चीनी वैज्ञानिकों का दावाः चांद की मिट्टी से बनाया पानी
२३ अगस्त २०२४
चीन के वैज्ञानिकों ने चांद की मिट्टी से बड़ी मात्रा में पानी बनाने का तरीका खोजने का दावा किया है. यह मिट्टी 2020 में चंद्रमा पर गया एक यान लेकर आया था.
चांद पर चीन ने कई बड़ी कामयाबियां हासिल की हैंतस्वीर: China National Space Administration/AFP
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चीन के वैज्ञानिकों ने 2020 के एक अभियान में लाई गई चंद्रमा की मिट्टी का उपयोग करके बड़ी मात्रा में पानी बनाने का "नया तरीका" खोजा है. देश के सरकारी सीसीटीवी ने 22 अगस्त को यह खबर प्रसारित की.
2020 में, चीन के चांग'ई-5 मिशन ने चांद से मिट्टी के नमूने लाने में कामयाबी हासिल की थी. तब 44 वर्षों में पहली बार चंद्रमा से इस तरह के नमूने लाए गए थे. चीनी अकादमी ऑफ साइंसेज के शोधकर्ताओं ने पाया कि इस 'चंद्रमा की मिट्टी' में हाइड्रोजन की बड़ी मात्रा होती है, जो अत्यधिक उच्च तापमान पर अन्य तत्वों के साथ प्रतिक्रिया करके पानी की भाप बनाती है.
नील आर्मस्ट्रॉन्ग के तीसरे साथी क्यों नहीं उतरे थे चांद पर?
विज्ञान और चमत्कार, आमतौर पर ये दोनों एक-दूसरे से कोसों दूर माने जाते हैं. लेकिन ठीक 55 साल पहले विज्ञान की पीठ पर सवार हम इंसानों ने एक अद्भुत चमत्कार किया था. कभी ना भूल पाने वाली यह तारीख थी, अपोलो 11 की मून लैंडिंग.
तस्वीर: Sven Hoppe/dpa/picture alliance
इंसानी इतिहास के सबसे यादगार हासिलों में से एक
55 साल पहले की यही तारीख थी... 20 जुलाई 1969 का दिन जब इंसान ने वह कमाल कर दिखाया जो पहले कभी नहीं हुआ था. इंसान पहली बार अपनी दुनिया से परे एक जीवनविहीन निरे वीरान पिंड पर पहुंचा. सफेद सूट में पैक, पीठ पर ऑक्सीजन सिलिंडर लादे दो लोगों ने वहां पांव धरे, जहां पहले कभी कोई इंसान नहीं पहुंच सका था.
उन दो लोगों ने जिस मिट्टी पर कदमों के निशान छोड़े, वो हमारी इस पृथ्वी से बहुत दूर किस्से-कहानियों और गीतों की जमीन थी. उन दो लोगों के नाम थे: नील आर्मस्ट्रॉन्ग और एडविन बज आल्ड्रिन. 16 जुलाई, 1969 को जब एक सैटर्न वी रॉकेट अपोलो 11 मिशन को लेकर केप कैनेडी से रवाना हुआ, तो इसकी तैयारी करते अमेरिका को कई साल हो चुके थे.
तस्वीर: NASA/Zuma/picture alliance
अंतरिक्ष की होड़
इस तारीख के आठ साल पहले 25 मई 1961 को तब राष्ट्रपति रहे जॉन एफ. कैनेडी ने अपोलो 11 के लिए एक असीम महत्वाकांक्षी लक्ष्य तय किया कि इंसानों को चांद की धरती पर उतारेंगे और उन्हें सुरक्षित पृथ्वी पर वापस भी लाएंगे. उन दिनों सोवियत संघ और अमेरिका में एक होड़ मची थी. पहली-पहली बार अंतरिक्ष में ये और वो करने की.
तस्वीर: MAURO PIMENTEL/AFP
मानव ने तय किया एक अकल्पनीय लक्ष्य
अप्रैल 1961 में सोवियत संघ ने यूरी गागरिन को अंतरिक्ष पहुंचाया. यह कारनामा पहली बार हुआ था. इससे अमेरिका ने खुद पर बहुत दबाव बढ़ा लिया. उसे अंतरिक्ष में ऐसी कामयाबी की तलाश थी, जो नाटकीय और अकल्पनीय हो. आखिरकार इस लक्ष्य की शिनाख्त हुई और 25 मई 1961 को कैनेडी ने कांग्रेस के साझा सत्र में कहा कि चांद पर मानव अभियान भेजेंगे.
तस्वीर: AP Photo/picture-alliance
तीन अंतरिक्षयात्रियों की रवानगी
16 जुलाई 1969 को एक सैटर्न वी रॉकेट ने अपोलो 11 मिशन को लेकर चांद के लिए कूच किया. इसमें तीन अंतरिक्षयात्री थे. मिशन कमांडर नील आर्मस्ट्रॉन्ग. लूनर मॉड्यूल पायलट एडविन बज आल्ड्रिन. और, कमांड मॉड्यूल पायलट माइकल कॉलिन्स. टीवी पर प्रसारित इस लॉन्चिंग को देख रहे लाखों लोग इस ऐतिहासिक पल के साक्षी बने.
तस्वीर: NASA via CNP /MediaPunch/picture alliance
शांति का समंदर
चांद का व्यास तो 3,476 किलोमीटर है. इतने बड़े चांद पर अपोलो 11 मिशन को कहां उतारा जाए, यह तय करने में नासा को दो साल लगे. उसने पांच संभावित जगहों की शिनाख्त की. लेकिन जब लैंडिंग का मौका आया, तो लूनर मॉड्यूल ईगल बहुत रफ्तार में था. ऐसे में जहां उतरने की योजना बनी थी, ईगल उसके पश्चिम में उतरा. इस पॉइंट को "मारे ट्रेंक्विलिटाटिस" कहा जाता है. हिन्दी में कहें, तो शांति का समंदर.
तस्वीर: ingimage/IMAGO
"दी ईगल हैज लैंडेड"
20 जुलाई 1969 को जब अपोलो 11 मिशन चांद पर उतरा, तब उसके लूनर मॉड्यूल ईगल में बस 25 सेकेंड का ईंधन बचा था. लैंडिंग होने पर आर्मस्ट्रॉन्ग ने मिशन कंट्रोल से कहा, "दी ईगल हैज लैंडेड." इसके कुछ घंटों बाद हैच खुला और बतौर मिशन कमांडर नील आर्मस्ट्रॉन्ग ने पैर बढ़ाए और चांद पर कदम रखने वाले पहले इंसान बने.
तस्वीर: Neil Armstrong/NASA/dpa/picture alliance
"इंसान का एक छोटा कदम, इंसानियत के लिए महान छलांग"
करीब 20 मिनट बाद बज आल्ड्रिन सीढ़ियों से उतरे और चांद की जमीन पर उनके पांव पड़े. आर्मस्ट्रॉन्ग और आल्ड्रिन ने मिलकर चांद की सतह पर अमेरिकी झंडा गाड़ दिया. दोनों ने चांद से पत्थर और धूल के नमूने जमा किए. आर्मस्ट्रॉन्ग और आल्ड्रिन ने चांद पर कुल 21 घंटे, 36 मिनट बिताए. इसमें चांद की सतह पर बिताई गई अवधि थी करीब ढाई घंटा. 21 जुलाई को वापसी का सफर शुरू हुआ, जो 24 जुलाई को हवाई पहुंचने पर पूरा हुआ.
तस्वीर: NASA
तीसरे अंतरिक्षयात्री कॉलिन्स कहां रह गए?
इस ऐतिहासिक सफर में आर्मस्ट्रॉन्ग और आल्ड्रिन की उपलब्धि के आगे अक्सर कमांड मॉड्यूल पायलट माइकल कॉलिन्स का नाम भुला दिया जाता है. वो भी तो थे अपोलो 11 मिशन का हिस्सा, फिर वो चांद की जमीन पर क्यों नहीं उतरे? दरअसल अपोलो 11 मिशन में दो उपकरणों को सैटर्न वी रॉकेट से लॉन्च किया गया था. एक, लूनर लैंडर ईगल. दूसरा कोलंबिया, जो ऑर्बिट करने वाली एक मदरशिप थी. कॉलिन्स इसी मदरशिप में थे.
तस्वीर: AP/dpa
क्या कर रहे थे माइकल कॉलिन्स
16 जुलाई को लॉन्चिंग के बाद कॉलिन्स, आर्मस्ट्रॉन्ग और आल्ड्रिन तीन दिन साथ थे. 20 जुलाई को कोलंबिया के पिछले हिस्से से निकलकर ईगल लैंडिंग के लिए बढ़ता, इसमें कॉलिन्स की अहम भूमिका थी. आर्मस्ट्रॉन्ग और आल्ड्रिन ईगल लैंडर में बैठकर चांद की सतह के लिए रवाना हो गए. कोलंबिया को पायलट कर रहे कॉलिन्स 21 घंटे से ज्यादा वक्त तक अकेले चांद का चक्कर लगाते रहे. दुनिया से दूर, हर एक इंसान से दूर, निरे अकेले.
तस्वीर: NASA
"मैं एकदम अकेला हूं"
कहते हैं कि ये इतना एकांत था, जितना शायद कभी किसी इंसान ने महसूस नहीं किया था. दी गार्डियन अखबार के मुताबिक, उन्होंने अपने कैप्सूल में लिखा था, "मैं अब सच में बिल्कुल अकेला हूं, किसी भी ज्ञात जीवन से एकदम अकेला." बताते हैं कि मिशन की तैयारी के समय से ही कॉलिन्स को डर था कि कहीं उनके दोनों साथियों के साथ हादसा ना हो जाए.
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बहुत मुमकिन था कि कोई हादसा हो जाता
कॉलिन्स को इस बात का हद से ज्यादा खौफ था कि कहीं उन्हें अकेले पृथ्वी पर ना लौटना पड़े. ऐसे किसी हादसे की आशंका बहुत मजबूत थी. तीनों अंतरिक्षयात्रियों को हादसे का पुरजोर अंदेशा था. आर्मस्ट्रॉन्ग ने भी पृथ्वी पर जिंदा लौटने की संभावना 50-50 आंकी थी. कई तरह के खतरे थे. मसलन कहीं लैंडर क्रैश हो गया, तो? इंजन फेल हो गया, तो? वापसी के वक्त इंजन चालू ही ना हुआ, तो?
तस्वीर: The Print Collector/picture alliance
यह डर नासा को भी था
यहां तक कि ईगल के फेल होने की आशंका के मद्देनजर राष्ट्रपति निक्सन का एक भाषण तैयार रखा गया था, जिसमें वह श्रद्धांजलि देते हुए कहते, "नियति का आदेश था कि जो मानव शांति से खोजबीन करने चांद गए, वे अब चिर शांति में हमेशा चांद पर रहेंगे." क्या यह विज्ञान और इंसानी जज्बे से हासिल चमत्कार नहीं था कि यह शोक संदेश पढ़ने की कभी नौबत ही नहीं आई! कि सच में इंसान चांद पर चढ़ा और वापस अपनी दुनिया में लौट आया!
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सीसीटीवी ने अपनी रिपोर्ट में कहा, "तीन वर्षों की गहन शोध और बार-बार की पुष्टि के बाद, चंद्रमा की मिट्टी का उपयोग करके पानी बनाने का एक नया तरीका खोजा गया है, जो भविष्य के चंद्रमा वैज्ञानिक अनुसंधान स्टेशन और अंतरिक्ष स्टेशनों के निर्माण के लिए महत्वपूर्ण डिजाइन आधार प्रदान करेगा."
50 लोगों के लिए पानी
सीसीटीवी के मुताबिक चीनी वैज्ञानिकों का दावा है कि उनके खोजे नए तरीके का उपयोग करके, चांद की एक टन मिट्टी से लगभग 51-76 किलोग्राम पानी बनाया जा सकेगा, यानी आधा लीटर की लगभग 100 बोतल भरी जा सकेंगी या 50 लोगों की पानी की रोजाना की जरूरत को पूरा किया जा सकेगा.
चांग'ई-5 मिशन ने चंद्रमा के निकटवर्ती हिस्से से नमूने जमा किए थे जबकि चांग'ई-6 ने चंद्रमा के दूसरी तरफ के हिस्से से मिट्टी जमा की, जो हमेशा पृथ्वी से दूर रहता है. यह पहली बार था जबकि चांद के उस तरफ से मिट्टी और अन्य खनिजों के नमूने पृथ्वी पर लाए गए.
चीन को उम्मीद है कि हाल के और भविष्य के चंद्रमा अभियानों से अंतरराष्ट्रीय चंद्रमा अनुसंधान स्टेशन (ILRS) की नींव रखी जाएगी, जिसका नेतृत्व वह रूस के साथ मिलकर कर रहा है.
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चांद को लेकर बड़ी योजनाएं
चीन की अंतरिक्ष एजेंसी ने 2035 तक चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर एक "आधारभूत स्टेशन" बनाने की तारीख निर्धारित की है, और 2045 तक चंद्रमा का चक्कर लगाता अंतरिक्ष स्टेशन जोड़ने का लक्ष्य रखा है. साथ ही, दोनों देश चांद पर न्यूक्लियर पावर प्लांट बनाने की योजना पर भी काम कर रहे हैं.
चंद्रमा पर पानी की मौजूदगी सिर्फ इंसान को वहां स्थापित करने के लिए ही जरूरी नहीं है. नासा के प्रमुख बिल नेल्सन ने मई में बताया था कि चंद्रमा पर पाया गया पानी हाइड्रोजन रॉकेट ईंधन बनाने के लिए उपयोग किया जा सकता है, जो मंगल और अन्य स्थलों की ओर आगे की अंतरिक्ष खोज के लिए ईंधन प्रदान कर सकता है.
क्या आप जानते थे कि चांद सिकुड़ रहा है?
नासा के आर्टेमिस कार्यक्रम की वजह से एक बार फिर इंसानों के चांद पर पहुंचने की संभावनाओं ने जन्म ले लिया है. लेकिन क्या आप चांद के बारे में ये बातें जानते हैं?
नासा के शोध के मुताबिक चांद धीरे धीरे अपनी गर्मी खो रहा है जिसकी वजह से उसकी सतह इस तरह सिकुड़ने लगी है जैसे अंगूर सिकुड़ कर किशमिश बन जाता है. लेकिन सिर्फ इतना ही नहीं हो रहा है. चांद के अंदर का भाग भी सिकुड़ रहा है. पिछले करोड़ों सालों में चांद करीब 50 मीटर (150 फुट) पतला हो गया है.
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झंडा आखिर लहराया कैसे?
कुछ लोगों का मानना है कि 1969 में अंतरिक्ष यात्रियों का चांद पर उतरना एक झूठ था और असल में नील आर्मस्ट्रॉन्ग और बज एल्ड्रिन एक नकली सेट पर चले थे. ये मानने वाले लोग कहते हैं कि एल्ड्रिन द्वारा लगाया गया अमेरिकी झंडा ऐसे लहरा रहा था जैसे हवा चल रही हो और अंतरिक्ष के निर्वात में यह नामुमकिन है. नासा का कहना है कि एल्ड्रिन झंडे को जमीन में गाड़ते समय उसे हिला रहे थे.
तस्वीर: picture-alliance/Photoshot/Neil A. Armstrong
जलाने वाली गर्मी, जमाने वाली ठंड
चांद पर तापमान काफी चर्म पर रहता है. सूरज की किरणें सतह पर पड़ने पर तापमान 127 डिग्री सेल्सियस तक जा सकता है और किरणों की गर्मी के बिना तापमान धड़ाम से गिर कर माइनस 153 डिग्री सेल्सियस तक आ सकता है!
तस्वीर: picture alliance/dpa/S. Kahnert
वहां रहता है कोई
चांद पर कोई रहता है यह एक बहुत ही पुराना मिथक है. कुछ लोगों को तो पूर्णिमा के दिन चांद की सतह पर ही एक चेहरा दिखाई देता है. कई देशों में ऐसे एक व्यक्ति को लेकर किम्वदंतियां हैं जिसने कोई बड़ी गलती की थी और उसे सजा के रूप में चांद पर भेज दिया गया था. हालांकि अभी तक किसी अंतरिक्ष यात्री को तो वो व्यक्ति नहीं मिला.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/F. Rumpenhorst
पृथ्वी से दूर भी जा रहा है
चांद हर साल पृथ्वी से लगभग चार सेंटीमीटर दूर भी खिसकता जा रहा है. यह जितना दूर होता चला जाएगा हमें उतना छोटा नजर आएगा. करीब 55 करोड़ सालों में ये इतना छोटा नजर आने लगेगा कि पृथ्वी के सबसे करीब बिंदु पर भी यह सूर्य को ढंक नहीं पाएगा. यानी तब सूर्य ग्रहण नहीं हुआ करेंगे.
तस्वीर: Reuters/J. Ernst
जी नहीं, भेड़ियों को चांद से कोई विशेष लगाव नहीं है
हर पुरानी डरावनी फिल्म में एक भेड़िए का चांद को देख कर हुआ हुआ करने का दृश्य होता ही था. लेकिन असल में ऐसा नहीं होता. भेड़िए ना पूर्णिमा पर ज्यादा तेज हुआ हुआ करने लगते हैं और ना ही चांद को देख कर ऐसा करते हैं. वो बस रात को हुआना तेज कर देते हैं और उसी समय पूरा चांद सबसे ज्यादा दिख रहा होता है.
तस्वीर: Imago/Anka Agency International/G. Lacz
चांद पर चलने वालों में विविधता की कमी
अभी तक कुल 12 इंसानों ने चांद पर कदम रखा है. ये सब अलग अलग व्यवसायों से तो हैं, लेकिन ये सब अमेरिकी हैं, श्वेत हैं और पुरुष हैं. देखना होगा कि चांद पर कदम रखने वाला पहला गैर-अमेरिकी कौन होगा. शायद वो एक महिला हो और शायद वो अश्वेत हो!
तस्वीर: picture-alliance/dpa
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अमेरिका और चीन के बीच चंद्रमा के संसाधनों को खोजने और निकालने की दौड़ के बीच यह खोज चीन की चंद्रमा पर स्थायी उपस्थिति के दशकों पुराने प्रोजेक्ट के लिए महत्वपूर्ण हो सकती है. नासा प्रमुख नेल्सन ने बार-बार चीन के अंतरिक्ष कार्यक्रम की तेज प्रगति और बीजिंग के चंद्रमा के सबसे संसाधन-समृद्ध स्थानों पर प्रभुत्व की संभावना के बारे में चिंता जताई है.