाथ होने से इंकार किया.
तस्वीर: Getty Images/AFP/A Majeed
2008-राजधानी में लक्जरी होटल पर हमला
कट्टरपंथी आम लोगों पर हमले के तरह तरह के तरीके ईजाद कर रहे थे. एक ट्रक में विस्फोटक भर कर उन्होंने 20 सितंबर 2008 को राजधानी इस्लामाबाद के मैरियट होटल के सामने उसे उड़ा दिया. कम से कम 60 लोग मारे गए और 200 से ज्यादा घायल हो गए. मरने वालों में 5 विदेशी नागरिक भी थे.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/O. Matthys
2008-पाकिस्तान की हथियार फैक्टरी पर हमला
वाह में 21 अगस्त 2008 को पाकिस्तान की ऑर्डिनेंस फैक्टरी पर दोहरा आत्मघाती हमला किया गया. हमलों में कम से कम 64 लोग मारे गए. यह पाकिस्तानी सेना के इतिहास में उसके संस्थान पर हुआ अब तक का सबसे खूनी हमला है. तहरीके तालिबान पाकिस्तान के एक प्रवक्ता ने हमले की जिम्मेदारी ली.
तस्वीर: Getty Images/AFP/B. Khan
2007- बेनजीर की वापसी पर बम हमला
सैनिक तानाशाह परवेज मुशर्रफ ने 2008 में चुनाव कराकर सत्ता के बंटवारे का रास्ता चुना था. दो बार प्रधानमंत्री रही बेनजीर भुट्टो चुनाव में भाग लेने निर्वासन से वापस लौटीं. करांची में उनके काफिले पर बम हमला हुआ. वे बाल बाल बची. लेकिन दो महीने बाद 27 दिसंबर को रावलपिंडी में भाग्य ने उनका साथ नहीं दिया.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/N. Khawer
16 तस्वीरें1 | 16
प्रोजेक्टकाविरोध
लेकिन चीन पाकिस्तान आर्थिक कॉरीडोर का स्थानीय समुदायों और कबायली ग्रुपों के अलावा छोटे प्रांतों के नेता भी विरोध कर रहे हैं जिनका कहना है कि बड़ा पंजाब प्रांत उनकी जमीन और संसाधनों का इस्तेमाल कर सारे फायदे ले जाएगा. उत्तर में गिलगिट बाल्टिस्तान से लेकर पश्चिम में बलूचिस्तान और दक्षिण में सिंध प्रांत तक इस्लामाबाद सरकार और स्थानीय ग्रुपों के बीच विवाद के संकेत उभरने लगे हैं.
पाकिस्तान के पश्चिमोत्तर में वजीरिस्तान में स्थित एक विशेषज्ञ सैयद मसूद आलम का कहना है कि सैनिक और असैनिक प्रशासन ने देश के आबादीबहुल प्रांत पंजाब के फायदे के लिए आर्थिक कॉरीडोर का रास्ता बदल दिया है. वह कहते हैं, "खैबर पख्तूनख्वा, गिल्गिट बाल्टिस्तान, बलूचिस्तान और सिंध प्रांतों के लोग मौजूदा रूप में आर्थिक कॉरीडोर के खिलाफ हैं. हम इसका विरोध करेंगे." आलम का कहना है कि यदि सरकार अपना मन नहीं बदलती है तो देश में हिंसा भड़क सकती है.
देखिए, दिलों को बांटती दीवारें
दिलों को बांटती दीवारें
बर्लिन की दीवार दुनिया भर में विभाजन का प्रतीक रही है. 26 साल पहले उसे गिरा दिया गया लेकिन इस बीच शरणार्थियों को रोकने के लिए यूरोप में कई जगह दीवार खड़ी करने की मांग हो रही है. एक नजर दुनिया भर की दीवारों पर.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
हंगरी ने बनाई बाड़
हंगरी में प्रधानमंत्री विक्टर ओरबान की सरकार ने सर्बिया की सीमा पर एक बाड़ लगवा दी है और यूरोपीय संघ के सदस्य क्रोएशिया के साथ लगी सीमा को भी पक्का करवा दिया है. ग्रीस के पश्चिमी बालकान के रास्ते आने वाले शरणार्थी हंगरी होकर ऑस्ट्रिया और जर्मनी जाना चाहते हैं.
तस्वीर: DW/V. Tesija
यूरोपीय आउटपोस्ट
उत्तरी मोरक्को में स्थित स्पेनी इनक्लेव मेलिल्या की सीमा को दुनिया भर की सबसे आधुनिक सीमा माना जाता है. सेउता की तरह ही मेलिल्या में भी छह मीटर ऊंची और दस किलोमीटर लंबी बाड़ ने शहर को घेर रखा है. इंफ्रारेड कैमरा और मोशन डिटेक्टर से लैस यह बाड़ अफ्रीका के शरणार्थियों को रोकने के लिए है.
तस्वीर: Getty Images
विभाजित द्वीप
साइप्रस की तथाकथित ग्रीन लाइन पर बाड़ लगी है. मलबे, वॉच टावर और दीवारें. 180 किलोमीटर की यह विभाजन रेखा इस सुंदर द्वीप को उत्तर के तुर्क और दक्षिण के ग्रीक हिस्से में बांटती है. बर्लिन दीवार के गिरने के बाद से निकोसिया दुनिया की अंतिम विभाजित राजधानी है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/R.Hackenberg
टॉरटिया दीवार
यूनाइटेड स्टेट्स बॉर्डर पेट्रोल के 20,000 पुलिसकर्मी अमेरिका और मेक्सिको की सीमा की चौबीस घंटे निगरानी करते हैं. टॉरटिया दीवार कही जाने वाली ये दीवार 1,126 किलोमीटर लंबी है. शरणार्थियों और स्मगलरों से सीमा की सुरक्षा के लिए वीडियो और इंफ्रारेड कैमरों के अलावा मूवमेंट डिटेक्टर, ड्रोन और सेंसर लगे हैं.
तस्वीर: dpa
बंटी पवित्र भूमि
यहां येरूशलेम की तरह इस्राएल और फलीस्तीनी सीमा कुछ चेकप्वाइंट पर ही पार की जा सकती है. सीमा पर यह सुरक्षा फलीस्तीनी आतंकवादी हमलों को रोकने के लिए है. इसके बावजूद गजा पट्टी के खुद बनाई गई सुरंगों के जरिये हथियार और दूसरे सामान लाने में कामयाब हो जाते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/Landov
कोरिया में विसैन्यीकृत इलाका
यह दुनिया की सबसे ज्यादा निगरानी वाली सीमा है. बाड़ के अलावा 10 लाख बारूदी सुरंगें दक्षिण कोरिया और साम्यवादी उत्तरी कोरिया को एक दूसरे से अलग करती है. 248 किलोमीटर लंबी सीमा के दोनों ओर 1953 के कोरिया युद्ध के बाद से ढाई किलोमीटर चौड़ी विसैन्यीकृत पट्टी है, जिसमें घुसना मना है.
तस्वीर: picture alliance/AP Photo
उत्तरी आयरलैंड में शांति रेखा
कुल मिलाकार 48 शांति रेखाएं उत्तरी आयरलैंड में कैथलिक और प्रोटेस्टेंट मुहल्लों को बांटती हैं. राजधानी बेलफास्ट में सात मीटर ऊंची दीवार सीमा को बांटती है. इस दीवार में पैदल चलने वालों के लिए छोटा रास्ता और गाड़ियों के लिए दरवाजे हैं, जिन्हें रात में बंद कर दिया जाता है.
तस्वीर: Peter Geoghegan
सुरक्षा दीवार
यह दुनिया की सबसे लंबी बाड़ है. भारत और बांग्लादेश की सीमा पर 4,000 किलोमीटर लंबी बाड़. भारत में सक्रिय विद्रोही और आतंकवादी भागकर पड़ोस में चले जाते हैं. जीरो लाइन दो मीटर ऊंची बाड़ से बनी है जिसमें बिजली दौड़ाई जा सकती है. सीमा की निगरानी करीब 50,000 सैनिक करते हैं.
तस्वीर: S. Rahman/Getty Images
विभाजन का प्रतीक
बर्लिन दीवार दुनिया भर में विभाजन का प्रतीक थी. 9 नवंबर 1989 को यह दीवार गिर गई. इसी के साथ पहले जर्मनी का और फिर यूरोप का विभाजन खत्म हुआ. और शीतयुद्ध की समाप्ति की शुरुआत हुई. इसके ऐतिहासिक महत्व के बावजूद दुनिया में सीमाएं बनी हुई हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/W. Kumm
9 तस्वीरें1 | 9
सेनाकावर्चस्व
स्थानीय समुदायों की चिंताओं को नजरअंदाज कर इस्लामाबाद ने हर कीमत पर परियोजना को लागू करने पर जोर दिया है. आर्थिक कॉरीडोर में दिलचस्पी ले रही सेना का कहना है कि परियोजना का विरोध करने वाले पाकिस्तान की समृद्धि के विरोधी हैं और वे देशद्रोही हैं. सेना प्रमुख राहील शरीफ ने हाल में कहा, "हम तब तक नहीं रुकेंगे जब तक आतंक मुक्त पाकिस्तान का हमारा अंतिम लक्ष्य हासिल नहीं हो जाता." लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि पाकिस्तान की सेना आर्थिक कॉरीडोर की परियोजना पर अमल में वर्चस्व हासिल करना चाहती है. ब्रसेल्स स्थित दक्षिण एशिया विशेषज्ञ सिगफ्रीड वोल्फ का कहना है, "आर्थिक कॉरीडोर पाकिस्तानी सेना को देश की राजनीति में और पक्का कर देगा और देश को लोकतांत्रिक बदलाव की प्रक्रिया में लाने के प्रयासों को नुकसान पहुंचाएगा."
वोल्फ कराची में सेना की कार्रवाई को नागरिक प्रशासन से स्वतंत्र अकेले फैसला लेने का एक उदाहरण मानते हैं. पाकिस्तान की आर्थिक नगरी कराची पर नियंत्रण की लड़ाई भी तेज हो गई है. सेना ने शहर के प्रभावी राजनीतिक पार्टी एमक्यूएम पर हमले तेज कर दिए हैं. पत्रकार सत्तार खान कहते हैं, "चीन का असर सिर्फ आर्थिक कॉरीडोर तक सीमित नहीं है. पाकिस्तान सरकार बीजिंग को हर तरह के कॉन्ट्रैक्ट दे रही है और कराची इस्लामाबाद सरकार के लिए बहुत मायने रखता है."
तस्वीरों में: स्वात में पन्ने की खुदाई
स्वात में पन्ने की खुदाई
पाकिस्तान की स्वात घाटी में बेशकीमती नगों की खदानें हैं. फजागट में सैकड़ों लोग गुजर बसर के लिए इसकी खुदाई पर निर्भर हैं.
तस्वीर: DW/A. Bacha
रोजगार
फजागट में पन्ने की खदान में करीब 400 लोग काम करते हैं. खदान मालिक के मुताबिक यहां होने वाले खनन से सरकार को सालाना लगभग 1.20 करोड़ रुपये की रॉयल्टी मिलती है.
तस्वीर: DW/A. Bacha
पुराने तरीके का इस्तेमाल
स्वात घाटी के फजागट में पन्ने की खदान 182 एकड़ में फैली है. पहाड़ी इलाके के भीतर कई किलोमीटर में फैली सुरंगों में अब भी पारंपरिक तरीके से खुदाई होती है. खुदाई के बाद पत्थर को छलनी में रख धोया जाता है.
तस्वीर: DW/A. Bacha
लापरवाही से मुनाफा कम
आधुनिक खनन मशीनरी के अभाव में सिर्फ 20 एकड़ में खुदाई होती है. खान के आस पास बुनियादी ढांचे की भी कमी है. खान के भीतर की सुरंगें कच्ची हैं. खनिज विभाग आस पास बंद पड़ी खदानों को फिर से खोलने पर विचार कर रहा है.
तस्वीर: DW/A. Bacha
जबरदस्त क्वालिटी
स्वात घाटी से निकलने वाला पन्ना अपनी क्वालिटी के लिए दुनिया भर में मशहूर है. यहां से निकलने वाले ज्यादातर पत्थर एक से लेकर पांच कैरेट के होते हैं. दाम तराशने और वजन पर निर्भर करता है. आम तौर पर इनका दाम 50 हजार से ढाई लाख रुपये तक होता है.
तस्वीर: DW/A. Bacha
तालिबान का कब्जा
1996 में बंद हुई खदान पर 2005 में तालिबान ने कब्जा कर लिया. खदान मालिक के मुताबिक तालिबान ने पांच साल में खदान का हुलिया बिगाड़ दिया. तालिबान ने रत्नों की तस्करी कर पैसा भी कमाया.
तस्वीर: DW/A. Bacha
पन्ने का उपयोग
पन्ने का इस्तेमाल आम तौर पर अंगूठियों और जेवरों में होता है. पहले इसका इस्तेमाल कई घड़ियों में भी किया जाता था. लेकिन दाम ज्यादा होने के चलते अब पन्ना जेवरों तक सिमट रहा है.
तस्वीर: DW/A. Bacha
सस्ती नीलामी
खुदाई के बाद पन्ने की स्थानीय स्तर पर नीलामी होती है. नीलामी में इन्हें औने पौने दामों में खरीदा जाता है.
तस्वीर: DW/A. Bacha
तराशना पड़ोस में
पाकिस्तान में इन बेशकीमती पत्थरों की कटाई और उन्हें तराशने की सुविधा नहीं है. यही वजह है कि खनन के बाद माल को भारत और थाइलैंड भेजा जाता है. पहले लोग स्वात के पन्ने को भारत का पन्ना कहते थे. लेकिन अब यह अपनी पहचान बना चुका है.
तस्वीर: DW/A. Bacha
बाद में बेशकीमती
भारत और थाइलैंड में कटाई और तराशे जाने के बाद ये पत्थर दुबई, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और दूसरे देशों में मंहगे दामों पर बिकते हैं.
तस्वीर: DW/A. Bacha
9 तस्वीरें1 | 9
नागरिकअधिकारोंकोखतरा
चीनी पाकिस्तानी पहल का सबसे मुश्किल हिस्सा यह है कि इस्लामी कट्टरपंथ और बलूचिस्तान में अलगाववादी आंदोलन के असर वाले इलाकों में उन पर अमल कैसे होगा. बलूच गुटों ने परियोजना का विरोध करने की धमकी दी है. उनका कहना है कि यह उनके संसाधनों और अधिकारों का शोषण है. डॉयचे वेले के साथ एक इंटरव्यू में स्विट्जरलैंड में निर्वासन में रहने वाले बलोच रिपब्लिकन पार्टी के ब्रहमदाग बुग्ती ने कहा था कि चीन और पाकिस्तान के बीच अरबों का आर्थिक कॉरीडोर डील सुरक्षा के नाम पर बलूचिस्तान में मानवाधिकारों के हनन को बढ़ा सकता है. बुग्ती ने कहा, "प्रांत में वित्तीय हितों की रक्षा के लिए पाकिस्तान सैनिक अभियानों में तेजी ला सकती है."
विकास मामलों के विश्लेषक मकसूद अहमद जान की आशंका है कि आर्थिक कॉरीडोर परियोजना पाकिस्तान को चीन का आर्थिक उपनिवेश बना देगी. आर्थिक कॉरीडोर से चीन से आने वाले धन की वजह से बलूचिस्तान में पारदर्शिता की मांग करने वालों को पाकिस्तान सुरक्षा एजेंसियों की मार झेलनी होगी. पाकिस्तान के लिए चीन महत्वपूर्ण होता जा रहा है. जान कहते हैं, "पाकिस्तान के पास और कोई विकल्प नहीं है. सऊदी अरब उतना बड़ा निवेश नहीं कर सकता, अमेरिका भरोसेमंद नहीं है और पाकिस्तान की सरकार को फौरन धन की जरूरत है." पाकिस्तान की सरकार को भरोसा है कि यह परियोजना देश की अर्थव्यवस्था को बदलने वाली साबित होगी.