चीन ने भारत के विवादित प्रांत अरुणाचल प्रदेश में छह जगहों के नाम की मानकीकृत स्पेलिंग जारी की हैं. चीन के विदेश मंत्रालय ने इसे संप्रभुता पर दावा बताया है.
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चीन के साथ पिछले दिनों भारत के कई मुद्दे पर मतभेद रहे हैं, जिनमें एनएसजी की सदस्यता, पाकिस्तान के इस्लामी कट्टरपंथियों को संयुक्त राष्ट्र द्वारा आतंकी घोषित कराये जाने की कोशिश और गिलगित बल्तिस्तान से होकर पाकिस्तान के साथ आर्थिक कॉरिडोर बनाना शामिल हैं. लेकिन चीन खास तौर पर तिब्बत के धार्मिक नेता दलाई लामा के अरुणाचल दौरे के बाद खासा नाराज है. चीन दलाई लामा को खतरनाक अलगाववादी समझता है और उनकी हर मुलाकात या दौरे का विरोध करता है.
अरुणाचल प्रदेश भारत के पूर्वोत्तर में बसा प्रांत है जिसे चीन पिछले कुछ सालों से दक्षिणी तिब्बत बताकर उस पर दावा कर रहा है. पिछले हफ्ते चीन के नागरिक मामलों के मंत्रालय ने अरुणाचल की छह जगहों के नाम चीनी, तिब्बती और अंग्रेजी में जारी किये. इन्हें चीन इन जगहों का औपचारिक नाम समझता है.
दलाई लामा का अरुणाचल दौरा
तिब्बती नेता दलाई लामा 8 साल बाद पूर्वोत्तर भारत के राज्य अरुणाचल प्रदेश के तवांग पहुंचे. चीन की आलोचना और खराब मौसम का सामना करते हुए वे पहाड़ी सड़कों पर 550 किमी की दूरी तय करते हुए बोमडिला और दिरांग से होकर तवांग गये.
तस्वीर: Prabhakar Mani
अरुणाचल प्रदेश के पश्चिम कामेंग जिले के बोमडिला में दलाई लामा के दर्शन के लिए दूर दराज के गांवों से आए लोग. यही वह जगह है जहां से वर्ष 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद चीनी सेनाएं पीछे हटी थीं.
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अभिषेक के मौके पर तिब्बती धर्मगुरु ने अरुणाचल से अपने खास रिश्तों का जिक्र करते हुए कहा कि इस राज्य का उनके दिल में खास स्थान है. वर्ष 1959 में तिब्बत की राजधानी ल्हासा से पलायन के बाद वे तवांग के रास्ते अरुणाचल होकर ही भारत पहुंचे थे.
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अरुणाचल के बोमडिला में बौद्ध मठ के बाहर सुरक्षा व्यवस्था में तैनात अर्धसैनिक बल का जवान. इस दौरे के मौके पर भारी सुरक्षा व्यवस्था की गयी.
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अभिषेक के कार्यक्रम में बोलते हुए दलाई लामा ने मांसाहार का तो समर्थन किया, लेकिन इसके लिए पशुओं की हत्या को अनुचित करार दिया. उन्होंने भारत में बढ़ते आतंकवाद और असहिष्णुता पर भी चिंता जतायी.
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दो दिनों तक दिरांग में रहने के दौरान दलाई लामा ने कई जगह स्थानीय लोगों को संबोधित किया. उन्होंने इस दौरान तिब्बत को स्वायत्तता देने की भी मांग उठायी.
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तीन बार एवरेस्ट की चोटी फतह कर चुकी अंशु जमशेनपा ने भी दलाई लामा से मुलाकात की. अंशु तिब्बती हैं. तस्वीर में अंशु दलाई लामा को राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से मुलाकात की अपनी तस्वीर दिखा रही हैं. बाद में उन्होंने लामा को यह तस्वीर भेंट की.
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बेहद खराब मौसम और सर्दी के बावजूद दलाई लामा को देखने सुनने के लिए दूर दराज के दुर्गम पहाड़ी इलाकों से बौद्ध धर्म के अनुयायी दिरांग पहुंचे थे. उन्होंने खुले मैदान में रह कर ही धैर्य से अपने धर्मगुरु की बातें सुनीं.
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तिब्बती धर्मगुरु ने दिरांग में थुपसिंग धाराग्ये बौद्ध मठ का अभिषेक किया. अभिषेक के कार्यक्रम की तस्वीर. दिरांग से लगभग डेढ़ सौ किमी का सड़क मार्ग से सफर करने के बाद दलाई लामा तवांग स्थित भारत के सबसे बड़े और दुनिया के दूसरे नंबर के बौद्ध मठ में पहुंचे.
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दलाई लामा लंबे अरसे बाद 79 साल के राइफल मैन नरेन चंद्र दास से गुवाहाटी में ब्रह्मपुत्र महोत्सव के दौरान मिले. 1959 में तिब्बत से सीमा पार कर अरुणाचल प्रदेश पहुंचे दलाई लामा को दास ने ही सुरक्षा टीम की अगुवाई करते हुए तवांग पहुंचाया था.
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दलाई लामा इतने लंबे अरसे बाद दास से मिल कर भावुक और अभिभूत हो गए. उन्होंने दास को गले से लगा लिया और उनके साथ तस्वीरें खिंचवायीं. इससे पहले दलाई लामा भारत में अपने आगमन के 50 साल पूरे होने के मौके पर वर्ष 2009 में आये थे.
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चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लू कांग ने कहा कि यह कदम उचित है और लंबे समय से तिब्बतियों द्वारा इस्तेमान किये जाने वाले नामों को प्रतिबिंबित करता है. लू ने अपनी नियमित ब्रीफिंग में कहा, "ये नाम ये भी दिखाते हैं और एक पहलू से व्याख्या करते हैं कि दक्षिणी तिब्बत पर चीन के क्षेत्रीय दावे का ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और प्रशासनिक आधार है."
भारतीय अधिकारियों ने दलाई लामा की दूसरी अरुणाचल यात्रा पर चीन की आलोचना को ठुकरा दिया था और कहा था कि वे आध्यात्मिक नेता हैं जिनके उस इलाके में अनुयायी हैं. दलाई लामा चीनी शासन के खिलाफ विफल विद्रोह के बाद 1959 में तिब्बत से भागकर भारत चले आये थे और तब से धर्मशाला में रह रहे हैं. उनका कहना है कि वे चीन से तिब्बत के लिए आजादी नहीं, बल्कि असली स्वायत्तता चाहते हैं.
एमजे/एके (रॉयटर्स)
चीन के उइगुर मुसलमान
चीन में रहने वाले उइगुर मुसलमान न तो दाढ़ी रख सकते हैं और न ही धार्मिक कपड़े पहन सकते हैं. चीन सरकार के नए नियमों के मुताबिक उन पर कई बंदिशें लगाई गई हैं. चलिए जानते हैं कौन हैं उइगुर लोग.
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नए नियम, नयी बंदिशें
उइगुर चीन में रहने वाला एक जातीय अल्पसंख्यक समुदाय है. ये लोग सांस्कृतिक रूप से खुद को चीन के मुकाबले मध्य एशियाई देशों के ज्यादा करीब पाते हैं. मुख्यतः चीन के शिनचियांग प्रांत में रहने वाले उइगुर लोग न तो सार्वजनिक रूप से नमाज पढ़ सकते हैं और न ही धार्मिक कपड़े पहन सकते हैं.
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धार्मिक कट्टरपंथ
नए सरकारी नियमों के मुताबिक मस्जिद में जाने के लिए व्यक्ति को कम से 18 साल का होना चाहिए. इसके अलावा अगर कोई सार्वजनिक जगह पर धार्मिक उपदेश देता दिखा तो पुलिस उसके खिलाफ कार्रवाई करेगी. इसके अलावा धार्मिक रीति रिवाज से शादी और अंतिम संस्कार को भी धार्मिक कट्टरपंथ से जोड़कर देखा जा रहा है.
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शक और संदेह
उइगुर लोग शिनचियांग में सदियों से रह रहे हैं. 20वीं सदी की शुरुआत में उन्होंने अपने इलाके को पूर्वी तुर्केस्तान नाम देते हुए आजादी की घोषणा की थी. लेकिन 1949 में माओ त्सेतुंग ने ताकत के साथ वहां चीनी शासन लागू कर दिया. उसके बाद से चीन और उइगुर लोगों के संबंध संदेह और अविश्वास का शिकार हैं.
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बदल गया समीकरण
शिनचियांग पर अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए चीन की सरकार ने देश के अन्य हिस्सों से हान चीनियों को वहां ले जाकर बसाया है. 1949 में शिनचियांग में हान आबादी सिर्फ छह प्रतिशत थी जो 2010 में बढ़कर 40 प्रतिशत हो गई. शिनचियांग के उत्तरी हिस्से में उइगुर लोग अल्पसंख्यक हो गए हैं.
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'अच्छे' मुसलमान
चीन में उइगुर अकेला मुस्लिम समुदाय नहीं है. हुई मुस्लिम समुदाय को भाषा और सांस्कृतिक लिहाज से हान चीनियों के ज्यादा नजदीक माना जाता है. उन्हें अधिकार भी ज्यादा मिले हुए हैं. अपनी मस्जिदें और मदरसे बनाने के लिए उन्हें चीन की सरकार से मदद भी मिलती है.
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आतंकवाद और अलगाववाद
शिनचियांग की आजादी के लिए लड़ने वाले गुटों में सबसे अहम नाम ईस्ट तुर्केस्तान इस्लामिक मूवमेंट का है. इसके अलावा तुर्केस्तान इस्लामिक पार्टी भी है जिस पर अल कायदा से संबंध रखने के आरोप लगते हैं. इस गुट को शिनचियांग में हुए कई धमाकों के लिए भी जिम्मेदार माना जाता है.
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समृद्धि का दायरा
शिनचियांग क्षेत्रफल के हिसाब से चीन का सबसे बड़ा प्रांत हैं और यह इलाका प्राकृतिक संसाधनों से मालामाल है. कभी सिल्क रूट का हिस्सा रहे इस इलाके में चीन बड़ा निवेश कर रहा है. लेकिन उइगुर लोग चीन की चमक दमक और समृद्धि के दायरे से बाहर दिखाई देते हैं.
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असमानता
हाल के बरसों में शिनचियांग में उइगुर और हान चीनियों के बीच असमानता बढ़ी है. वहां हो रहे तेज विकास के कारण चीन भर से शिक्षित और योग्य हान चीनी पहुंच रहे हैं. उन्हें अच्छी नौकरियां और अच्छे वेतन मिल रहे हैं. वहीं उइगुर लोगों के लिए उतने मौके उलब्ध नहीं हैं.
(रिपोर्ट: रिज्की नुग्रहा/एके)