चीन की एक कंपनी ने मीथेन से बने ईंधन से चलने वाला रॉकेट अंतरिक्ष में भेजा है. इस तकनीक की कामयाबी अंतरिक्ष क्षेत्र में चीन के दबदबे को और बढ़ा देगी.
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शनिवार को चीन की कंपनी लैंडस्केप टेक्नोलॉजी ने एक ऐसा रॉकेट अंतरिक्ष में भेजा जो मीथेन और लीक्विड ऑक्सीजन से बने ईंधन पर चलता है. अगर यह तकनीक कामयाब होती है तो चीन के अंतरिक्ष उद्योग में निजी क्षेत्र के लिए बड़ा प्रोत्साहन होगा.
विशेषज्ञों का कहना है कि नई तकनीक से निवेशकों का भरोसा बढ़ेगा क्योंकि मीथेन से बना ईंधन लागत को कम करता है और रॉकेट को दोबारा व पर्यावरण के ज्यादा अनुकूल तरीके से इस्तेमाल लायक बनाता है.
चीन में अंतरिक्ष क्षेत्र में निजी कंपनियों के बीच होड़ मची हुई है. कई कंपनियां अपने-अपने अंतरिक्ष यान भेजने की तैयारी में हैं. चीन में अंतरिक्ष का व्यवसायिक इस्तेमाल करने के लिए बाजार तेजी से बढ़ रहा है और इसलिए घरेलू स्तर पर प्रतिद्वन्द्विता भी तेज हो रही है.
सरकार इलॉन मस्क की स्टारलिंक के बरअक्स एक देसी ढांचा खड़ा करने पर पूरा जोर दे रही है. ऐसे में शनिवार को हुआ लॉन्च वैज्ञानिक और रणनीतिक दोनों ही तरह से अहम हो जाता है.
कामयाब रहा जुक्वे-2
शनिवार सुबह स्थानीय समयानुसार 7.39 बजे अंदरूनी मंगोलिया क्षेत्र में स्थित जिउक्वान सैटेलाइट लॉन्च सेंटर से जुक्वे-2 वाई-3 यान का प्रक्षेपण हुआ. यह इस रॉकेट को भेजने का दूसरा प्रयास था क्योंकि पिछले साल दिसंबर में इसका एक विफल प्रयास हो चुका था.
क्या पाया यूरोप की नई अंतरिक्ष टेलिस्कोप ने
यूरोप के खगोल वैज्ञानिकों ने हाल ही में लॉन्च की गई अंतरिक्ष टेलिस्कोप यूक्लिड द्वारा ली गई तस्वीरें जारी की हैं. देखिए डार्क मैटर और डार्क ऊर्जा के रहस्यों पर से पर्दा हटाने के लिए बनाई गई इस टेलिस्कोप ने क्या पाया.
तस्वीर: ESA/Euclid/Euclid Consortium/NASA, image processing by J.-C. Cuillandre
डार्क मैटर की पड़ताल
यह यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ईएसए) की हाल ही में लॉन्च की गई अंतरिक्ष टेलिस्कोप 'यूक्लिड' द्वारा ली गई पहली तस्वीरें हैं. इस टेलिस्कोप को डार्क मैटर और डार्क ऊर्जा के बारे में और पता करने के लिए बनाया गया है. माना जाता है कि ब्रह्मांड का 95 प्रतिशत इन्हीं शक्तियों से बना है. इस मिशन में नासा भी साझेदार है.
तस्वीर: Patrice Lapoirie/dpa/picture alliance
विशाल आकाशगंगाएं
इन तस्वीरों में सिर्फ 24 करोड़ प्रकाश वर्ष दूर पर्सियस क्लस्टर की 1,000 आकाशगंगाएं और उसके पीछे फैलीं 1,00,000 से ज्यादा आकाशगंगाएं शामिल हैं. यह पर्सियस की तस्वीर है. वैज्ञानिक मानते हैं कि संगठित ढांचे जैसे लगने वाले पर्सियस जैसे विशाल क्लस्टरों का बनना ही डार्क मैटर के होने का प्रमाण है.
तस्वीर: ESA/Euclid/Euclid Consortium/NASA, image processing by J.-C. Cuillandre
हमारी आकाशगंगा की हमशक्ल
ईएसए के मुताबिक यह तस्वीरें इस टेलिस्कोप की 10 अरब प्रकाश वर्ष तक दूर, अरबों आकाशगंगाओं को देख सकने की क्षमता को दिखाती हैं. "हिडेन गैलक्सी" नाम की आकाशगंगा की तस्वीरें भी हैं जिसे हमारी आकाशगंगा की हमशक्ल माना जा रहा है.
तस्वीर: ESA/Euclid/Euclid Consortium/NASA, image processing by J.-C. Cuillandre
ब्रह्मांड के बिल्डिंग ब्लॉक
दूसरी तस्वीरों में एक अनियमित आकाशगंगा शामिल है. माना जा रहा है कि यह ब्रह्मांड के बिल्डिंग ब्लॉक जैसी दिखाई देती है. यूक्लिड इन सभी आकाशगंगाओं के प्रकाश का अध्ययन कर ब्रह्मांड का एक थ्रीडी मैप बनाएगी.
तस्वीर: ESA/Euclid/Euclid Consortium/NASA, image processing by J.-C. Cuillandre
ग्रैविटी से चिपके सितारे
यह करीब 7,800 प्रकाश वर्ष दूर स्थित एनजीसी 6397 नाम के ग्लोब्यूलर क्लस्टर की तस्वीर है. गुरुत्वाकर्षण द्वारा एक साथ थामे हुए लाखों सितारों के समूह को ग्लोब्यूलर क्लस्टर कहते हैं. कोई भी और टेलिस्कोप एक साथ एक पूरे ग्लोब्यूलर क्लस्टर की तस्वीर नहीं ले सकती.
तस्वीर: ESA/Euclid/Euclid Consortium/NASA, image processing by J.-C. Cuillandre
घोड़े के सिर वाली नेब्युला
यह घोड़े के सिर वाली नेब्युला का विस्तृत दृश्य है. इसे बर्नार्ड 33 के नाम से भी जाना जाता है और यह ओरियन तारामंडल का हिस्सा है. वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि यूक्लिड की मदद से वो इस नेब्युला में वृहस्पति के घनत्व के कई ग्रहों को उनकी बाल्यवास्था में खोज पाएंगे. (रॉयटर्स)
तस्वीर: ESA/Euclid/Euclid Consortium/NASA, image processing by J.-C. Cuillandre
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लैंडस्केप ने एक बयान में कहा है कि दो प्रयास दिखाते हैं कि जुक्वे-2 व्यवसायिक प्रक्षेपणों के लिए भरोसेमंद है. इस प्रक्षेपण में तीन उपग्रह छोड़े गए हैं जो 460 किलोमीटर की ऊंचाई पर पहुंचे. इनमें से दो उपग्रह चीन की स्टार्टअप कंपनी स्पेसटी द्वारा बनाए गए हैं जबकि तीसरा लैंडस्केप के निवेश वाली कंपनी होंगिंग ने बनाया है.
लौट आया अंतरिक्ष में फंसा यात्री
एक साल से ज्यादा वक्त बिताने वाले नासा एस्ट्रोनॉट फ्रैंक रूबियो पृथ्वी पर लौट आये हैं. तकनीकी खराबी के कारण वह आईएसएस पर फंस गये थे.
तस्वीर: Dmitri Lovetsky/POOL AP/dpa
लौट आये फ्रैंक रूबियो
नासा एस्ट्रोनॉट फ्रैंक रूबिया पृथ्वी पर लौट आये हैं. बीते बुधवार वह अपने दो और सहयोगियों के साथ कजाखस्तान में उतरे. सोयूज एमएस-3 कैप्सुल में उनके साथ रूसी अंतरिक्ष यात्री सर्गेई प्रोकोपयेव और दिमित्री पेटेलियन भी थे.
तस्वीर: Frank Rubio/NASA/ZUMAPRESS/picture alliance
371 दिन अंतरिक्ष में
रुबियो ने अंतरिक्ष में 371 दिन बिताये. हालांकि वह सिर्फ छह महीने के लिए गये थे लेकिन उन्हें जिस यान से लौटना था, उसमें खराबी आ गयी और वह इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पर फंस गये.
तस्वीर: AFP
अमेरिकी रिकॉर्ड
रूबियो अंतरिक्ष में सबसे ज्यादा समय तक रहने वाले अमेरिकी बन गये हैं. पिछले हफ्ते आईएसएस से ही दिये एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि यह एक अविश्वसनीय चुनौती थी और बहुत कठिन थी.
तस्वीर: Dmitri Lovetsky/ASSOCIATED PRESS/picture alliance
अंतरिक्ष में रहने का रिकॉर्ड
अंतरिक्ष में सबसे ज्यादा वक्त बिताने का रिकॉर्ड रूसी यात्री वालेरी पोल्यकोव के नाम है, जिन्होंने 473 दिन बिताये थे. वह 1990 के दशक में अंतरिक्ष में रहे थे.
तस्वीर: Maxim Shemetov/REUTERS
धरती के 6,000 चक्कर
रूबियो ने पृथ्वी की कक्षा के लगभग 6,000 चक्कर लगाये और 15.70 करोड़ किलोमीटर से ज्यादा की यात्रा की. नासा के मुताबिक यह धरती से चांद की 328 यात्राओं के बराबर है.
तस्वीर: Dmitri Lovetsky/POOL AP/dpa
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मीथेन से चलने वाला जुक्वे-2 1.5 मीट्रिक टन भार को पृथ्वी की कक्षा में 500 किलोमीटर की ऊंचाई तक ले जाने में सक्षम है. हालांकि कंपनी इसकी क्षमता चार टन तक बढ़ाने की कोशिश में है. 2024 में कंपनी तीन उपग्रह अंतरिक्ष में भेजेगी और 2025 में यह संख्या दोगुनी करने की योजना है.
नए ईंधन पर काम
कई चीनी कंपनियां अन्य प्रकार के ईंधनों पर भी काम कर रही हैं. स्टार्टअप कंपनी ऑरियनस्पेस ने ठोस ईंधन वाले अपने पहले रॉकेट ग्रैविटी-1 के प्रक्षेपण की तैयारी पूरी कर ली है और इस महीने इसे लॉन्च किया जा सकता है.
डीप ब्लू एयरोस्पेस नाम की कंपनी केरोसीन आधारित ईंधन का इस्तेमाल करने की तकनीक पर काम कर रही है और नेबुला-1 नाम के अपने पहले रॉकेट को अगले साल कक्षा में भेजने की कोशिश करेगी.
इससे पहले बीते मंगलवार को गैलक्टिक एनर्जी ने ठोस-ईंधन से चलने वाले रॉकेट सीरीस-1 के जरिए दो उपग्रहों को सफलतापूर्वक अंतरिक्ष में भेजा था. सितंबर में यह लॉन्च विफल हो गया था लेकिन पिछले हफ्ते उसका लॉन्च कामयाब रहा.