कोविड और तख्तापलट: दोहरे संकट की चपेट में म्यांमार
३० जुलाई २०२१
म्यांमार में दुनिया की सबसे कमजोर स्वास्थ्य रक्षा प्रणाली है. कोविड और एक सैन्य तख्तापलट के संयुक्त प्रभाव ने इसे इस हद तक गंभीर बना दिया है कि यह लगभग नष्ट होने के कगार पर है.
विज्ञापन
कोरोनोवायरस की तीसरी लहर से करीब चार महीने पहले जब म्यांमार में रोजाना सैकड़ों लोगों की मौत हो रही थी, सो मो नौंग (बदला हुआ नाम) नाम के एक व्यवसायी ने सोशल मीडिया पर पोस्ट किया कि उसने और उसके परिवार ने एक सार्वजनिक टीकाकरण केंद्र में टीका लगवाया था.
व्यवसायी ने अपने साथियों से भी टीका लगवाने की अपील की थी. लेकिन इस संदेश का असर नौंग पर उल्टा पड़ा और उन्हें अपनी पोस्ट को छिपाने पर मजबूर कर दिया.
उनके आलोचकों का मानना है कि टीका लगवाना कुछ मायनों में फरवरी में सैन्य तख्तापलट को वैध बनाता है, जिसके कारण आंग सान सू ची की नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी (एनएलडी) पार्टी के नेतृत्व वाली लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार को उखाड़ फेंका गया था.
सो मो नौंग खुद एनएलडी के समर्थक हैं और उन्होंने इन वजहों को भी स्पष्ट किया था कि वो टीका लगवाने के लिए क्यों राजी हुए. वह कहते हैं, "एनएलडी सरकार ने म्यांमार के लोगों के लिए टीकों का अधिग्रहण किया था. यह हर एक नागरिक का अधिकार है. टीकाकरण एक अलग मुद्दा है और इसका राजनीति से कोई संबंध नहीं है.”
सो मो नौंग इस मामले में व्यावहारिक हो सकते हैं लेकिन उनके विचार से म्यांमार में बहुत कम लोग ही सहमति रखते हैं.
टीकाकरण न कराकर सेना को ललकारना
1 फरवरी को तख्तापलट के बाद से पूरे म्यांमार में कई लोग सेना के विरोध के तौर पर टीका लेने से इनकार कर रहे हैं. यांगून की रहने वाली ह्नीन यी ऑन्ग कहती हैं, "मेरी मां ने बुढ़ापे के बावजूद टीका नहीं लगवाया, शायद इसलिए कि उनके बेटे यानी मेरे भाई ने कहा है कि 'क्रांति अभी खत्म नहीं हुई है.”
उनका भाई एक सार्वजनिक अस्पताल में डॉक्टर है और पिछले कई महीनों से सविनय अवज्ञा आंदोलन (सीडीएम) में भाग ले रहा है.
म्यांमार की हिंसा से भागे नागरिक बने भारत की परेशानी
03:27
कुछ अन्य लोगों ने लोकतंत्र समर्थक समूहों और बहिष्कार के डर से टीकाकरण नहीं कराने का विकल्प चुना है. जिन लोगों ने टीका लगवाया है वे अक्सर सोशल मीडिया आोलचनाओं और विरोध का शिकार हो जाते हैं जिसमें उनका नाम लेकर उनके प्रति शर्मिंदगी जताई जाती है और मजाक उड़ाया जाता है.
स्वास्थ्य सेवाओं के क्षेत्र में कई लोग काम करना बंद करने और सेना के खिलाफ सविनय अवज्ञा आंदोलन में शामिल होने वाले पहले लोगों में से थे. सार्वजनिक क्षेत्र के अन्य कर्मचारियों ने भी ऐसा ही किया और प्रशासन को एक बड़ा झटका दिया.
इस वजह से सरकार को काम पर लौटने के लिए सरकारी कर्मचारियों पर दबाव बढ़ाना पड़ा जबकि सेना ने असंतुष्ट स्वास्थ्य कर्मियों को गिरफ्तार करना शुरू कर दिया. इस वजह से कई लोग सेना के डर से छिप गए.
सीडीएम से जुड़े कुछ डॉक्टरों ने शुरू में निजी प्रतिष्ठानों में मरीजों का इलाज किया लेकिन अपने निजी क्लीनिकों के पास सैनिकों और पुलिस की तैनाती को देखकर रुक गए.
दीन-हीन व्यवस्था का कोविड से सामना
इसका मतलब यह था कि जब कोविड की तीसरी लहर आई, तो म्यांमार की उस सेना को स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली के साथ संकट से निपटने के लिए छोड़ दिया गया था जिस पर व्यापक रूप से नफरत फैलाने के आरोप थे. स्वास्थ्य सेवाएं न केवल आवश्यक दवाओं और उपकरणों के मामले में, बल्कि चिकित्सा कर्मचारियों के मामले में भी बड़ी कमी का सामना कर रही थीं.
तस्वीरों मेंः म्यांमार में दमन का कुचक्र
म्यांमार में दमन का कुचक्र
एक फरवरी 2021 को म्यांमार में सेना द्वारा तख्ता पलट देने और सत्ता हथिया लेने के बाद वहां लगातार नागरिकों के अधिकारों का दमन हो रहा है. तीन मार्च को एक ही दिन में सुरक्षाबलों की फायरिंग में 38 प्रदर्शनकारी मारे गए.
तस्वीर: STR/AFP/Getty Images
हिंसा का दौर
तख्तापलट के बाद से ही लोग लोकतंत्र की बहाली की मांग कर रहे हैं और देश के कई हिस्सों में प्रदर्शन आयोजित कर रहे हैं. सेना और पुलिस प्रदर्शनकारियों के खिलाफ सख्ती से पेश आ रहे हैं, जिसकी वजह से देश में हिंसा का दौर थम ही नहीं रहा है. तीन मार्च को सुरक्षाबलों की फायरिंग में 38 लोग मारे गए.
तस्वीर: AP Photo/picture alliance
बढ़ते जनाजे
इन 38 लोगों को मिला कर अभी तक कम से कम 50 प्रदर्शनकारियों की जान जा चुकी है. यह तस्वीर 19 साल की क्याल सिन के शव की अंतिम यात्रा की है. वो तीन मार्च को मैंडले में सेना के खिलाफ प्रदर्शन कर रही थीं जब सुरक्षाबलों ने गोलियां चला दीं. उन्हें सिर में गोली लगी और उनकी मौत हो गई.
तस्वीर: REUTERS
बल का प्रयोग
प्रदर्शनकारियों से निपटने के लिए पुलिस ने पहले आंसू गैस का भी इस्तेमाल किया. सुरक्षाबल लगातार आंसू गैस, रबड़ की गोलियां, ध्वनि बम जैसे हथकंडों का इस्तेमाल कर रही है. प्रदर्शन शांत ना होने पर गोली चला दी जा रही है.
तस्वीर: Aung Kyaw Htet/ZumaWire/Imago Images
बचने के तरीके
प्रदर्शनकारियों को अपनी सुरक्षा का इंतजाम भी करना पड़ रहा है. आंखों को ढकने के लिए बड़े बड़े चश्मे, हेलमेट और ढालों का इस्तेमाल किया जा रहा है.
तस्वीर: STR/AFP/Getty Images
नाकामयाब कोशिशें
प्रदर्शनकारी भी खुद को बचाने के लिए धुंआ छोड़ रहे हैं लेकिन धुंआ और किसी तरह से बनाए हुए बैरिकेड भी उन्हें पुलिस की गोलियों से बचा नहीं पा रहे हैं.
तस्वीर: STR/AFP/Getty Images
मीडिया पर हमले
गिरफ्तारियों का सिलसिला भी लगातार चल रहा है और प्रदर्शनकारियों के अलावा पुलिस पत्रकारों को भी गिरफ्तार कर रही है. प्रदर्शनों पर खबर कर रहे एसोसिएटेड प्रेस के थेइन जौ और पांच और पत्रकारों को गिरफ्तार कर लिया गया है. उन्हें तीन साल तक की जेल हो सकती है.
तस्वीर: Thein Zaw family/AP/picture alliance
सू ची की छाया
प्रदर्शनकारियों में से कई म्यांमार की नेता आंग सान सू ची के समर्थक हैं, जिन्हें सेना ने पहले ही गिरफ्तार कर लिया था. प्रदर्शनों में सू ची की रिहाई और लोकतंत्र की बहाली की मांग उठ रही है.
तस्वीर: STR/AFP/Getty Images
7 तस्वीरें1 | 7
हजारों नए संक्रमण और बढ़ती मौतों के साथ ही देश की व्यवस्था जल्द ही आपातकाल के घेरे में आ गई. आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, सिर्फ 25 जुलाई को ही कोविड से संबंधित बीमारियों के कारण यहां 355 लोगों की मौत हो गई और अब तक मरने वालों की कुल संख्या 7100 से ज्यादा है. मौतों की यह संख्या सिर्फ वही दर्ज है जो अस्पतालों में हुई है.
सेना के प्रमुख, मिन आंग हलिंग ने हाल ही में असंतुष्ट स्वास्थ्यकर्मियों से काम पर लौटने के लिए एक सार्वजनिक अपील जारी करते हुए कहा कि सभी स्वास्थ्यकर्मियों को कोविड आपातकाल से निपटने के लिए मिलकर काम करना चाहिए.
सीडीएम से जुड़े स्वास्थ्यकर्मियों ने हालांकि इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया है और सेना से कहा है कि वो लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई सरकार को सत्ता वापस कर दे. इन लोगों ने सोशल मीडिया पर यह कहना शुरू किया है, "हम तभी काम पर वापस आएंगे, जब आप लोग अपनी बैरकों में वापस चले जाएंगे.”
विज्ञापन
फिर जनता पर दबाव
म्यांमार में पहले से ही स्वास्थ्य व्यवस्था सबसे कमजोर स्थिति में है और यह दुनिया की सबसे खराब स्वास्थ्य प्रणालियों में से एक है, वहीं कोविड संक्रमण और सैन्य तख्तापलट के संयुक्त प्रभाव ने इसे लगभग खत्म कर देने की स्थिति में ला खड़ा किया है.
हाल के हफ्तों में अस्पतालों में ऑक्सीजन की भारी कमी हो गई है. अपने प्रियजनों के लिए ऑक्सीजन की आपूर्ति सुरक्षित करने के लिए हताश रिश्तेदारों की तस्वीरें वायरल हो रही हैं.
म्यांमार में तख्तापलट के विरोध में बनी राष्ट्रीय एकता की सरकार ने अंतरराष्ट्रीय दबाव बनाने के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय को एक खुला पत्र लिखा है जिसमें ऑक्सीजन की कमी और सुरक्षा बलों की ओर से पैदा की गई ऑक्सीजन उत्पादन की खतरनाक और अमानवीय स्थिति की ओर ध्यान दिलाया गया है.
देखिएः 21वीं सदी के तख्तापलट
21वीं सदी के तख्तापलट
म्यांमार फिर एक बार सैन्य तख्तापलट की वजह से सुर्खियों में है. 20वीं सदी का इतिहास तो सत्ता की खींचतान और तख्तापलट की घटनाओं से भरा हुआ है, लेकिन 21वीं सदी में भी कई देशों ने ताकत के दम पर रातों रात सत्ता बदलते देखी है.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/F. Vergara
म्यांमार
म्यांमार की सेना ने आंग सान सू ची को हिरासत में लेकर फिर एक बार देश की सत्ता की बाडगोर संभाली है. 2020 में हुए आम चुनावों में सू ची की एनएलडी पार्टी ने 83 प्रतिशत मतों के साथ भारी जीत हासिल की. लेकिन सेना ने चुनावों में धांधली का आरोप लगाया. देश में लोकतंत्र की उम्मीदें फिर दम तोड़ती दिख रही हैं.
तस्वीर: Sakchai Lalit/AP/picture alliance
माली
पश्चिमी अफ्रीकी देश माली में 18 अगस्त 2020 को सेना के कुछ गुटों ने बगावत कर दी. राष्ट्रपति इब्राहिम बोउबाखर कीटा समेत कई सरकारी अधिकारी हिरासत में ले लिए गए और सरकार को भंग कर दिया गया. 2020 के तख्तापलट के आठ साल पहले 2012 में माली ने एक और तख्तापलट झेला था.
तस्वीर: Reuters/M. Keita
मिस्र
2011 की क्रांति के बाद देश में हुए पहले स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों के बाद राष्ट्रपति के तौर पर मोहम्मद मुर्सी ने सत्ता संभाली थी. लेकिन 2013 में सरकार विरोधी प्रदर्शनों का फायदा उठाकर देश के सेना प्रमुख जनरल अब्देल फतह अल सिसी ने सरकार का तख्तापलट कर सत्ता हथिया ली. तब से वही मिस्र के राष्ट्रपति हैं.
तस्वीर: Reuters
मॉरिटानिया
पश्चिमी अफ्रीकी देश मॉरिटानिया में 6 अगस्त 2008 को सेना ने राष्ट्रपति सिदी उल्द चेख अब्दल्लाही (तस्वीर में) को सत्ता से बेदखल कर देश की कमान अपने हाथ में ले ली. इससे ठीक तीन साल पहले भी देश ने एक तख्तापलट देखा था जब लंबे समय से सत्ता में रहे तानाशाह मोओया उल्द सिदअहमद ताया को सेना ने हटा दिया.
तस्वीर: Issouf Sanogo/AFP
गिनी
पश्चिमी अफ्रीकी देश गिनी में लंबे समय तक राष्ट्रपति रहे लांसाना कोंते की 2008 में मौत के बाद सेना ने सत्ता अपने हाथ में ले ली. कैप्टन मूसा दादिस कामरा (फोटो में) ने कहा कि वह नए राष्ट्रपति चुनाव होने तक दो साल के लिए सत्ता संभाल रहे हैं. वह अपनी बात कायम भी रहे और 2010 के चुनाव में अल्फा कोंडे के जीतने के बाद सत्ता से हट गए.
तस्वीर: AP
थाईलैंड
थाईलैंड में सेना ने 19 सितंबर 2006 को थकसिन शिनावात्रा की सरकार का तख्तापलट किया. 23 दिसंबर 2007 को देश में आम चुनाव हुए लेकिन शिनावात्रा की पार्टी को चुनावों में हिस्सा नहीं लेने दिया गया. लेकिन जनता में उनके लिए समर्थन था. 2001 में उनकी बहन इंगलक शिनावात्रा थाईलैंड की प्रधानमंत्री बनी. 2014 में फिर थाईलैंड में सेना ने तख्तापलट किया.
तस्वीर: AP
फिजी
दक्षिणी प्रशांत महासागर में बसे छोटे से देश फिजी ने बीते दो दशकों में कई बार तख्तापलट झेला है. आखिरी बार 2006 में ऐसा हुआ था. फिजी में रहने वाले मूल निवासियों और वहां जाकर बसे भारतीय मूल के लोगों के बीच सत्ता की खींचतान रहती है. धर्म भी एक अहम भूमिका अदा करता है.
तस्वीर: Getty Images/P. Walter
हैती
कैरेबियन देश हैती में फरवरी 2004 को हुए तख्तापलट ने देश को ऐसे राजनीतिक संकट में धकेल दिया जो कई हफ्तों तक चला. इसका नतीजा यह निकला कि राष्ट्रपति जाँ बेत्रां एरिस्टीड अपना दूसरा कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए और फिर राष्ट्रपति के तौर पर बोनीफेस अलेक्सांद्रे ने सत्ता संभाली.
तस्वीर: Erika SatelicesAFP/Getty Images
गिनी बिसाऊ
पश्चिमी अफ्रीकी देश गिनी बिसाऊ में 14 सितंबर 2003 को रक्तहीन तख्तापलट हुआ, जब जनरल वासीमो कोरेया सीब्रा ने राष्ट्रपति कुंबा लाले को सत्ता से बेदखल कर दिया. सीब्रा ने कहा कि लाले की सरकार देश के सामने मौजूद आर्थिक संकट, राजनीतिक अस्थिरता और बकाया वेतन को लेकर सेना में मौजूद असंतोष से नहीं निपट सकती है, इसलिए वे सत्ता संभाल रहे हैं.
तस्वीर: AFP/Getty Images
सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक
मार्च 2003 की बात है. मध्य अफ्रीकी देश सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक के राष्ट्रपति एंगे फेलिक्स पाटासे नाइजर के दौरे पर थे. लेकिन जनरल फ्रांसुआ बोजिजे ने संविधान को निलंबित कर सत्ता की बाडगोर अपने हाथ में ले ली. वापस लौटते हुए जब बागियों ने राष्ट्रपति पाटासे के विमान पर गोलियां दागने की कोशिश की तो उन्होंने पड़ोसी देश कैमरून का रुख किया.
तस्वीर: Camille Laffont/AFP/Getty Images
इक्वाडोर
लैटिन अमेरिकी देश इक्वोडोर में 21 जनवरी 2000 को राष्ट्रपति जमील माहौद का तख्लापलट हुआ और उपराष्ट्रपति गुस्तावो नोबोआ ने उनका स्थान लिया. सेना और राजनेताओं के गठजोड़ ने इस कार्रवाई को अंजाम दिया. लेकिन आखिरकर यह गठबंधन नाकाम रहा. वरिष्ठ सैन्य नेताओं ने उपराष्ट्रपति को राष्ट्रपति बनाने का विरोध किया और तख्तापलट करने के वाले कई नेता जेल भेजे गए.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/F. Vergara
11 तस्वीरें1 | 11
सुरक्षा सेवाओं के खिलाफ भी आरोप लगाए गए हैं कि वे अक्सर ऑक्सीजन की आपूर्ति को जब्त कर लेते हैं और लोगों को उन्हें सुरक्षित रखने से रोकते हैं. हालांकि सैन्य सरकार इन आरोपों को झूठा और राजनीति से प्रेरित बता रही है.
सरकार के स्वामित्व वाले मीडिया ने बताया कि हाल ही में कोविड की स्थिति का आकलन करने के लिए हुई एक बैठक में, जुंटा प्रमुख ने कहा कि राजनीतिक लाभ के लिए सोशल मीडिया पर स्वास्थ्य आपातकाल के दुरुपयोग और उसे गलत तरीके से प्रस्तुत किया जा रहा है.
अधिकारियों ने यह भी कहा कि सरकार ने मांग में वृद्धि को पूरा करने के लिए पोर्टेबल ऑक्सीजन सांद्रता और कोविड से संबंधित अन्य उपकरणों की पर्याप्त मात्रा का आयात किया है.
इस बीच, चीन से हाल ही में टीके आने के बाद 25 जुलाई को सार्वजनिक टीकाकरण कार्यक्रम फिर से शुरू हुआ. उन लोगों पर फिर से दबाव है जो अभी तक यह तय नहीं कर पाए हैं कि उन्हें टीका लेना है या नहीं.
ह्नीन यी ऑन्ग कहती हैं, "मैं अपनी मां से इस बार वैक्सीन लेने के लिए आग्रह करूंगी. हालांकि यह उनके और हमारे परिवार पर निर्भर है.”
रिपोर्टः माऊंग बो, यंगून
देखिएः कौन हैं रोहिंंग्या मुसलमान
कौन हैं रोहिंग्या मुसलमान
म्यांमार के पश्चिमी रखाइन प्रांत में रोहिंग्या मुसलमानों की आबादी लगभग दस लाख है. लेकिन उनकी जिंदगी प्रताड़ना, भेदभाव, बेबसी और मुफलिसी से ज्यादा कुछ नहीं है. आइए जानते हैं, कौन हैं रोहिंग्या लोग.
तस्वीर: Reuters/M.P.Hossain
इनका कोई देश नहीं
रोहिंग्या लोगों का कोई देश नहीं है. यानी उनके पास किसी देश की नागरिकता नहीं है. रहते वो म्यामांर में हैं, लेकिन वह उन्हें सिर्फ गैरकानूनी बांग्लादेशी प्रवासी मानता है.
तस्वीर: Reuters/D. Whiteside
सबसे प्रताड़ित लोग
म्यांमार के बहुसंख्यक बौद्ध लोगों और सुरक्षा बलों पर अक्सर रोहिंग्या मुसलमानों को प्रताड़ित करने के आरोप लगते हैं. इन लोगों के पास कोई अधिकार नहीं हैं. संयुक्त राष्ट्र उन्हें दुनिया का सबसे प्रताड़ित जातीय समूह मानता है.
तस्वीर: Reuters/M.P.Hossain
आने जाने पर भी रोक
ये लोग न तो अपनी मर्जी से एक स्थान से दूसरे स्थान पर जा सकते हैं और न ही अपनी मर्जी काम कर सकते हैं. जिस जगह वे रहते हैं, उसे कभी खाली करने को कह दिया जाता है. म्यांमार में इन लोगों की कहीं सुनवाई नहीं है.
तस्वीर: Reuters/M.P.Hossain
बंगाली
ये लोग दशकों से रखाइन प्रांत में रह रहे हैं, लेकिन वहां के बौद्ध लोग इन्हें "बंगाली" कह कर दुत्कारते हैं. ये लोग जो बोली बोलते हैं, वैसी दक्षिणपूर्व बांग्लादेश के चटगांव में बोली जाती है. रोहिंग्या लोग सुन्नी मुसलमान हैं.
तस्वीर: Getty Images/Afp/C. Archambault
जोखिम भरा सफर
संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि 2012 में धार्मिक हिंसा का चक्र शुरू होने के बाद से लगभग एक लाख बीस हजार रोहिंग्या लोगों ने रखाइन छोड़ दिया है. इनमें से कई लोग समंदर में नौका डूबने से मारे गए हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Y. Pruksarak
सामूहिक कब्रें
मलेशिया और थाइलैंड की सीमा के नजदीक रोहिंग्या लोगों की कई सामूहिक कब्रें मिली हैं. 2015 में जब कुछ सख्ती की गई तो नावों पर सवार हजारों रोहिंग्या कई दिनों तक समंदर में फंसे रहे.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/F. Ismail
इंसानी तस्करी
रोहिंग्या लोगों की मजबूरी का फायदा इंसानों की तस्करी करने वाले खूब उठाते हैं. ये लोग अपना सबकुछ इन्हें सौंप कर किसी सुरक्षित जगह के लिए अपनी जिंदगी जोखिम में डालने को मजबूर होते हैं.
तस्वीर: DW/C. Kapoor
बांग्लादेश में आसरा
म्यांमार से लगने वाले बांग्लादेश में लगभग आठ लाख रोहिंग्या लोग रहते हैं. इनमें से ज्यादातर ऐसे हैं जो म्यांमार से जान बचाकर वहां पहुंचे हैं. बांग्लादेश में हाल में रोहिंग्याओं को एक द्वीप पर बसाने की योजना बनाई है.
तस्वीर: Reuters/M.P.Hossain
आसान नहीं शरण
बांग्लादेश कुछ ही रोहिंग्या लोगों को शरणार्थी के तौर पर मान्यता देता है. वो नाव के जरिए बांग्लादेश में घुसने की कोशिश करने वाले बहुत से रोहिंग्या लोगों को लौटा देता है.
तस्वीर: Reuters
दर ब दर
बाग्लादेश के अलावा रोहिंग्या लोग भारत, थाईलैंड, मलेशिया और चीन जैसे देशों का भी रुख कर रहे हैं.
तस्वीर: DW/C. Kapoor
सुरक्षा के लिए खतरा
म्यांमार में हुए हालिया कई हमलों में रोहिंग्या लोगों को शामिल बताया गया है. उनके खिलाफ होने वाली कार्रवाई के जवाब में सुरक्षा बलों का कहना है कि वो इस तरह के हमलों को रोकना चाहते हैं.
तस्वीर: Getty Images/AFP/Y. Aung Thu
मानवाधिकार समूहों की अपील
मानवाधिकार समूह म्यांमार से अपील करते हैं कि वो रोहिंग्या लोगों को नागरिकता दे और उनका दमन रोका जाए.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/S. Yulinnas
कानूनी अड़चन
म्यांमार में रोहिंग्या लोगों को एक जातीय समूह के तौर पर मान्यता नहीं है. इसकी एक वजह 1982 का वो कानून भी है जिसके अनुसार नागरिकता पाने के लिए किसी भी जातीय समूह को यह साबित करना है कि वो 1823 के पहले से म्यांमार में रह रहा है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/N. Win
आलोचना
रोहिंग्या लोगों की समस्या पर लगभग खामोश रहने के लिए म्यांमार में सत्ताधारी पार्टी की नेता आंग सान सू ची की अक्सर आलोचना होती है. माना जाता है कि वो इस मुद्दे पर ताकतवर सेना से नहीं टकराना चाहती हैं. सू ची हेग को अंतरराष्ट्रीय अदालत में रोहिंग्या मुसलमानों के नरसंहार से जुड़े आरोपों का सामना करने के लिए जाना पड़ा है.