चीन: 2025 तक सौर, पवन ऊर्जा क्षमता को दोगुना करने का लक्ष्य
६ जून २०२२
चीन ने अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए एक नई योजना तैयार की है. इसके तहत 2025 तक वह अपनी पवन और सौर ऊर्जा क्षमता को दोगुना कर देगा, जबकि थर्मल पावर प्लांट से ज्यादा बिजली पैदा करेगा.
विज्ञापन
चीन की नई ऊर्जा जरूरतों की योजना अगर लागू की जाती है, तो इसका मतलब होगा कि वह पेरिस समझौते के लक्ष्यों को समय से पहले हासिल कर लेगा. चीन का लक्ष्य 2030 तक इस लक्ष्य को हासिल करना है, लेकिन वह 2025 तक पवन और सौर ऊर्जा की क्षमता को दोगुना करके इसे पहले ही हासिल करना चाहता है.
लेकिन बीजिंग ने हाल के महीनों में अपनी कमजोर अर्थव्यवस्था का समर्थन करने के लिए कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्रों पर निर्भरता बढ़ा दी है, ऐसा यूक्रेन युद्ध के कारण वैश्विक ऊर्जा कीमतों का बढ़ना बताया जाता है.
देश के केंद्रीय आर्थिक योजनाकार ने एक दस्तावेज में कहा कि राष्ट्रीय ग्रिड को बिजली की आपूर्ति का 33 प्रतिशत 2025 तक नवीकरणीय स्रोतों से आएगा, जो साल 2020 के 29 प्रतिशत से अधिक है.
नई योजना में कहा गया है कि "2025 तक अक्षय ऊर्जा स्रोतों से वार्षिक उत्पादन लगभग 3.3 ट्रिलियन किलोवॉट-ऑवर्स होगा और पवन और सौर ऊर्जा की मात्रा दोगुनी हो जाएगी."
चीन अभी भी अक्षय ऊर्जा का दुनिया का सबसे बड़ा उत्पादक है. इसने प्रदूषण से निपटने के लिए सौर और पवन ऊर्जा परियोजनाओं में निवेश को बढ़ाया है. विशेषज्ञों का कहना है कि चीन इस समय दुनिया में सबसे ज्यादा प्रदूषण फैलाने वाला देश है और हर साल लाखों लोगों की मौत प्रदूषण के कारण होती है.
बीजिंग ने 2030 तक कार्बन उत्सर्जन को न्यूनतम करने और 2060 तक कार्बन को तटस्थ बनाने का संकल्प लिया है.
राष्ट्रीय ऊर्जा प्रशासन के आंकड़े बताते हैं कि इस साल के पहले चार महीनों में सौर परियोजनाओं में निवेश पिछले साल जनवरी-अप्रैल की तुलना में लगभग तीन गुना बढ़कर 4.3 अरब डॉलर हो गया है.
सोलर ने दी चेहरों पर मुस्कान
03:07
लेकिन चीन की ऊर्जा नीति में अभी भी कई खामियां हैं. देश दुनिया के लगभग आधे कोयले का इस्तेमाल अपनी अर्थव्यवस्था को चलाने के लिए करता है. यूक्रेन में युद्ध के कारण तेल और प्राकृतिक गैस की कीमतों में बढ़ोतरी के साथ, चीनी नीति निर्माता कोयले पर अधिक निर्भरता पर जोर दे रहे हैं.
प्रधानमंत्री ली केकियांग ने पिछले हफ्ते कहा था कि देश के केंद्रीय बैंक ने आर्थिक संकट को कम करने में मदद करने के लिए कोयला खनन और कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्रों के लिए 15 अरबर डॉलर के ऋण को मंजूरी दी.
मार्च में कैबिनेट ने हर साल अतिरिक्त 30 करोड़ टन कोयला निकालने का आदेश दिया था.
एए/सीके (एएफपी)
पवन ऊर्जा का भविष्य
बिजली उत्पादन में हवा की अहमियत बढ़ती ही जा रही है. बड़ी बड़ी टरबाइनें यानी पवनचक्कियां बनने लगी हैं- ज्यादा ऊंची और ज्यादा कारगर. दुनिया में करीब सात प्रतिशत बिजली पवन ऊर्जा से मिल ही रही है. तो आगे क्या?
तस्वीर: Jan Oelker
तब और अब
पवन ऊर्जा का इस्तेमाल सदियों से होता रहा है. उससे पानी खींचा जाता है, अनाज पीसा जाता है, लकड़ी काटी जाती है और जहाजों को उनके ठिकानों तक वही पहुंचाती हैं. यूरोप में 19वीं सदी के दौरान सैकड़ों हजारों पवनचक्कियां लगाई गई थीं. नीदरलैंड्स के लोग उसका इस्तेमाल अधिकतर दलदल को सुखाने में करते हैं. आज पवन ऊर्जा से साफ बिजली पैदा होती है. वे जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने में केंद्रीय भूमिका निभा रही हैं.
तस्वीर: picture-alliance/ImageBroker/J. Tack
कोयले को मात देती हवा
पवनचक्कियां अक्सर सबसे सस्ती ऊर्जा पैदा करती हैं. नये कोयले या एटमी ऊर्जा संयंत्र से मिलने वाली बिजली आज दो से तीन गुना ज्यादा महंगी पड़ती है जबकि पवन ऊर्जा विशेष रूप से सस्ती है. भविष्य के अनुमानों के मुताबिक पवन ऊर्जा की लागत और गिरेगी- यानी 2030 तक, अच्छे हवादार ठिकानों में महज 0.04 डॉलर प्रति किलोवॉट घंटा की लागत मिलेगी.
तस्वीर: picture alliance / Zoonar
20 गुना अधिक बिजली
उत्तरी जर्मनी में विल्हेल्मशाफेन के पास लगाई गई एक विशाल पवनचक्की 6,000 किलोवॉट बिजली पैदा करती है और वहां के 10,000 लोगों की घरेलू बिजली की जरूरतों को पूरा करती है. 25 साल पुराने मॉडलों से सिर्फ 500 किलोवॉट ही मिल पाती थी- करीब 500 लोगों के लिए उतनी बिजली पर्याप्त थी. आधुनिक टरबाइनें अब आसमान में 180 मीटर तक ऊंची उठी रहती हैं. जितनी ऊंची होंगी उतनी हवा खींचेंगी.
तस्वीर: Ulrich Wirrwar/Siemens AG
समंदर में धंसे विशाल डैने
समंदर में हवा ज्यादा भरोसेमंद और ताकतवर होती है. दुनिया की कुल पवन ऊर्जा का करीब पांच फीसदी हिस्सा, तट पर बने पवनचक्की पार्कों से आता है. जैसे ये नीदरलैंड्स के तट पर बना एक पवन पार्क है. ऐसी टरबाइनों से करीब 10,000 किलोवॉट बिजली मिल जाती है. 2025 से उनकी क्षमता 15,000 किलोवॉट तक बढ़ने का अनुमान है. तब 40,000 से ज्यादा लोगों को बिजली मिल सकती है.
तस्वीर: Siemens Gamesa
सबसे आगे है चीन
दुनिया की तमाम नयी पवनचक्कियों में से आधी इस समय चीन में स्थापित हैं. अकेले 2020 में देश ने 52 गीगावॉट क्षमता वाली पवनचक्कियां निर्मित की हैं. ये 50 एटमी ऊर्जा संयंत्रों से मिलने वाली बिजली के बराबर है. पवन विस्तार में अग्रणी देश डेनमार्क और जर्मनी हैं. डेनमार्क अपने यहां बिजली की करीब 50 फीसदी मांग पवन ऊर्जा से पूरी करता है. जर्मनी को 25 फीसदी बिजली पवन ऊर्जा से मिलती है.
पूरी दुनिया में पवन ऊर्जा उद्योग में करीब 13 लाख लोग काम करते हैं. इनमें से साढ़े पांच लाख लोग चीन में, एक लाख दस हजार लोग अमेरिका में, 90 हजार जर्मनी में, 45 हजार भारत में और 40 हजार ब्राजील में हैं. पवन चक्कियां लगाना और चलाना, कोयले से हासिल ऊर्जा के मुकाबले ज्यादा महंगा पड़ता है. लिहाजा पवन ऊर्जा का विस्तार ज्यादा से ज्यादा नौकरियां पैदा कर रहा है.
तस्वीर: Paul Langrock/Siemens AG
नागरिक भी चाहते हैं लाभ कमाना
सघन आबादी वाले इलाकों में पवन ऊर्जा को लेकर अक्सर विरोध देखा जाता है. लेकिन ये धारणा बदल सकती है अगरचे नागरिकों को भी स्थानीय परियोजनाओं में शामिल होने का मौका मिले. जैसे, जर्मनी के फ्रैंकफुर्ट शहर के नजदीक श्टार्कनबुर्ग में बहुत सारे निवासी पवन ऊर्जा के विस्तार के पक्ष में हैं. वे नयी टरबाइनों में निवेश कर रहे हैं. और बिजली बेचकर लाभ भी कमा रहे हैं.
तस्वीर: Energiegenossenschaft Starkenburg eG
पाल जहाजों से डीजल की बचत
अतीत में, पाल नौकाओं और जहाजों से दुनिया भर में माल की ढुलाई होती थी लेकिन फिर डीजल इंजन आ गए. आज आधुनिक नौचालन फिर से हरकत में आ गया है. हवा के अतिरिक्त धक्के के साथ मालवाहक जहाजों की ऊर्जा खपत 30 फीसदी तक कम की जा सकती है. इसके अलावा जहाज भविष्य में हरित हाइड्रोजन का इस्तेमाल ईंधन के रूप में कर पाएंगे.
तस्वीर: Skysails
पानी में तैरती पवनचक्कियां
पवन ऊर्जा के लिए समुद्र में पर्याप्त जगह है. लेकिन कई जगहों पर पानी इतना गहरा होता है कि समुद्र तल पर नींव नहीं पड़ सकती. इसका विकल्प है बुईज़ यानी पानी की सतह पर तैरते उत्प्लवों पर टरबाइनें रख दी जाती हैं. ये उत्प्लव समुद्र तल से लंबी कड़ियों के सहारे बांधे जाते हैं. तैरती पवनचक्कियां यूरोप और जापान में पहले से हैं. ये तूफानों में भी स्थिर रहती हैं.
तस्वीर: vestas.com
घरों के लिए पवन ऊर्जा
लंदन में 147 मीटर ऊंची स्ट्राटा एसई1 नाम की गगनचुंबी इमारत में लगीं टरबाइनें भी ध्यान खींचती हैं. लेकिन ऐसे रूफटॉप इन्स्टॉलेशन आमतौर पर किफायती नहीं होते क्योंकि शहरों में हवा अक्सर काफी कमजोर रहती है. छतों पर तो सौर प्लेटें ही ज्यादा कारगर साबित होती हैं.
तस्वीर: picture-alliance/Global Warming Images/A. Cooper
सबसे अधिक पर्यावरण-अनुकूल ऊर्जा
तीन से 11 महीने में पवनचक्कियां उतनी ऊर्जा पैदा कर देती हैं जितनी उन्हें बनाने में खर्च होती है. इस बिजली उत्पादन की प्रक्रिया में सीओटू तो नहीं निकलती लेकिन आसपास का सूरतेहाल बदल जाता है. दूसरे ऊर्जा स्रोतों की तुलना में, अब भी पवन ऊर्जा का पर्यावरणीय ग्राफ बेहतर है. जर्मनी की संघीय पर्यावरण एजेंसी के मुताबिक पवनचक्कियों की पर्यावरणीय लागत, कोयले की ऊर्जा से 70 गुना कम है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/J. Tack
सौर ऊर्जा की जगह क्या है?
पवन और सौर ऊर्जा संयंत्र मिलकर दुनिया की ऊर्जा जरूरतों को पूरी कर सकते हैं. पवनचक्कियां 10 किमी प्रति घंटा की रफ्तार वाली हवाओं से बिजली पैदा करती हैं. तीखी धूप वाले इलाकों में सौर प्लेटें सबसे सस्ता ऊर्जा स्रोत हैं. इक्वेटर से और उत्तर और दक्षिण की ओर, पवन और सौर ऊर्जा की मिलीजुली जरूरत होती है. हवादार इलाकों में खासकर, पवनचक्कियां ऊर्जा का सबसे महत्त्वपूर्ण स्रोत बन सकती हैं.