चीन और पाकिस्तान अपनी 57 अरब डॉलर की आर्थिक कॉरिडोर परियोजना में अफगानिस्तान को भी शामिल करना चाहते हैं. भारत का अहम सहयोगी अफगानिस्तान क्या इस प्रोजेक्ट में शामिल होगा?
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चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने कहा है कि अफगानिस्तान को चीन-पाकिस्तान आर्थिक कोरिडोर परियोजना में शामिल करने की कोशिश होगी. 1947 में पाकिस्तान बनने के बाद से ही उसके रिश्ते पड़ोसी अफगानिस्तान के साथ सहज नहीं रहे हैं. चीन दोनों देशों के बीच मध्यस्थ बनने की कोशिश करता रहा है ताकि बातचीत और संवाद को बढ़ावा दिया जा सके.
हाल के समय में पाकिस्तान और अफगानिस्तान के रिश्तों में खासी कड़वाहट आई है. अफगानिस्तान का आरोप है कि पाकिस्तान तालिबान चरमपंथियों का समर्थन कर रहा है ताकि वह अफगानिस्तान में अपने प्रतिद्वंद्वी भारत के बढ़ते असर को कम कर सके. उधर पाकिस्तान चरमपंथियों का समर्थन करने के आरोप से पूरी तरह इनकार करता है. उसका कहना है कि वह अफगानिस्तान में शांति और स्थिरता देखना चाहता है.
क्या है चीन का "वन बेल्ट, वन रोड" प्रोजेक्ट
900 अरब डॉलर की लागत से चीन कई नए अंतरराष्ट्रीय रूट बनाना चाहता है. वन बेल्ट, वन रोड नाम के अभियान के तहत बीजिंग ये सब करेगा.
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चीन-मंगोलिया-रूस
जून 2016 में इस प्रोजेक्ट पर चीन, मंगोलिया और रूस ने हस्ताक्षर किये. जिनइंग से शुरू होने वाला यह हाइवे मध्य पूर्वी मंगोलिया को पार करता हुआ मध्य रूस पहुंचेगा.
न्यू यूरेशियन लैंड ब्रिज
इस योजना के तहत चीन यूरोप से रेल के जरिये जुड़ चुका है. लेकिन सड़क मार्ग की संभावनाएं भी बेहतर की जाएंगी. 10,000 किलोमीटर से लंबा रास्ता कजाखस्तान और रूस से होता हुआ यूरोप तक पहुंचेगा.
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चाइना-पाकिस्तान कॉरिडोर
56 अरब डॉलर वाला यह प्रोजेक्ट चीन के पश्चिमी शिनजियांग प्रांत को कश्मीर और पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट से जोड़ेगा.
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चाइना-सेंट्रल एंड वेस्ट एशिया कॉरिडोर
सदियों पुराने असली सिल्क रूट वाले इस रास्ते को अब रेल और सड़क मार्ग में तब्दील करने की योजना है. कॉरिडोर कजाखस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान, ईरान, सऊदी अरब और तुर्की को जो़ड़ेगा.
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दक्षिण पूर्वी एशियाई कॉरिडोर
इस कॉरिडोर के तहत चीन की परियोजना म्यांमार, वियतनाम, लाओस, थाइलैंड से गुजरती हुई इंडोनेशिया तक पहुंचेगी.
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चाइना-बांग्लादेश-इंडिया-म्यांमार कॉरिडोर
इस परियोजना के तहत इन चार देशों को सड़क के जरिये जोड़ा जाना था. लेकिन भारत की आपत्तियों को चलते यह ठंडे बस्ते में जा चुकी है. अब चीन बांग्लादेश और म्यांमार को जोड़ेगा.
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चाइना-नेपाल-इंडिया कॉरिडोर
म्यांमार के अलावा चीन नेपाल के रास्ते भी भारत से संपर्क जोड़ना चाहता है. इसी को ध्यान में रखते हुए चीन ने नेपाल को भी वन बेल्ट वन रोड प्रोजेक्ट में शामिल किया है.
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प्रोजेक्ट का मकसद
वन बेल्ट, वन रूट जैसी योजनाओं की बदौलत चीन करीब 60 देशों तक सीधी पहुंच बनाना चाहता है. परियोजना के तहत पुल, सुरंग और आधारभूत ढांचे पर तेजी से काम किया जा रहा है. निर्यात पर निर्भर चीन को नए बाजार चाहिए. बीजिंग को लगता है कि ये सड़कें उसकी अर्थव्यवस्था के लिए जीवनधारा बनेंगी.
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अमेरिका नहीं, चीन
डॉनल्ड ट्रंप की संरक्षणवादी नीतियों के चलते दुनिया भर के देशों को अमेरिका से मोहभंग हो रहा है. चीन इस स्थिति का फायदा उठाना चाहता है. बीजिंग खुद को अंतरराष्ट्रीय व्यापार की धुरी बनाने का सपना देख रहा है. इसी वजह से इन परियोजनाओं पर तेजी से काम हो रहा है.
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बीजिंग में चीन, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के विदेश मंत्रियों की बैठक के बाद चीनी विदेश मंत्री वांग ने कहा कि आर्थिक कॉरिडोर परियोजना से पूरे क्षेत्र का फायदा हो सकता है और इससे विकास का ढांचा तैयार होगा.
चीनी विदेश मंत्री ने कहा है कि अफगानिस्तान में विकास करने की तत्काल जरूरत है और उम्मीद है कि वह इस परियोजना में शामिल हो सकता है. उन्होंने कहा कि चीन और पाकिस्तान की इच्छा है कि अफगानिस्तान इस परियोजना में शामिल हो क्योंकि यह सबके लिए लाभ की स्थिति है. वांग के मुताबिक अफगानिस्तान को शामिल करने के लिए तीनों देशों के बीच आम सहमति कायम की जा सकती है.
इस मौके पर पाकिस्तानी विदेश मंत्री ने ख्वाजा आसिफ ने कहा कि पाकिस्तान और चीन तो "आयरन ब्रदर्स" हैं. हालांकि उन्होंने अफगानिस्तान के कॉरिडोर परियोजना में शामिल होने का कोई जिक्र नहीं किया.
चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर परियोजना में पाकिस्तान के बंदरगाह शहर ग्वादर को सड़क मार्ग के जरिए चीन के कशगर से जोड़ा जाएगा. पाकिस्तान को उम्मीद है कि इससे उसके यहां विकास का बड़ा बुनियादी ढांचा तैयार होगा. पाकिस्तानी नेता इस प्रोजेक्ट को अपने लिए "गेमचेंजर" मानते हैं. हालांकि कई आलोचक कहते हैं कि पाकिस्तान चीन का गुलाम बनता जा रहा है.
चीनी कम्युनिस्ट पार्टी को आप कितना जानते हैं?
चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की पांच साल में होने वाली कांग्रेस बीजिंग में हो रही है. 19वीं कांग्रेस के जरिए राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने चीन की सत्ता पर अपनी पकड़ को और मजबूत किया है. एक नजर पार्टी की अहम कांग्रेसों पर.
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चीन की ताकत
आम तौर पर गोपनीयता के लबादे में लिपटी पार्टी कांग्रेस एक अहम आयोजन होता है. चीन पर 68 साल से राज कर रही कम्युनिस्ट पार्टी ने कई उतार चढ़ाव देखे हैं, लेकिन इसकी ताकत में लगातार इजाफा होता रहा है. पार्टी कांग्रेस में क्या क्या होता है, इसकी पक्की जानकारी आज भी मिल पाना मुश्किल है.
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पहली कांग्रेस
कांग्रेस 1921 में बेहद गोपनीय तरीके से शंघाई के आसपास हुई थी. इसी कांग्रेस में औपचारिक तौर पर चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के लक्ष्य और चार्टर को तैयार किया गया था. इस कांग्रेस में कम्युनिस्ट नेता माओ त्सेतुंग भी मौजूद थे, हालांकि उस वक्त वह बहुत युवा थे.
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जब माओ बने नेता
पार्टी की सांतवी कांग्रेस 1945 में उस समय बुलायी गयी जब चीन-जापान युद्ध खत्म होने ही वाला था. शांक्शी प्रांत में कम्युनिस्ट पार्टी के गढ़ यानान में यह बैठक हुई जिसमें माओ सुप्रीम लीडर के तौर पर उभरे. इसी कांग्रेस में माओ के "विचारों" को पार्टी की विचारधारा का आधार बनाया गया.
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सांस्कृतिक क्रांति का दौर
पार्टी की नौवीं कांग्रेस 1969 में हुई. यह वह दौर था जब चीन में सांस्कृतिक क्रांति अपने चरम पर थी. सत्ता पर अपनी पकड़ को मजबूत करने के लिए माओ ने इस क्रांति का इस्तेमाल किया जिससे देश में दस साल तक भारी अव्यवस्था रही और लगभग गृह युद्ध जैसे हालात हो गये थे.
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चीनी चरित्र वाला समाजवाद
1982 में 12वीं कांग्रेस में चीनी नेता तंग शियाओफिंग ने "चीनी चरित्र वाले समाजवाद" का प्रस्ताव रखा, जिससे चीन में आर्थिक सुधारों का रास्ता तैयार हुआ और देश विशुद्ध कम्युनिस्ट विचारधारा से पूंजीवाद की तरफ बढ़ा. यही वजह है कि आज चीन की चकाचौंध सबको हैरान करती है.
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पूंजीपतियों को जगह
2002 में पार्टी की 16वीं कांग्रेस हुई जिसमें औपचारिक रूप से निजी उद्यमियों को पार्टी का सदस्य बनने की अनुमति दी गयी. यह अहम घटनाक्रम था क्योंकि आर्थिक सुधारों की बातें चीन में 1970 के दशक के आखिरी सालों में ही शुरू हो गयी थीं लेकिन पूंजीपतियों को लेकर फिर भी पार्टी में लोगों की त्यौरियां चढ़ी रहती थीं.
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अचानक उदय
2007 में हुई 17वीं पार्टी कांग्रेस शी जिनपिंग और ली कचियांग को सीधे नौ सदस्यों वाली पोलित ब्यूरो की एलिट स्थायी समिति का सदस्य बनाया गया जबकि उस समय वह पार्टी के 25 सदस्यों वाले पोलित ब्यूरो के सदस्य नहीं थे. इस तरह ये दोनों नेताओं की पांचवी पीढ़ी के सितारे बन गये.
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नाम में क्या रखा है
शी से पहले चीन के दो राष्ट्रपतियों हू जिनताओ और जियांग जेमिन ने 2002 और 2007 की पार्टी कांग्रेस के दौरान अपने विचारों को चीन के संविधान का हिस्सा बनाया, लेकिन सीधे सीधे अपने नाम का उल्लेख नहीं कराया. वहीं इससे पहले माओ और तंग के नाम भी आपको संविधान में दिखेंगे.
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आसिफ ने कहा, "सीपीईसी (चीन-पाकिस्तान आर्थिक कोरिडोर) को सफलतापूर्वक लागू करने से इसी तरह के प्रोजेक्ट्स के जरिए अफगानिस्तान, ईरान और मध्य और पश्चिमी एशियाई देशों के बीच कनेक्टिविटी और सहयोग को मजबूत करने का एक मॉडल हमारे सामने होगा."
भारत सीपीईसी परियोजना का विरोध करता है क्योंकि यह पाकिस्तानी नियंत्रण वाले कश्मीर से होकर गुजरता है जिस पर दोनों देशों के बीच विवाद है. भारत इस हिस्से पर दावा करता है. हालांकि चीनी विदेश मंत्री ने कहा कि इस परियोजना का क्षेत्र संबंधी विवादों से कोई लेना देना नहीं है.
दुनिया को जोड़ने निकला है चीन
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चीन पाकिस्तान और अफगानिस्तान को एक दूसरे करीब लाने के लिए सक्रिय रहा है. उसे डर है कि अफगानिस्तान और पाकिस्तान से फैलने वाले इस्लामी आतंकवाद से उसके शिनचियांग इलाके में अशांति बढ़ सकती है जहां पहले से ही तनाव है.
चीन चाहता है कि पाकिस्तान और अफगानिस्तान अपने रिश्तों को बेहतर बनाएं ताकि अपने यहां हिंसा से बेहतर तरीके से निपट पाएं. चीनी विदेश मंत्री ने अफगान सरकार और तालिबान के बीच बातचीत का भी समर्थन किया. उन्होंने कहा कि चीन इस बारे में जरूरी सहयोग देता रहेगा.
चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर परियोजना चीन के महत्वाकांक्षी वन बेल्ट वन रोड प्रोजेक्ट का हिस्सा है. इस प्रोजेक्ट के जरिए चीन एशिया, यूरोप और मध्यपूर्व की अर्थव्यवस्थाओं को रेल, सड़क और समुद्री मार्गों के जरिए जोड़ना चाहता है.