इंसान के सामने दो रास्ते: सहयोग या सामूहिक आत्महत्या
७ नवम्बर २०२२
संयुक्त राष्ट्र महासचिव अंटोनियो गुटेरेष ने कड़ा संदेश देते हुए कहा कि इंसान के सामने सहयोग करने या खत्म हो जाने का विकल्प है. विश्व जलवायु सम्मेलन (कॉप27) के दौरान कार्बन टैक्स की मांग भी तेज हो रही है.
विज्ञापन
मिस्र के तटीय शहर शर्म-अल-शेख में विश्व जलवायु सम्मेलन (कॉप27) को संबोधित करते हुए संयुक्त राष्ट्र महासचिव गुटेरेष ने सोमवार को कहा कि इंसानी सभ्यता के पास "सहयोग करने या खत्म हो जाने" का विकल्प है. गुटेरेष के मुताबिक जलवायु परिवर्तन का असर तेज हो रहा है, ऐसे में ग्लोबल वॉर्मिंग को रोकने के लिए तेजी से कदम उठाने होंगे. अंतरराष्ट्रीय समुदाय से गुटेरेष ने कहा, "या तो जलवायु सहयोग संधि या एक सामूहिक आत्महत्या संधि."
गुटेरेष ने अपने संबोधन से एक आपातकालीन स्थिति का खाका खींचने की कोशिश की, ताकि सभी देश दो हफ्ते के सम्मेलन के दौरान गंभीरता से जलवायु परिवर्तन को रोकने पर एकमत हों. उन्होंने दुनिया के सबसे अमीर देशों और सबसे गरीब देशों के बीच जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल को धीरे धीरे खत्म करने के लिए एक सहयोग भरी संधि की अपील की, "दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं- अमेरिका और चीन के ऊपर इस संधि को हकीकत में बदलने की खासी जिम्मेदारी है." बड़ी अर्थव्यवस्थाएं होने के साथ साथ ये दोनों सबसे ज्यादा कार्बन उत्सर्जन करने वाले देश भी हैं. तीसरे नंबर पर भारत है.
संयुक्त राष्ट्र चाहता है कि दुनिया 2040 तक सबसे ज्यादा कार्बन उत्सर्जित करने वाले जीवाश्म ईंधन, कोयले का इस्तेमाल बंद कर दे. औद्योगिक रूप से विकसित देशों का समूह ओईसीडी इस समयसीमा को 2030 करना चाहता है. लेकिन यूक्रेन युद्ध के चलते पैदा हुए ऊर्जा संकट ने कोयले की खपत और ज्यादा बढ़ा दी है. अब जर्मनी जैसा विकसित देश भी कई कोयला बिजलीघरों को फिर से चालू कर रहा है.
चुनौतियों का जिक्र करते हुए गुटेरेष ने कहा, "ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन बढ़ता जा रहा है. वैश्विक तापमान भी बढ़ रहा है. हमारी धरती ऐसे बिंदु की तरफ तेजी से बढ़ रही है, जहां जलवायु परिवर्तन की त्रासदी को वापस ले जाना नामुमकिन हो जाएगा."
क्या है चुनौती
2015 में पेरिस में हुए अंतरराष्ट्रीय जलवायु सम्मेलन में सभी देशों ने बढ़ते वैश्विक तापमान को औद्योगिक क्रांति से पहले के तापमान के मुकाबले 2 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा ना बढ़ने देने का वादा किया था. 1760 में शुरू हुई औद्योगिक क्रांति के बाद से अब तक पृथ्वी का औसत तापमान 1.2 डिग्री सेल्सियस बढ़ चुका है. पेरिस समझौते के मुताबिक, इस बढ़ोत्तरी को 1.5 डिग्री सेल्सियस पर रोकने के एलान भी किए गए. हालांकि सात साल बाद, बिना किसी घोषणा या बयान के सारे देश मानने लगे हैं कि यह लक्ष्य पूरा होता नहीं दिख रहा है. बढ़ चुके इस तापमान की वजह से दुनिया भर में ग्लेशियर पिघल रहे हैं. महासागार गर्म हो रहे हैं और मौसम चक्र अस्त व्यस्त हो रहा है. इसके कारण बाढ़, सूखे, भूस्खलन और तटीय इलाके के डूबने की घटनाएं विकराल हुई हैं.
जलवायु संधियों के मुातबिक ग्रीनहाउस गैसों में कटौती के लिए सभी देश मिलकर काम करेंगे. अमीर देश 100 अरब डॉलर का फंड बनाकर कमजोर देशों की मदद करेंगे. जलवायु परिवर्तन के असर को कम करने, उसके मुताबिक ढलने और जरूरी बदलाव करने के लिए पैसे और स्वच्छ ऊर्जा तकनीक का आदान प्रदान किये जाने का भी प्रावधान है, लेकिन कई बिंदुओं पर प्रगति निराशाजनक है.
2022 की भीषण मौसमी आपदाएं
क्या अमीर, क्या गरीब बदलती जलवायु हर मुल्क पर भारी पड़ रही है. इस साल अब तक आई मौसमी आपदाएं बता रही हैं कि भविष्य कितना भयावह हो सकता है.
तस्वीर: Jagadeesh Nv/dpa/picture alliance
भीषण गर्मी
भारत और पाकिस्तान में अप्रैल, मई और जून को गर्मी का सीजन माना जाता है. लेकिन दक्षिण एशिया के ये देश इस बार फरवरी अंत से ही तपने लगे. मार्च और अप्रैल में इतनी गर्मी पड़ी कि 120 साल का रिकॉर्ड टूट गया. मई में कई दिनों तक भारत के मैदानी हिस्सों में तापमान लगातार 40 से 50 डिग्री सेल्सियस के बीच बना रहा.
तस्वीर: Jagadeesh Nv/dpa/picture alliance
गर्मी से झुलसी फसलें
भीषण गर्मी के कारण भारत के कई इलाकों में गेहूं की फसल तैयार होने से पहले ही मुरझा गई. लंबी गर्मी के बाद कई इलाकों में मानसून भी देर से और कमजोर रूप में आया. विशेषज्ञों का अनुमान है कि इन मौसमी बदलावों के कारण भारत के अनाज उत्पादन में 10 से 35 फीसदी की गिरावट रहेगी.
गर्मी झेलने के बाद पाकिस्तान के बड़े इलाके में रिकॉर्डतोड़ बारिश हुई. देश के कुछ हिस्सों में 66 फीसदी ज्यादा पानी बरसा और उसने सिंध प्रांत को बुरी तरह डुबो दिया. इसके बाद पहाड़ी इलाकों में बादल फटने और ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने के कारण बाढ़ आई, जिसने पहले ऊपरी इलाकों में तबाही मचाई और फिर नीचे सिंध में भी.
तस्वीर: Abdul Majeed/AFP/Getty Images
अभूतपूर्व नुकसान
पाकिस्तान में बाढ़ से करीब 10 लाख घरों को नुकसान पहुंचा है. 162 पुल बर्बाद हो चुके हैं. पाकिस्तान की नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी के मुताबिक करीब 3600 किलोमीटर सड़क बह चुकी है. अनुमान है कि बाढ़ के कारण करीब 8 लाख मवेशी मारे जा चुके हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि निचले और सपाट इलाकों से बाढ़ का पानी इस साल के अंत तक ही उतर सकेगा.
तस्वीर: Abdul Majeed/AFP
धधका यूरोप
यूरोपीय संघ की ज्वाइंट रिसर्च टीम के मुताबिक, इस साल यूरोप में 6 लाख हेक्टेयर से ज्यादा जंगल जले. यह आंकड़ा लक्जमबर्ग के कुल क्षेत्रफल का दोगुना है. बारिश नहीं होने से जंगल सूखे थे. पुर्तगाल, स्पेन और फ्रांस में जंगल की आग बुझाने में जुटे कम से कम 40 लोगों की मौत हो गई.
तस्वीर: Philippe Lopez/AFP
भयानक सूखा
जब पाकिस्तान पानी से परेशान था, उसी वक्त चीन, इराक, उत्तर पूर्वी अफ्रीका, यूरोप और अमेरिका का बड़ा हिस्सा भयानक सूखे का सामना कर रहे थे. इराक, यूरोप और अमेरिका में कई बड़ी नदियां सूख सी गईं. राइन, पो, लोर, डेन्यूब और कोलोराडो जैसी बड़ी नदियां भी सिकुड़ गईं.
तस्वीर: Stephane Mahe/REUTERS
सूखे इलाके में बाढ़
दशकों से सूखा झेल रहे अमेरिकी राज्य टेक्सस में अगस्त का महीना अचानक भारी बारिश लेकर आया. बारिश इतनी हुई कि बाढ़ की नौबत आ गई. सबसे बुरी हालत मैसाचुसेट्स प्रांत की हुई, जहां कई लोग मारे गए.
तस्वीर: Dallas Police Department/AFP
ताकतवर तूफान
सितंबर 2022 में जापान ने एक के बाद एक, कुल 14 चक्रवाती तूफान झेले. महासागर से उठे चक्रवाती तूफान ने अमेरिकी राज्य फ्लोरिडा में भी भारी तबाही मचाई. वैज्ञानिकों का दावा है कि जलवायु परिवर्तन चक्रवाती तूफानों को और ज्यादा ताकतवर बना रहा है.
तस्वीर: Tosei Kisanuki/AP Photo/picture alliance
सिडनी में रिकॉर्ड बारिश
6 अक्टूबर 2022 को ऑस्ट्रेलिया के सबसे ज्यादा आबादी वाले महानगर सिडनी में बारिश ने 70 साल पुराना रिकॉर्ड तोड़ दिया. इस साल के पहले 10 महीनों में ही शहर में 2,216 मिलीमीटर से ज्यादा पानी बरस चुका है. इससे पहले 1950 में पूरे साल सिडनी में 2,194 एमएम बारिश हुई थी.
तस्वीर: imago images
9 तस्वीरें1 | 9
ताकतवर होती कार्बन टैक्स की मांग
कॉप27 के ही दौरान हुए एक अन्य आयोजन में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की मैनेजिंग डायरेक्टर क्रिस्टालिना जॉर्जियेवा ने बदलावों की रफ्तार को बहुत सुस्त करार दिया. जॉर्जियेवा ने कार्बन टैक्स की वकालत करते हुए कहा कि, "जब तक हम 2030 तक धीरे धीरे कार्बन पर औसतन 75 डॉलर प्रति टन का दाम फिक्स नहीं करेंगे, तब तक कारोबारों और उपभोक्ताओं के सामने हम कोई आकर्षक पहलू नहीं रख पाएंगे."
यूरोपीय संघ के कुछ देशों में यह कार्बन प्राइस लागू की जा चुकी है. इसके तहत निर्धारित मात्रा से ज्यादा कार्बन उत्सर्जन करने पर 76 यूरो प्रति टन का प्रावधान है. अमेरिकी राज्य कैलिफोर्निया में यह रकम 30 डॉलर प्रति टन है.
आईएमएफ की एमडी इससे जुड़ी समस्याओं को भी जानती हैं, "सिर्फ गरीब ही नहीं बल्कि दुनिया भर के कई देशों में, प्रदूषण की कीमत को स्वीकार करने का दाम बहुत ही कम है." महंगाई ने इस उपाय को और ज्यादा मुश्किल बना दिया है.
जॉर्जियेवा ने कहा, "इस कॉप में इस पर निर्णायक फैसला हो या बाद में, लेकिन इस पर निर्णय जल्द होना चाहिए, क्योंकि सफल बदलाव लाने के लिए जरूरी समय हमारे हाथ से निकलता जा रहा है."
विज्ञापन
कई देशों में प्रदर्शन
शर्म-अल-शेख में छह नवंबर से कॉप27 शुरू हुआ है. लेकिन इससे कुछ हफ्ते पहले ही यूरोप में क्लाइमेट एक्टिविस्ट प्ररदर्शन करने लगे थे. ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी और स्पेन में कई कार्यकर्ताओं ने हाल ही में म्यूजियमों को निशाना बनाया. कई ऐतिहासिक और बेशकीमती पेंटिंगों पर रंग उड़ेल दिया गया. हालांकि ज्यादातर पेंटिंग्स कांच के कवर में थीं, जिस वजह से उन्हें नुकसान नहीं पहुंचा. नेताओं की नाराजगी के बावजूद प्रदर्शनकारियों का कहना है कि नेतृत्व करने वाले अब भी जलवायु परिवर्तन को लेकर पूरी तरह गंभीर नहीं हैं.
सोमवार को जलवायु कार्यकर्ताओं ने ब्रिटेन की राजधानी लंदन के आस पास पीक आवर में सड़कें जाम कर दी. जस्ट स्टॉप ऑयल नाम के संगठन के इस प्रदर्शन की वजह से कई सड़कों पर लंबा जाम लग गया. "जस्ट स्टॉप ऑयल की प्रवक्त इंडिगो रमब्लेलो कहती हैं, 30 साल की सार्वजनिक बहस, लॉबिईंग और याचिकाओं के बाद भी हमें चरमराती जलवायु देखनी पड़ रही है और हमारे पास कहीं जाने की जगह नहीं बची है."
ओएसजे/एनआर (एएफपी, डीपीए, रॉयटर्स)
तेजी से पिघल रहे हैं स्विट्जरलैंड के ग्लेशियर
2022 स्विट्जरलैंड के ग्लेशियरों के लिए एक नाटकीय साल रहा. आल्प्स की हिमशिलाओं ने इस साल अपना छह प्रतिशत आयतन खो दिया. यहां की बर्फ विशेष रूप से जलवायु परिवर्तन का खामियाजा भुगत रही है.
तस्वीर: Sean Gallup/Getty Images
बर्फ की अनंत चादर को अलविदा
जून 2022 के अंत में ली हुई इस तस्वीर में रोन ग्लेशियर को अपनी ही बर्फ के पिघलने से बनी झील में मिलते हुए देखा जा सकता है. स्विस अकैडेमी ऑफ साइंसेज (एससीएनएटी) के मुताबिक स्विट्जरलैंड के ग्लेशियर इस साल अपनी बर्फ का छह प्रतिशत आयतन खो चुके हैं, जो पहले कभी नहीं हुआ. बल्कि इससे पहले तक तो दो प्रतिशत बर्फ के कम हो जाने को "चर्म" माना जाता था.
तस्वीर: Sean Gallup/Getty Images
2000 सालों में पहली बार बर्फ मुक्त
सितंबर 2022 की इस तस्वीर में हाइकरों को सानफ्लूरोन दर्रा पार करते हुए देखा जा सकता है. नंगी जमीन देख कर यह अंदाजा ही नहीं लगाया जा सकता कि यह दर्रा कम से कम पिछले 2,000 सालों से लेकर हाल तक बर्फ के नीचे दबा हुआ था. सिर्फ 10 साल पहले तक यहां 15 मीटर मोटी बर्फ जमी हुई थी. स्विट्जरलैंड में ग्लेशियरों के पिघलने के कई कारण हैं: कम बर्फ का गिरना, गर्मियों में बार बार हीट वेव का आना कुछ कारण हैं.
तस्वीर: FABRICE COFFRINI/AFP/Getty Images
सहारा की धूल का असर
सर्दियों में कम बर्फ के गिरने के बाद इस साल मार्च से मई के बीच बड़ी मात्रा में सहारा से आई धूल ने ग्लेशियर के पिघलने की गति को और बढ़ा दिया. पीली धुंध में ढका हुआ यह माउंट ब्रिसेन है. प्रदूषित बर्फ ने सूरज की किरणों को और सोख लिया जिसकी वजह से ग्लेशियरों के ऊपर जमी बर्फ की सुरक्षात्मक सतह समय से पहले पिघल गई. एससीएनएटी का कहना था, "यह एक नाटकीय घटना की शुरुआत थी."
तस्वीर: URS FLUEELER/Keystone/picture alliance
ग्लेशियर को नापना
ग्लेशियरविद और स्विस ग्लेशियर मॉनिटरिंग नेटवर्क के प्रमुख माथियास हस (दाईं तरफ) अपने सहयोगियों के साथ पर्स ग्लेशियर पर गहराई नापने के डंडे लगा रहे हैं. इस नेटवर्क ने इन गर्मियों में 20 ग्लेशियरों का अध्ययन किया है जिसके नतीजे खतरनाक हैं. इस साल की शुरुआत से अभी तक तीन क्यूबिक किलोमीटर बर्फ पिघल चुकी है. हस ने एएफपी को बताया, "बहुत से बहुत ग्लेशियर के सिर्फ एक तिहाई हिस्से को बचाया जा सकता है."
तस्वीर: MAYK WENDT/Keystone/picture alliance
नष्ट होने के कगार पर
जिस तरह ग्लेशियर पिघल रहे हैं, ग्रीस ग्लेशियर जैसे ग्लेशियरों पर इस तरह हाइक करना असंभव हो जाएगा. अगर ग्लोबल वॉर्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के पेरिस जलवायु संधि में तय किए गए लक्ष्य को हासिल नहीं किया गया तो 2100 तक आल्प्स के ग्लेशियर मोटे तौर पर गायब ही हो जाएंगे.
तस्वीर: FABRICE COFFRINI/AFP
बर्फ की गुफाएं भी लुप्त हो रही हैं
रोन ग्लेशियर में एक बर्फ की गुफा में पर्यटक घूम रहे हैं. पिछले 10 सालों में इस ग्लेशियर की हर साल औसतन पांच मीटर बर्फ पिघली है. इस बर्फ के कुछ हिस्से तो हजारों साल पुराने हैं जो जीव जंतुओं और पौधों के अवशेषों के एक तरह के अभिलेख हैं. ये अभिलेख वैश्विक जलवायु परिवर्तन के परिपेक्ष में मध्यम और लॉन्ग टर्म बदलावों के सबसे अच्छे संकेतक हैं.
तस्वीर: FABRICE COFFRINI/AFP/Getty Images
गर्म होता पानी
रोन ग्लेशियर जहां खत्म होता है वहां से 807 किलोमीटर लंबी रोन नदी शुरू होती है. नदी स्विट्जरलैंड में 246 किलोमीटर तक और फ्रांस में 543 किलोमीटर तक बहती है. गर्मियों में हीट वेव की वजह से यह नदी कुछ स्थानों पर तो पूरी तरह से सूख गई थी. सितंबर में बारिश के बाद जब नदी फिर से भर गई तब भी उसमें पानी इतना ठंडा नहीं हो सका जिससे फ्रांस में उसके किनारों पर बने परमाणु ऊर्जा संयंत्रों को ठंडा किया जा सके.
तस्वीर: FABRICE COFFRINI/AFP/Getty Images
बर्फ का उपचार
'ग्लेशियर 3000' स्की रिसोर्ट में बर्फ के पिघलने का मुकाबला करने के लिए कर्मचारी बची हुई बर्फ को चादरों से ढक रहे हैं. बर्फ की परत पहाड़ों को स्थिर रखती है: ग्लेशियर जब पिघलते हैं तब पत्थरों का गिरना, स्खलन या मिटटी का स्खलन बढ़ सकता है. एक के बाद एक कर सरकार धीरे धीरे आल्प्स के कई हिस्सों को पर्वतारोहियों और हाइकरों के लिए बंद करती जा रही है.
तस्वीर: FABRICE COFFRINI/AFP
लुप्त हो चुके ग्लेशियरों का मातम
2019 की इस तस्वीर में ऐक्टिविस्ट पिजोल ग्लेशियर के लिए सांकेतिक रूप से मातम मना रहे हैं. तीन साल बाद वाकई मातम की जरूरत आन पड़ी है: पिजोल ग्लेशियर व्यावहारिक रूप से गायब हो चुका है. वाद्रे दल कोरवाश और श्वार्जबाकफर्न जैसे दूसरे छोटे ग्लेशियर भी पिघल चुके हैं. (नेले जेंश)