पिछले साल चीन के वुहान से शुरू हुआ कोरोना वायरस अब एक बार फिर वुहान में वापसी कर गया है. इस शहर में पांच लोग कोविड-19 पॉजिटिव पाए गए हैं. सभी नए मामले पहले असिंप्टोमैटिक बताए गए थे.
विज्ञापन
चीन के वुहान शहर में कोरोना के क्लस्टर की रिपोर्ट सामने आई है. एक महीने पहले चीनी शहर से लॉकडाउन हटा लिया गया था और अब कोरोना के नए मामले सामने आने से एक बार फिर एजेंसियां सतर्क हो गई हैं. पिछले साल चीन के वुहान से ही कोरोना वायरस पूरी दुनियाभर में फैला था. नए मामले सामने आने के बाद शहर में बीमारी के दोबारा लौटने को लेकर चिंता बढ़ गई है. वुहान में लॉकडाउन खत्म होने के बाद व्यापार दोबारा शुरू हो गए थे और लोग अपने काम पर लौट गए थे.
वुहान में पांच नए मामलों की पुष्टि हुई है और सभी एक ही रिहायशी कॉम्प्लेक्स में रहते हैं. एक महीने बाद रविवार 10 मई को 89 वर्षीय बुजुर्ग में कोरोना संक्रमण पाया गया था, अब उसकी पत्नी भी पॉजिटिव है. वुहान के स्वास्थ्य विभाग के मुताबिक, "फिलहाल, शहर में महामारी की रोकथाम और नियंत्रण कार्य पर बहुत भार है. हमें बीमारी के दोबारा लौटने के जोखिम को हल करना चाहिए."
यहां सभी मामलों में कोरोना के लक्षण नहीं पाए गए यानि यह सभी असिंप्टोमैटिक थे. जो लोग वायरस के लिए पॉजिटिव पाए गए हैं वे दूसरे लोगों को भी संक्रमित करने की क्षमता रखते हैं लेकिन उनमें बुखार जैसे क्लीनिकल लक्षण नहीं नजर आए. असिंप्टोमैटिक का मतलब है कि मरीज में संक्रमण तो है, लेकिन लक्षण नहीं होने के कारण उसे इसकी जानकारी नहीं होती है. चीन में असिंप्टोमैटिक केसों की जानकारी नहीं है. वे तभी स्वास्थ्य अधिकारियों के राडार पर आते हैं जब वे कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग और स्वास्थ्य जांच में पॉजिटिव पाए जाते हैं.
असिंप्टोमैटिक मामलों को चीन कोरोना वायरस के पुष्ट मामलों में शामिल नहीं करता है. स्वास्थ्य विभाग के मुताबिक वुहान में सैकड़ों असिंप्टोमैटिक लोगों की निगरानी की जा रही है. चीन में फरवरी की तुलना में अप्रैल महीने में रिपोर्ट किए गए मामले कम हुए. चीन सरकार ने पिछले हफ्ते कहा था कि वह धीरे-धीरे सिनेमाघर, संग्रहालय और अन्य मनोरंजन स्थल खोलेगी, हालांकि इन सबके लिए अनिवार्य आरक्षण समेत लोगों की संख्या की सीमा लागू होगी. चीन में पिछले दो महीने में नए मामले अस्पतालों और आवासीय कॉम्प्लेक्स में ही सामने आए हैं. दक्षिण कोरिया में भी कोरोना वायरस की वापसी हुई है. हालांकि दक्षिण कोरिया में नए मामले नाइट क्लब और बार से शुरू हुए. दक्षिण कोरिया ने ट्रैक और ट्रेस की मदद से वायरस पर नियंत्रण पा लिया था.
डॉनल्ड ट्रंप ने भारत से मलेरिया की दवा हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन मंगाई थी. लेकिन क्या यह दवा वाकई कोविड-19 का इलाज कर सकती है?
तस्वीर: Reuters/F. Grulovic
किस दवा की बात हो रही है?
डॉनल्ड ट्रंप भारत से जो दवा मंगाना चाहते हैं उसका नाम है हाइड्रॉक्सी-क्लोरोक्वीन. 1940 के दशक से इस दवा का इस्तेमाल मलेरिया का इलाज करने के लिए होता रहा है.
तस्वीर: AFP/G. Julien
मलेरिया और कोरोना का क्या नाता है?
मलेरिया मच्छर के काटने से होता है और कोविड-19 वायरस से. इसलिए दोनों का एक दूसरे से कोई लेना देना नहीं है. ऐसा नहीं है कि जिन लोगों को मलेरिया का खतरा ज्यादा होता है उन्हें कोविड-19 का खतरा भी होगा.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/P. Pleul
कोरोना के लिए मलेरिया की दवा क्यों?
हाइड्रॉक्सी-क्लोरोक्वीन का इस्तेमाल मलेरिया के अलावा ऑटो-इम्यून बीमारियों को ठीक करने के लिए भी होता रहा है. कोरोना वायरस शरीर के इम्यून सिस्टम पर हमला करता है. इसलिए इस दवा से इम्यून सिस्टम को बचाने की बात हो रही है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/AP/NIAID-RML
क्या अमेरिका के पास नहीं है यह दवा?
ऐसी रिपोर्टें हैं कि अमेरिका में यह दवा पहले से ही भारी मात्रा में मौजूद है लेकिन डॉनल्ड ट्रंप इसे स्टॉक करना चाह रहे हैं. अमेरिका में बिना डॉक्टर की पर्ची के भी यह दवा खरीदी जा सकती है लेकिन इस बीच आम लोग इसे नहीं खरीद पा रहे हैं.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/E. Vucci
डॉक्टरों का क्या कहना है?
खुद अमेरिका में ही डॉक्टरों की राय इस पर बंटी हुई है. ट्रंप के समर्थक इसे आजमाने की पैरवी कर रहे हैं लेकिन अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन की अध्यक्ष का कहना है कि वे इसके इस्तेमाल की सलाह नहीं देंगी.
तस्वीर: Imago Images/Panthermedia/Kzenon
रिस्क क्या है?
इस दवा का साइड इफेक्ट होने पर दिल पर बुरा असर पड़ सकता है. ब्लड प्रेशर कम हो सकता है, मांसपेशियों और नसों को नुकसान हो सकता है. सीने में दर्द के साथ साथ धड़कनें कम हो सकती हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/imageBROKER
क्या पहले कभी इस्तेमाल हुई है?
राजस्थान में डॉक्टरों ने स्वाइन फ्लू, मलेरिया और एचआईवी की दवाओं को मिला कर इस्तेमाल किया और उन्हें सफलता मिली. हालांकि इस मिश्रण के बाकी मरीजों पर इस्तेमाल की बात सामने नहीं आई है.
तस्वीर: picture-alliance/NurPhoto/R. Shukla
कहां से आया दवा के इस्तेमाल का आइडिया?
किसी भी दवा को मरीजों पर तब ही इस्तेमाल किया जाता है जब लैब में उस पर टेस्ट हो चुके हों. इस दवा के मामले में भी ऐसा ही है. कुछ ऐसे टेस्ट हुए जिनके परिणाम आशाजनक दिखाई दिए.
तस्वीर: Reuters/F. Grulovic
रिसर्च क्या कहती है?
एक रिसर्च ने दिखाया कि इस दवा के सेवन से कोरोना वायरस का शरीर की कोशिकाओं में प्रवेश करना मुश्किल हो जाता है. एक अन्य रिसर्च के अनुसार इस दवा लेने से मरीजों को कोई फायदा नहीं हुआ. लेकिन यह रिसर्च सिर्फ 11 लोगों पर की गई.
तस्वीर: picture-alliance/PantherMedia
क्या ज्यादा लोगों पर भी हुई रिसर्च?
चीन में हुई एक रिसर्च ने दिखाया कि 10 अस्पतालों में कुल 100 मरीजों को जब यह दवा दी गई तो उनकी तबियत में सुधार आया. लेकिन तुलना करने के लिए इस रिसर्च में ऐसे मरीजों का कोई आंकड़ा नहीं था जिन्हें यह दवा नहीं दी गई.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Hao Yuan
ट्रंप ने कौन सी रिसर्च पढ़ी?
डॉनल्ड ट्रंप ने कहा है, "फ्रांस में उन्होंने (रिसर्चरों ने) एक बहुत अच्छा टेस्ट किया है." इसी को आधार बनाते हुए उन्होंने अमेरिका में इसके इस्तेमाल की अनुमति दी है.
तस्वीर: picture-alliance/O. Contreras
कितनी विश्वसनीय है फ्रांस की रिसर्च?
मार्च में जब फ्रांस में कोरोना वायरस फैलने लगा तब वहां कुछ रिसर्चरों ने हाइड्रॉक्सी-क्लोरोक्वीन पर शोध शुरू किया. इस शोध पर अमेरिकी चैनल फॉक्स न्यूज पर हुई चर्चा के तुरंत बाद ट्रंप ने इसकी तारीफ शुरू कर दी.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/empics/C. Ball
WHO का क्या कहना है?
विश्व स्वास्थ्य संगठन इस वक्त कोरोना वायरस पर छह अलग अलग दवाओं को टेस्ट कर रहा है. इस वायरस को ले कर जल्दी प्रतिक्रिया ना देने को लेकर WHO की काफी आलोचना हो रही है.
तस्वीर: Getty Images/AFP
अब आगे क्या?
कोरोना स्थिति को देखते हुए अमेरिका समेत कई देश लैब टेस्टिंग का इंतजार नहीं करना चाहते हैं. ऐसे में बहुत मुमकिन है कि मौजूदा मरीजों पर ही ट्रायल एंड एरर किया जाएगा और शायद उसके बाद ही पता चलेगा कि दवा कारगर है या नहीं.