चीन ने विदेशी अंतरिक्ष यात्रियों को खुला निमंत्रण दिया है कि वे चाहें, तो चीन के नए-नवेले स्पेस स्टेशन की यात्रा पर चल सकते हैं. अमेरिका ने इससे इनकार किया है, तो वहीं यूरोप असमंजस में है.
तीन अंतरिक्षयात्री बीते गुरुवार शिजो-17 में चीनी स्पेस स्टेशन की ओर रवाना हुए हैं. तस्वीर: Li Gang/Xinhua/picture alliance
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चीनी मिथकों और किंवदंतियों में इस बात का जिक्र अक्सर मिलता है कि इंसान आसमान तक गए और अंतरिक्ष में कदम रखा. चीन ने इस तरह की कहानियों का इस्तेमाल अंतरिक्ष को विचारधारा की सीमाओंसे दूर एक ऐसी जगह के तौर पर पेश करने के लिए किया है, जो राजनीति से अछूती है. लेकिन बीसवीं सदी में शीत युद्ध के दौरान अमेरिका और सोवियत रूस के बीच शुरु हुई 'स्पेस रेस' के बाद से अंतरिक्ष का राजनीतिकरण छिपा हुआ नहीं है. अंतरिक्ष में प्रभुत्व स्थापित करने की होड़ में लगे देशों के लिए दांव पर है, तकनीकी श्रेष्ठता और इसके साथ-साथ आर्थिक विकास और मौलिकता के प्रदर्शन का मौका.
चीनी अंतरिक्षयात्रियों को स्पेस स्टेशन भेजने से पहले समारोह आयोजित किया गयातस्वीर: Li Zhipeng/picture alliance
अंतरिक्ष की शक्ति
चीन ने बीते गुरुवार एक बार फिर साबित किया कि वह दुनिया की बड़ी स्पेस पावर है, जब तीन चीनी अंतरिक्षयात्री, शिंजो-17 यान में सवार होकर चीनी स्पेस स्टेशन तियानगोन्ग के लिए रवाना हुए. 10 मिनट की यात्रा और साढ़े छह घंटे तक यान को सुरक्षित उतारने के प्रयासों के बाद अंतरिक्ष यात्री तियानगोन्ग पहुंचे. इस शब्द का हिंदी में अर्थ होता है: 'दिव्य महल.'
2011-2017 में तियानगोन्ग-1 और 2016-2019 में तियानगोन्ग-2 परियोजनाओं के सफल परीक्षणों के बाद चीन ने 2021 में तियानगोन्ग बनाना शुरु किया. नवंबर 2022 में इसका निर्माण पूरा हुआ. इस स्पेस स्टेशन पर दो स्पेस कैप्सूल और एक सप्लाई क्राफ्ट यानी तीन अंतरिक्ष यान एक साथ उतारे जा सकते हैं.
पहली बार उल्कापिंड की धूल लेकर लौटा रेक्स
सात साल की यात्रा के बाद नासा का अंतरिक्ष यान उल्कापिंडों के नमूनों का सबसे बड़ा जखीरा लेकर धरती पर लौट आया.
तस्वीर: Rick Bowmer/AP/dpa/picture alliance
सात साल बाद लौटा रेक्स
सात साल तक चले एक अभियान का 24 सितंबर 2023 को सफल पटाक्षेप हुआ जब नासा का अंतरिक्ष यान उल्कापिंडों के नमूनों का सबसे बड़ा जखीरा लेकर धरती पर लौट आया. 24 सितंबर को अमेरिका के यूटा राज्य के रेगिस्तान में यह यान सुरक्षित उतर गया.
तस्वीर: Keegan Barber/AFP
बेनू की धूल
रेक्स ने बेनू की सतह से 250 ग्राम धूल जमा की. नासा का कहना है कि यह थोड़ी सी धूल भी जानकारियों से भरपूर होगी. वे यह भी पता लगा सकेंगे कि किस तरह के उल्कापिंड भविष्य में पृथ्वी के लिए खतरनाक हो सकते हैं.
तस्वीर: Keegan Barber/AFP
बड़ी उम्मीदें
वैज्ञानिकों को बड़ी उम्मीदें हैं कि ये नमूने हमारे सौर मंडल की रचना-संरचना के बारे में समझ में नये अध्याय जोड़ेंगे. साथ ही इस सवाल के जवाब मिलने की भी उम्मीद है कि पृथ्वी का वातावरण कब और कैसे इंसान के रहने लायक बना.
तस्वीर: George Frey/AFP
भावुक पल
ऑसिरिस-रेक्स मिशन की मुख्य वैज्ञानिक दांते लॉरेटा ने मीडिया से बातचीत में कहा कि जब वैज्ञानिकों को पता चला कि कैपसुल का मुख्य पैराशूट खुल चुका है तो बहुत से लोग भावुक हो गये. लॉरेटो ने कहा, “मेरी आंखों से सच में आंसू बहने लगे थे. यह वो पल था जब हमें यकीन हो गया था कि हम घर लौट आए हैं. मेरे लिए असली साइंस तो अभी शुरू हो रही है.”
तस्वीर: George Frey/AFP
6.21 अरब किलोमीटर की यात्रा
नासा ने सोशल मीडिया साइट एक्स पर लिखा कि 6.21 अरब किलोमीटर की यह यात्रा अपनी तरह का पहला अभियान है. नासा प्रमुख बिल नेल्सन ने अभियान की जमकर तारीफ की और कहा कि उल्कापिंडों की धूल के नमूने “वैज्ञानिकों को हमारे सौर मंडल के शुरुआती दिनों के बारे में अभूतपूर्व जानकारी देंगे.”
तस्वीर: George Frey/AFP
बेनू की यात्रा
ऑसिरिस-रेक्स अभियान का अंतिम चरण बेहद जटिल था लेकिन अमेरिका के स्थानीय समय के मुताबिक सुबह 8.52 बजे यूटा के रेगिस्तान में सेना के ट्रेनिंग रेंज पर उसकी आरामदायक लैंडिंग हुई. इसे 2016 में भेजा गया था और वह बेनू उल्कापिंड पर उतरा था.
तस्वीर: NASA/Goddard/University of Arizona/Handout via REUTERS
भविष्य के लिए
अब इन नमूनों को ह्यूस्टन के जॉनसन स्पेस सेंटर को भेजा जाएगा. करीब एक चौथाई नमूनों का तो फौरन परीक्षण के लिए इस्तेमाल कर लिया जाएगा जबकि कुछ हिस्से को जापान और कनाडा भी भेजा जाएगा. एक हिस्से को भविष्य की पीढ़ियों के लिए संभाल कर रख दिया जाएगा.
तस्वीर: Rick Bowmer/AP/dpa/picture alliance
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छोटा, लेकिन अहम प्रयास
चीनी मीडिया ने तियानगोन्ग के अपेक्षाकृत छोटे आकार की वजह से इसे तीन कमरे वाला मकान कहा है. इसका वजन अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन यानी आईएसएस से 100 टन कम है, जिसका वजन 450 टन के करीब है. तियानगोन्ग को इस तरह डिजाइन किया गया है कि यह 450 किलोमीटर के ऑर्बिटल ऑल्टिट्यूड यानी कक्षीय ऊंचाई पर 15 साल तक काम कर सकता है. अजरबैजान में हुई एक कॉन्फ्रेंस में चीन ने घोषणा की है कि वह आने वाले दिनों में अपने स्पेस स्टेशन की क्षमताबढ़ा लेगा.
इसके साथ ही चीन विदेशी अंतरिक्षयात्रियों को तियानगोन्ग ले जाने के लिए तैयार है. चीन के मानवयुक्त अंतरिक्ष यान कार्यक्रम की निगरानी करने वाली एजेंसी के उपाध्यक्ष लिन शिक्यांग ने कहा, "हम दुनियाभर को निमंत्रण दे रहे हैं और सभी देशों व क्षेत्रों का स्वागत करते हैं, जो अंतरिक्ष के शांतिपूर्ण इस्तेमाल के लिए सहयोग करना चाहते हैं और चीनी अंतरिक्ष मिशनों का हिस्सा बनना चाहते हैं."
अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन केवल 2030 तक ही काम करेगातस्वीर: NASA/UPI Photo/Newscom/picture alliance
सेना की निगाहों के नीचे
चीन का अंतरिक्ष कार्यक्रम पीपल्स लिबरेशन आर्मी की देखरेख में चल रहा है. अंतरिक्षयात्रियों का चुनाव और ट्रेनिंग पूरी तरह से आर्मी के साथ जुड़ी है. चीन में अब तक प्रशिक्षित 18 अंतरिक्षयात्रियों में से दो महिलाएं हैं और केवल एक ही असैन्य कर्मचारी पेलोड विशेषज्ञ के तौर पर अंतरिक्ष मिशन में गए हैं. यह यात्री पेशे से यूनिवर्सिटी टीचर हैं और यान पर सवार होते वक्त उन्होंने सेना के सम्मान में अपना सीधा हाथ हेल्मेट पर रखते हुए शिजों-16 में कदम रखा.
अंतरिक्ष में चीन की सफलता की लिस्ट और भविष्य का प्लान लंबा है. जैसे 2019 में चंद्रमा के अंधियारे हिस्से पर प्रोब मिशन भेजना, 2021 में मंगल पर रोवर उतारना और 2024 तक अपने स्पेस स्टेशन में तीसरा टेलीस्कोप लगाने के अलावा 2020 तक पहला मानवयुक्त यान भेजना. स्पेस की इस रेस में चीन अमेरिका की एजेंसी नासा के पदचिन्हों पर चलने की कोशिश में है.
तियानगोन्ग के अलावा सिर्फ अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन ही है, जहां साल 2000 से एक स्थाई क्रू काम करता है. अमेरिका के विरोध की वजह से चीन अंतरराष्ट्रीय परियोजनाओं में हिस्सा नहीं ले सकता. हालांकि, आईएसएस केवल 2030 तक ही काम कर सकता है. इसका मतलब है कि अंतरिक्ष में तियानगोन्ग अकेला मानवयुक्त स्टेशन होगा. यूरोपियन स्पेस एजेंसी के पूर्व अंतरिक्षयात्री थोमास राएटर ने डीडब्ल्यू से कहा, "चीन पहले से ही अंतरिक्ष में एक बड़ी ताकत है और स्पेस से जुड़ी सभी विधाओं में पारंगत है. इसकी वजह से वह अमेरिका और रूस जैसे दूसरे अंतरिक्षगामियों के बराबर है."
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यूरोप की स्थिति
यूरोपियन स्पेस एजेंसी (ईएसए) ने चीन के महत्वाकांक्षी अंतरिक्ष कार्यक्रम की संभावनाओं को पहले ही भांप लिया था. स्पेस प्रोग्राम में चीन के भारी निवेश को देखते हुए यूरोपियन स्पेस एजेंसी के अंतरिक्षयात्रियों ने चीनी भाषा के गहन कार्यक्रम में हिस्सा लिया, जिसमें मतियास माओरर भी शामिल हैं. 2017 में माओरर ने चीनी सहयोगियों के साथ एक सर्वाइवल ट्रेनिंगमें हिस्सा लिया, लेकिन अंत में स्थितियां कुछ और ही बनीं. माओरर ने 2021 से 2022 के बीच आईएसएस में 176 दिन गुजारे.
इसी साल जनवरी में ईएसए के महानिदेशक जोसेफ आशबाखर ने कहा कि एजेंसी फिलहाल केवल आईएसएस पर ही ध्यान लगाना चाहती है. उन्होंने एक प्रेसवार्ता में कहा, "इस वक्त हमारे पास ना बजट है और ना ही राजनीतिक रजामंदी, जिससे हम एक अन्य स्पेस स्टेशन, यानी चीनी स्पेस स्टेशन के साथ जुड़ सकें."
वॉयजर मिशन: ब्रह्मांड का अनोखा मुसाफिर
नासा ने वॉयजर 2 अंतरिक्षयान से संपर्क फिर से बहाल कर लिया है. इससे दोबारा डेटा भी मिलने लगा है. 1977 में वॉयजर अंतरिक्ष यात्रा पर रवाना हुआ था. इसकी पृथ्वी पर कभी वापसी नहीं होगी. जानिए क्यों बहुत खास है वॉयजर मिशन...
तस्वीर: ZUMA/imago images
176 सालों में बनने वाला खास संयोग
1965 में गणनाओं से पता चला कि अगर 1970 के दशक के अंत तक अंतरिक्षयान लॉन्च किया जाए, तो वो आउटर प्लैनेट के चारों विशाल ग्रहों- बृहस्पति, शनि, अरुण और वरुण तक पहुंच सकता है. अंतरिक्षयान को 176 सालों में बनने वाले एक ऐसे अनूठे अलाइनमेंट से मदद मिल सकती है, जिससे वो इन चारों में से हर एक ग्रह के गुरुत्वाकर्षण का इस्तेमाल कर अगले की ओर घूम सकता है. तस्वीर में: 1998 में वॉयजर की ली नेप्च्यून की तस्वीर
तस्वीर: NASA/JPL
जुड़वां यात्री
इसके बाद शुरू हुआ "द मरीनर जूपिटर/सैटर्न 1977" प्रोजेक्ट. मार्च 1977 में मिशन का नाम बदलकर वॉयजर रखा गया. इस मिशन के दो हिस्से हैं, वॉयजर 1 और वॉयजर 2. ये जुड़वां अंतरिक्षयान हैं. योजना के मुताबिक, वॉयजर 2 को वॉयजर 1 के बाद बृहस्पति और शनि ग्रह तक पहुंचना था. इसीलिए पहले रवाना होने के बावजूद इसका क्रम 2 है, 1 नहीं. फोटो में: 14 जनवरी, 1986 को वॉयजर 2 द्वारा ली गई यूरेनस की तस्वीर
तस्वीर: NASA/JPL
1977 में शुरू हुई यात्रा
वॉयजर 2 ने 20 अगस्त, 1977 को फ्लोरिडा के केप केनावरल से सफर शुरू किया. वॉयजर 1 ने भी 5 सितंबर, 1977 को यहीं से यात्रा शुरू की. दुनिया ने अंतरिक्षयान से ली गई पृथ्वी और चांद की जो पहली तस्वीर देखी, उसे 6 सितंबर 1977 को वॉयजर 1 ने ही भेजा था. 40 साल से ज्यादा वक्त से ये दोनों अंतरिक्ष के ऐसे सुदूर हिस्सों की खोजबीन कर रहे हैं, जहां धरती की कोई चीज पहले कभी नहीं पहुंची. फोटो: शनि ग्रह का सिस्टम
तस्वीर: NASA/abaca/picture alliance
बृहस्पति के राज बताए
5 मार्च, 1979 को वॉयजर 1 बृहस्पति के सबसे नजदीक आया. इसी से पता चला कि इस ग्रह पर सक्रिय ज्वालामुखी हैं. यह भी पता चला कि इसका "ग्रेट रेड स्पॉट" असल में एक बड़ा तूफान है और बृहस्पति पर भी बिजली गिरती है. जुलाई 1979 में वॉयजर 2 की भी बृहस्पति से मुलाकात हुई. इसी के मार्फत पहली बार बृहस्पति के छल्लों "रिंग्स ऑफ जूपिटर" की तस्वीर मिली. वॉयजर 2 ने बृहस्पति के चांद "मून यूरोपा" को भी करीब से देखा.
तस्वीर: Science Photo Library/IMAGO
शनि के चंद्रमा
नवंबर 1979 में वॉयजर 1 ने शनि ग्रह के सबसे बड़े चंद्रमा टाइटन को सबसे करीब से देखा. इसी यात्रा में मिले डेटा से पहली बार हमारी पृथ्वी से परे टाइटन पर नाइट्रोजन युक्त वातावरण की जानकारी मिली. इससे यह संभावना मिली कि टाइटन की सतह के नीचे तरल मीथेन और इथेन मौजूद हो सकती है. 1981 में वॉयजर 2 ने भी शनि के कई बर्फीले चंद्रमाओं को देखा.
तस्वीर: NASA/EPA/dpa/picture alliance
सौर मंडल का सबसे ठंडा ग्रह
जनवरी 1986 में वॉयजर 2 के मार्फत इंसानों ने यूरेनस का क्लोज-अप देखा. पहली बार पता लगा कि यहां तापमान माइनस 195 डिग्री सेल्सियस तक चला जाता है. यानी, यूरेनस या अरुण हमारे सौर मंडल का सबसे ठंडा ग्रह है. अगस्त 1989 में वॉयजर 2, नेप्च्यून या वरुण को सबसे पास से देखने वाला पहला अंतरिक्षयान बना. फिर इसने सौर मंडल के बाहर अपनी यात्रा शुरू की. तस्वीर में: वॉयजर 2 की भेजी तस्वीरों से बनाई गई यूरेनस की फोटो
तस्वीर: NASA/JPL/REUTERS
सुदूर अंतरिक्ष का यात्री
17 फरवरी, 1998 को पायनियर 10 को पीछे छोड़कर वॉयजर 1 अंतरिक्ष में सबसे सुदूर पहुंचा मानव निर्मित यान बना. 25 अगस्त, 2012 को वॉयजर 1 इंटरस्टेलर स्पेस में दाखिल हुआ. यह ऐसा करने वाली पहली मानव निर्मित वस्तु थी.
तस्वीर: United Archives/picture alliance
हेलियोस्फीयर के पार
फिर 5 नवंबर, 2018 को वॉयजर 2 हेलियोस्फीयर पार कर इंटरस्टेलर स्पेस में घुसा. हेलियोस्फीयर, सूर्य के सुदूर वातावरण की परत है, जो अंतरिक्ष में एक तरह का सुरक्षात्मक चुंबकीय बुलबुला है. वॉयजर 1 और 2 ने हमारे सौर मंडल के सारे बड़े ग्रहों की खोजबीन की. ये ग्रह हैं: बृहस्पति, शनि, अरुण और वरुण.
गोल्डन रेकॉर्ड: पृथ्वी का पैगाम
दोनों वॉयजर पर एक अद्भुत चीज है; 12 इंच की गोल्ड प्लेटेड कॉपर डिस्क. इसे कहा जाता है, गोल्डन रेकॉर्ड. अगर कभी पृथ्वी से परे जीवन के किसी रूप से इनकी मुलाकात हुई, तो ये गोल्डन रेकॉर्ड उन तक हमारे अस्तित्व का संदेश पहुंचाएंगे. पृथ्वी का जीवन, जीवन की विविधता, हमारी संस्कृति... सबका हाल सुनाएंगे. साथ ही, गोल्डन रेकॉर्ड कैसे बजाया जाए, इसके लिए सांकेतिक निर्देश भी हैं.
तस्वीर: ZUMA/imago images
संगीत और ध्वनियां भी हैं
इस रेकॉर्ड की सामग्रियों को नासा की एक कमिटी ने चुना था, जिसके अध्यक्ष मशहूर अमेरिकी खगोलशास्त्री कार्ल सागन थे. इनमें हमारे सौर मंडल का मानचित्र है. यूरेनियम का एक टुकड़ा है, जो रेडियोएक्टिव घड़ी का काम करता है और अंतरिक्षयान के रवाना होने की तारीख बता सकता है. पृथ्वी पर जीवन का स्वरूप बताने के लिए इनकोडेड तस्वीरें हैं. संगीत और कई ध्वनियां भी हैं. तस्वीर: कार्ल सागन
तस्वीर: IMAGO/UIG
अभी कहां हैं दोनों वॉयजर
वॉयजर एक अनंत यात्रा का राहगीर है, जो ब्रह्मांड में आगे बढ़ता रहेगा. नासा के "आईज ऑन द सोलर सिस्टम" ऐप पर आप दोनों वॉयजर यानों की यात्रा और लोकेशन देख सकते हैं. अभी तो वॉयजर अपने पावर बैंक की मदद से डेटा भेजते हैं, लेकिन 2025 के बाद इसके पावर बैंक धीरे-धीरे कमजोर होते जाएंगे. इसके बाद भी ये मिल्की वे में तैरना-टहलना जारी रखेगा. चुपचाप, शायद अनंत काल तक.
तस्वीर: Canberra Deep Space Com. Complex/NASA/ZUMA/picture alliance
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भूराजनीतिक तनाव का अंत
पूर्व अंतरिक्षयात्री राएटर का मानना है कि अंतरराष्ट्रीय सहयोग अच्छी बात है. वह कहते हैं, "इस तरह की स्थितियों में स्पेस और विज्ञान आमतौर पर हमें संचार के रास्ते खुले रखने में मदद करते हैं. एक बार यह मामला थम जाए, तो हमें चीन के साथ इस बातचीत को दोबारा शुरु करना चाहिए और प्रोजेक्ट देखने चाहिए." राएटर को लगता है कि ईएसए को इसके लिए तैयारी करनी चाहिए कि उसके अपने अंतरिक्षायात्री तियान्गोंग जा सकें. उनके मुताबिक ईएसए ने अपने नए अंतरिक्षयात्रियों का दल चुना है. शायद उन्हीं में से कोई चीनी भाषा सीखकर वहां जाने का विचार रखता हो.
राएटर खुद अपने पहले मिशन के लिए रूस के पुराने स्पेस स्टेशन मीर पर गए थे. वहां सबकुछ रूसी भाषा में लिखा था. लोग रूसी में बात कर रहे थे. वह बताते हैं, "मेरी दूसरी तैनाती आईएसएस पर थी, जहां सभी मॉड्यूल वैसे ही थे, जैसे रूसी स्टेशन पर. वहां अतरराष्ट्रीय रिसर्चरों का एक बड़ा दल था. अगर यह सहयोग चलता रह सके, तो हमें इसका पूरा समर्थन करना चाहिए."