अफगानिस्तान: अमेरिका के जाने के बाद चीन के लिए अवसर
१९ अगस्त २०२१
तालिबान के प्रति चीन का रुख अफगानिस्तान में अमेरिकी परियोजना के नाटकीय रूप से पतन से अधिकतम लाभ निकालने का संकेत माना जा रहा है.
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चीन अपने पूर्वी सीमावर्ती प्रांत शिनजियांग पर भी नजर रख रहा है, जहां उइगुर मुस्लिम बहुसंख्यक हैं. कुछ दिन पहले ही तालिबान ने बिजली की गति से काबुल पर कब्जा कर दुनिया को चौंका दिया. करीब 15 दिन पहले ही चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने तालिबानी प्रतिनिधिमंडल का व्यक्तिगत रूप से स्वागत किया था.
काबुल में तालिबान के दाखिल होने के ठीक एक दिन बाद चीन ने कहा कि वह अफगानिस्तान के साथ "दोस्ताना और सहयोगी" संबंधों को मजबूत करने के लिए तैयार है.
हालांकि, बीजिंग का कहना है कि वह काबुल में किसी राजनीतिक समझौते को प्रभावित नहीं करना चाहता है लेकिन ऐसा लगता है कि अमेरिका के हटने के बाद चीन अफगानिस्तान में अपने 'बेल्ट एंड रोड प्रोजेक्ट' के लिए लाभदायक संकेत भांप लिए हैं.
ये 6 हैं तालिबान के सरगना
जिस तालिबान ने अमेरिका के जाते ही अफगानिस्तान पर नियंत्रण कर लिया है, उसका नेतृत्व छह लोगों के हाथ में है. जानिए, कौन हैं ये लोग...
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हैबतुल्लाह अखुंदजादा
इस वक्त तालिबान का सुप्रीम लीडर है हैबतुल्लाह अखुंदजादा. 2016 में मुल्लाह मंसूर अख्तर के एक अमेरिकी ड्रोन हमले में मारे जाने के बाद उसे नेतृत्व मिला था. उससे पहले वह पाकिस्तान के कुलचक शहर में एक मस्जिद में मौलवी था. तालिबान में अखुंदजादा का कहा ही पत्थर की लकीर होता है.
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मुल्ला अब्दुल गनी बरादर
मुल्ला अब्दुल गनी बरादर (दाएं) तालिबान के संस्थापकों में से है. कतर में तालिबान की निर्वासित सरकार का अध्यक्ष वही था और अमेरिका के साथ शांति वार्ता में शामिल रहा. 2010 में पश्चिमी सेनाओं ने उसे पकड़ लिया था लेकिन 2018 में छोड़ दिया गया.
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सिराजुद्दीन हक्कानी
बड़े कमांडर जलालुद्दीन हक्कानी का बेटा सिराजुद्दीन हक्कानी शक्तिशाली हक्कानी नेटवर्क का प्रमुख है. यही संगठन अफगानिस्तान-पाकिस्तान सीमा पर सक्रिय है और तालिबान की आर्थिक और सैन्य संपत्तियों की देखरेख करता है. हक्कानी इस वक्त संगठन का उप प्रमुख भी है.
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शेर मोहम्मद अब्बास स्तानिकजई
स्तानिकजई पिछले करीब एक दशक से दोहा में रह रहा है. उसे पाकिस्तानी सेना और आईएसआई से प्रशिक्षण मिला है. 1996 में वह क्लिंटन प्रशासन से तालिबान की तत्कालीन सरकार को मान्यता दिलाने के प्रयास में अमेरिका भी गया था.
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मुल्ला मोहम्मद याकूब
मोहम्मद याकूब तालिबान के संस्थापक मुल्ला मोहम्मद उमर का बेटा है. उसका काम संगठन के सैन्य अभियान को देखना है. माना जाता है कि उसकी उम्र 31 साल है. 2020 में उसे संगठन का सैन्य प्रमुख बनाया गया था. उसे उदारवादी गुट का माना जाता है, जिसने अमेरिका से बातचीत की.
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अब्दुल हकीम हक्कानी
तालिबान के शांतिवार्ता दल का प्रमुख अब्दुल हकीम हक्कानी 2001 से पाकिस्तान के क्वेटा में रहा. उसे सितंबर 2020 में अफगानिस्तान में हो रही बातचीत के लिए नियुक्त किया गया. वह तालिबान के न्याय विभाग का प्रमुख है.
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तालिबान से चीन की मांग
बीजिंग स्थित राजनीतिक विश्लेषक हुआ पो के मुताबिक, चीन ने तालिबान से कुछ बुनियादी मांगें रखी हैं- "पहली मांग चीनी नागरिकों की सुरक्षा के साथ-साथ चीनी निवेश को सुनिश्चित करना है. दूसरी मांग यह कि शिनजियांग में अलगाववादियों के साथ संबंध तोड़ दिए जाएं और उन्हें शिनजियांग लौटने की अनुमति न दी जाए."
तालिबान चीन के महत्व से अवगत हैं और इसलिए वे बीजिंग के साथ अच्छे संबंध चाहते हैं. दूसरा निहितार्थ यह है कि उइगुर मुसलमानों को को उनके हाल पर छोड़ दिया जाए.
तालिबान के प्रवक्ता मोहम्मद नईम ने कहा कि अफगानिस्तान की जमीन का इस्तेमाल किसी अन्य देश के खिलाफ नहीं किया जाएगा.
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खनिज समृद्ध अफगानिस्तान और अवसर
चीनी मीडिया के मुताबिक अफगानिस्तान में सरकार बदलने से निवेश के अवसर बढ़े हैं. ये अवसर दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अयनाक कॉपर माइन प्रोजेक्ट से लेकर उत्तर में फरयाब और सर-ए-पुल में तेल के भंडार तक हैं. अनिश्चितता के बावजूद बीजिंग समर्थित कंपनियां पहले ही खनन और निर्माण में लाखों डॉलर का निवेश कर चुकी हैं.
दूसरी ओर अफगानिस्तान में लिथियम का विशाल भंडार है. इसलिए अफगानिस्तान को 'लिथियम का सऊदी अरब' भी कहा जाता है. लिथियम इलेक्ट्रिक कारों के उत्पादन में इस्तेमाल की जाने वाली मुख्य धातु है और दुनिया भर में इसकी मांग बढ़ रही है. और चीन दुनिया का सबसे बड़ा इलेट्रिक कार निर्माता है.
सोमवार को चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता हुआ चुनियांग ने कहा, "तालिबान चाहता है कि बीजिंग अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण और विकास में भूमिका निभाए. हम उनका स्वागत करते हैं." चीन ने कई महीने पहले अपने नागरिकों को निकालना शुरू कर दिया था, लेकिन देश में अभी भी एक दूतावास कार्य कर रहा है.
अफगानिस्तान में अमेरिका की 7 गलतियां
जिस तालिबान को हराने के लिए अमेरिका ने 20 साल जंग लड़ी, आज वह अफगानिस्तान पर काबिज है. अमेरिकी संस्था स्पेशल इंस्पेक्टर जनरल फॉर अफगानिस्तान रिकंस्ट्रक्शन ने इसी महीने एक रिपोर्ट जारी की है, जिसमें सात सबक बताए गए हैं.
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स्पष्ट रणनीति नहीं
सिगार के मुताबिक विदेश और रक्षा मंत्रालय के पास कोई स्पष्ट रणनीति नहीं थी. तालिबान का खात्मा, देश का पुनर्निर्माण जैसे लक्ष्यों में कोई स्पष्टता नहीं थी.
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संस्कृति और राजनीति की समझ नहीं
सिगार की रिपोर्ट कहती है कि अमेरिका अफगानिस्तान की संस्कृति और राजनीति को समझ नहीं पाया. इस कारण गलतियां हुईं. जैसे कि वहां ऐसी न्याय व्यवस्था बना दी जिसके अफगान आदि नहीं थे. या फिर अनजाने में एक पक्ष का साथ देकर स्थानीय विवादों को और उलझा दिया.
तस्वीर: Shah Marai/AFP/Getty Images
दूरदृष्टि नहीं
अमेरिका के फैसलों में दूरदृष्टि की कमी को सिगार की रिपोर्ट ने रेखांकित किया है. सफलता के लिए कितना वक्त चाहिए, कितना धन चाहिए, कहां कितने लोग चाहिए इसकी कोई रणनीति नहीं थी. इस कारण ‘20 साल लंबी एक कोशिश’ के बजाय अभियान ‘एक-एक साल लंबी 20 कोशिशों’ में तब्दील हो गया.
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अधूरी योजनाएं
सिगार कहता है कि बहुत सारी विकास योजनाएं शुरू तो हुईं लेकिन पूरी नहीं की गईं. सड़कें, अस्पताल, बिजली घर आदि बनाने पर अरबों डॉलर खर्चे गए लेकिन उनकी देखभाल के लिए कोई जवाबदेही नहीं थी. लिहाजा वे या तो अधूरे रह गए या बर्बाद हो गए.
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कुशल लोगों की कमी
सिगार की रिपोर्ट कहती है कि अमेरिकी सेना और मददगार संस्थाओं के पास जमीन पर कुशल लोगों की कमी थी. इस कारण एक साल बाद जब एक दल घर गया तो नए लोग आए जिनके पास समुचित अनुभव नहीं था. इस कारण प्रशिक्षण में कमी रह गई.
तस्वीर: DW/S. Tanha
परेशान लोग
अफगानिस्तान में बड़े पैमाने पर लोग हिंसा से परेशान और डरे हुए थे जो आर्थिक विकास के रास्ते में बड़ी बाधा बना. अफगान सेना को तैयारी का कम समय मिला और उसकी तैनाती जल्दबाजी में हुई.
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गलतियों से सीख नहीं
सिगार का आकलन है कि अमेरिकी सरकार ने योजनाओं की समीक्षा पर समय नहीं बिताया और गलतियों से सबक नहीं लिया. इसलिए वही गलतियां दोहराई जाती रहीं.
तस्वीर: Shah Marai/AFP/Getty Images
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तालिबान पर कैसे भरोसा किया जा सकता है?
अतीत को देखते हुए तालिबान के फैसले अप्रत्याशित हैं और उनके बारे में कोई भविष्यवाणी करना मुश्किल है. सिंगापुर में एस. राजारत्नम स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज के एक वरिष्ठ फेलो रफाएलो पैंटुची कहते हैं, "चीन इतिहास जानता है और जानता है कि तालिबान सरकार पर पूरी तरह से भरोसा नहीं किया जा सकता है." वह कहते हैं, "वे तुरंत अफगानिस्तान भागना शुरू नहीं करेंगे, बल्कि वे जमीनी स्थिति का जायजा लेंगे."
लेकिन फिलहाल चीन अफगानिस्तान में अमेरिका की नाकामी और उसके दुष्प्रचार का पूरा फायदा उठा रहा है. चीनी सरकारी मीडिया ने काबुल हवाई अड्डे की तस्वीरें प्रकाशित करते हुए कहा कि यह उस अशांति का संकेत है जिसे अमेरिका पीछे छोड़ रहा है.
मंगलवार को चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता ने कहा, "वॉशिंगटन ने अशांति, विभाजन और टूटे परिवारों की एक भयानक विरासत को पीछे छोड़ा है. अमेरिका की ताकत और भूमिका विनाश है, निर्माण नहीं."