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चीनी प्रधानमंत्री ली कियांग दो दिन के जर्मनी दौरे पर

स्वाति बक्शी
१९ जून २०२३

जर्मन चांसलर ओलाफ शॉल्त्स और चीनी प्रधानमंत्री ली कियांग के बीच दीर्घकालिक साझेदारी पर बातचीत का कार्यक्रम है. इस दौरे के तुरंत बाद ली फ्रांस जाएंगे.

बर्लिन में जर्मन राष्ट्रपति फ्रांक वाल्टर श्टाइनमायर के साथ चीनी पीएम ली कियांग
तस्वीर: Nadja Wohlleben/REUTERS

जून के गर्म मौसम में चीनी प्रधानमंत्री ली कियांग और जर्मन चांसलर ओलाफ शॉल्त्स के बीच बैठक उस वक्त हो रही है जब दोनों देशों के रिश्ते सर्द हैं. ये बातचीत मंगलवार को चांसलर शॉल्त्स के दफ्तर में होने जा रही है. चीन और जर्मनी के दीर्घकालिक संबंधों को पटरी पर रखने की जरूरत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि ली ने प्रधानमंत्री के तौर पर अपनी पहली विदेश यात्रा के लिए बर्लिन को चुना.

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पिछले दो दशक के दौरान चीन, जर्मनी का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बन गया है लेकिन फिलहाल राजनैतिक हवा बदली हुई है. यूक्रेन युद्ध, रूस के साथ चीन की नजदीकी और अमेरिका के साथ रिश्तों में कड़वाहट का साया चीन और जर्मनी के आपसी संबंधों पर पड़ा है. नतीजतन कोविड के चलते तीन साल थमे रहने के बाद ये वार्ता ऐसे माहौल में हो रही है जहां बीजिंग और बर्लिन के बीच आर्थिक हितों और राजनैतिक मजबूरियों के बीच संतुलन की परीक्षा है. जर्मनी के दौरे के बाद ली कियांग अपने उच्च स्तरीय दल-बल के साथ अपने दो दिवसीय आधिकारिक दौरे पर पेरिस रवाना होंगे.

बर्लिन एयरपोर्ट पर चीनी प्रधानमंत्री ली कियांग का स्वागततस्वीर: Huang Jingwen/Xinhua/picture alliance

रिश्तों में तनाव

जर्मनी और चीन के बीच सरकारी स्तर पर बातचीत की शुरुआत दशक भर पहले पूर्व चांसलर अंगेला मैर्केल के जमाने में हुई. लोकतांत्रिक मूल्यों और मानवाधिकारों के मसले पर चीन से मतभेदों को किनारे रखते हुए दोनों देशों ने आर्थिक सहयोग और व्यापारिक साझेदारी को तरजीह दी. साल 2016 से दोनों पक्षों के बीच व्यावसायिक संबंधों ने बुलंदियां देखीं. साल 2022 में चीन लगातार सातवें बरस जर्मनी का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार रहा लेकिन राजनैतिक संबंधों में खटास भी तीखी होने लगी. बीजिंग-बर्लिन के बीच तनाव के सबसे अहम कारकों में यूक्रेन युद्ध के बावजूद चीन की रूस के साथ जिगरी दोस्ती के अलावा ताइवान-चीन मसला और जर्मनी के मित्र देश अमेरिका के साथ चीन के खराब रिश्तों का असर भी है.

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पिछले कुछ वक्त में सामाजिक और आर्थिक मोर्चे पर चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के तानाशाही रवैये के खिलाफ पश्चिमी देशों से लगातार आवाजें सुनाई दी हैं. मई महीने में दुनिया के अमीर देशों के गुट जी7 की बैठक में चीनी खतरे को कम करने पर बनी सहमति हो या फिर पिछले हफ्ते जारी हुई जर्मनी की पहली सुरक्षा रणनीति, दोनों में चीन को साफ तौर पर वैश्विक खतरा कहा गया जिससे निपटने के लिए कदम उठाए जाने की जरूरत पर बल दिया गया. मिसाल के तौर पर जर्मन सरकार चाहती है कि देशी कंपनियां चीनी बाजार पर निर्भरता को कम करें और दुनिया के दूसरे मुल्कों की तरफ देखें.

जर्मनी का सबसे बड़ा कारोबारी साझेदार है चीनतस्वीर: Tang Yi/Xinhua News Agency/picture alliance

अहम लेकिन चुनौतीपूर्ण बैठक

इस वक्त जर्मनी-चीन संबंधों का एक अहम पहलू ये है कि अब तक जर्मनी, चीन और अमेरिका के साथ अपने रिश्तों को द्विपक्षीय संबंधों के तहत निभाने में कामयाब रहा है लेकिन अब परिस्थितियां साफ तौर पर बदली हुई नजर आ रही हैं. रूस, यूक्रेन, चीन और अमेरिका आपस में यूं गुंथे हैं कि जर्मनी के लिए इन सबके साथ अलग-अलग समीकरण बैठा कर चलने की जटिल चुनौती पैदा हो गई है. यानी आर्थिक और सामाजिक मोर्चे को अलग-अलग करके चलने की सहूलियत अब नहीं है लिहाजा ली कियांग का ये दौरा रिश्तों के नए सिरे खोजने के लिहाज से काफी अहम है.

ये दौरा दोनों पक्षों के लिए एक ऐसा मंच माना जाना चाहिए जहां जबरदस्त सौदेबाजी का मौका भी है और जरूरत भी. जर्मनी के पास मौका है कि वह अपनी ताजा सुरक्षा रणनीति की रोशनी में अपना पक्ष और बेहतर तरीके से रख सके जहां चीन के साथ आर्थिक रिश्तों के तार भी जुड़ें रहें और विरोध के सुर भी साफ सुनाई दें. हालांकि जर्मनी के सामने चुनौती ये भी है कि उसे ये संबंध अमेरिका-चीन की तनातनी के बावजूद बरकरार रखने की जुगत लगानी है.

रूस के साथ साथ चीन से भी चिंतित नाटोतस्वीर: FABRIZIO BENSCH/REUTERS

उम्मीद ये भी है कि इस दौरे के दौरान जर्मनी अपनी आगामी चीन नीति के कुछ संकेत भी दे. वहीं चीन की जरूरत है कि यूरोप में अपने सबसे बड़े व्यापारिक साथी का हाथ थामकर चलने के रास्ते निकाले जाएं. वैसे भी कोविड महामारी से मची भयंकर तबाही ने चीन की आर्थिक रफ्तार को मंदा कर दिया है हालांकि चीन को इस बात अंदेशा जरूर होगा कि उसके बड़े बाजार को एक झटके में छोड़ देने का जोखिम उठाने की स्थिति में जर्मनी फिलहाल नहीं है.

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