जर्मनी ने हाल में शरणार्थियों पर अपनी नीतियों को कड़ा किया है. इसके बाद से जर्मनी में चर्च से शरण मांगने वालों की संख्या में उछाल आया है.
जर्मनी में पिछले कुछ महीनों मे शरणार्थियों को लेकर बने कानूनों में सख्ती आई हैतस्वीर: Jochen Eckel/IMAGO
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जर्मनी में चर्च से शरण मांगने वाले लोगों की संख्या में तेज उछाल आया है. जर्मनी ने हाल ही में शरणार्थियों को लेकर अपनी नीतियों को सख्त किया है. ऐसे में बहुत से ऐसे शरणार्थी, जिनके पास पर्याप्त कागजात नहीं हैं, वो जर्मनी में बने रहने के लिए अलग-अलग चर्च से शरण की मांग कर रहे हैं. यह जानकारी प्रोटेस्टेंट चर्च इन जर्मनी यानी ईकेडी नाम के संगठन ने फुंके मीडिया ग्रुप को एक बयान में दी.
ईकेडी की प्रवक्ता ने बताया, "कई जगहों पर दरख्वास्तों की संख्या में तेज उछाल आया है. ऐसा डिपोर्टेशन के बढ़े दबाव के चलते हुआ है. कई जगहों पर तो दरख्वास्तें चार गुना बढ़ गई हैं."
चर्च कर सकता है पुलिस से बचाव
चर्च, खासकर प्रोटेस्टेंट चर्चों का ऐसे लोगों को अस्थायी रूप से शरण देने का लंबा इतिहास रहा है, जो किसी खतरे, जैसे यातना या मौत से बचने के लिए भाग रहे हैं और उन्हें अपने देश में वापस जाने पर इन्हें शिकार बनाए जाने का डर है. जब शरणार्थी लोग चर्च में रह रहे होते हैं तो आमतौर पर पुलिस वाले उन्हें गिरफ्तार करने के लिए चर्च के अंदर दाखिल नहीं होते हैं.
चर्च में शरण पाए लोगों को गिरफ्तार करने के लिए कई बार पुलिस चर्च के अंदर दाखिल नहीं होतीतस्वीर: Peter Schickert/picture alliance
चर्च से संरक्षण मांगने वाले लोगों में बहुत से लोग ऐसे हैं, जिन्हें जर्मन प्रशासन की तरफ से जर्मनी छोड़ने का आदेश दे दिया गया है. ऐसे लोग चाहते हैं कि अगर चर्च उन्हें शरण दे देता है तो वो चर्च में रहते हुए वापस भेजे जाने की डेडलाइन को पार कर सकते हैं. और शायद जबरन डिपोर्ट किए जाने से बच सकते हैं क्योंकि चर्च के अंदर रहते हुए वो पुलिस के हाथ आने से भी बचे रहेंगे.
सरकारी आंकड़ों में इतना उछाल नहीं दिखा
हालांकि चर्च की ओर से कहा गया है कि शरण मांगने वालों की संख्या इतनी ज्यादा है कि वो सभी की मदद नहीं कर सकते हैं. ईकेडी की प्रवक्ता ने बताया कि चर्च शरण मांगने वालों का कोई केंद्रीय रिकॉर्ड नहीं बनाता और राष्ट्रीय स्तर पर कितने लोग चर्च से इस तरह की शरण की गुजारिश कर रहे हैं इसका भी आंकड़ा मौजूद नहीं है. ईकेडी ने बताया कि उन्होंने जो अनुमान लगाए हैं, वो जर्मनी के अलग-अलग इलाके के चर्चों से मिले फीडबैक के आधार पर लगाए गए हैं.
पोप फ्रांसिस के कुछ बेबाक और संवेदनशील बयान
समलैंगिकता, महिला अधिकार और चर्च में हुए बच्चों के यौन शोषण पर रोमन कैथोलिक चर्च की भौहें तन जाती थीं. लेकिन पोप फ्रांसिस ने इस झिझक को तोड़ा. कई मौकों पर वे धर्मगुरु के बजाए एक संवेदनशील इंसान की तरह बोले.
तस्वीर: Getty Images/AFP/T. Fabi
मानवाधिकारों पर
"मानवाधिकारों का उल्लंघन सिर्फ आतंकवाद, सताने या हत्याकांडों से नहीं होता, बल्कि गहरी असमानता पैदा करने वाला गलत आर्थिक ढांचा भी इसका हनन करता है."
तस्वीर: picture-alliance/dpa/L´Osservatore Romano
समलैंगिकता पर
"अगर कोई समलैंगिक है और सद्भावना से ईश्वर को खोजता है तो उसे परखने वाला मैं कौन होता हूं? हमें इसके चलते लोगों को हाशिए पर नहीं डालना चाहिए. उन्हें समाज में अच्छी तरह शामिल करना चाहिए."
तस्वीर: Tomas Cuesta/AFP
महिलाओं पर
सदियों से वैटिकन के उच्च पद महिलाओं के लिए बैन थे. लेकिन पोप फ्रांसिस ने इस रुढ़ि को तोड़ते हुए कई महिलाओं को चर्च में उच्च पदों पर नियुक्त किया. पोप फ्रांसिस ने खुलकर कहा, "महिलाओं के पास जीवन देने की क्षमता वाला महान तोहफा है, उनके पास कोमल होने और शांति व उल्लास बिखेरने की क्षमता है." और उनके बिना चर्च अधूरा है.
तस्वीर: Reuters/T. Gentile
आर्थिक असमानता पर
"इन दिनों दुनिया में बहुत गरीबी है और यह एक स्कैंडल है क्योंकि हमारे पास इतने सारे अमीर लोग हैं और संसाधन सबको दिए गए हैं. हम सबको सोचना होगा कि हम कैसे थोड़े गरीब बन सकते हैं."
तस्वीर: Time Magazine
चर्च के बाल यौन शोषण पर
पोप फ्रांसिस ऐसे पहले पोप थे, जिन्होंने खुलकर कैथोलिक चर्च में हुए बाल यौन अपराधों को स्वीकारा. उन्होंने शोषण के कई आरोपी पादरियों और बिशपों की छुट्टी की. पोप ने इन मामलों पर कहा कि चर्च को "शर्मिंदा होना चाहिए."
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ईशनिंदा पर
"ये कहना कि आप ईश्वर के नाम पर किसी की हत्या कर सकते हैं, यही ईशनिंदा है."
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चर्च के पदाधिकारियों पर
"ऐसे चरवाहे बनो जिससे भेड़ों की गंध आए." इस संदेश के जरिए चर्च के पादरियों, बिशपों और अन्य अधिकारियों से पोप ने कहा कि वे विशिष्ट व्यक्ति बनने के बजाए आम लोगों के बीच जाएं और उनसे घुलें मिलें.
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ईसाई धर्म पर
"मैं अपने कर्मचारियों को सही तनख्वाह नहीं देता हूं, मैं लोगों का शोषण करता हूं, मैं गंदा व्यापार करता हूं. मैं पैसे की हेराफेरी करता हूं और एक दोहरा जीवन जीता हूं. ऐसे बहुत सारे कैथोलिक हैं जो ऐसा ही करते हैं और स्कैंडल करते हैं. हमने कितनी बार लोगों को यह कहते हुए सुना है कि अगर ये शख्स कैथोलिक है तो इससे बेहतर है नास्तिक होना."
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पर्यावरण पर
"हमें जैव विविधता के उजड़ने और इकोसिस्टमों के तबाह होने के प्रति उदासीन नहीं होना चाहिए. ऐसा अक्सर गैरजिम्मेदाराना और स्वार्थी व्यवहार के कारण होता है. सिर्फ हमारी वजह से हजारों प्रजातियां वो चमक नहीं बिखेर सकेंगी, जिसके लिए ईश्वर ने उन्हें बनाया है. हमें ऐसा करने का कोई अधिकार नहीं है."
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राजनीति पर
"एक व्यक्ति जो सिर्फ दीवारें बनाने के बारे में सोचता हो, चाहे वो जहां भी हों और वह पुल बनाने के बारे में ना सोचता हो, वह ईसाई नहीं है."
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/E. Vucci
नई पीढ़ी से आशा
"यह बूढ़ा आदमी आपसे (यूनिवर्सिटी के छात्रों से) बात कर रहा है. इस बूढ़े इंसान के भी सपने हैं कि एक दिन आप लोग शिक्षकों की एक पीढ़ी बनेंगे. मानवता के शिक्षक, करुणा और उम्मीद के टीचर."
तस्वीर: VATICAN MEDIA/ipa-agency/picture alliance
नृत्य और कला पर
"मैं टैंगो (अर्जेंटीना का डांस) से मोहब्बत करता हूं और जब मैं जवान था तब मैं ये डांस करता था."
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एक्युमेनिकल फेडरल एसोसिएशन फॉर चर्च असाइलम की प्रमुख डीटलिंड योखिम्स की ओर से फुंके मीडिया ग्रुप को बताया गया है कि ऐसे लोगों की ओर से भी चर्च में शरण की दरख्वास्त दी जा रही है, जिन्हें स्पष्ट नहीं है कि उनके जर्मनी में रहने के अधिकार पर भविष्य में क्या फैसला होगा.
जर्मनी के फेडरल ऑफिस ऑफ माइग्रेशन एंड रिफ्यूजीज के आंकड़ों के मुताबिक साल 2025 के सिर्फ पहले तीन महीनों में प्रोटेस्टेंट, कैथोलिक और अन्य स्वतंत्र चर्चों में कुल मिलाकर चर्च से शरण मांगने के 617 मामले सामने आए हैं. जबकि साल 2024 के पहले तीन महीनों में ऐसे 604 मामले आए थे और पिछले पूरे साल में चर्च से शरण मांगने के कुल 2,386 मामले आए थे.