चीन अगले महीने ट्रेनों की नई पीढ़ी को पटरियों पर उतार देगा. लेकिन हो सकता है कि इसकी उम्र कम हो क्योंकि उससे अगली पीढ़ी भी तैयार है.
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अगले महीने चीन दुनिया की सबसे तेज ट्रेन पटरी पर उतार देगा. इसकी स्पीड होगी 380 किलोमीटर प्रति घंटा. सितंबर से ट्रेन काम करना शुरू कर देगी. चीन के सरकारी अखबार पीपुल्स डेली ऑनलाइन ने खबर छापी है कि जेंगजू-शुजोऊ ट्रैक पर यह ट्रेन सितंबर से दौड़ने लगेगी. जेंगजू-शुजोऊ ट्रैक हाई स्पीड ट्रैक है. नई ट्रेन के चलने के बाद मध्य चीन के जेंगजू से पूर्वी हिस्से में स्थित शुजोऊ की दूरी सिर्फ एक घंटा 20 मिनट की रह जाएगी. फिलहाल यह दूरी दो घंटे 33 मिनट की है.
देखें, जर्मन ट्रेन ICE भी कमाल है
तेज रफ्तार में आईसीई
जर्मनी की सबसे तेज ट्रेन यानि इंटरसिटी एक्सप्रेस (आईसीई) ने अपने 25 साल पूरे कर लिए हैं. तेजी से एक नजर इस रफ्तार पर.
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रेलों की रानी
अगर आप जर्मनी घूमे हैं तो आईसीई से जरूर वाकिफ होंगे. जर्मनी में सार्वजनिक परिवहन का संचालन करने वाली कंपनी डॉयचे बान की सबसे तेज ट्रेन. हालांकि यह ट्रेन रेलवे को आने वाले कुल राजस्व का कुल 8 से 10 प्रतिशत ही जुटाती है. लेकिन डॉयचे बान को इसकी रफ्तार पर फख्र है.
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नई आईसीई की तैयारी
दिसंबर 2015 में बर्लिन में एक नई आईसीई 4 को लाया गया है जो कि पिछली आईसीई 3 से भी तेज है. उम्मीद की जा रही है कि प्रयोग के बतौर इस नए मॉडल की शुरुआत इस साल की जाएगी और अगले साल तक ये ट्रेन के रोजाना के टाइम टेबल में शामिल हो जाएगी. आईसीई की लंबाई तकरीबन 350 मीटर है और इस ट्रेन में 850 यात्री सवार हो सकते हैं.
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तेज ट्रेन के पुरखे
1957 से 1987 तक के सालों में यूरोपीय संघ बनने से पहले तब के यूरोपियन इकनॉमिक कम्युनिटी यानि ईडब्लूजी में ट्रांस यूरोप एक्सप्रेस सबसे तेज ट्रेन हुआ करती थी. इन ट्रेनों में केवल प्रथम श्रेणी के डिब्बे थे. यह मशहूर टीईई ट्रेन की तस्वीर है जिसे 'राइनगोल्ड' के नाम से जाना जाता रहा.
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पर्यटकों का आकर्षण
एक नजर डालिए 1960 के दशक की सबसे लक्सरी ट्रेन टीईई 'राइनगोल्ड' की भीतरी सजावट पर. इसमें एक डिब्बा खूबसूरत बार होता था. आज भी ट्रेन यात्रा के शौकीनों को राइनगोल्ड का ये माहौल लुभा सकता है. ट्रैवल एजेंसियां इस टीईई ट्रेन के साथ इस अतीत की यात्रा के पैकेज लाती रहती हैं.
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फ्लाइंग ट्रेन
1930 में जर्मन राइशबान ने डीजल चलित रेल कारों को काफी प्राथमिकता दी. यह दौर था जब रेल यातायात के नेटवर्क को बढ़ाकर और इसे तेजी देकर निजी कारों और हवाई जहाजों से टक्कर लेने की कवायद चल रही थी. 1933 में 'फ्लाइंग ट्रेनें' लाई गईं जिसने यात्रा में लगने वाले समय में काफी कटौती की. पहला हाई स्पीड रेल नेटवर्क ही आज के उम्दा आईसीई नेटवर्क की नींव बना.
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आईसीई से पहले
हालांकि 1903 में हाई स्पीड यातायात के क्षेत्र में पहला प्रयोग एक इलेक्ट्रिक हाई स्पीड रेल नेटवर्क के क्षेत्र में काम कर रहे एक मशहूर रिसर्च असोशिएसन ने किया. इसमें पहली बार तीन चरणों वाली एक एक्सप्रेस रेल कार बर्लिन में 210 किमी प्रति घंटे की रफ्तार तक पहुंची. लेकिन असल में पहले विश्वयुद्ध के बाद ही हाई स्पीड रेलों का विकास हो सका.
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अंतराष्ट्रीय प्रतिद्वंद्वी
पारंपरिक रेल तकनीक के आधार पर बनाई गई रेलों में सबसे तेजी से चलने वाली रेल फ्रांस की टीजीवी है. यह ट्रेन 1981 में चलन में आई. इसका सबसे नया वर्जन एजीवी है जिसने 2007 में 574 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार छू ली. लेकिन सामान्य तौर पर इसकी रफ्तार 320 तक रहती है. ये ट्रेनें जर्मनी, बेल्जियम, ब्रिटेन, स्विट्जरलैंड और इटली की पटरियों पर दौड़ती दिखती हैं.
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380 की रफ्तार में बीजिंग से शंघाई
आईसीई बानाने वाली सीमेंस ने ही वेलारो ट्रेन मॉडल भी तैयार किया. इसमें लोकोमोटिव इंजन के बजाय मोटर यूनिट का इस्तेमाल होता है. चीन में यह सबसे तेज मानी जाने वाली वेलारो ट्रेन, हारमोनी सीएचआर 380ए लगातार इस्तेमाल हो रही है. इसे अधिकतम 380 किमी प्रति घंटे की रफ्तार के लिए डिजायन किया गया है. 2010 में किए गए एक टेस्ट रन में यह ट्रेन 486 की रफ्तार पकड़ने में कामयाब रही.
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जापान: हाई स्पीड की अगुआई
फ्रांसीसी इंजीनियरों से भी पहले जापानी इंजीनियरों ने एक हाई स्पीड ट्रेन शिंकान्सेन विकसित कर ली थी. इस ट्रेन का शुरुआती मॉडल 1964 के ग्रीष्मकालीन टोकियो ओलंपिक के दौरान वहां की पटरियों में 210 किमी प्रति घंटा की रफ्तार से दौड़ रहा था. इसका सबसे नया मॉडल अभी 320 किमी प्रति घंटा की रफ्तार से दौड़ सकता है.
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सुपरसोनिक रफ्तार में भविष्य की दौड़
हाइपरलूप, हाईस्पीड ट्रांसपोर्ट सिस्टम की एक परिकल्पना है जिसे आगे बढ़ाया है टेस्ला के संस्थापक इलॉन मस्क ने. इसमें परिष्कृत दबाव वाली ट्यूब शामिल हैं जिससे प्रेशराइज्ड कैप्सूल, इंडक्शन मोटरों और एयर कंप्रेशरों की मदद से बनाए गए एयर कुशन में 1200 किमी प्रतिघंटा से भी तेज रफ्तार में भागते हैं.
तस्वीर: Hyperloop Technologies
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इस ट्रेन के साथ ही बुलेट ट्रेन नई पीढ़ी में प्रवेश कर जाएगी. पिछली पीढ़ी की तुलना में इस ट्रेन की रफ्तार में 50 किलोमीटर प्रति घंटा की बढ़ोतरी हुई है. ट्रैक पर इसकी स्पीड 350 किलोमीटर प्रतिघंटा तक रहेगी. वैसे 400 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से दौड़ने वाली ट्रेन भी ज्यादा दूर नहीं है. उसके परीक्षण चल रहे हैं.
भविष्य में चीन में यात्रियों को लाने-लेजाने का पूरा जिम्मा इन हाई स्पीड रेलगाड़ियों का ही होगा. वहां 16000 किलोमीटर लंबे ऐसे विशेष ट्रैक बनाए जा चुके हैं जहां हाई स्पीड ट्रेनें चल सकती हैं. देश के सारे बड़े शहरों को इन हाई स्पीड ट्रैक के जरिए एक-दूसरे से जोड़ा जा चुका है. और बहुत सारे ट्रैक मुनाफा भी कमा रहे हैं. बीजिंग-शंघाई ट्रेन ने पिछले साल एक अरब डॉलर का मुनाफा कमाया था.
ये ट्रेनें यात्राओं को आसान तो कर ही रही हैं, अर्थव्यवस्था की बढ़ोतरी में इनकी भूमिका भी बेहद अहम हो चली है. सरकार नई लाइनें बनाकर अर्थव्यवस्था को जरूरी ऊर्जा देने में इस्तेमाल कर रही है. ढांचागत निर्माण में निवेश बेहद कामयाब फॉर्मूला रहा है.
तस्वीरों में: हवा पर दौड़ती रेल की योजना
हवा पर दौड़ती रेल की योजना
अमेरिका के नेवाडा में दुनिया की सबसे तेज रेल बनाने की तैयारी चल रही है. लेकिन नई रेलगाड़ी बनाने वाली टीम के सामने कड़ी चुनौती है.
तस्वीर: Hyperloop Technologies
777 मील प्रति घंटा
हाइपरलूप रेलगाड़ी इंजीनियर इलॉन मस्क का नवीनतम आयडिया है. एयर स्पेस कंपनी स्पेस एक्स और इलेक्ट्रिक कार निर्माता टेस्ला के संस्थापक सैन फ्रांसिस्को और सिलिकन वैली को सेंट्रल वैली और लॉस एंजेलिस से जोड़ना चाहते हैं. ट्रेन का मॉडल किसी हवा भरे ट्यूब जैसा दिखता है.
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निर्वात जैसा
हालांकि हाइपरलूप मॉडल में असल में हवा भरी ट्यूब नहीं है, बल्कि कम किए हुए हवा के दबाव जैसा वातावरण होगा. इंजीनियरों का कहना है कि हवा को पूरी तरह हटाना संभव नहीं. लेकिन नियमित पंपिंग से ट्यूब में दबाव कम किया जा सकता है जिससे रेल को बहुत कम हवा के अवरोध और घर्षण का सामना करना पड़ेगा.
तस्वीर: Hyperloop Technologies
पानी के नीचे
रेल की सुरंग पानी के नीचे से भी ले जाई जा सकेगी. इससे निर्माण परमिट मिलने में भी आसानी होगी. अभी प्रोजेक्ट मात्र ड्राइंग बोर्ड पर ही है. लेकिन कंपनी हाइपरलूप ने मॉडल के लिए लास वेगस के पास टेस्ट एरिया बनाने की तैयारियां शुरू कर दी हैं.
तस्वीर: Hyperloop Technologies
हवा पर सवार
पतली संरचना वाले हाइपरलूप को कुछ ऐसे बनाया जाएगा कि वह हवा के गद्दों पर दौड़ सके. और ये गद्दे रेलगाड़ी खुद 777 मील प्रति घंटा (1250 किलोमीटर प्रति घंटा) की रफ्तार से दौड़कर बनाएगी. लेकिन क्या यात्री इस रफ्तार को बर्दाश्त कर पाएंगे? अगर किसी की तबियत खराब हो जाती है तो रेलगाड़ी के छोटे-छोटे डब्बों में प्राथमिक मदद कैसे पहुंचाई जाएगी?
तस्वीर: picture-alliance/SpaceX via AP/P. Larson
स्विट्जरलैंड के लिए सबवे
आंशिक रूप से वायुहीन ट्यूब का आयडिया नया नहीं है. स्विस इंजीनियर भी भविष्य की स्विस मेट्रो कुछ इसी तर्ज पर तैयार करने की योजना पर काम कर रहे हैं. उनकी ट्रेन हवा पर नहीं बल्कि विद्युत चुंबकीय कुशन पर दौड़ लगाएंगी. उनका रफ्तार का लक्ष्य 500 किलोमीटर प्रति घंटा है.
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हवाई जहाज सा अनुभव
जापान में एक टेस्ट में कुछ चुनिंदा यात्री स्विस मेट्रो से मिलती जुलती मागलेव मैग्नेटिक ट्रेन का मजा उठा सकते हैं. यह ट्रेन जितनी रफ्तार पकड़ती जाती है उतनी स्थिर होती जाती है. 2027 में पहली पब्लिक लाइन टोक्यो से नागोया के बीच चलाए जाने की योजना है, 500 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार पर.
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जल्दी पहुंचने का साधन
शंघाई की मागलेव ट्रेन इस समय दुनिया की सबसे तेज ट्रेन है जो चल रही है. यह भी जापान जैसी तकनीक पर आधारित है. यह अधिकतम 430 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से चल सकती है. ट्रेन शंघाई सेंट्रल स्टेशन के बाहर से हवाई अड्डे तक की 19 मील की दूरी मात्र 8 मिनट में पूरी करती है.
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जर्मनी में हुई खोज
शंघाई की ट्रेन को जर्मन कंपनियों सीमेंस और थीसेनक्रुप्प ने बनाया है. इस तरह की पहली ट्रांसरैपिड ट्रेन को 1983 में उत्तरी जर्मनी में टेस्ट किया गया था. इस तरह की लाइन का निर्माण जर्मनी में करने के लिए कई कंसेप्ट थे. लेकिन उन्हें पर्याप्त राजनीतिक समर्थन नहीं मिला.
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गद्दे नहीं पहिए
जर्मनी ने इनकी जगह सीमेंस की ही बनाई हुई वेलारो हाई स्पीड ट्रेन को चुना. वे मौजूदा रेल की पटरियों पर चलाई जा सकती हैं. 1988 में आईसीई ने 405 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से चलने का रिकॉर्ड बनाया. लेकिन व्यावहारिक तौर पर वे 300 किलोमीटर प्रति घंटा से ही चलती हैं.
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बीजिंग से शंघाई
सबसे तेज वेलारो रेल चीन में चलती है. 2010 में एक ट्रायल रन के दौरान सीआरएच 380ए ने 484 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से दौड़ लगाई. लेकिन इन दिनों बीजिंग से शंघाई के बीच यह 380 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चलती है.
तस्वीर: imago/UPI Photo
फ्रांस की टीजीवी
पारंपरिक रेलों में फ्रांस की टीजीवी रेल सबसे आगे मानी जाती है. 1981 से जारी इस रेल का आधुनिकतम स्वरूप 2007 में 572 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार पकड़ने में कामयाब हुई थी. आमतौर पर ये 320 की रफ्तार पर चलती हैं. टीजीवी रेल जर्मनी, बेल्जियम, यूके, स्टिट्जरलैंड और इटली में चलती हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/C. Sasso
जापानी हाई स्पीड रेल
जापान ने फ्रांस से भी पहले हाई स्पीड रेल उतारी थी. टोक्यो में 1964 में ओलंपिक खेलों के दौरान शिनकांसेन ने दौड़ना शुरू किया. उस समय यह 215 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से चलती थी. आज ये अधिकतम 320 की रफ्तार से चलती हैं.
तस्वीर: cc-by-sa/D A J Fossett
कम रफ्तार कम खपत
2017 की शुरुआत में जर्मन रेल सेवा डॉयचे बान आधुनिकतम आईसीई-4 लॉन्च करेगी. ये वर्तमान से धीमी रफ्तार में चलेंगी. यानि 300 की जगह 250 किलोमीटर प्रति घंटा. वे पहले की तुलना में कम ऊर्जा का इस्तेमाल करेंगी.
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लेकिन चीन सिर्फ अपने देश में ही नहीं रुका है. अपनी हाई स्पीड ट्रेनों को दुनिया भर में बेचने की ओर भी उसका ध्यान है. अपनी हाई स्पीड ट्रेन तकनीक को लेकर चीन आक्रामक प्रचार कर रहा है. भारत को भी अपनी ट्रेनें बेचने की उसकी कोशिश पूरे जोरों पर है. चीन की एक कपंनी फिलहाल नई दिल्ली से चेन्नई के बीच हाई स्पीड ट्रेन चलाने की संभावनाएं तलाश रही है. भारत की मोदी सरकार देश में बुलेट ट्रेन चलाने को लेकर दिलचस्पी जाहिर कर ही चुकी है. पहली बुलेट ट्रेन अहमदाबाद से मुंबई के बीच चलने की योजना बन चुकी है.