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चीन की "मीटू" कार्यकर्ता को पांच साल की जेल

१४ जून २०२४

चीन में महिलाओं के यौन शोषण के खिलाफ आंदोलन चलाने वाली पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता ह्वांग शुएकिन को पांच साल की कैद सुनाई गई है.

चीन की कार्यकर्ता ह्वांग शुएकिन
चीन की मानवाधिकार कार्यकर्ता ह्वांग शुएकिन को पांच साल की कैदतस्वीर: Thomas Yau/newscom/picture alliance

चीन की मानवाधिकार कार्यकर्ता ह्वांग शुएकिन के समर्थकों ने कहा है कि शुक्रवार को एक अदालत ने उन्हें पांच साल की जेल की सजा सुनाई है. दक्षिणी चीन की एक अदालत ने उन्हें राष्ट्रद्रोह के मामले में दोषी करार दिया.

35 साल की शुएकिन एक स्वतंत्र पत्रकार और महिला अधिकार कार्यकर्ता हैं. उनके समर्थकों ने कहा है कि वह इस फैसले के खिलाफ अपील करेंगी. इस मुकदमे में मानवाधिकार कार्यकर्ता वांग जियांबिंग भी एक आरोपी थे. उन्हें तीन साल छह महीने की जेल की सजा सुनाई गई.

इन दोनों कार्यकर्ताओं की रिहाई के लिए अभियान चलाने वाले एक समूह ‘ह्वांग शुएकिन और वांग जियांबिंग को रिहा करो' के प्रवक्ता ने कहा, "उन्हें अनुमान से कहीं ज्यादा सजा दी गई है.”

इस समर्थक समूह के अधिकतर सदस्य विदेशों में रहते हैं. समूह के इस प्रवक्ता ने सुरक्षा कारणों से अपना नाम प्रकाशित नहीं करने का अनुरोध किया. उसने कहा, "मुझे नहीं लगता कि इतनी कड़ी सजा दी जानी चाहिए थी और यह बिल्कुल गैरजरूरी है. इसलिए हम शुएकिन की अपील करने की मंशा का समर्थन करते हैं.” 

क्यों लगा राष्ट्रद्रोह का आरोप?

शुएकिन और वांग को सितंबर 2021 में हिरासत में लिया गया था. पिछले साल ही उनके ऊपर आरोप दायर किए गए और मुकदमे की सुनवाई शुरू हुई. समर्थकों के मुताबिक बंद कमरे में हुई सुनवाई में दोनों कार्यकर्ताओं ने अपने ऊपर लगे आरोपों को गलत बताया था.

इन दोनों पर राष्ट्रद्रोह के आरोप लगाए गए थे. इन आरोपों का आधार उन बैठकों को बनाया गया, जो उन्होंने चीनी युवाओं के साथ की थीं. इन बैठकों में वे युवाओं के साथ विभिन्न सामाजिक मुद्दों पर चर्चा किया करते थे.

हजारों देवदासियां आज भी झेल रही है शोषण

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मुकदमे का फैसला आने से पहले जारी एक बयान में समर्थक समूह ने कहा, "मजदूरों, महिलाओं और समाज के अन्य तबकों के अधिकारों के लिए उनकी कोशिशों और प्रतिबद्धता को सिर्फ इस अन्यायपूर्ण मुकदमे से खारिज नहीं किया जाएगा, ना ही समाज उनके योगदान को भूलेगा. इसके उलट, जैसे-जैसे अन्याय और दमन बढ़ेगा, उनकी तरह के और कार्यकर्ता खड़े होंगे.”

दोनों कार्यकर्ताओं को ग्वांगजू की पीपल्स इंटरमीडिएट कोर्ट में सजा सुनाई गई. शुक्रवार सुबह से ही वहां पुलिस की भारी मौजूदगी थी और सुरक्षाबल आने-जाने वाले लोगों से भी सवाल-जवाब कर रहे थे.

कार्यकर्ताओं पर राष्ट्रद्रोह के मुकदमे

चीन में अक्सर सरकार का विरोध करने वालों को राष्ट्रद्रोह के मुकदमे झेलने पड़ते हैं. हालांकि अगर आरोपी किसी समूह का नेता नहीं है या उसने कोई गंभीर अपराध नहीं किया है तो इन मामलों में अधिकतम पांच साल की सजा होती है.

मानवाधिकार कार्यकर्ता वांग जियांबिंगतस्वीर: FreeXueBing/AP/picture alliance

19 सितंबर 2021 को जब ह्वांग शुएकिन को गिरफ्तार किया गया था, उससे एक दिन पहले ही उन्हें ब्रिटेन जाना था, जहां वह ससेक्स यूनिवर्सिटी में ब्रिटिश सरकार की एक स्कॉलरशिप पर मास्टर्स डिग्री की पढ़ाई करने वाली थीं.

ह्वांग शुएकिन ने चीन में मीटू (MeToo) आंदोलन पर कई खबरें और लेख लिखे थे. उन्होंने 2019 में हांगकांग में हुए सरकार विरोधी आंदोलनों की भी रिपोर्टिंग की थी. 

उनके समर्थकों के मुताबिक हिरासत में लिए जाने के बाद दोनों कार्यकर्ताओं को महीने तक काल-कोठरियों में अकेले बंद रखा गया. ग्वांगजू पुलिस ने इस मामले पर कोई टिप्पणी नहीं की.

क्या था #MeToo अभियान?

#MeToo आंदोलन महिलाओं द्वारा यौन उत्पीड़न और यौन हिंसा के खिलाफ आवाज उठाने का एक वैश्विक अभियान था. यह 2006 में अमेरिकी एक्टिविस्ट तराना बर्क द्वारा शुरू किया गया था, लेकिन 2017 में सोशल मीडिया पर व्यापक रूप से फैल गया जब कई महिलाओं ने अपने अनुभव साझा किए. "मीटू" हैशटैग का उपयोग करते हुए, महिलाओं ने अपने साथ हुए यौन शोषण की घटनाएं सार्वजनिक रूप से बताईं. इस आंदोलन ने कई प्रमुख व्यक्तियों और संस्थाओं के खिलाफ कानूनी कार्रवाई और सामाजिक बहिष्कार को जन्म दिया. यह आंदोलन महिलाओं के अधिकारों और लैंगिक समानता की दिशा में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ.

चीन में #MeToo आंदोलन ने 2018 में बड़ा रूप लिया, जब महिलाओं ने यौन उत्पीड़न के खिलाफ बोलना शुरू किया. चीन में यह आंदोलन कई प्रमुख हस्तियों और शिक्षाविदों को उजागर करने में सफल रहा. पेकिंग विश्वविद्यालय की छात्रा लो शियाओशू ने अपने प्रोफेसर द्वारा किए गए यौन शोषण के खिलाफ आवाज उठाई, जिससे देशभर में महिलाओं को साहस मिला. एक अन्य मामले में, टीवी होस्ट झू जुन और गायक-एक्टर क्रिस वू पर गंभीर आरोप लगे और उनकी आलोचना हुई.

रिपोर्टः विवेक कुमार (रॉयटर्स)

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