बाइडेन की जीत: चीनी तकनीकी उद्योग के लिए राहत, चिंता बरकरार
९ नवम्बर २०२०
वॉशिंगटन-बीजिंग के बीच विवाद में चीन का आईटी उद्योग ट्रंप के निशाने पर रहा. अब उद्योग को उम्मीद है कि बाइडेन एक अधिक रचनात्मक संबंध बना सकते हैं, लेकिन कुछ विश्लेषकों को लगता है कि प्रतिद्वंद्विता थोड़ी ही कम होगी.
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जानकारों और विश्लेषकों का कहना है कि डॉनल्ड ट्रंप के चार साल के कार्यकाल ने चीनी आईटी उद्योग को पहले ही आत्मनिर्भरता का महत्व सिखा दिया है और उनके मुताबिक चीन अपनी घरेलू तकनीकी क्षमताओं में सुधार करने के इरादे नहीं बदलेगा. झेजियांग स्थित संचार विश्वविद्यालय में इंटरनेट एंड सोसायटी विभाग के निदेशक फांग जिंगडॉन्ग के मुताबिक, "जब बाइडेन सत्ता संभालेंगे तब चीन की टेक कंपनियां राहत की सांस लेंगी." वे आगे कहते हैं, "कम से कम अमेरिका को खुलेपन, फिर से उचित प्रतियोगिता और इनोवेशन की पैरवी करनी चाहिए. हालांकि, उच्च तकनीक क्षेत्र में प्रतियोगिता और खेल सिद्धांत समाप्त नहीं होंगे और चीन और अमेरिका अगले एक दशक में असली इनोवेशन क्षमताओं के साथ एक दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा करेंगे."
चीन की तकनीक कंपनी हुआवे, टिकटॉक समेत कई कंपनियों को अमेरिका में उस वक्त झटका लगा जब उनपर ट्रंप ने कई तरह के प्रतिबंध लगाए. इस वजह से उनके वैश्विक विस्तार के प्रयासों को भी झटका लगा. ट्रंप का चीनी कंपनियों पर आरोप है कि वे राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा हैं.
कई और कंपनियों को अमेरिका ब्लैक लिस्ट कर चुका है और ट्रंप प्रशासन उन्हें देश में कारोबार करने से रोक चुका है. टिकटॉक की मालिक कंपनी बाइटडांस अमेरिका में कारोबार में बने रहने के लिए एक प्रारंभिक सौदे को अंतिम रूप दे रही है. अमेरिका में टिकटॉक के संचालन को लेकर उसकी बातचीच वॉलमार्ट और ऑरेकल के साथ चल रही है. ट्रंप ने टिकटॉक को अमेरिकी बाजार में बने रहने के लिए कहा था वह किसी अमेरिकी कंपनी को संचालन बेच दे.
अमेरिका में हुआवे के कारोबार पर रोक लगने से उसके हाथ से एक बड़ा बाजार फिसलता गया. हुआवे महंगे मोबाइल के लिए चिप के अलावा मोबाइल टेलीकम्युनिकेशंस उपकरण बनाता है. जेफरीज एनालिस्ट ने एक नोट में कहा कि बाइडेन की नीतिगत प्राथमिकताओं के संदर्भ में चीन नीचे रहेगा, क्योंकि वे घरेलू मुद्दों पर सबसे पहले ध्यान केंद्रित करेंगे और चीनी सेमीकंडक्टर उद्योग पर वह पूरी तरह से शायद ही प्रतिबंध लगाएं.
फिर भी, कई अधिकारियों का कहना है कि ट्रंप ने यह बताया है कि चीनी प्रौद्योगिकी उद्योग देश के लिए जोखिम भरा है. उनके मुताबिक इसको और मजबूत करना अमेरिका के लिए नीतिगत प्राथमिकता है.
काली सूची में डाली गई एक कंपनी के अधिकारी का कहना है, "यह संभव हो सकता है कि चीन और अमेरिका कुछ प्रौद्योगिकी मुद्दों को हल करने के लिए साथ आने का मौका निकाले."
अमेरिकी राष्ट्रपति की नीतियां दुनिया की दिशा तय करती हैं. एक नजर बीते 11 अमेरिकी राष्ट्रपतियों के कार्यकाल और उस दौरान हुई मुख्य घटनाओं पर.
तस्वीर: DW/E. Usi
डॉनल्ड ट्रंप (2017-2021)
2017 में भले ही हिलेरी क्लिंटन को उनसे ज्यादा वोट मिले लेकिन जीत ट्रंप की हुई. अमेरिका और मेक्सिको के बीच दीवार बनाने और अमेरिका को फिर से "ग्रेट" बनाने के वादे के साथ ट्रंप चुनावों में उतरे थे. उनके कार्यकाल में अमेरिका पेरिस जलवायु संधि से और विश्व स्वास्थ्य संगठन से दूर हुआ. वे कभी कोरोना को चीनी वायरस बोलने से पीछे नहीं हटे. हालांकि उन्हें किम जोंग उन से मुलाकात करने के लिए भी याद रखा जाएगा.
तस्वीर: Brendan Smialowski/AFP
बराक ओबामा (2009-2017)
2007 की आर्थिक मंदी से कराहती दुनिया में ओबामा ताजा झोंके की तरह आए. देश के पहले अश्वेत राष्ट्रपति ने इराक और अफगानिस्तान से सेना वापस बुलाई, लेकिन उन्हीं के कार्यकाल में अरब जगत में खलबली मची, इस्लामिक स्टेट बना और रूस से मतभेद चरम पर पहुंचे. ओबामा ने पेरिस में जलवायु परिवर्तन की ऐतिहासिक डील करवाई. वह भारत की गणतंत्र दिवस परेड में शामिल होने वाले पहले अमेरिकी राष्ट्रपति भी बने.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/S. Walsh
जॉर्ज डब्ल्यू बुश (2001-2009)
बुश के सत्ता संभालने के बाद अमेरिका और पूरी दुनिया ने 9/11 जैसा अभूतपूर्व आतंकवादी हमला देखा. बुश के पूरे कार्यकाल पर इस हमले की छाप दिखी. उन्होंने अल कायदा और तालिबान को नेस्तनाबूद करने के लिए अफगानिस्तान में सेना भेजी. इराक में उन्होंने सद्दाम हुसैन को सत्ता से बेदखल कर मौत की सजा दिलवाई. बुश के कार्यकाल में भारत के साथ दशकों के मतभेद दूर हुए और दोस्ती की शुरुआत हुई.
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बिल क्लिंटन (1993-2001)
बिल क्लिंटन शीत युद्ध खत्म होने के बाद राष्ट्रपति बनने वाले पहले नेता थे. 1992 में सोवियत संघ के विघटन के बाद रूस कमजोर पड़ गया. क्लिंटन ने रूस को अलग थलग करने के बजाए मुख्य धारा में लाने की कोशिश की. क्लिंटन के कार्यकाल में अफगानिस्तान आतंकवाद का गढ़ बन गया. अमेरिका और पाकिस्तान की मदद से पनपा तालिबान सत्ता में आ गया. क्लिंटन का कार्यकाल आखिर में मोनिका लेवेंस्की अफेयर के लिए बदनाम हो गया.
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जॉर्ज बुश (1989-1993)
द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान अमेरिकी नौसेना के पायलट और बाद में सीआईए के डायरेक्टर रह चुके जॉर्ज बुश के कार्यकाल में दुनिया ने ऐतिहासिक बदलाव देखे. सोवियत संघ टूटा. बर्लिन की दीवार गिरी और पूर्वी व पश्चिमी जर्मनी का एकीकरण हुआ. लेकिन उनके राष्ट्रपति रहने के दौरान खाड़ी में बड़ी उथल पुथल रही. इराक ने कुवैत पर हमला किया और अमेरिका की मदद से इराक की हार हुई.
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रॉनल्ड रीगन (1981-1989)
कैलिफोर्निया के गवर्नर रॉनल्ड रीगन जब राष्ट्रपति बने तो सोवियत संघ के साथ शीत युद्ध चरम पर था. सोवियत सेना अफगानिस्तान में थी. कम्युनिज्म के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए रीगन ने अमेरिका के सैन्य बजट में बेहताशा इजाफा किया. रीगन ने पनामा नहर की सुरक्षा के लिए सेना भेजी. उन्होंने कई सामाजिक सुधार भी किये. रीगन को अमेरिकी नैतिकता को बहाल करने वाला राष्ट्रपति भी कहा जाता है.
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उन्होंने उदार कूटनीति अपनाई. उन्हीं के कार्यकाल में मध्य पूर्व में कैम्प डेविड समझौता हुआ. पनामा नहर का अधिकार वापस पनामा को दिया गया. सोवियत संघ के साथ साल्ट लेक 2 संधि हुई. लेकिन 1979 में ईरान की इस्लामिक क्रांति के दौरान तेहरान में अमेरिकी दूतावास पर हमले और कई अमेरिकियों को 444 दिनों तक बंधक बनाने की घटना ने उनकी साख पर बट्टा लगाया.
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जेराल्ड फोर्ड (1974-1977)
रिचर्ड निक्सन के इस्तीफे के बाद उप राष्ट्रपति फोर्ड को राष्ट्रपति नियुक्त किया गया. बिना चुनाव लड़े देश के उपराष्ट्रपति और राष्ट्रपति बनने वाले वे अकेले नेता है. उन्हें संविधान में संशोधन कर कार्यकाल के बीच में उपराष्ट्रपति बनाया गया था. राष्ट्रपति के रूप में फोर्ड ने सोवियत संघ के साथ हेल्सिंकी समझौता किया और तनाव को कुछ कम किया. फोर्ड के कार्यकाल में ही अफगानिस्तान संकट का आगाज हुआ.
तस्वीर: picture alliance/United Archives/WHA
रिचर्ड निक्सन (1969-1974)
निक्सन के कार्यकाल में दक्षिण एशिया अमेरिका और सोवियत संघ का अखाड़ा बना. भारत और पाकिस्तान के बीच हुए युद्ध के बाद बांग्लादेश बना. निक्सन और प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की अनबन तो दुनिया भर में मशहूर हुई. लीक दस्तावेजों के मुताबिक निक्सन ने इंदिरा गांधी को "चुडैल" बताया. वियतनाम में बुरी हार के बाद निक्सन ने सेना को वापस भी बुलाया. उन्हीं के कार्यकाल में साम्यवादी चीन सुरक्षा परिषद का सदस्य बना.
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लिंडन बी जॉनसन (1963-1969)
जॉनसन जब राष्ट्रपति बने तो वियतनाम युद्ध चरम पर था. उन्होंने वियतनाम में अमेरिकी सैनिकों की संख्या बढ़ाई. जॉनसन के कार्यकाल में तीसरा अरब-इस्राएल युद्ध भी हुआ. अरब देशों की हार के बाद दुनिया ने अभूतपूर्व तेल संकट भी देखा. इस दौरान अमेरिका में मार्टिन लूथर किंग की हत्या के बाद बड़े पैमाने पर नस्ली दंगे हुए. जॉनसन ने माना कि अमेरिका में अश्वेत लोगों से भेदभाव बड़े पैमाने पर हुआ है.
तस्वीर: Public domain
जॉन एफ कैनेडी (1961-1963)
जेएफके कहे जाने वाले राष्ट्रपति ने अपने कार्यकाल में क्यूबा का मिसाइल संकट देखा, भारत और चीन का युद्ध भी उन्हीं के सामने हुआ. कैनेडी के कार्यकाल में ही पूर्वी जर्मनी ने रातों रात बर्लिन की दीवार बना दी. युवा राष्ट्रपति ने न्यूक्लियर टेस्ट बैन ट्रीटी भी करवाई. कैनेडी के कार्यकाल में अमेरिका और सोवियत संघ के बीच अंतरिक्ष होड़ भी शुरू हुई. 1963 में कैनेडी की हत्या कर दी गई.