चीन में पत्रकार को मिली 'कोरोना का सच दिखाने' की सजा
२८ दिसम्बर २०२०
चीन की एक अदालत ने सिटीजन जर्नलिस्ट को चार की साल सजा सुनाई है. महिला पत्रकार ने चीन के वुहान शहर से कोरोना संक्रमण के शुरुआती दिनों पर रिपोर्टिंग की थी और वहां के तथ्य दुनिया के सामने रखे थे.
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माना जाता है कि चीन के वुहान शहर से दुनिया भर में कोरोना महामारी फैली. वहां से संक्रमण के शुरुआती दिनों पर रिपोर्टिंग करने वाली सिटीजन जर्नलिस्ट को एक अदालत ने झगड़े के आरोप में चार साल की सजा सुनाई है. सिटीजन जर्नलिस्ट 37 वर्षीय झांग झान के वकील ने कहा कि कोर्ट ने उन्हें "झगड़ा करने" और "समस्या को भड़काने" का दोषी पाते हुए चार साल की सजा सुनाई है.
आधिकारिक बयानों के उलट झान ने महामारी के समय दुनिया के सामने जो तस्वीर पेश की वह बहुत ही भयानक थी. झान उन मुट्ठीभर लोगों में थीं जिन्होंने भीड़भाड़ वाले अस्पतालों और सुनसान सड़कों की भयावह तस्वीरें दुनिया के सामने रखीं.
सच दिखाने की सजा?
उनके वकील रेन क्वानियु ने कहा, "हम शायद अपील करेंगे." सोमवार को शंघाई के कोर्ट ने झांग को चार साल की सजा सुनवाई. कोर्ट के फैसले के पहले क्वानियु ने कहा, "झांग का मानना है कि उन्हें अभिव्यक्ति की आजादी का इस्तेमाल करने के लिए सताया जा रहा है." चीन के कोरोना संकट से जल्द नहीं निपटने की आलोचना को वहां के अधिकारियों ने दबा दिया और व्हिसल ब्लोअर्स जैसे कि डॉक्टरों को इस बारे में चेतावनी भी दी गई थी.
चीन के वुहान से फैला वायरस एक साल में दुनियाभर में भारी तबाही मचा चुका है और कोरोना के कारण आठ करोड़ लोग संक्रमित हो चुके हैं और 17 लाख से अधिक लोगों की जान जा चुकी है.
शंघाई के कोर्ट में झांग की सुनवाई शुरू होने के पहले सुरक्षा कड़ी कर दी गई थी. सात महीने तक झांग को चीन ने हिरासत में रखा और उसके बाद उन पर सुनवाई शुरू की. हालांकि झांग के कुछ समर्थक कोर्ट के बाहर इकट्ठा हुए और उनके समर्थन में नारेबाजी की. व्हीलचेयर पर आए एक व्यक्ति ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया कि वह हेनान प्रांत से आया है और वह अपना समर्थन झांग को इसलिए दे रहा है क्योंकि वह भी ईसाई है. उसके हाथ में एक पोस्टर था जिस पर झांग का नाम लिखा था. बाद में पुलिस ने इस व्यक्ति को वहां से हटा दिया. कोर्ट के सुरक्षारकर्मियों का कहना था कि विदेशी पत्रकारों को "कोरोना वायरस महामारी की वजह" से अंदर जाने की इजाजत नहीं दी गई.
चीन का सच बाहर लाना कितना खतरनाक?
पूर्व वकील झांग 1 फरवरी को अपने शंघाई वाले घर से वुहान पहुंची थीं. उन्होंने यूट्यूब पर स्थानीय नागरिकों का इंटरव्यू, कमेंट्री के साथ साथ स्थानीय शवदाहगृह का वीडियो, ट्रेन स्टेशनों, अस्पतालों और वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ विरोलॉजी का वीडियो अपलोड किया था. मध्य मई में उन्हें हिरासत में लिया गया था और उन्होंने इसके खिलाफ जून के आखिर में भूख हड़ताल की थी.
उनके वकीलों ने कोर्ट को बताया कि पुलिस ने उन्हें जबरन ट्यूब के जरिए खाना खिलाया. दिसंबर तक उनकी तबीयत और बिगड़ गई और उन्हें सिरदर्द, चक्कर आने, पेट दर्द, कम रक्त दबाव और गले के संक्रमण जैसी शिकायतें हो गईं.
उनके वकील ने बताया कि सुनवाई शुरू होने के पहले उन्हें जमानत देने और सुनवाई की लाइव स्ट्रीमिंग की मांग पर कोर्ट ने ध्यान नहीं दिया. अन्य सिटीजन जर्नलिस्ट फांग बिन, चेन कुईशी और ली जेहुआ को भी पत्रकारिता के लिए हिरासत में लिया गया था. फांग के बारे में कोई सूचना तो नहीं मिली लेकिन ली अप्रैल महीने में यूट्यूब वीडियो में नजर आए थे और कहा था कि उन्हें जबरदस्ती क्वारंटीन में भेज दिया गया था. चेन को बाद में रिहा कर दिया गया था लेकिन उन्होंने इस बारे में सार्वजनिक रूप से कुछ नहीं कहा है.
इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ जर्नलिस्ट्स के मुताबिक 2020 में पूरी दुनिया में कम से कम 42 पत्रकार और मीडियाकर्मी मारे गए. जानिए किस किस देश में पत्रकारों के लिए सबसे ज्यादा खतरा है.
तस्वीर: Picture-alliance/AA/Z. H. Chowdhury
हर साल मारे जाते हैं कई पत्रकार
आईएफजे के अनुसार हर साल कम से कम 40 पत्रकार और मीडियाकर्मी अपने काम की वजह से मारे जाते हैं. संस्था का कहना है कि पिछले तीन दशकों में पूरी दुनिया में 2,658 पत्रकार मारे गए हैं. यह तस्वीर है 2018 में मारे गए सऊदी अरब के पत्रकार जमाल खशोगी की.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/L. Pitarakis
सबसे खतरनाक देश
आईएफजे हर साल पत्रकारों के लिए सबसे खतरनाक देशों की सूची बनाता है. पिछले पांच सालों में लगातार चौथी बार मेक्सिको इस सूची में सबसे ऊपर है. वहां 2020 में 13 पत्रकार मारे गए. तस्वीर में मेक्सिको के चियुदाद हुआरेज में एक पुलिसकर्मी उस स्थान पर पहरा दे रहा है जहां 29 अक्टूबर 2020 को मल्टीमेडिओस चैनल सिक्स के न्यूज एंकर आर्तुरो आल्बा को अज्ञात बंदूकधारियों ने गोली मार दी.
तस्वीर: Jose Luis Gonzalez/REUTERS
पाकिस्तान भी पीछे नहीं
सूची में दूसरे नंबर पर है पाकिस्तान. वहां 2020 में पांच पत्रकारों के मारे जाने की जानकारी मिली. तस्वीर में अहमद उमर सईद शेख है जिसे अमेरिकी पत्रकार डेनियल पर्ल की हत्या के लिए मौत की सजा दी गई थी. अप्रैल 2020 में पाकिस्तान की एक अदालत ने शेख की मौत की सजा को पलट दिया.
तस्वीर: AFP/A. Quereshi
भारत में भी स्थिति चिंताजनक
भारत भी पकिस्तान से ज्यादा पीछे नहीं है. 2020 में भारत में कम से कम तीन पत्रकारों के मारे जाने की सूचना मिली. इतने ही पत्रकार अफगानिस्तान, इराक और नाइजीरिया में भी मारे गए. तस्वीर बेंगलुरु में 2017 में पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या के विरोध में आयोजित किए गए एक प्रदर्शन की है.
तस्वीर: Imago/Hindustan Times
घट रहा है चलन
आईएफजे का कहना है कि यह आंकड़े लगभग वहीं हैं जहां ये 30 साल पहले थे, जब संस्था ने इन आंकड़ों को इकठ्ठा करना शुरू किया था. संस्था का कहना है कि पत्रकारों के मारे जाने का चलन घट रहा है, लेकिन ये तस्वीर अफगानिस्तान की है जहां 10, 2020 दिसंबर को मारी गई पत्रकार मलालाई मैवान्द के ताबूत के पास लोग प्रार्थना कर रहे हैं.
तस्वीर: Parwiz/REUTERS
सिर्फ आंकड़े नहीं
आईएफजे के महासचिव एंथोनी बैलैंगर ने कहा कि ये "सिर्फ आंकड़े नहीं हैं...ये हमारे दोस्त और सहकर्मी हैं जिन्होंने बतौर पत्रकार अपने काम के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया और उसकी सबसे बड़ी कीमत चुकाई." उन्होंने कहा कि संस्था सिर्फ इन पत्रकारों को याद ही नहीं रखेगी बल्कि एक एक मामले का पीछा करेगी और सरकारों और कानूनी एजेंसियों पर दबाव बनाती रहेगी ताकि उनके हत्यारों को सजा हो सके.
तस्वीर: Borralho Ndomba/DW
मौत ही नहीं, जेल भी है खतरा
150 देशों में 600,000 सदस्यों वाला आईएफजे उन पत्रकारों की भी खबर रखता है जिन्हें जेल में डाल दिया गया है. अधिकतर मामलों में सरकारों ने खुद को बचाने के लिए बिना स्पष्ट आरोपों के इन पत्रकारों को गिरफ्तार किया है. इस समय पूरी दुनिया में कम से कम 235 पत्रकार अपने काम से जुड़े मामलों की वजह से जेल में हैं.
आईएफजे के अध्यक्ष युनेस मजाहेद ने कहा है कि यह सारे तथ्य सरकारों द्वारा किए जाने वाले उनकी शक्ति के उस दुरूपयोग पर रोशनी डालते हैं जो वो अपनी जवाबदेही से बचने के लिए करती हैं. उन्होंने कहा, "इतनी बड़ी संख्या में हमारे सहकर्मियों का जेल में होना हमें याद दिलाता है कि दुनिया भर में जनहित में सत्य को खोज निकालने के लिए पत्रकारों को क्या कीमत चुकानी पड़ती है."
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/A. Wang
महामारी में विशेष भूमिका
जिम्मेदार पत्रकारों और मीडिया संस्थानों की अहमियत कोरोना वायरस महामारी के इस युग में विशेष रूप से महसूस की गई है. यूनेस्को की डायरेक्टर जनरल ऑड्री अजूले ने कहा है कि पत्रकार ना सिर्फ महामारी के दौरान आवश्यक जानकारी लोगों तक पहुंचा रहे हैं, वो हर तरह के सच को झूठ से अलग करने में हमारी मदद भी कर रहे हैं.