भारत ने अमेरिका के साथ होने वाले सैन्याभ्यास पर चीन की आपत्ति को खारिज कर दिया है. यह प्रतिक्रिया ऐसे समय में आई जब चीन ने गुरुवार को कहा कि वह भारत के साथ सीमा मुद्दे पर किसी तीसरे पक्ष के हस्तक्षेप का विरोध करता है.
तवांग में तैनात भारतीय सेनातस्वीर: MONEY SHARMA/AFP/Getty Images
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अमेरिका के साथ भारत के होने वाले सैन्याभ्यास को लेकर चीन ने आपत्ति दर्ज कराई है. चीन के रक्षा मंत्रालय ने कहा कि वह सीमा मुद्दे में किसी भी तीसरे पक्ष के "दखल देने" का कड़ा विरोध करता है और उम्मीद करता है कि भारत वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के पास सैन्याभ्यास नहीं करने के द्विपक्षीय समझौतों का पालन करेगा. चीन पर खुद ही पूर्वी लद्दाख में सीमा उल्लंघन का आरोप लगता रहा है.
चीन की आपत्ति
चीन के मिलिट्री ऑफ नेशनल डिफेंस (एमएनडी) के प्रवक्ता कर्नल तान केफेई ने आने वाले दिनों अमेरिका और भारत के बीच सैन्याभ्यास आयोजित करने पर प्रतिक्रिया दी थी. सैन्याभ्यास का 18वां संस्करण 14 से 31 अक्टूबर के बीच उत्तराखंड के औली में होना है. भारत और अमेरिका के "युद्धाभ्यास" नामक सैन्याभ्यास को लेकर ही चीन ने आपत्ति दर्ज कराई थी.
कर्नल केफेई ने कहा, "भारत और चीन के बीच सीमा विवाद पर हम किसी भी तीसरे पक्ष की दखलंदाजी का विरोध करते हैं."
कितना ताकतवर है चीन
चीन को अमेरिका ने अपने लिए सबसे बड़ी चुनौती बताया था. यह चुनौती कितनी बड़ी है, इसका अंदाजा चीन की सैन्य और रक्षा क्षमताओँ पर एक नजर डालने से हो जाता है. देखिए, कितना ताकतवर है चीन.
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सबसे बड़ी नौसेना
नौसेना के आकार के मामले में चीन अमेरिका को पहले ही पीछे छोड़ चुका है. उसके पास 348 युद्धक जहाज हैं जबकि अमेरिका के पास 296 जहाज हैं. इसी साल जून में उसने फूजियान टाइप 3 विमान वाहक जहाज उतारा था जो उसका तीसरा विमानवाहक है. यह जहाज उसके इंजीनियरों ने खुद बनाया है.
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विशाल बजट
चीन का रक्षा बजट अमेरिका के बाद दुनिया में दूसरे नंबर पर है. 2021 में उसने 270 अरब डॉलर रक्षा मद में खर्च किए, जबकि अमेरिका ने 768 अरब डॉलर. भारत तीसरे नंबर पर है और उसने 74 अरब डॉलर खर्च किए थे.
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परमाणु जखीरा
बीते साल नवंबर में अमेरिका के रक्षा मंत्रालय ने एक अनुमान जारी किया था जिसके मुताबिक 2030 तक चीन के पास अब से चार गुना ज्यादा यानी लगभग 1,000 परमाणु हथियार होंगे. यह अमेरिका के 5,550 हथियारों के मुकाबले काफी कम है लेकिन बढ़ने की रफ्तार बहुत तेज है.
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भविष्य के हथियार
कई रिपोर्ट कहती हैं कि चीन हाइपरसोनिक और क्रूज मिसाइलों जैसे हथियार विकसित कर रहा है जो दुनिया में कहीं भी, किसी भी सूरत में मार कर सकती हैं. हालांकि चीन हाइपरसोनिक मिसाइल बनाने से इनकार करता है लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि पिछले साल उसने दो रॉकेट परीक्षण के लिए दागे थे, जो असल में मिसाइल थे.
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आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और साइबर अटैक
यह ऐसा क्षेत्र है जिसमें चीन बेहद तेजी से निवेश और विकास कर रहा है. उसकी सेना को भविष्य के युद्ध लड़ने के मकसद से तैयार किया जा रहा है. अमेरिकी रक्षा मंत्रालय के मुताबिक चीन के पास रोबोटिक सैनिकों जैसी अत्याधुनिक तकनीकें हो सकती हैं.
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उन्होंने ने कहा कि चीन ने हमेशा इस बात पर जोर दिया है कि संबंधित देशों के सैन्य सहयोग, विशेष रूप से अभ्यास और प्रशिक्षण गतिविधियों पर किसी तीसरे पक्ष को लक्षित नहीं किया जाना चाहिए, बल्कि क्षेत्रीय शांति और स्थिरता बनाए रखने में मदद करना चाहिए.
कर्नल केफेई का कहना है कि चीन-भारत सीमा मुद्दा दोनों देशों के बीच का मामला है. उन्होंने कहा, "दोनों पक्षों ने सभी स्तरों पर प्रभावी संचार बनाए रखा है और द्विपक्षीय वार्ता के माध्यम से स्थिति को ठीक से संभालने पर सहमत हुए हैं."
भारत ने क्या कहा
भारत ने चीन की आपत्ति को सिरे से खारिज करते हुए कहा है कि यह समझ में नहीं आ रहा है कि तीसरे पक्ष से क्या "मतलब" है. भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा कि भारत-अमेरिका सैन्याभ्यास एलएसी की स्थिति से "पूरी तरह से अलग" हैं.
उन्होंने इस बात से इनकार किया कि वे चीन को "लक्षित" कर रहे हैं या पिछले समझौतों का उल्लंघन कर रहे हैं. पीएलए के बयान के बारे में बागची ने कहा कि भारत ने हमेशा माना है कि दोनों पक्षों को पिछले समझौतों पर टिके रहना चाहिए. उन्होंने कहा, "जाहिर है, ऐसा नहीं हुआ है."
उन्होंने एलएसी में चीनी गतिविधियां, 1993 और 1996 के प्रोटोकॉल के बावजूद पीएलए के यथास्थिति को बदलने के प्रयासों के बारे में भारत के विरोध का जिक्र भी किया.
ताइवान को मान्यता देने वाले चंद देश
कुछ देशों ने 1947 में भारत के आजाद होने से पहले ही ताइवान को राष्ट्र का दर्जा दे दिया. चीन की आपत्ति के बावजूद कई छोटे देश आज भी ताइवान को एक संप्रभु राष्ट्र का दर्जा देते हैं.
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ग्वाटेमाला
1933 से अब तक ताइवान को मान्यता.
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