चीन की आबादी की समस्या क्या आईवीएफ से हल होगी
१ मई २०२३घटती आबादी को रोकने की कोशिश में चीन के लिए चेन लुओजिन जैसी औरतें समाधान का हिस्सा हो सकती हैं. 33 साल की तलाकशुदा लुओजिन चेंगदू में रहती हैं, जो शिचुआन प्रांत की राजधानी है. फरवरी में इस राज्य में अविवाहित महिलाओं को भी बच्चों के रजिस्ट्रेशन का कानूनी अधिकार मिल गया. घटते जन्मदर की समस्या से निबटने के लिए पूरे देश में यह व्यवस्था लागू करने की तैयारी चल रही है.
नयी व्यवस्था से क्या फायदा होगा
इस व्यवस्था का फायदा ये है कि अविवाहित महिलाएं वेतन के साथ मातृत्व अवकाश ले सकेंगी और साथ ही बच्चों को मिलने वाली सब्सिडी का लाभ भी उन्हें मिल सकेगा. यह सुविधायें अब तक सिर्फ शादीशुदा मांओं को ही मिलती है. सबसे अहम है कि लुओजिन को कानूनी रूप से प्राइवेट इन विट्रो फर्टिलिटी ट्रीटमेंट लेने का भी कानूनी अधिकार मिल गया. अब वो 10 महीने की गर्भवती हैं.
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लुओजिन ने कहा, "अकेली मां बनना सबके लिए संभव नहीं है, लेकिन मैं इस फैसले के साथ खुश हूं. इसी तरह से शादी करना या नहीं करना, यह सबको खुद फैसला करना होता है. हमारे यहां नीतियों को उदार बनाया गया है और मैं जानती हूं कि बहुत सी अकेली औरतें आईवीएफ का लाभ ले रही हैं."
आबादी घटने से चिंता
चीन में एक तरफ छह दशकों में पहली आबादी घटने से चिंता है, तो दूसरी तरफ तेजी से बूढ़े होते लोगों से समस्या. सरकार के राजनीतिक सलाहकारों ने प्रस्ताव दिया था कि अकेली और अविवाहित औरतों को भी दूसरी चीजों के साथ एग फ्रीजिंग और आईवीएफ ट्रीटमेंट की सुविधा मिलनी चाहिए. चीन के नेताओं ने सार्वजनिक रूप से इस पर अभी कोई बयान नहीं दिया है.
भारत की बढ़ती आबादी से चिंतित नहीं है चीन
आईवीएफ को उदार बनाने से देश भर में फर्टिलिटी ट्रीटमेंट की मांग बढ़ेगी, जो पहले ही दुनिया का सबसे बड़ा फर्टिलिटी मार्केट है. कुछ निवेशक इस उद्योग के विस्तार की संभावना देख रहे हैं. चीन के राष्ट्रीय स्वास्थ्य आयोग ने आईवीएफ की पहुंच को उदार बनाने के बारे में समाचार एजेंसी रॉयटर्स के पूछे सवाल का जवाब नहीं दिया. हालांकि आयोग पहले यह मान चुका है कि बहुत सी युवतियां शादी और बच्चे के बारे में फैसला करने मे देरी कर रही हैं. पढ़ाई और बच्चे के पालने में खर्च को शादी की घटती संख्या का जिम्मेदार बताया गया है. फरवरी में नई नीति की घोषणा के वक्त शिचुआन की एनएचसी ने कहा कि उनका लक्ष्य, "आबादी के विकास में दीर्घकालीन संतुलन को बढ़ावा" देना है. शंघाई और दक्षिणी गुआंगडोंग प्रांत ने अकेली मांओं के बच्चों का रजिस्ट्रेशन तो शुरू कर दिया है, लेकिन आईवीएफ की सेवाएं अभी केवल शादीशुदा औरतों को ही मिल सकती है.
भारी मांग जो पूरी नहीं हो पा रही है
कोविड 19 की महामारी के पहले चीन के आईवीएफ क्लिनिक पूरी क्षमता से चल रहे थे. उम्मीद यही है कि जल्दी ही यह स्थिति दोबारा लौटेगी. कितनी महिलाएं यह इलाज चाहती हैं, इसका कोई आंकड़ा तो नहीं है, लेकिन जिन महिलाओं ने इसका लाभ उठाया है उनका कहना है कि उन्हें अस्पताल में अपनी बारी के लिए घंटो इंतजार करना पड़ा था. 34 साल की विवाहित महिला शियांग्यू चोंगकिंग में आईवीएफ ट्रीटमेंट ले रही हैं. यह चेंगदू से करीब 300 किलोमीटर दूर है. उन्होंने बताया, "अस्पतालों में लाइन बहुत लंबी है."
चीन के सरकारी या प्राइवेट क्लिनिक और अस्पतालों में कुल मिला कर हर साल 10 लाख आईवीएफ ट्रीटमेंट दिये जा रहे हैं, जबकि बाकी पूरी दुनिया में इसकी संख्या केवल 15 लाख है. ये आंकड़े एकेडमिक जर्नल और उद्योग से जुड़े विशेषज्ञों के हैं. एक ट्रीटमेंट साइकल पर 3.5-4.5 हजार अमेरिकी डॉलर का खर्च आता है, जो अमेरिका की तुलना में करीब एक चौथाई है. चीन में 539 आईवीएफ सेंटर हैं और स्वास्थ्य आयोग का कहना है कि 2025 तक 23 लाख की आबादी पर एक क्लिनिक होगा. यानी कुल संख्या 600 के ऊपर होगी.
चीन में आईवीएफ का बाजार आने वाले सालों में 14.5 फीसदी की दर से बढ़ने की उम्मीद है, जिसमें इलाज, दवाइयां और उपकरण शामिल है. छोटे-छोटे शहरों और इलाकों में भी बीजिंग और शंघाई जैसे आईवीएफ क्लिनिक खुल रहे हैं. लैंगिक शक्ति असंतुलन और चीनी समाज की वर्जनाएं और सामाजिक सर्वेक्षणों के अभाव के कारण यह बताना मुश्किल है कि सुधारों के बाद कुल मांग और भविष्य में होने वाली बढ़ोत्तरी कितनी होगी.
आईवीएफ के लिए विदेश जाती हैं औरतें
रिचार्ज कैपिटल फर्टिलिटी क्लिनिक और टेक्नोलॉजी में निवेश करती है. कंपनी की निदेशक कैमिला कासो का कहना है कि हर साल दूसरे देशों में 500,000 चीनी महिलाओं को आईवीएफ ट्रीटमेंट दी जाती है. इसका मतलब है कि चीन के बाहर जो दुनिया भर में आईवीएफ ट्रीटमेंट दिया जा रहा है, उसमें में भी एक तिहाई हिस्सा चीन की महिलाओं का ही है.
ज्यादातर अकेली महिलाएं विदेशों में ही ट्रीटमेंट लेना पसंद करती हैं. खासतौर से तब, जब वो बच्चों के लिंग का निर्धारण और अलग अलग जेनेटिक टेस्ट करना चाहती हैं. चीन में तीन दशक पहले ही लैंगिक असंतुलन को ठीक करने के लिए बनाया गया कानून मां बाप को जन्म से पहले बच्चों का लिंग जानने से रोकता है.
चीन ने 1980 से 2015 तक कठोर एक बच्चा नीति लागू की थी. यह नियम ही आज आबादी से जुड़ी कई तरह की चुनौतियों का कारण बन गया. इसकी वजह से अब भारत दुनिया में सबसे ज्यादा आबादी वाला देश बन गया. चीन में अब यह सीमा बढ़ा कर तीन बच्चों तक कर दी गई है.
कासो ने बताया कि उनकी कंपनी फिलहाल बैंकॉक और कुआलालंपुर में दो क्लिनिक शुरू कर रही है और अगले तीन से चार सालों में 15 क्लिनिक थाईलैंड, मलेशिया और सिंगापुर में बनाये जायेंगे. यह कंपनी चीन में निवेश नहीं कर रही है क्योंकि आईवीएफ के इंसेंटिव को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है. उनका कहना है कि रीचार्ज चीनी मांग को दक्षिण एशियाई बाजारों के जरिये पकड़ सकती है.
महिलाओं के लिए ज्यादा विकल्प
अमेरिका में आईवीएफ साइकिल की सफलता का औसत दर 52 प्रतिशत है. चीन में यह 30 फीसदी से थोड़ा ज्यादा है. इसका कारण है महिलाओं में तनाव और बच्चे पैदा करने की औसत उम्र का बढ़ना. कुछ विशेषज्ञ चीनी क्लिनिकों की गुणवत्ता को भी इसका जिम्मेदार मानते हैं. फर्टिलिटी सेवाएं मुहैया कराने भर से चीन की आबादी से जुड़ी समस्याएं खत्म नहीं होंगी. आबादी विशेषज्ञों के मुताबिक कम आय, महंगी पढ़ाई, सामाजिक सुरक्षा और लैंगिक असमानता पर ज्यादा ध्यान देना होगा. हालांकि फिर भी इनका कुछ असर तो होगा ही.
अनुमान है कि चीन में पहले ही हर साल 300,000 बच्चे आईवीएफ के जरिये पैदा हो रहे हैं. यह कुल पैदा होने वाले बच्चों का करीब 3 फीसदी है. बहुत सी महिलाओं ने हाल के सालों में बच्चे के बारे में फैसला टाल दिया है, लेकिन अभी भी बहुत सी औरतें यह करना चाहती हैं. हुनान प्रांत में रहने वाली 22 साल की जोय यांग कहती हैं कि अगर उन्हें पार्टनर नहीं मिला और आर्थिक स्थिति अच्छी रही, तो वह एक बच्चा पैदा कर सकती हैं. यांग ने कहा, "बहुत सी औरतें हैं, जो शादी नहीं करना चाहतीं, लेकिन फिर भी बच्चे पैदा करना चाहती हैं. मैं आईवीएफ चुन सकती हूं."
एनआर/एसएम (रॉयटर्स)