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चीन: अरुणाचल प्रदेश में भारत को विकास का अधिकार नहीं

११ जुलाई २०२४

भारत अरुणाचल प्रदेश में 12 जलविद्युत संयंत्रों के निर्माण में तेजी लाने के लिए एक अरब डॉलर खर्च करने की योजना बना रहा है. इसको लेकर चीन ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है.

अरुणाचल प्रदेश की नदी सियांग (फाइल तस्वीर)
अरुणाचल प्रदेश में परियोजनाओं पर एक अरब डॉलर खर्च करने की योजना बना रहा है भारत तस्वीर: Prabhakar Mani Tewari/DW

चीन के विदेश मंत्रालय ने बुधवार को समाचार एजेंसी रॉयटर्स की उस रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि भारत को अरुणाचल प्रदेश में विकास कार्य करने का कोई अधिकार नहीं है. चीन अरुणाचल प्रदेश को दक्षिणी तिब्बत कहता है. रॉयटर्स ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि भारत अरुणाचल प्रदेश में 12 जलविद्युत स्टेशनों के निर्माण में तेजी लाने के लिए एक अरब डॉलर खर्च करने की योजना बना रहा है.

चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने एक बयान में कहा, "दक्षिणी तिब्बत चीन का क्षेत्र है." बयान में कहा गया है कि भारत को वहां विकास कार्य करने का कोई अधिकार नहीं है और चीनी क्षेत्र पर अरुणाचल प्रदेश की स्थापना "अवैध और अमान्य" है.

चीन के दावे को भारत करता आया है खारिज

चीन हमेशा से अरुणाचल प्रदेश पर अपना दावा करता आया है और भारत चीन के इस दावे को खारिज करता रहा है. मंगलवार को रॉयटर्स ने दो सरकारी सूत्रों के हवाले से रिपोर्ट दी थी कि भारत अरुणाचल प्रदेश में विकास कार्यों के लिए एक अरब डॉलर खर्च की योजना बना रहा है. इस कदम से चीन के साथ तनाव बढ़ सकता है, जो इस क्षेत्र पर अपना दावा करता है.

सूत्रों ने बताया कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के नेतृत्व में वित्त मंत्रालय ने हाल ही में पूर्वोत्तर क्षेत्र में प्रत्येक जलविद्युत परियोजना के लिए 7.5 अरब रुपये तक की वित्तीय सहायता को मंजूरी दी है.

मामले की जानकारी रखने वाले सूत्रों ने बताया कि इस योजना के तहत अरुणाचल प्रदेश में 12 जलविद्युत परियोजनाओं के लिए लगभग 90 अरब रुपये आवंटित किए जाएंगे.

चीन के बारे में क्या सोचते हैं अलग-अलग देशों के लोग

बजट में हो सकती है घोषणा

इस योजना से पूर्वोत्तर राज्यों को मदद मिलने की संभावना है और उन्हें अपनी परियोजनाओं में इक्विटी होल्डिंग्स के वित्तपोषण में मदद मिलेगी. योजना में राज्य सरकारों को शामिल करने से आम तौर पर नियामक मंजूरी, स्थानीय लोगों के पुनर्वास और राज्य के साथ बिजली साझा करने पर बातचीत में तेजी लाने में मदद मिलती है.

सूत्रों ने बताया कि जलविद्युत स्टेशनों की योजनाओं की घोषणा 2024-2025 के बजट में किए जाने की उम्मीद है. भारत सरकार 23 जुलाई को बजट पेश करेगी. भारतीय के वित्त और ऊर्जा मंत्रालय व चीन के विदेश मंत्रालय ने टिप्पणी के लिए रॉयटर्स के अनुरोधों का तुरंत जवाब नहीं दिया.

अगस्त 2023 में भारत सरकार ने सीमा क्षेत्र में बुनियादी ढांचे के विकास के लिए एक व्यापक परियोजना के हिस्से के रूप में 11.5 गीगावाट क्षमता के संयंत्रों के निर्माण के लिए सरकारी कंपनियों राष्ट्रीय जलविद्युत ऊर्जा निगम (एनएचपीसी), सतलुज जल विद्युत निगम लिमिटेड (सजेवीएनएल) और नॉर्थ ईस्टर्न इलेक्ट्रिक पावर कॉर्पोरेशन लिमिटेड (नीपको) को ठेके दिए थे. इन पर अनुमानित 11 अरब डॉलर का निवेश होगा.

भारत ने पिछले 20 सालों में 15 गीगावाट से भी कम जलविद्युत संयंत्रों का निर्माण किया है, जबकि नई कोयला और अन्य नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों की स्थापना, नई जलविद्युत परियोजनाओं की तुलना में लगभग 10 गुना अधिक हुई है.

भारत और चीन के बीच 2,500 किलोमीटर से ज्यादा लंबी विवादित सीमा है. इसे लेकर दोनों देशों के बीच 1962 में युद्ध हुआ था. भारत का कहना है कि अरुणाचल प्रदेश देश का अभिन्न अंग है, लेकिन चीन का दावा है कि यह दक्षिणी तिब्बत का हिस्सा है और उसने वहां अन्य भारतीय बुनियादी ढांचा परियोजनाओं पर आपत्ति जताई है.

पूर्वी क्षेत्र के विकास पर भारत का जोर

भारत सरकार पूर्वी क्षेत्र में परियोजनाओं को आगे बढ़ा रही है, क्योंकि ऐसी रिपोर्टें हैं कि बीजिंग ब्रह्मपुत्र नदी के एक हिस्से पर बांध बना सकता है, जिसे चीन में यारलुंग सांगपो के नाम से जाना जाता है. यह नदी तिब्बत से अरुणाचल प्रदेश की ओर बहती है. भारत को चिंता है कि इस क्षेत्र में चीनी परियोजनाओं के कारण अचानक बाढ़ आ सकती है या जल संकट पैदा हो सकता है.

भारत और चीन दोनों अपने सीमावर्ती क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे में सुधार करने के लिए काम कर रहे हैं. ऐसा इसलिए है क्योंकि साल 2020 में लद्दाख की गलवान घाटी में चीनी और भारतीय सैनिकों की हुई झड़पों में 20 भारतीय और कम से कम चार चीनी सैनिक मारे गए थे.

4 जुलाई को भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने चीनी विदेश मंत्री वांग यी से अस्ताना में शंघाई सहयोग संगठन के सम्मेलन के दौरान अलग से मुलाकात की थी. दोनों पक्षों ने लंबे समय से अटके सीमा विवादों को जल्द सुलझाने पर चर्चा की.

इस मुलाकात के बाद भारतीय विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि दोनों मंत्रियों ने द्विपक्षीय संबंधों को स्थिर करने और पुनर्निर्माण करने के लिए पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) और अन्य मुद्दों का जल्द समाधान खोजने पर विचारों को साझा किया. दोनों मंत्री इस बात पर सहमत हुए कि सीमावर्ती क्षेत्रों में मौजूदा स्थिति का लंबा खिंचना किसी भी पक्ष के हित में नहीं है.

रिपोर्ट: आमिर अंसारी (रॉयटर्स)

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