बीजिंग में शुक्रवार से शुरू हो रहे शीतकालीन ओलंपिक पहले राजनीतिक विवादों के घेरे में हैं, अब एक घटना ने कुछ भारतीयों को भी इस आयोजन पर सवाल उठाने का मौका दे दिया है.
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शीतकालीन ओलंपिक की मशाल रिले में एक चीनी सैनिक के हिस्सा लेने को वहां के राष्ट्रीय मीडिया ने बढ़-चढ़कर दिखाया जिस पर भारत में तीखी प्रतिक्रिया हुई. यह चीनी सैनिक पीपल्स लिबरेशन आर्मी का रेजिमेंट कमांडर की फाबाओ हैं, जो 2020 में गलवान में भारतीय सैनिकों के साथ हुई झड़प में शामिल थे.
चीन के ग्लोबल टाइम्स अखबार ने फाबाओ को एक नायक बताते हुए कहा कि वह मशाल रैली के 1,200 हिस्सेदारों में से एक थे. गलवान में भारतीय सैनिकों के साथ हुई झड़प में की घायल हो गए थे. उनके सिर पर गंभीर चोटें लगी थीं.
की के मशाल रैली में हिस्सा लेने पर भारतीय पत्रकार अभिषेक भल्ला ने ट्विटर पर लिखा, "चीन का आक्रामक सूचना युद्ध जारी है. अपने सैनिकों के मरने के बारे में ऐलान करने में तो उन्हें समय लगा था लेकिन अब की फाबाओ मशालधारी है.”
द हिंदू अखबार से जुड़े चीनी मामलों पर लिखने वाले पत्रकार अनंत कृष्णन ने ट्विटर पर लिखा, "पीएलए कमांडर को शीतकालीन ओलंपिक खेलों में मशालधारी के रूप में इस्तेमाल करना चीन के उन कई कदमों में से एक है जो गलवान में हुई झड़प को सुर्खियों में बनाए रखने के लिए उठाए गए हैं.”
कृष्णन के इस ट्वीट के जवाब में ग्लोबल टाइम्स में टिप्पणीकार हू शीजिन ने लिखा, "की फाबाओ एक खूनी संघर्ष में बचे हैं. उन्होंने मशाल रिले में हिस्सा लिया. इसमें मुझे तो यह नजर आया कि यह भारत-चीन सीमा पर शांति की अपील है, दुनिया में शांति की अपील है. इसमें क्या गलत है? अगर आप नैतिक आधार पर नहीं सोचते हैं तो आपको हर चीज बिगड़ी हुई नजर आती है.”
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शीतकालीन ओलंपिक में राजनीति
चीन के बीजिंग में हो रहे ये खेल अंतरराष्ट्रीय स्तर पर राजनीति का जरिया बन गए हैं. खेलों का उद्घाटन शुक्रवार को होना है लेकिन दुनियाभर के कई देशों ने इन खेलों का बहिष्कार किया है. अमेरिका ने चीन के शिनजियांग में उइगुर मुसलमानों की प्रताड़ना को मुद्दा बनाते हुए खेलों का बहिष्कार किया है, जिसमें कई देशों ने उसका साथ दिया है.
इसके अलावा कोविड-19 महामारी के चलते भी बहुत से देशों के राजनेताओं ने खेलों के समारोहों में शामिल ना होने का फैसला किया है. जर्मनी के चांसलर ओलाफ शॉल्त्स ने भी बीजिंग जाने से इनकार कर दिया है.
यूं बनते हैं ताइवान के सबसे शक्तिशाली योद्धा
ये ताइवान के सबसे शक्तिशाली सैनिकों में से हैं. देश के सबसे विशेष दल एंफीबियस रीकॉनेसाँ ऐंड पट्रोल (एआरपी) यूनिट में भर्ती होना अमेरिका के सबसे विशिष्ट सैन्य दल नेवी सील जैसा ही मुश्किल है. देखिए...
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लोहे से सख्त सैनिक
ताइवान की सबसे विशेष सैन्य यूनिट एआरपी में भर्ती होने के लिए ट्रेनिंग दस हफ्ते चलती है. इस साल 31 प्रतिभागियों ने इस ट्रेनिंग में हिस्सा लिया लेकिन कामयाब सिर्फ 15 हो पाएंगे. इस ट्रेनिंग में सैनिकों की शरीर और आत्मा दोनों को कठिनतम हालात से गुजरना होता है.
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शीत स्नान
दिनभर समुद्र में ट्रेनिंग करने के बाद सैनिकों को इस तरह बर्फीले पानी से नहलाया जाता है. कांपते हुए भी इन्हें खंभों की तरह खड़े रहना होता है.
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सामान्य नहीं अभ्यास
इन सैनिकों का अभ्यास देखने में जितना सामान्य लगता है, उतना है नहीं. प्रशिक्षक बेहद कठोर होते हैं और जरा भी समझौता नहीं करते. सैनिक घंटों तक पानी और जमीन पर अभ्यास करते हैं. छुट्टी के नाम पर कुछ मिनट ही मिलते हैं.
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युद्ध के लिए तैयारी
इन जवानों को हर तरह के हालात के लिए तैयार रहने की ट्रेनिंग दी जाती है. अफसर उम्मीद करते हैं कि इस अभ्यास से जवानों में इच्छाशक्ति पैदा होगी और वे एक दूसरे के लिए व देश के लिए हर हालात में खड़े रहेंगे.
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पानी में जीवन
इन जवानों को अधिकतर समय समुद्र या स्विमिंग पूल में गुजारना होता है. वे पूरी वर्दी में तैरने से लेकर लंबे समय तक पानी के अंदर सांस रोकने जैसे कौशल सीखते हैं. कई बार उन्हें हाथ-पांव बांधकर पानी में फेंक दिया जाता है.
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टूटने की हद तक
जवानों के शरीर को टूट जाने की हद तक तोड़-मरोड़ा जाता है. इस दौरान उनकी चीखें निकलती हैं. और अगर कोई जवान प्रशिक्षक का विरोध कर दे, तो फौरन उसे बाहर कर दिया जाता है.
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पथरीला रास्ता
आखरी ट्रेनिंग को स्वर्ग का रास्ता कहा जाता है. इस अभ्यास में जवानों को एक बेहद मुश्किल बाधा दौड़ से गुजरना होता है. उन्हें बिना कपड़े पहने ही, कुहनियों पर चलने से लेकर, पत्थरों पर घिसटने तक कई ऐसी बाधाएं पार करनी होती हैं जो आम इंसान के लिए असंभव हैं.
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जीत की घंटी
पास होने वाले जवानों को यह घंटी बजाने का मौका मिलता है. प्रोग्राम में शामिल सभी जवानों की किस्मत में यह घंटी नहीं होती. लेकिन इस बेहद कठिन ट्रेनिंग के लिए जवान अपनी इच्छा से आते हैं.
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भारत की तरफ से ओलंपिक खेलों में सिर्फ एक खिलाड़ी हिस्सा ले रहा है. जम्मू-कश्मीर के रहने वाले स्कीअर आरिफ मोहम्मद खान भारत के अकेले प्रतिनिधि हैं.
गलवान में क्या हुआ था?
20 जून 2020 को लद्दाख की गलवान घाटी में भारत और चीन के सैनिकों के बीच हिंसक मुठभेड़ हुई थी. इस मुठभेड़ में भारत के 20 सैनिकों की मौत हो गई थी. यह कम से कम 40 सालों में ऐसा पहला मौका था जब दोनों देशों के बीच असल नियंत्रण रेखा पर जानें गई हैं.
खबरों के अनुसार भारत पर चीन ने आरोप लगाया ता कि भारतीय सिपाही वास्तविक नियंत्रण रेखा पार कर चीन के इलाके में घुस गए थे जिसके बाद दोनों देशों के सिपाहियों के बीच मुठभेड़ हुई. इस मुठभेड़ में डंडों और अन्य पारंपरिक हथियारों का इस्तेमाल किया गया था. बाद में चीन ने कहा था कि उसके पांच सैनिक हताहत हुए.
रूस और चीन में बने यात्री विमानों ने एयरबस और बोइंग के कई दशकों से मशहूर विमानों के लिए चुनौती पेश कर दी है. भले ही आज बोइंग और एयरबस के विमानों में दुनिया सैर करती हो लेकिन आने वाले वर्षों में स्थिति बदल सकती है.
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यात्री सेवा के लिए सर्टिफिकेट मिला
रूस ने एमसी-21 विमान बनाया है. इसे दिसंबर 2021 में यात्री सेवा में इस्तेमाल करने के लिए सर्टिफिकेट मिल गया और यह इसी साल से रूस में नियमित उड़ान भरने लगेगा. विमान की दो श्रेणियों में कुल 163 यात्रियों को जगह मिल सकती है. पश्चिमी देशों के जानकार इसे एयरबस की ए 320 नियो से बेहतर और कम खर्चीला बता रहे हैं.
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यात्रियों के लिए ज्यादा आराम
विमान की बॉडी पतली होने के बावजूद यात्रियों को इसमें बोइंग ए-320 की तुलना में 11 सेंटीमीटर और बोइंग 737 की तुलना में 21 सेंटीमीटर ज्यादा जगह मिलेगी. हालांकि यह जगह इतनी ज्यादा नहीं है कि एक कतार में छह से ज्यादा सीटें लगाई जा सकें. मतसब साफ है कि यात्रियों के कोहनी रखने के लिए और सीटों के किनारे ज्यादा जगह होगी.
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सैकड़ों विमानों के लिए ऑर्डर मिले
कंपनी के पास फिलहाल एमसी-21 के 175 विमानों के ऑर्डर हैं और सैकड़ों विमानों के लिए एमओयू पर दस्तखत हो चुके हैं. रूस की घरेलू एयरलाइनों से ही कंपनी को बड़े ऑर्डर मिल रहे हैं. कंपनी ने कई और मॉडल भी दुबई में पेश किए है हालांकि उन्हें अभी यात्री सेवा के लिए सर्टिफिकेट नहीं मिला है.
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पश्चिमी देशों की कंपनियों पर निर्भर
हालांकि इस विमान को बनाने में रूस को पश्चिमी देशों के बनाए कई हिस्सों की जरूरत होगी जिनसे मिल कर विमान के इंजन और दूसरी चीजें बनेंगी. एमसी-21 का करीब 40 फीसदी हिस्सा ऐसा ही हैं. मौजूदा राजनीतिक हालात में रूस पश्चिमी देशों की सप्लाई पर भरोसा नहीं कर सकता. एक और दिक्कत है कि वह ईरान जैसे देशों के विमान नहीं बेच पाएगा जो उसके बड़े ग्राहक हो सकते हैं.
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चीन ने बनाया सी 919
सी 919 को चीन ने बनाया है और इसने भी यात्री सेवा में इस्तेमाल के लिए जरूरी शर्तें पूरी कर ली है. पहले इसे भी इस साल से सेवा में उतारने की तैयारी थी लेकिन अब इसे कुछ और समय के लिए आगे बढ़ा दिया गया है.
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300 से ज्यादा विमानों के ऑर्डर
सी 919 में 158-168 यात्रियों के बैठने की जगह है. इस विमान ने पहली उड़ान 2017 में भरी थी और अब यह यात्री सेवा में उतारे जाने के लिए तैयार है. अब तक कंपनी को 300 से ज्यादा विमानों के लिए ऑर्डर मिल चुके हैं. कंपनी कुछ और मॉडलों पर भी काम कर रही है.
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नए जमाने के लिए नए विमान
सी 919 और एमसी-21, दोनों विमान दो इंजन और पतली बॉडी वाले हैं. इन्हें आज के दौर की चुनौतियों को ध्यान में रख कर खासतौर से तैयार किया गया है. इनके मुकाबले बोइंग 737 को 1967 में लॉन्च किया गया था जबकि एयरबस का ए320 पहली बार 1987 में एयरलाइनों के लिए पेश किया गया.
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चीन आगे निकल सकता है
चीन में पहले से ही दूसरी कंपनियों के विमान बड़ी संख्या में एसेंबल किए जा रहे हैं. वहां स्थानीय स्तर पर विमानों की मांग भी बहुत ज्यादा है. बाजार के विशेषज्ञ मान रहे हैं कि चीन के पास विमान तैयार करने का जरूरी कौशल और बुनियादी ढांचा मौजूद है. कई लोग तो इस मामले में उसे यूरोप से बेहतर मानते हैं. ऐसे में कोई हैरानी नहीं कि वह ज्यादा तेजी से आगे निकलेगा.
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सर्टिफिकेट मिलने में देरी
चीन ने 2017 में अपना पहला विमान तैयार कर लिया था और उसके बाद छह और विमान तैयार हो चुके हैं. हालांकि उसे अनुमति मिलने में देरी हो रही है. बीते साल से लेकर अब तक कुल 276 टेस्ट फ्लाइट होनी थी लेकिन उनकी महज 34 उड़ानें ही संभव हो पाईं.
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एयरबस और बोइंग पर दबाव
यात्री विमानों के आकाश में इन दोनों कंपनियों का दबदबा है लेकिन बीते सालों में बोइंग और एयरबस के कुछ नए मॉडलों के विमान या तो बनाने बंद कर दिए गए या फिर मुश्किलों में घिर गए. कोरोना का दौर भी विमान कंपनियों के लिए बहुत संकट लेकर आया. अब इसमें रूस और चीन की चुनौती भी शामिल हो जाएगी.