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ईवी पर बने तनाव के बीच चीन की यात्रा पर जर्मन उप चांसलर

स्वाति मिश्रा
२१ जून २०२४

जर्मनी के वाइस चांसलर और आर्थिक मामलों के मंत्री रोबर्ट हाबेक पूर्वी एशिया की अपनी यात्रा के क्रम में चीन पहुंचे हैं. उनके साथ एक व्यापारिक प्रतिनिधिमंडल और जर्मन संसद के निचले सदन बुंडेसटाग के सदस्य भी हैं.

Wirtschaftsminister Habeck in China
तस्वीर: Sebastian Gollnow/dpa/picture alliance

चीन की यात्रा पर रवाना होने से पहले 19 जून को जर्मनी के उप चांसलर और आर्थिक मामलों के मंत्री रोबर्ट हाबेक ने कहा कि बीजिंग के साथ संबंध जटिल होते जा रहे हैं, लेकिन वह अब भी कई क्षेत्रों में एक अहम सहयोगी है.

हाबेक ने चीन के साथ जर्मनी के संबंधों पर बदलते नजरिये को रेखांकित करते हुए कहा, "हालिया सालों का अनुभव यह है कि किसी एक देश पर बहुत ज्यादा निर्भरता, जिसके साथ आपकी एक खास तरह की प्रतियोगिता या व्यवस्थागत प्रतिद्वंद्विता हो, समस्या बन सकती है. जर्मन अर्थव्यवस्था इस बात को पूरी तरह समझ चुकी है."

रोबर्ट हाबेक ने कहा है कि चीन पर जर्मनी की रणनीति में यूरोप के रुख को भी ध्यान में रखना चाहिए. पिछले साल जर्मनी ने चीन को अपना "सहयोगी, प्रतियोगी और व्यवस्थागत प्रतिद्वंद्वी" बताया था. साथ ही, बर्लिन ने जर्मन कंपनियों से अपील की थी वे चीन से अपनी निर्भरता घटाएं. तस्वीर: Sebastian Gollnow/dpa/picture alliance

यूरोपीय संघ और चीन में कारोबारी टकराव

हाबेक ऐसे समय में चीन के दौरे पर गए हैं, जब कारोबारी पक्षों को लेकर यूरोपीय संघ (ईयू) और बीजिंग के बीच तनाव बढ़ा हुआ है और खुद जर्मनी भी चीन के साथ व्यापारिक रिश्तों में संतुलन खोज रहा है.

हाल ही में यूरोपीय आयोग ने चीन से आयात होने वाले इलेक्ट्रिक वाहनों पर अत्यधिक सब्सिडी से निपटने के लिए टैरिफ बढ़ाने की बात कही. इसके तहत, ईयू चीन से आयातित इलेक्ट्रिक वाहनों पर 38 फीसदी तक अतिरिक्त एंटी-सब्सिडी ड्यूटी लगा सकता है.

बीजिंग ने चेताया कि बढ़ता टकराव व्यापारिक युद्ध की नौबत ला सकता है. चीन में भी गाड़ी बनाने वाली कंपनियां यूरोपीय उत्पादों पर कार्रवाई की मांग कर रही हैं. चाइनीज ऑटोमेकर कंपनियों ने इसी हफ्ते सरकार से अपील की कि वह भी यूरोप में बने पेट्रोल से चलने वाले कारों के आयात पर टैरिफ बढ़ाए.

चीनः क्या यूरोप से लेगा इलेक्ट्रिक वाहनों पर ड्यूटी बढ़ाने का बदला!

मामला सिर्फ गाड़ियों पर रुकता नहीं दिख रहा है. 17 जून को चीन ने ईयू से आने वाले कुछ पोर्क उत्पादों के खिलाफ ऐंटी-डंपिंग जांच शुरू की है. चीन में ईयू के चैंबर ऑफ कॉमर्स ने इसे बदले की कार्रवाई बताया. चीन के वाणिज्य मंत्रालय ने अपने बयान में कहा भी कि इसके लिए पूरी तरह से ईयू जिम्मेदार है.

हाल ही में यूरोपीय आयोग ने चीन से आयात होने वाले इलेक्ट्रिक वाहनों पर अत्यधिक सब्सिडी से निपटने के लिए टैरिफ बढ़ाने की बात कही. बीजिंग ने इसपर सख्त प्रतिक्रिया देते हुए चेताया है कि वह भी अपने व्यापारिक हित सुनिश्चित करेगा और टकराव बना रहा, तो ट्रेड वॉर की स्थिति आ सकती है. तस्वीर: Florence Lo/REUTERS

किन मुद्दों पर हो सकती है बातचीत?

इस तनातनी के बीच उम्मीद है कि हाबेक की चीनी अधिकारियों के साथ मुलाकात में भी ये मुद्दे उठेंगे. जर्मनी इनपर अपना पक्ष रख सकेगा. हालांकि, जर्मनी में आर्थिक मामलों का मंत्रालय पहले ही स्पष्ट कर चुका है कि हाबेक यूरोपीय आयोग की ओर से बात करने नहीं गए हैं.

जर्मन ऑटो इंडस्ट्री कई मामलों में चीन पर काफी निर्भर है और उनके निवेशी हित भी हैं. जर्मनी की बड़ी कार कंपनियों ने ईयू द्वारा एलान किए गए अतिरिक्त शुल्क का विरोध भी किया है. जर्मनी ने भी संवाद की जरूरत बताते हुए आपसी सहमति बनाने की अपील की है. चीन की मीडिया भी हाबेक की यात्रा को 'कॉमन ग्राउंड' बनाने की कोशिश के तौर पर पेश कर रही है.

चीनी कंपनियों को कैसे टक्कर दे रहा है जर्मनी का एक सोलर स्टार्टअप

20 जून को ग्लोबल टाइम्स ने अपनी टिप्पणी में लिखा, "यह यात्रा एक अहम समय में हो रही है जब चीन और ईयू व्यापारिक टकराव महसूस कर रहे हैं. कुछ विशेषज्ञों ने कहा कि हाबेक की यात्रा जर्मनी के लिए सामंजस्य बैठाने की कोशिश का मौका है, ना कि विरोध का. दोनों पक्षों को साझा जमीन तलाशने और एक-दूसरे की चिंताओं पर बात करने की जरूरत है."

अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर हाबेक जर्मन कंपनियों के लिए अधिक न्यायसंगत प्रतियोगिता और पारदर्शी टेंडर व्यवस्था पर भी बात करेंगे. समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक, हाबेक रूस के लिए चीन के समर्थन और यूक्रेन युद्ध से जुड़़े मसलों पर भी बात कर सकते हैं.

जी7: आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और रूस को चीनी सहयोग पर चर्चा

जर्मन उद्योगों ने बनाई चीन के लिए नई रणनीति

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चीन के साथ संतुलन की तलाश में जर्मनी

चीन पर बनी व्यापारिक निर्भरता जर्मनी के लिए एक बड़ी चिंता है. पिछले साल चीन में जर्मनी का प्रत्यक्ष निवेश बढ़कर करीब 1,300 करोड़ डॉलर की रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गया. एक ओर बर्लिन, बीजिंग को अपना प्रतिद्वंद्वी मानता है, वहीं जर्मन कंपनियों का चीन में पैसा लगाना जारी है.

हाबेक पहले भी चीन के साथ एहतियात बरतने की जरूरत बताते आए हैं. चीन, जर्मनी के लिए निर्यात का दूसरा सबसे बड़ा बाजार है और आयात का सबसे बड़ा स्रोत है. जानकार लंबे समय से चीन पर जर्मनी की इस अति निर्भरता में कोर्स करेक्शन की जरूरत बताते आए हैं.

चीन का जोखिम घटाने के लिए क्या कर रही हैं जर्मन कंपनियां

यूक्रेन युद्ध के बाद रूसी गैस आयात पर ऐसी ही अति निर्भरता ने जर्मनी में गंभीर ऊर्जा संकट की स्थिति पैदा कर दी. इस प्रकरण ने जर्मनी की एक बड़ी कमजोरी को जाहिर किया और चीन से निर्भरता घटाने की जरूरत ज्यादा गहराई से महसूस की जाने लगी. बदली हुई परिस्थितियों में जी7 देशों के आर्थिक मामलों के मंत्रियों की बैठक के बाद हाबेक ने जैसे एलान किया कि चीन के साथ "अनुभवहीनता का दौर बीत चुका है."

हाबेक ने स्पष्ट तौर पर कहा कि जर्मनी को अपने कारोबारी हितों के लिए एशिया में और साझेदार खोजने होंगे. उन्होंने जोर दिया कि जर्मनी, चीन के साथ व्यापार करना चाहता है, लेकिन अपने हितों को ध्यान में रखते हुए, "हम बेशक चीन के साथ व्यापार में दिलचस्पी रखते हैं, लेकिन मूर्खतापूर्ण कारोबार नहीं."

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