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चीन में ऐतिहासिक विरोध प्रदर्शन का हथियार बना कोरा कागज

२८ नवम्बर २०२२

बीते हफ्ते चीन में कोरे कागजों के जरिए एक इतिहास लिखा गया. देश के कई शहरों में हुए विरोध प्रदर्शनों में लोगों ने कोविड के कारण लगाई गईं सख्त पाबंदियों पर ऐतराज जताया. इस ऐतराज में कोरे कागज की खास जगह रही.

चीन में कोरा कागज दिखाकर प्रदर्शन करते युवा
चीन में कोरा कागज दिखाकर प्रदर्शन करते युवातस्वीर: Koki Kataoka/Yomiuri Shimbun/AP Photo/picture alliance

चीन में शनिवार और रविवार को विरोध प्रदर्शन हुए जिनमें लोगों नेराष्ट्रपति शी जिनपिंगके खिलाफ नारेबाजी की औरकोविड के कारण लगाई गईं पाबंदियों को हटाने की मांग की. शंघाई और बीजिंग समेत कई शहरों में हुए इन प्रदर्शनों के बाद सोमवार सुबह को पुलिस ने रोक-रोक कर लोगों की तलाशी ली ताकि लोगों को दोबारा प्रदर्शन करने से रोका जा सके.

कई विश्वविद्यालों के छात्रों ने इन प्रदर्शनों में हिस्सा लिया. शंघाई में एक कॉलेज स्टूडेंट जेसन सुन ने कहा, "वायरस के नाम पर लोगों के अधिकारों पर, उनकी आजादी और जीवनयापन पर लगाई जा रहीं इन पाबंदियों का हम विरोध करते हैं. ”

सोमवार को कहीं किसी प्रदर्शन का संकेत नहीं था लेकिन बीजिंग और शंघाई में हर ओर पुलिसकर्मी तैनात थे.  पुलिसकर्मी लोगों के फोन जांच रहे थे और ये पता लगा रहे थे कि उनके फोन में वीपीएन या टेलीग्राम ऐप तो नहीं है. अधिकतर लोगों के लिए चीन में वीपीएन अवैध है. देश में टेलीग्राम ऐप को भी ब्लॉक किया हुआ है.

चीन में कोरा कागज दिखाकर प्रदर्शन करते युवातस्वीर: Hector Retamal/AFP/Getty Images

जब लोगों के इस गुस्से के बारे में विदेश मंत्री जाओ लीजियां से पूछा गया तो उन्होंने कहा, "आप जो बता रहे हैं, वैसा नहीं हुआ है. हम मानते हैं कि चीनी कम्यूनिस्ट पार्टी के नेतृत्व में चीनी लोगों के सहयोग और समर्थन से कोविड-19 के खिलाफ हमारी लड़ाई कामयाब होगी.”

क्यों हो रहे हैं प्रदर्शन?

2019 में कोविड की शुरुआत के बाद से चीन ने इस संक्रामक बीमारी को फैलने से रोकने के लिए अत्याधिक कड़ाई बरती है. अपनी जीरो कोविड नीति के आधार पर उसने एक मामला मिलने पर पूरे के पूरे शहर को लॉकडाउन में बंद कर देने जैसे कदम उठाये हैं. इसका फायदा यह हुआ कि चीन में कोविड के कारण मरने वालों की संख्या हजारों में रही जबकि अमेरिका और भारत जैसे देशों में लाखों लोग मारे गये.

विशेषज्ञों का कहना है कि इन पाबंदियों का एक नतीजा यह भी हुआ है कि लोगों का जीवन बुरी तरह प्रभावित हुआ है. लोगों को रोजी-रोटी के लाले पड़ गए हैं और कई बार तो उन्हें कई-कई दिन तक एक फैक्ट्री या अन्य परिसरों में इसलिए बंद रखा गया क्योंकि वहां कोविड का कोई एक केस पकड़ा गया था. पिछले महीने बीजिंग के डिज्नी पार्क को इसी आधार पर बंद कर दिया गया और हजारों लोग उसमें फंस गए. तब ऐसी तस्वीरें भी आईं जिनमें लोग दीवारें फांदकर वहां से भागने की कोशिश करते दिखाई दिए.

जीरो-कोविड नीति को लेकर राष्ट्रपति शी जिनपिंग बहुत सख्त रहे हैं इसलिए प्रदर्शनकारी उन्हें ही निशाना बनाकर विरोध कर रहे हैं और कुछ ने तो उनके इस्तीफे की मांग कर दी है जो किसी भी राष्ट्रपति के लिए चीन जैसे एकाधिकारवादी शासन में अनूठा और दुर्लभ है.

प्रदर्शनों को उरुमकी में हुई घटना से भी तीव्रता मिली. उस घटना में एक भवन में आग में फंसे दस लोगों की जान चली गई थी और कई लोगों ने कहा कि कोविड नीतियों के कारण लोगों को बचाने के लिए समुचित प्रयास नहीं किए जा सके. इससे लोगों का गुस्सा भड़का और वे सड़कों पर उतर आए.

कोरे कागज की अहमियत

चीन में हुए प्रदर्शनों की जो तस्वीरें और वीडियो सामने आए हैं उनमें लोगों को सफेद कागज हाथों में लिए दिखाई दे रहे हैं. अक्सर सफेद कागज लेकर ये प्रदर्शनकारी खामोश प्रदर्शन कर रहे हैं. कई लोगों ने प्रदर्शनकारियों के साथ समर्थन जाहिर करने के लिए सोशल मीडिया पर भी कोरे कागजों की तस्वीरें साझा की हैं.

ऐसा पहली बार नहीं है जब चीनी प्रदर्शनकारी सफेद कागज का इस्तेमाल अपनी बात कहने के लिए कर रहे हैं. चीन में यह सफेद कागज लोगों की आवाज दबाने का प्रतीक बन गया है. चूंकि उन कागजों पर कुछ लिखा नहीं है इसलिए कानूनन उन्हें किसी टिप्पणी के लिए सजा नहीं दी जा सकती.

2020 में जब हांग कांग में लोकतंत्र समर्थक प्रदर्शन हुए थे तब भी प्रदर्शनकारियों ने कोई नारा लिखा बैनर उठाने के बजाय कोरे कागज हाथों में लेकर प्रदर्शन किए थे. मीडिया के मुताबिक सबसे पहले जुलाई 2020 में एक युवती ने कोरा कागज लेकर अपना विरोध जताया था. उसने संवाददाताओं को बताया कि उसने सफेद कागज इसलिए उठाया हुआ है क्योंकि उसे नहीं पता कि नए कानून के तहत क्या लिखने पर उसे सजा हो जाए.

हांग कांग की चाइनीज यूनिवर्सिटी में राजनीतिशास्त्र पढ़ाने वाले एसोसिएट प्रोफेसर मा न्गोक ने एपी को बताया, "वे कोरा कागज इसलिए दिखाते हैं क्योंकि सरकार यदि उन्हें सजा देना चाहे तो ऐसा कुछ ना हो जो उनके खिलाफ इस्तेमाल किया जा सके.” इसी तरह मॉस्को में भी रूस की सरकार के खिलाफ प्रदर्शन में लोगों ने कोरे कागज का प्रयोग किया है.

प्रदर्शनों का असर

चीन के सरकार विरोधी प्रदर्शनों को पश्चिमी मीडिया ने खासी तवज्जो दी है. बीबीसी का कहना है कि उसके एक संवाददाता की पिटाई की गई और उसे हिरासत में ले लिया गया. उधर चीन के सरकारी मीडिया में विरोध प्रदर्शनों का कोई जिक्र नहीं किया गया और संपादकीय लेखों के जरिए लोगों से कोविड के नियम मानने का अनुरोध किया गया.

हालांकि बाद में उसे रिहा भी कर दिया गया. सप्ताहांत पर हुए प्रदर्शनों का असर दुनिया के वित्तीय बाजारों पर भी पड़ा और तेल की कीमतें गिर गईं. चीन के बाजारों में गिरावट रही और युआन की कीमतें भी कम हुईं. बहुत से विश्लेषकों का कहना है कि मार्च-अप्रैल से पहले चीन के पूरी तरह खुलने की संभावना बहुत कम है. गैवकल ड्रैगोनोमिक्स के एक विश्लेषक ने लिखा है, "मौजूदा शासन को इन प्रदर्शनों से फौरी तौर पर कोई खतरा नहीं है लेकिन इनका यह अर्थ जरूर है कि कोविड नीति अब राजनीतिक रूप से टिकाऊ नहीं है. सवाल अब यह है कि दोबारा खुलना कैसा होगा. जवाब है, धीमा, क्रमिक और अस्त-व्यस्त.”

वीके/एनआर (रॉयटर्स, एपी, एएफपी)

 

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