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क्या एआई की होड़ में अमेरिका से जीत पाएगा चीन?

निक मार्टिन
२४ अक्टूबर २०२५

चीन 2030 तक एआई की फील्ड में अगुआ बनना चाहता है. बीजिंग का लक्ष्य है कि उसके एआई प्लेटफॉर्म अमेरिकी क्षमताओं की बराबरी में हों. लेकिन उन्नत चिप्स की कमी और फ्री स्पीच के बिना क्या चीन जीत पाएगा?

एक शख्स मोबाइल पर एआई टूल्स देखते हुए. इसमें चैटजीपीटी, ग्रोक और डीपसीक के ऐप दिख रहे हैं.
अमेरिका अभी एआई में टॉप पर है. चीन इस फील्ड में अमेरिका और अपने बीच के फासले को तेजी से पाट रहा हैतस्वीर: David Talukdar/ZUMA Press Wire/picture alliance

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) वैश्विक ताकत की नई मुद्रा बन गया है, और चीन बड़े पैमाने पर इसे हासिल करने में जुटा है.

चीन ने 2017 में एलान किया कि साल 2030 तक वह दुनिया की अग्रणी एआई शक्ति बनेगा. इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए चीन में अरबों डॉलर का निवेश किया है. इसकी वजह से देश के भीतर इनोवेशन भी तेजी से बढ़ा है. अनुमान है कि सरकार और निजी कंपनियों, दोनों को मिलाकर अकेले 2025 में ही चीन एआई पर लगभग 100 अरब डॉलर खर्च करेगा.

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इस साल चीन ने डीपसीक नाम के एक स्टार्टअप के जरिए दुनिया की टेक्नॉलजी इंडस्ट्री को चौंका दिया. इसका लार्ज लैंग्वेज मॉडल, चैटजीपीटी और ग्रोक जैसे पश्चिम के टॉप ब्रैंडों को टक्कर दे रहा है. डीपसीक कमोबेश वैसा ही प्रदर्शन कर रहा है, लेकिन कई गुना कम लागत और कम कंप्यूटिंग शक्ति के साथ.

चीन की टॉप चार टेक कंपनियां हैं बाइडू, अलीबाबा, टेनसेंट और शाओमी. लेकिन एआई की वैश्विक दौड़ में चीन ने सबसे ज्यादा सनसनी तब फैलाई, जब वहां के एक स्टार्टअप डीपसीक ने अपना एआई चैटबॉट जारी किया. इस स्टार्टअप की नींव मई 2023 में रखी गई थी तस्वीर: Jung Yeon-je/AFP

दूसरी तरफ 'अलीबाबा' जैसे ई-कॉमर्स दिग्गज ने एक नया शक्तिशाली एआई मॉडल पेश किया है. उसने दुनियाभर में अधिक डेटा सेंटर बनाने की अपनी योजना का भी एलान किया. यह दिखाता है कि चीन की बड़ी टेक कंपनियां, एआई में अमेरिका के दबदबे को चुनौती देने के लिए गंभीर हैं.

इसी बीच, टेनसेंट ने भी इस दौड़ में अपनी पकड़ मजबूत की है. उसने हुनयुआन-ए13बी नाम का एआई मॉडल लॉन्च किया है जो ज्यादा तेज, ज्यादा स्मार्ट और ओपन-सोर्स है.

इन तमाम प्रगतियों से साफ झलकता है कि किस तरह चीन के एआई ईकोसिस्टम में शामिल स्टार्टअप, बड़ी टेक कंपनियां और खुद सरकार, ये सभी मिलकर पश्चिमी देशों और अपने बीच कायम तकनीकी फासले को पाटने में जुटे हैं.

दुनिया की सबसे बड़ी चिप निर्माता कंपनी एनवीडिया के सीईओ जेनसन हुआंग ने चेतावनी दी है कि अमेरिका को आत्मसंतुष्ट नहीं होना चाहिए, क्योंकि एआई की दौड़ में चीन अभी ज्यादा पीछे नहीं है. हुआंग ने इस महीने की शुरुआत में सीएनबीसी को दिए एक इंटरव्यू में यह भी कहा कि चीन का समाज बहुत तेजी से नई तकनीक को अपनाने वाला समाज है.

'एनवीडिया' दुनिया की सबसे बड़ी चिप निर्माता कंपनी हैतस्वीर: PATRICK T. FALLON/AFP

चीन इस एआई की दूरी को कैसे कम कर रहा है

एक अरब से भी अधिक इंटरनेट इस्तेमाल करने वाले लोगों के साथ चीन की विशाल आबादी अपने आप में एक परीक्षण क्षेत्र का काम करती है. इसके जरिए नई एआई तकनीक बहुत तेजी से उपभोक्ताओं, सेवाओं और उद्योगों तक फैल जाती है. इसके अलावा, चीन के एआई मॉडल सस्ते हार्डवेयर पर भी चलने के लिए बनाए गए हैं, जिससे उनका इस्तेमाल काफी किफायती हो जाता है.

वॉशिंगटन विश्वविद्यालय के कंप्यूटर साइंस प्रोफेसर पेड्रो डोमिंगोस के अनुसार, "अब चीन, अमेरिका की गति से आगे बढ़ रहा है. उन्होंने कुछ ही वर्षों में अमेरिका की रफ्तार को पकड़ लिया है और आगे बढ़ने की कोशिश कर रहा है."

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डोमिंगोस ने रेखांकित किया कि यह धारणा सही नहीं है कि अमेरिका बड़े लैंग्वेज मॉडल के क्षेत्र में बहुत आगे रहा है. उन्होंने बताया कि चीन की कई कंपनियां, जैसे 2010 में बायडू का डीप लर्निंग ग्रुप, कई अमेरिकी कंपनियों से आगे था.

शक्तिशाली मॉडल जैसे डीपसीक, क्वेन-3 और किमी के2 को ओपन-सोर्स बनाकर चीनी कंपनियां डेवलपर्स को उन्नत एआई टूल्स तक मुफ्त पहुंच दे रही हैं. वहीं, पश्चिमी कंपनियां अपने मॉडल्स को पे-वॉल यानी भुगतान की एक दीवार के पीछे बंद रखती हैं.

डीपसीक अपेक्षाकृत काफी कम लागत में बना है. यह ओपन-सोर्स भी हैतस्वीर: Andy Wong/AP Photo/picture alliance

डोमिंगोस ने कहा, "पहले अमेरिकी कंपनियां अपनी एआई तकनीकें खुलकर साझा करती थीं, जिससे इनोवेशन को बढ़ावा मिलता था. अब वे प्रतिस्पर्धा के डर से इन्हें गुप्त रखती हैं, जो इनोवेशन के लिए हानिकारक है."

चीन पर नजर रखने वाले विशेषज्ञों के अनुसार, चीनी एआई कंपनियों में जबरदस्त प्रतिस्पर्धा चल रही है. चीन की सरकारी मीडिया के मुताबिक, जुलाई 2025 तक चीनी कंपनियां 1,500 से अधिक 'लार्ज लैंग्वेज मॉडल' जारी कर चुकी थीं. यह संख्या इस साल के मध्य तक दुनियाभर में जारी हुए 3,755 मॉडलों का लगभग 40 फीसदी है.

अब सवाल यह है कि इन नई कंपनियों (स्टार्टअप्स) में से कितनी असल में लाभ कमा पाएंगी, और क्या यह स्थिति चीन की एआई महत्वाकांक्षाओं को नुकसान पहुंचा सकती है? बीजिंग ने इसपर ध्यान दिया है और तकनीकी क्षेत्र को "अव्यवस्थित प्रतिस्पर्धा" से बचने की सलाह दी है.

ओपनकंपास की 18 अक्टूबर 2025 की रिपोर्ट के अनुसार तर्क, ज्ञान, गणित और कोडिंग क्षमता जैसे क्षेत्रों में प्रदर्शन के आधार पर दुनिया के शीर्ष 20 एआई मॉडलों में से 14 चीन के हैं. शीर्ष स्थान पर अभी भी अमेरिकी कंपनियां हैं, लेकिन खास बात यह है कि चीन के नौ प्रमुख एआई मॉडल ओपन-सोर्स हैं. वहीं, सिलिकॉन वैली की किसी भी कंपनी ने ऐसा कोई ओपन-सोर्स मॉडल जारी नहीं किया है.

अमेरिकी चिप प्रतिबंधों से पैदा खालीपन को भर रहा है चीन

एआई फील्ड में अपनी तरक्की के बावजूद, चीन अब भी उन्नत चिप्स की तकनीक में पीछे है. ये चिप्स 'लार्ज लैंग्वेज मॉडलों' को तेजी से प्रशिक्षित करने के लिए जरूरी हैं.

निर्यात पर अमेरिकी नियंत्रण ने उन्नत सेमीकंडक्टर और चिप निर्माण उपकरणों तक चीन की पहुंच में रोड़ा अटकाया है. इसके कारण घरेलू कंपनियों को पुराने और कम प्रभावी हार्डवेयर पर निर्भर रहना पड़ रहा है.

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जवाब में, बीजिंग ने माइक्रोन टेक्नॉलजी जैसी प्रमुख अमेरिकी कंपनियों से आयात पर प्रतिबंध लगाया है. चीन ने अपना खुद का चिप उद्योग विकसित करने कोशिशें तेज कर दी हैं.

एआई में किए जा रहे बड़े निवेशों का संकेत तब मिला जब अमेरिकी कंपनी एनवीडिया की चीनी प्रतिद्वंद्वी, कैम्ब्रिकॉन टेक्नॉलजीज ने हाल ही में अपनी एक-तिमाही आय में 14 गुना वृद्धि दर्ज की. साल की पहली छमाही में कंपनी की आय 44 गुना बढ़ी, क्योंकि अमेरिकी तकनीकी प्रतिबंधों के बाद चीन की एआई स्टार्टअप कंपनियां स्थानीय विकल्पों की ओर मुड़ी हैं.

ऐसी मुश्किलों और सीमाओं के बीच भी इनोवेशन का दबाव चीन को एआई को बढ़ाने के लिए और ज्यादा स्मार्ट और कुशल तरीके खोजने के लिए प्रेरित कर रहा है. यह उसकी दीर्घकालिक आत्मनिर्भरता की महत्वाकांक्षा को और तेजी से आगे बढ़ा सकता है. यह नतीजा वैसा बिल्कुल नहीं है, जैसा अमेरिका चाहता था.

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डोमिंगोस ने कहा, "अमेरिका द्वारा चीन को चिप निर्यात करने पर लगाई गई पाबंदियां उल्टा असर डाल रही हैं. ये पाबंदियां डीपसीक जैसी कंपनियों के पुराने हार्डवेयर को और बेहतर तरीके से इस्तेमाल करने के लिए प्रेरित करती हैं, जिससे रिसर्च में और प्रगति होती है." उन्होंने बताया कि चीनी कंपनी ने कम उन्नत चिप्स में अधिक स्मार्ट प्रशिक्षण तकनीकों की मदद से शक्तिशाली एआई मॉडल तैयार कर लिया है.

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चीन बनना चाहता है वैश्विक बाजार का बड़ा खिलाड़ी

अमेरिका एआई रिसर्च में अब भी अग्रणी है. वहां वैज्ञानिक ऐसे सिस्टम विकसित कर रहे हैं जो भाषा को बेहतर समझ सकें, ज्यादा भरोसेमंद तरीके से निर्देशों का सटीक पालन कर सकें और हानिकारक व्यवहार से बचें. अमेरिकी टेक कंपनियां उन्नत एआई पर भी काम कर रही हैं, जो खुद फैसले लेने में भी सक्षम हों.

वहीं, चीन जमीनी असर और वैश्विक पहुंच के मामले में तेजी से आगे बढ़ रहा है. वह विकासशील देशों को डिजिटल बुनियादी ढांचा देने के लिए एआई प्लेटफॉर्म और ओपन-सोर्स मॉडल निर्यात कर रहा है. अलीबाबा और हुवावे जैसी कंपनियां एशिया, अफ्रीका और यूरोप में डेटा सेंटर और क्लाउड प्लेटफॉर्म बना रही हैं, जो अमेरिकी सेवाओं की तुलना में सस्ते विकल्प पेश कर रहे हैं.

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बीजिंग अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपने एआई नियम और मानकों को भी आगे बढ़ा रहा है, ताकि वैश्विक मानकों को अपने राष्ट्रीय हितों के अनुरूप आकार दे सके. चीनी डेटा और मूल्यों पर प्रशिक्षित मॉडलों को बढ़ावा देकर सरकार यह तय करना चाहती है कि एआई सिस्टम इतिहास, संस्कृति और सत्य को कैसे समझें. यह सब एक सत्तावादी प्रणाली से आ रहा है, जहां अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता अभी भी सीमित है.

डोमिंगोस के अनुसार, "जो भी लार्ज लैंग्वेज मॉडल पर नियंत्रण रखेगा, वही अतीत और भविष्य दोनों पर नियंत्रण रखेगा. ये मॉडल वास्तविकता को आकार देते हैं और चीन चाहता है कि वह अपना नजरिया दिखाए."

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सैन फ्रांसिस्को स्थित यूसी लॉ के 'एआई लॉ एंड इनोवेशन इंस्टिट्यूट' की निदेशक रॉबिन फेल्डमैन ने इसे "शीत युद्ध का नया रूप" करार दिया. उन्होंने अमेरिकी समाचार वेबसाइट एक्सिऑस को बताया, "यह युद्ध वही देश जीतेगा, जो एआई के क्षेत्र में सबसे आगे रहेगा और उस बढ़त को लंबे समय तक बनाए रखने में सक्षम होगा."

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