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श्रीलंका में अरबों डॉलर खर्च करने वाले चीन का विरोध

३ फ़रवरी २०१७

चीन अपनी महात्वाकांक्षी आधुनिक "सिल्क रूट" परियोजना के तहत श्रीलंका में बड़ा निवेश कर रहा है, लेकिन विपक्ष और स्थानीय लोग इसका विरोध कर रहे हैं.

Sri Lanka Port Protest
तस्वीर: picture alliance/dpa/AP Photo/E. Jayawardena)

चीन ने 2016 में श्रीलंका के साथ एक समझौता किया था, जिसके तहत रणनीतिक रूप से अहम हमबनटोटा बंदरगाह को और विकसित किया जाएगा और उसके आसपास एक विशाल औद्योगिक क्षेत्र तैयार किया जाएगा. यह समझौता एशिया में आधुनिक दौर का "सिल्क रूट" तैयार करने की चीन की महात्वाकांक्षी योजना का अहम हिस्सा है.

यह समझौता श्रीलंका के लिए एक राहत लेकर आया था, क्योंकि 2 करोड़ की आबादी वाला श्रीलंका अपने घाटे को कम करने की कोशिश कर रहा है. ऐसे में श्रीलंकाई अधिकारी अपने देश को चीन की "वन बेल्ट, वन रोड" परियोजना में शामिल किए जाने को आर्थिक लाइफलाइन की तरह देख रहे हैं.

चीन ने अब तक हमबनटोटा और एक नए एयरपोर्ट पर दो अरब डॉलर खर्च किए हैं और श्रीलंका में वह और भी निवेश करना चाहता है. लेकिन अब श्रीलंका में चीन को विरोध का सामना करना पड़ रहा है. विरोध भी ऐसा जिसके बारे में उसने सोचा भी नहीं था.

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घर उजड़ने का डर

जनवरी के महीने में देश के दक्षिणी हिस्से में बन रहे औद्योगिक क्षेत्र के उद्घाटन पर सैकड़ों श्रीलंकाई लोगों की पुलिस से झड़प हुई.  इन लोगों का कहना है कि वे औद्योगिक क्षेत्र के लिए अपने जमीन नहीं देंगे. इन लोगों को अपने घर उजड़ने का डर है. यह पहला मौका है जब श्रीलंका में चीनी निवेश का विरोध हिंसक हो गया.

चीन के साथ हुए समझौते के विरोध में चल रही मुहिम का नेतृत्व पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे कर रहे हैं. उनका कहना है कि यह समझौता चीन के लिए ज्यादा फायदेमंद होगा. दिलचस्प बात है कि 2005 से 2015 तक राष्ट्रपति रहे राजपक्षे ने ही पहली बार श्रीलंका में चीन को निवेश करने की अनुमति दी थी.

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राजपक्षे के कार्यकाल में जो समझौता चीन के साथ हुआ था उसके तहत हमबनटोटा में कंटेनर टर्मिनल को चाइना हार्बर इंजीनियरिंग कंपनी और सरकारी कंपनी चाइना मर्चेंट पोर्ट होल्डिंग मिलकर 40 साल तक चलाएंगी. वहीं श्रीलंका के बंदरगाह प्राधिकरण के पास हार्बर के अन्य टर्मिनलों और छह हजार एकड़ में फैले औद्योगिक क्षेत्र का नियंत्रण होगा.

बीजिंग में चीन के विदेश मंत्रालय ने कहा कि चीन सरकार वह सब कर रही है जो दोनों देशों के हित में होगा. वहीं कोलंबो में चीनी दूतावास से जब श्रीलंका में चीन के निवेश के बारे में पूछा गया तो कोई जबाव नहीं मिला.

दूसरे इलाकों में भी विरोध

वैसे श्रीलंका अकेला देश नहीं है जहां चीन की वन बेल्ट परियोजना का विरोध हुआ है. चीन से लाओस और थाईलैंड होकर जाने वाली रेलवे लाइन को भी विरोध का सामना करना पड़ा है. वन बेल्ट परियोजना के तहत चीन पूरे दक्षिण पूर्व एशिया, पाकिस्तान और मध्य एशिया में जमीनी कॉरिडोर और समुद्री मार्गों को मजबूत कर मध्य पूर्व और यूरोप से सीधे जुड़ने के रास्ते तैयार कर रहा है.

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राजपक्षे के उत्तराधिकारी राष्ट्रपति मैत्रिपाला सिरीसेना ने पिछले महीने चीन के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए जिसके तहत बंदरगाह का 80 फीसदी हिस्सा चाइना मर्चेंट पोर्ट होल्डिंग को 99 सालों के लिए 1.12 अरब डॉलर की लीज पर दे दिया गया. अधिकारियों का कहना है कि देश के घाटे को काबू करने के लिए सिरिसेना ने इस समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं. इसकी एक वजह भारत और अमेरिका की तरफ से उम्मीद के मुताबिक मदद न मिलना भी है. हालांकि आईएमएफ 2016 में श्रीलंका को 1.5 अरब डॉलर का ऋण देने के लिए राजी हो गया.

पूर्व राष्ट्रपति राजपक्षे कहते हैं, "99 साल की लीज श्रीलंका के संप्रभु अधिकारों का अतिक्रमण है क्योंकि एक विदेशी कंपनी पूरी आजादी से एक जमींदार की तरह इस पोर्ट का इस्तेमाल करेगी. यह बात चीन या फिर अन्य विदेशी निवेशकों की नहीं है. बात श्रीलंका के लिए बेहतरीन समझौते करने की है."

एके/एमजे (रॉयटर्स)

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