यूं कहने को तो चीन में साम्यवाद है, लेकिन समय समय पर राष्ट्रवाद अपना चेहरा दिखाता रहता है. ऑनलाइन युग में राष्ट्रवादी ट्रोल खेलों के सहारे अपना चेहरा दिखाते हैं. ओलंपिक के दौरान चीनी और विदेशी एथलीटों को निशाना बनाया.
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"मैं आप सबसे माफी मांगती हूं." टोक्यो ओलंपिक के मिक्स्ड डबल्स में जापानी टीम से खिताब हारने के बाद चीन की टेबल टेनिस खिलाड़ी ल्यू शिवेन ने कुछ इस तरह से देशवासियों का सामना किया. खिताब हारने के बाद उन्होंने अफसोस जाहिर करते हुए आगे लिखा, "मुझे लगता है कि मेरी वजह से टीम हार गई." मैच हारने के बाद देशवासियों से माफी मांगने वाली ल्यू अकेली एथलीट नहीं हैं. इसी तरह का माफीनामा 10 मीटर राइफल शूटिंग में क्वालिफाई न कर पाने वाले वांग लुयाओ ने भी जारी किया था.
वीबो पर एक सेल्फी पोस्ट करते हुए वांग ने लिखा था कि देशवासियों को नीचा दिखाने के लिए उन्हें बहुत अफसोस है. हालांकि गुस्से से भरी तमाम टिप्पणियों के बाद उन्होंने यह पोस्ट डिलीट कर दी. एक नागरिक की टिप्पणी थी, "मैच हारने के बाद सेल्फी पोस्ट करने की तुम्हारी हिम्मत कैसे पड़ गई?"
इसी तरह का एक अन्य उदाहरण ली जुन्हुई का है जिन्होंने बैडमिंटन की पुरुषों की डबल्स प्रतिस्पर्धा में अपने साथी ल्यू युचेन के साथ पिछले शनिवार को रजत पदक जीता था. चीन की लोकप्रिय माइक्रोब्लॉगिंग साइट वीबो पर वो लिखते हैं, "मुझे अफसोस है. हमने पूरी कोशिश की, फिर भी आप सबको निराश होना पड़ा." ली ने यह टिप्पणी ताइवान के बैडमिंटन खिलाड़ियों ली यांग और वान चिलिन से हारने के बाद की थी. ओलंपिक खेलों में ताइवान का नाम "चीनी ताइपे" था और बैडमिंटन में यह उनका पहला स्वर्ण पदक था.
मैच के बाद, ली और ल्यू को भारी नाराजगी का सामना करना पड़ा. चीन की सोशल मीडिया में इस पर बहुत ही तीखी प्रतिक्रियाएं व्यक्त की गईं. कई चीनी नागरिकों ने खिलाड़ियों पर अच्छा प्रदर्शन न करने का आरोप लगाया. एक चीनी नागरिक की प्रतिक्रिया थी, "चीन का नाम बदनाम न करो, आप पर शर्म आती है."
कैसे कैसे रहे हैं ओलंपिक के मैस्कॉट
टोक्यो ओलंपिक खेलों के मैस्कॉट हैं मिराइतोवा. ओलंपिक खेलों में मैस्कॉट लाने की परंपरा करीब 50 साल पुरानी है, जो शुरू हुई थी जर्मन डैशन्ड कुत्ते वाल्डी से.
तस्वीर: kyodo/dpa/picture alliance
टोक्यो 2021: मिराइतोवा और सोमैटी
मिराइतोवा (बाईं तरफ) और पैरालंपिक खेलों के मैस्कॉट सोमैटी (दाईं तरफ) टोक्यो ओलंपिक खेलों के दौरान हर जगह दिखाई देंगे. इन्हें बनाने वाले कलाकार का नाम है रियो तानिगूची.
तस्वीर: picture-alliance/Kyodo/Maxppp
म्युनिक 1972: वाल्डी
जर्मन डैशन्ड कुत्ता वाल्डी सबसे पहला ओलंपिक मैस्कॉट था.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/A. Weigel
मोंट्रियल 1976: अमीक
लाल सैश वाल काला बीवर अमीक 1976 में कनाडा के मोंट्रियल में हुए ओलंपिक खेलों का मैस्कॉट था.
तस्वीर: Sven Simon/imago
मॉस्को 1980: मीशा
रूस की राजधानी मॉस्को में हुए 1980 के ओलंपिक खेलों का मैस्कॉट था मुस्कुराता हुआ भूरा भालू मीशा.
तस्वीर: Sven Simon/imago
लॉस एंजेलिस 1984: सैम
1984 में अमेरिका के लॉस एंजेलिस में हुए ओलंपिक खेलों का मैस्कॉट था सैम नाम का बॉल्ड ईगल.
तस्वीर: Tony Duffy/Getty Images
सीओल 1988: होदोरी
दक्षिण कोरिया के पहले ओलंपिक खेलों का मैस्कॉट था होदोरी नाम का अमूर बाघ.
तस्वीर: Sven Simon/imago
बार्सिलोना 1992: कोबी
1992 में स्पाई के बार्सिलोना में हुए खेलों का मैस्कॉट था पाइरीनियन पहाड़ी कुत्ता कोबी.
तस्वीर: Pressefoto Baumann/imago
एटलांटा 1996: इज्जी
एटलांटा में 1996 में हुए खेलों का मैस्कॉट था इज्जी नाम का एक काल्पनिक किरदार.
तस्वीर: Michel Gangne/AFP/Getty Images
सिडनी 2000: औली, सिड और मिली
ऑस्ट्रेलिया के सिडनी में 2000 में हुए ओलंपिक खेलों के तीन मैस्कॉट थे - औली नाम का कूकाबुरा, सिड नाम का प्लैटिपस और मिली नाम का एकिडना.
तस्वीर: Arne Dedert/dpa/picture-alliance
एथेंस 2004: एथेना और फिबोस
2004 के खेलों के लिए ग्रीस ने मैस्कॉट के रूप में चुना दो प्राचीन नामों को. एथेना और फिबोस यूनानी देवताओं के नाम है. इन्हें रोशनी और संगीत का प्रतीक माना गया.
तस्वीर: Alexander Hassenstein/Bongarts/Getty Image
बीजिंग 2008: बीबी, जिंगजिंग, हुआंहुआं, यिंगयिंग और निनी
2008 के खेलों के लिए भी चीन ने एक से ज्यादा मैस्कॉट का इस्तेमाल किया. ये मैस्कॉट थे बीबी मछली, जिंगजिंग पांडा, हुआंहुआं नामक ओलंपिक की अग्नि का रूप, यिंगयिंग तिब्बती ऐंटिलोप और निनी स्वालो पक्षी.
तस्वीर: Kazuhiro Nogi/AFP/Getty Images
लंदन 2012: वेनलॉक और मैंडेविल
चार सालों बाद लंदन ने खेलों के मैस्कॉट के रूप में दो आकारहीन किरदारों को प्रस्तुत किया. वेनलॉक (बाईं तरफ) ओलंपिक का मैस्कॉट था और मैंडेविल (दाईं तरफ) पैरालंपिक खेलों का. दोनों को इस्पात उद्योग के प्रतिनिधि के रूप में देखा गया.
तस्वीर: Julian Finney/Getty Images
रियो 2016: विनिचियस और टॉम
ब्राजील के ओलंपिक खेलों का मैस्कॉट था विनिचियस (दाईं तरफ) जो एक बंदर और जंगली बिल्ली का मिश्रण जैसा था और ब्राजील में पाए जाने वाले जीव-जंतुओं का प्रतिनिधि था. टॉम (बाईं तरफ) कई पौधों का मिश्रण था और ब्राजील के पेड़ पौधों का प्रतिनिधि था. (बेट्टीना बाउमैन)
तस्वीर: Yasuyoshi Chiba/AFP/Getty Images
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'यह एक युद्ध की तरह है, उन्हें जीतना ही होगा'
चीन में जनता की उम्मीदों पर एथलीटों के खरा न उतर पाने के लिए माफी मांगना बहुत आम है. हालांकि, चीन और अन्य देशों के बीच बढ़ते भू-राजनीतिक तनाव ने गुस्से में राष्ट्रवादी टिप्पणियों की संख्या और तीव्रता को और ज्यादा बढ़ा दिया है. शू गुओकी हॉन्ग कॉन्ग विश्वविद्यालय में वैश्वीकरण के इतिहास के प्रोफेसर और विशेषज्ञ हैं और उन्होंने चीन और खेल पर एक पुस्तक भी लिखी है. उन्होंने इस बात का उल्लेख किया है कि चीन की सरकार एथलीटों के प्रशिक्षण पर काफी पैसा खर्च करती है. इसलिए, उनसे अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद की जाती है और ऐसा करना एथलीटों की जिम्मेदारी समझी जाती है.
डीडब्ल्यू से बातचीत में शू गुओकी कहते हैं, "यह एक युद्ध की तरह है, उन्हें जीतना ही होगा." शू जोर देकर कहते हैं कि अंतरराष्ट्रीय खेल आयोजनों के बारे में चीन का दृष्टिकोण पश्चिमी देशों से अलग है. वो कहते हैं, "यह सब राष्ट्रवाद के बारे में है. चीन अच्छे प्रदर्शन के माध्यम से पूरी दुनिया को दिखाना चाहता है कि वो खेलों में कितना समृद्ध और मजबूत है." शू कहते हैं कि चीन का राष्ट्रवाद साल 2008 में बीजिंग ओलंपिक के दौरान अपने चरम पर था.
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चीन को महान और मजबूत दिखाने को उत्सुक
टोबियास जुसर हॉन्ग कॉन्ग विश्वविद्यालय में ग्लोबल स्टडीज प्रोग्राम में लेक्चरर हैं. जुसर भी कहते हैं कि यहां यह बात आमतौर पर प्रचलित है कि चीन के एथलीटों की सबसे बड़ी जिम्मेदारी राष्ट्र की सेवा करना है. ज़ुसर कहते हैं कि पिछले ओलंपिक खेलों के समय की तुलना में, चीनी राष्ट्रवाद इस साल वर्तमान भू-राजनीतिक माहौल को देखते हुए हो सकता है कि कुछ ज्यादा ही बढ़ गया हो. वे कहते हैं, "कोविड-19 महामारी के मद्देनजर चीन विरोधी बयानबाजी में वृद्धि ने निश्चित रूप से इस राष्ट्रवाद को बढ़ाने में योगदान दिया है. चीन घरेलू राजनीतिक एजेंडे को प्राथमिकता देना चाहता है, अपने स्वयं के नागरिकों के प्रभुत्व को प्रदर्शित करता है और महाशक्ति कथा को रेखांकित करता है."
कुछ इसी तरह के विचार नेशनल ताइवान नॉर्मल यूनिवर्सिटी के एसोसिएट प्रोफेसर चुआंग जिया यिंग भी रखती हैं. वो कहती हैं कि हाल के वर्षों में देश की आक्रामक कूटनीतिक रणनीति के कारण चीन की वैश्विक छवि प्रभावित हुई है. इसलिए राष्ट्रवादी चीनी चिंतित हैं और दुनिया को यह दिखाने की कोशिश कर रहे हैं कि देश महान और मजबूत है.
चीन में अति राष्ट्रवादी लोगों को "लिटिल पिंक" कहा जाता है. चुआंग कहती हैं कि ये लोग इंटरनेट का उपयोग करने वाले युवा लोग हैं जो चीन को इंटरनेट पर सेंसर करने पर अन्य इंटरनेट माध्यमों को अपने राष्ट्रवादी विचारों को व्यक्त करने के लिए चुन लेते हैं. वो कहती हैं, "ऐसे लोगों की संख्या बढ़ रही है और राष्ट्रवाद को प्रेरित करने का यह नया तरीका है. विदेशी एथलीटों और ताइवान सेलेब्रिटीज की ट्रोलिंग करना भी इसमें शामिल है."
भारत को ओलंपिक में मेडल दिलाने वाली महिला खिलाड़ी
भारत में क्रिकेट खिलाड़ियों की जितनी चर्चा होती है उतनी ओलंपिक के सितारों की नहीं. यहां देखिए उन महिला खिलाड़ियों को जिन्होंने ओलंपिक में भारत का झंडा लहराया है.
तस्वीर: Pedro Pardo/AFP
मीराबाई चानू
टोक्यो ओलंपिक में मीराबाई चानू ने वेटलिफ्टिंग की 49 किलोग्राम श्रेणी में रजत पदक जीतकर भारत का खाता खोला था. चानू कहती हैं कि उन्होंने 2016 के ओलंपिक में पदक चूकने के बाद काफी मेहनत की थी. पांच साल की मेहनत सफल होने पर वे बहुत खुश हैं.
तस्वीर: picture-alliance/epa/S. Lesser
पीवी सिंधु
पीवी सिंधु ने साल 2016 के रियो दे जनेरो ओलंपिक में सिल्वर मेडल भारत के नाम किया. इसके बाद उन्होंने टोक्यो ओलंपिक में ब्रॉन्ज मेडल अपने नाम किया. वे लगातार दो ओलंपिक में मेडल जीतने वाली पहली भारतीय खिलाड़ी हैं. उनका पूरा नाम पुसरला वेंकट सिंधु है.
तस्वीर: Naomi Baker/Getty Images
कर्णम मल्लेश्वरी
कर्णम मल्लेश्वरी भारत को ओलंपिक में मेडल दिलाने वाली पहली महिला हैं. कर्णम को वेट लिफ्टिंग में कांस्य पदक मिला है. यह मेडल उन्होंने साल 2000 के सिडनी ओलंपिक में जीता था. उन्होंने स्नैच श्रेणी में 110 किलोग्राम और क्लीन एंड जर्क में 130 किलोग्राम भार उठा कर यह मुकाम हासिल किया. कर्णम का जन्म आंध्र प्रदेश में हुआ था.
तस्वीर: Martin Rose/Bongarts/Getty Images
साइना नेहवाल
साइना नेहवाल दूसरी भारतीय एथलीट हैं जिन्होंने साल 2012 के लंदन ओलंपिक में कांस्य पदक जीता. बैडमिंटन के लिए ओलंपिक पदक जीतने वाली वह पहली महिला हैं. साइना का जन्म हरियाणा में हुआ था. साइना नेहवाल की जिदंगी पर बॉलीवुड फिल्म `साइना` बन चुकी है. इस फिल्म में परिणीति चोपड़ा ने साइना का किरदार निभाया है.
तस्वीर: Lu Binghui/Imaginechina/imago images
मेरी कॉम
मेरी कॉम अकेली भारतीय महिला हैं जिन्होंने देश को बॉक्सिंग में मेडल दिलाया. मेरी को साल 2012 के लंदन ओलंपिक गेम्स में कांस्य पदक मिला था. इसके साथ ही मेरी कॉम ने छह विश्व खिताब भी अपने नाम किए हैं. मेरी का जन्म मणिपुर में हुआ था. मेरी कॉम पर बॉलीवुड में फिल्म भी बन चुकी है. इस फिल्म में प्रियंका चोपड़ा ने मेरी कॉम का किरदार निभाया था.
साक्षी मलिक ने ओलंपिक में कांस्य पदक हासिल किया है. यह मेडल उन्हें साल 2016 के रियो ओलंपिक में फ्रीस्टाइल कुश्ती के 58 किलो भार वर्ग के लिए मिला था. इसके साथ ही वह पहली महिला पहलवान हैं जिन्होंने ओलंपिक में एक पदक जीता है. साक्षी का जन्म हरियाणा में हुआ था.
तस्वीर: Kadir Caliskan/imago images
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हालांकि चीन के ऐसे ट्रॉल्स की लिस्ट में सिर्फ चीन के ही एथलीट नहीं है. जिम्नास्टिक में स्वर्ण पदक जीतने वाले जापान के जिम्नास्ट डाइकी हाशिमोटो को चीनी नागरिकों ने "राष्ट्रीय अपमान" तक कह डाला. स्कोर बोर्ड पर छेड़छाड़ का आरोप लगाते हुए इन लोगों ने ओलंपिक जजों को भी इस बात के लिए कठघरे में खड़ा कर डाला कि हाशिमोटो के लिए पक्षपात किया गया. इस आलोचना के कारण इंटरनेशनल जिम्नास्टिक फेडरेशन को एक बयान देकर स्पष्ट करना पड़ा कि जजों ने "निष्पक्ष और सही" काम किया.
एक अन्य जापानी एथलीट मीमा इटो भी चीनी राष्ट्रवादियों के सोशल मीडिया में निशाने पर रहीं जब अपने पार्टनर मिजुतानी के साथ उन्होंने टेबल टेनिस के मिक्सड डबल्स में चीनी खिलाड़ियों को हराकर गोल्ड मेडल पर कब्जा कर लिया. इटो और मिजुतानी ने दावा किया कि उन्हें सोशल मीडिया पर गालियां दी गईं और जान से मारने की धमकी तक दी गई. जुसर कहते हैं कि जापानियों को टार्गेट करना चीनी लोगों के लिए कोई नई बात नहीं है क्योंकि चीन और जापान एक-दूसरे के ऐतिहासिक प्रतिद्वंद्वी हैं.
कुछ भी हो, चीन में इस साल लोगों के उम्मीदें अपेक्षाकृत बहुत ज्यादा रहीं और जब राष्ट्र गौरव की बात आ जाती है तो ऐसा होना स्वाभाविक है और ऐसा लगता है कि तब सब कुछ दांव पर लगा दिया जाए. चीन के राष्ट्रवादी लोगों की ट्रॉलिंग सिर्फ एथलीटों तक सीमित नहीं है बल्कि मनोरंजन जगत भी इससे अछूता नहीं है. ताइवान के टीवी होस्ट डी ह्सू और ताइवान के पॉप स्टार जोलिन त्साई ट्रॉल्स के निशाने पर खूब रहे हैं.
ह्सू ने ताइवान के एथलीटों की उपलब्धि पर अपनी खुशी को इंस्टाग्राम पर शेयर किया और उन्हें "राष्ट्रीय खिलाड़ियों" की संज्ञा दी. चीनी ट्रॉल्स ने इसे ताइवान की आजादी के तौर पर व्याख्यायित किया गया. इस बीच, त्साई ने ताइवान एथलीटों को उनकी जीत पर बधाई देते हुए अपनी फेसबुक पेज पर उनकी तस्वीरें पोस्ट कीं. चीनी नागरिकों ने उनकी इस बात के लिए आलोचना की कि उन्होंने चीनी खिलाड़ियों की जीत का जश्न क्यों नहीं मनाया. चीन, ताइवान को अपना एक हिस्सा मानता है और दोनों के बीच पिछले कुछ सालों से काफी तनाव रहा है.
ट्रॉलिंग को लेकर एथलीट चिंतित हैं
यह अभी भी स्पष्ट नहीं है कि ओलंपिक खेलों के दौरान ट्रॉलिंग का ट्रेंड क्या चीन में राष्ट्रवाद की वृद्धि को दर्शाता है. लेकिन दूसरे देशों के एथलीट इस बात को लेकर जरूर चिंतित हैं कि वो चीनी नागरिकों के निशाने पर हैं. उदाहरण के लिए, जर्मनी के टेबल टेनिस खिलाड़ी दिमित्रि ओव्टाकारोव ने सोशल मीडिया में एक तस्वीर पोस्ट करते हुए लिखा कि ताइवान के खिलाड़ी के खिलाफ मुकाबला जीतना बड़ा कठिन था और उसके अगले दिन यानी 3 अगस्त को उन्हें जापान के खिलाड़ी का सामना करना होगा.
कुछ चीनी नागरिकों ने इस पोस्ट पर यह कहते हुए टिप्पणी की कि ताइवान को "चीनी ताइपे" कहना चाहिए. दो घंटे के बाद ओव्टाकारोव को अपनी पोस्ट को एडिट करना पड़ा और उन्होंने "ताइवान" और "जापान" शब्दों को बिना कोई वजह बताए हटा दिया.
रिपोर्ट: सुंग सिएन ली
मेडल जीतने पर सबसे ज्यादा इनाम देते हैं ये देश
भारत के लिए दूसरी बार ओलंपिक पदक जीतने वाली पीवी सिंधू को आंध्र प्रदेश सरकार ने 30 लाख रुपये देने का वादा किया है. लेकिन कुछ देश अपने विजेताओं को और भी भारी-भरकम राशि देते हैं. ये हैं सबसे बड़ा इनाम देने वाले देश...
तस्वीर: Jack Guez/AFP/Getty Images
सिंगापुर
सिंगापुर अपने विजयी खिलाड़ियों को सबसे ज्यादा धनराशि इनाम में देता है. गोल्ड जीतने वाले को 10 लाख सिंगापुर डॉलर (लगभग 5.4 करोड़ रुपये) मिलते हैं. सिल्वर पर पांच लाख और ब्रॉन्ज जीतने पर ढाई लाख डॉलर दिए जाते हैं.
तस्वीर: Jung Yeon-je/AFP/Getty Images
चीनी ताईपेई
ताईवान, जो ओलंपिक्स में चीनी ताईपेई के नाम से हिस्सा लेता है, अपने गोल्ड जीतने वाले खिलाड़ियों को दो करोड़ न्यू ताईवान डॉलर (लगभग 5.3 करोड़ रुपये) का इनाम देता है.
तस्वीर: Phil Noble/REUTERS
इंडोनेशिया
2016 ओलंपिक में गोल्ड जीतने पर इंडोनेशिया ने खिलाड़ियों को वहां के पांच अरब रुपये (करीब 2.5 करोड़ भारतीय रुपये) पुरस्कार में दिए थे.
तस्वीर: Privat
बांग्लादेश
बांग्लादेश ने कभी ओलंपिक में गोल्ड नहीं जीता है. लेकिन सरकार ने कहा है कि कोई गोल्ड जीतकर लाया तो उसे तीन लाख अमेरिकी डॉलर (लगभग दो करोड़ रुपये) का इनाम दिया जाएगा.
तस्वीर: Adek Berry/AFP/Getty Images
कजाखस्तान
कजाखस्तान के गोल्ड मेडल विजेता खिलाड़ियों को ढाई लाख डॉलर (लगभग 1.8 करोड़ रुपये), सिल्वर पर डेढ़ लाख डॉलर और ब्रॉन्ज पर 75 हजार डॉलर का इनाम मिलेगा.
तस्वीर: Reuters/M. Blake
मलयेशिया
मलयेशिया में मेडल जीतने पर चेक मिलना तय है. गोल्ड के लिए 2 लाख 37 हजार डॉलर (लगभग डेढ़ करोड़ रुपये) , सिल्वर के लिए 71 हजार डॉलर और ब्रॉन्ज पर 24 हजार डॉलर के चेक खिलाड़ियों का इंतजार कर रहे हैं. इतना ही नहीं, खिलाड़ियों को क्रमशः लगभग 12,00 डॉलर, 7,00 डॉलर और 470 डॉलर मासिक भी मिलेंगे.
तस्वीर: Alexander Nemenov/AFP/Getty Images
फिलीपीन्स
फिलीपीन्स की वेटलिफ्टर हिडीलिन डियाज को गोल्ड जीतने पर खेल आयोग ने करीब दो लाख डॉलर (लगभग डेढ़ करोड़ रुपये) देने का ऐलान किया है.
तस्वीर: Vincenzo Pinto/AFP/Getty Images
हंगरी
हंगरी में गोल्ड जीतने वालों को 166,000 डॉलर (करीब 1.2 करोड़ रुपये) मिलते हैं. सिल्वर पर 118,000 डॉलर (लगभग 90 लाख रुपये) और ब्रॉन्ज पर 94 हजार डॉलर (लगभग 70 लाख रुपये) दिए जाते हैं.
तस्वीर: Dean Mouhtaropoulos/Getty Images
कोसोवो
कोसोवो में सरकार गोल्ड जीतने वाले अपने खिलाड़ियों को एक लाख यूरो (लगभग 88 लाख रुपये) का इनाम देती है. सिल्वर मेडल पर 60 हजार यूरो और ब्रॉन्ज पर 40 हजार यूरो मिलते हैं.