60 साल में पहली बार गिरी चीन की आबादी, क्या भारत के लिए मौका
१७ जनवरी २०२३
पूरी दुनिया में इस वक्त सबसे ज्यादा युवा भारत में हैं. चीन की गिरती आबादी भारत के लिए एक मौका बन सकती है, लेकिन उसके लिए महिलाओं की भागीदारी बढ़ानी होगी.
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बीते 6 दशकों में पहली बार चीन की आबादी में गिरावट आई है. चीन के राष्ट्रीय सांख्यिकी ब्यूरो के मुताबिक, 31 दिसंबर 2022 तक चीन की आबादी करीब 141.1 करोड़ रही. यह जनसंख्या, 2021 के मुकाबले करीब साढ़े 8 लाख कम है. ब्यूरो ने बताया कि 2022 में 95 लाख बच्चों का जन्म हुआ, वहीं 1.04 करोड़ मौतें दर्ज की गईं. इसी साल जन्म दर 6.77 (नवजात प्रति 1000 आबादी) दर्ज की गई. 2 साल पहले तक जन्म दर दहाई के आंकड़े के पार (2021 में 7.52) ही रहती थी. 1961 के बाद यह पहली बार है कि चीन की जनसंख्या सिकुड़ी हो. चीन ने 1979 में 'वन चाइल्ड पॉलिसी' यानी एक ही बच्चा पैदा करने की नीति लागू की थी लेकिन 2016 में इसे खत्म कर दिया था.
दुनिया की दूसरे सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था चीन में काम करने वालों की संख्या कम हो रही है. आज हर पांचवां चीनी नागरिक 60 साल की उम्र के पार है. चीन दुनिया का सबसे बड़ा निर्यातक भी है. आबादी सिकुड़ने से चीन की औद्योगिक क्षमता पर असर पड़ेगा. साथ ही, बूढ़ी होती आबादी के लिए स्वास्थ्य और सामाजिक सुरक्षा पर होने वाला खर्च बढ़ता जाएगा.
जानकार मानते हैं कि करीब चार दशक तक चली 'वन चाइल्ड पॉलिसी' से चीनी समाज में कई तरह के बदलाव आए हैं. चीन की ज्यादातर आबादी को अब छोटे परिवारों में रहने की आदत है. हालांकि, चीन की सरकार अब दो या तीन बच्चे पैदा करने के लिए सुविधाएं भी दे रही है, लेकिन अभी तक ऐसे कदमों का लाभ दिखना शुरू नहीं हुआ है. बड़े शहरों में रहने व स्वास्थ्य और शिक्षा पर होने वाले खर्च भी युवा अभिभावकों को ज्यादा बच्चे पैदा करने से हतोत्साहित कर रहा है.
अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ विस्कॉन्सन-मैडिसन के जनसांख्यिकी विशेषज्ञ यी फूजियान कहते हैं कि "चीन की आबादी संयुक्त राष्ट्र के अनुमानों से करीब 9-10 साल पहले ही गिरना शुरू हो गई है. इसका चीन पर असर बहुत ज्यादा होगा क्योंकि चीन की अब तक की आर्थिक, सामाजिक, रक्षा और विदेश नीतियां गड़बड़ अनुमानों पर आधारित हैं. चीन का संकट जापान से भी बड़ा होगा जहां सालों तक विकास दर कम होने को आबादी में कमी की वजह बताया जाता रहा."
फूजियान अपने शोध के आधार पर दावा करते हैं कि चीन की आबादी 2018 से ही कम हो रही है. चीन में आबादी गिरने के कारण दुनिया के दो बड़े बाजारों, अमेरिका और यूरोप में चीजों के दाम और औसत महंगाई बढ़ सकती है. हालांकि, चीन के राष्ट्रीय सांख्यिकी ब्यूरो ने इस आशंकाओं को नकार दिया है. ब्यूरो के निदेशक कांग यी कहते हैं कि घटती आबादी की चिंता करने की जरूरत नहीं है क्योंकि "कामगारों की कुल उपलब्धता अब भी मांग से ज्यादा है."
क्या चीन वैश्विक अर्थव्यवस्था की अगुवाई के लिए वाकई तैयार है?
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सबसे ज्यादा आबादी वाला देश भारत
संयुक्त राष्ट्र ने बीते साल अनुमान जताया था कि भारत 2023 में सबसे ज्यादा आबादी वाला देश बन जाएगा. भारत में हर 10 साल बाद आधिकारिक जनगणना होती है. आखिरी जनगणना 2011 में हुई थी. कोविड के कारण 2021 में होनी वाली जनगणना टाल दी गई थी. दो साल बाद 2023 में भी केंद्र की मोदी सरकार जनगणना पर कुछ स्पष्ट नहीं कर रही है. इसके बावजूद अनुमान है कि भारत की आबादी 140 करोड़ के आसपास है. आर्थिक लिहाज से देखें तो भारत में विकास दर के करीब 7 से 8 प्रतिशत रहने के उम्मीद है. वहीं चीन में 2022 के दौरान कुल विकास दर 3 प्रतिशत रही. भारत की ज्यादा आबादी युवा है, जिसका लाभ अर्थव्यवस्था को जरूर मिलेगा.
अबू धाबी की खलीफा यूनिवर्सिटी में समाजशास्त्र के प्रोफेसर स्टुअर्ट गीटल-बास्टेन कहते हैं कि "भारत की आबादी बहुत जवान है और बढ़ रही है. लेकिन इसका खुद में मतलब यह नहीं है कि भारत चीन को आसानी से अर्थव्यस्था में पीछे छोड़ जाएगा. भारत में महिलाओं की उद्योगों में प्रतिभागिता चीन के मुकाबले कहीं कम है." स्टुअर्ट कहते हैं कि असली बात यह नहीं है कि आबादी कितनी ज्यादा है, बल्कि आप उसके साथ क्या कर पाते हैं, यह जरूरी है.
आरएस/एमजे (एपी, एएफपी, रॉयटर्स)
शी जिनपिंग ने चीन की सत्ता को अपनी मुट्ठी में कैसे किया
20वीं पार्टी कांग्रेस में शी जिनपिंग को तीसरी बार देश का राष्ट्रपति चुने जाने के पक्के आसार हैं. इसके साथ ही वो माओ त्से तुंग के बाद चीन के सबसे ताकतवर नेता होंगे. साम्यवादी देश में जिनपिंग ने यह सब कैसे संभव किया.
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पार्टी के शीर्ष नेता और देश के राष्ट्रपति
शी जिनपिंग एक दशक पहले चीन के शीर्ष नेता बने जब कम्युनिस्ट पार्टी की 18वीं कांग्रेस में उन्हें पार्टी महासचिव और केंद्रीय सैन्य आयोग का चेयरमैन बनाया गया. कुछ ही महीनों बाद वो देश के राष्ट्रपति बने.
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सामूहिक नेतृत्व से सुप्रीम लीडरशिप की ओर
शी ने बीते सालों में अपने कुछ खास कदमों और गुजरते समय के साथ धीरे धीरे अपनी ताकत बढ़ाई है. चीन में सामूहिक नेतृत्व की परंपरा रही है जिसमें महासचिव पोलित ब्यूरो की स्थायी समिति में समान लोगों में प्रथम होता है लेकिन अब शी के उदय के साथ देश सुप्रीम लीडरशीप की ओर बढ़ रहा है.
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आर्थिक नीतियों पर पकड़
चीन में आर्थिक नीतियां बनाने की जिम्मेदारी प्रधानमंत्री पर रहती आई थी लेकिन अलग अलग समूहों के चेयरमैन के रूप में शी जिनपिंग ने यह जिम्मेदारी अपने हाथ में ले ली. इनमें 2012 में शी के सत्ता में आने के बाद बनी "सुधार और खुलापन" नीति और आर्थिक मामलों से जुड़ा एक पुराना समूह भी शामिल था.
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विश्वासघाती, भ्रष्ट और बेकार अफसरों पर कार्रवाई
सत्ता में आने के बाद शी ने भ्रष्ट, विश्वासघाती और बेकार अफसरों पर कार्रवाई के लिए एक अभियान चलाया और इनकी खाली हुई जगहों पर अपने सहयोगियों को बिठाया. इस कदम से उनकी ताकत का आधार कई गुना बढ़ गया. इस दौरान करीब 47 लाख लोगों के खिलाफ जांच की गई.
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भरोसेमंद लोगों की नियुक्ति
शी ने पार्टी के मानव संसाधन विभाग का प्रमुख अपने भरोसेमंद लोगों को बनाया. संगठन विभाग के उनके पहले प्रमुख थे झाओ लेजी, जिनके पिता ने शी के पिता के साथ काम किया था. उनके बाद 2017 में चेन शी ने यह पद संभाला जो शी के शिनघुआ यूनिवर्सिटी में सहपाठी थे.
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सेना पर नियंत्रण
2015 में शी जिनपिंग ने चीन की सेना में व्यापक सुधारों की शुरुआत की और इसके जरिये इस पर भरपूर नियंत्रण हासिल किया. इस दौरान इसमें काफी छंटनी भी हुई. सेना पर नियंत्रण ने शी जिनपिंग की मजबूती और बढ़ाई.
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घरेलू सुरक्षा तंत्र की सफाई
शी जिनपिंग ने घरेलू सुरक्षा तंत्र में व्यापक "सफाई" अभियान की शुरुआत की. इस भ्रष्टाचार विरोधी अभियान में बहुत सारे जजों और पुलिस प्रमुखों ने अपनी नौकरी गंवाई. सत्ता तंत्र पर नियंत्रण की दिशा में यह कदम भी बहुत कारगर साबित हुआ.
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संसद और सुप्रीम कोर्ट की सालाना रिपोर्ट
2015 में राष्ट्रपति जिनपिंग ने चीन की संसद, कैबिनेट और सुप्रीम कोर्ट समेत दूसरी संस्थाओं को अपने कामकाज की सालाना रिपोर्ट के बारे में उन्हें ब्यौरा देने का आदेश दिया.
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मीडिया पर लगाम
2016 में शी जिनपिंग ने सरकारी मीडिया को पार्टी लाइन पर चलने का हुक्म दिया इसके मुताबिक उनका "सरनेम पार्टी है." इसके बाद से मीडिया की आजादी तेजी से घटी और शी से संबंधित प्रचार तेजी से बढ़ा.
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पार्टी के सारतत्व
2016 में शी जिनपिंग ने खुद को औपचारिक रूप से पार्टी के "सारतत्व" के रूप में स्थापित किया. पार्टी में इसे सर्वोच्च नेता कहा जाता है.
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पार्टी के संविधान में संशोधन
शी जिनपिंग ने 2017 में पार्टी के संविधान में संशोधन कर चीनी स्वभाव में समाजवाद पर अपने विचार को जगह दी. इस लिहाज से वो पार्टी के शीर्ष पर मौजूद नेताओं माओ त्से तुंग और डेंग शियाओपिंग की कतार में आ गये.
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पार्टी ही सबकुछ
2017 में उन्होंने चीन में पार्टी की भूमिका सर्वोच्च कर दी. शी जिनपिंग ने एलान किया, "पार्टी, सरकार, सेना, लोग, शिक्षा, पूरब, दक्षिण, पश्चिम, उत्तर, मध्य, हर चीज में नेतृत्व पार्टी ही करेगी."
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राष्ट्रपति का कार्यकाल
2018 में चीन के संविधान में संशोधन कर उन्होंने राष्ट्रपति के लिए दो बार के निश्चित कार्यकाल की सीमा खत्म कर दी. इसके साथ ही जिनपिंग के लिए जीवन भर इस पद पर बने रहने का रास्ता साफ हो गया.
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पार्टी की वफादारी
2021 में एक ऐतिहासिक प्रस्ताव पारित कर पार्टी ने "टू एस्टबलिशेज" पर सहमति की मुहर लगा दी. इसके जरिये पार्टी ने शी जिनपिंग के प्रति वफादार रहने की शपथ ले ली. माओ त्से तुंग के बाद चीन में अब सिर्फ शी जिनपिंग हैं.