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प्रकृति और पर्यावरणसंयुक्त राज्य अमेरिका

प्रदूषण का सबसे बड़ी वजह हैं शहर बन सकेंगे कार्बन-न्यूट्रल

स्टुअर्ट ब्राउन
१६ अप्रैल २०२२

दुनिया में ग्रीनहाउस गैसों के सबसे ज्यादा उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार, तेजी से बढ़ रहे शहरों को बदलने की सख्त जरूरत है. जलवायु संकट के खिलाफ लड़ाई में इन शहरों को साफ, कम उत्सर्जन वाली ईकोप्रणालियों में बदलना होगा.

USA New York | Manhattan | Aussicht
तस्वीर: imago stock&people

करीब 85 फीसदी मानव आबादी 2100 तक शहरों में रह रही होगी. एक करोड़ से ज्यादा की आबादी वाले महानगरों में और लोग रहने आएंगे. लेकिन ये इमारतों के शहरी जंगल जलवायु के हत्यारे हैं. उच्च-उत्सर्जन वाले इस्पात और कंक्रीट से बने, तेल, कोयला और गैस से चलने और गरम होने वाले- ये शहर ही आज दुनिया भर में 75 फीसदी सीओटू उत्सर्जन के जिम्मेदार हैं.

जलवायु संकट से निपटने के तरीके सुझाने वाली संयुक्त राष्ट्र की एक ताजा रिपोर्ट में शहरों का विशेष तौर पर उल्लेख किया गया है. रिपोर्ट के मुताबिक शहरी इमारतों का उत्सर्जन- बनने के समय और बनने के बाद- 1990 से करीब 50 फीसदी बढ़ चुका है. इसका अर्थ ये है अगर वैश्विक तापमान को, पूर्व औद्योगिक स्तरों से डेढ़ डिग्री सेल्सियस के दायरे में रखना है तो निर्माण सेक्टर को तेजी से कार्बनमुक्त होना होगा.

शहरी उत्सर्जन 2050 तक शून्य के करीब लाए जा सकते हैं, बशर्ते शहरों में अक्षय ऊर्जा का उपयोग हो, इमारतें विद्युत-रोधी और ऊर्जा-सक्षम हों और परिवहन बिजलीचालित हो. शहरों के हरितीकरण से कार्बन डाइऑक्साइड नहीं निकलेगी और बड़े महानगरों में खासतौर पर अधिक गर्मी की समस्या से निपटने में मदद मिलेगी.

जानकार कहते हैं कि इन शहरों में 2050 तक दिखने वाली कुल इमारतों में से करीब 60 फीसदी अभी बनाई जानी हैं यानी बहुत कम या शून्य उत्सर्जन वाले जलवायु-निरपेक्ष शहर का ख्वाब पूरा होना अब भी मुमकिन है. 

जलवायु न्यूनीकरण की तरफ बढ़ते शहर

अमेरिका स्थित स्वयंसेवी संस्था वर्ल्ड रिसोर्सेज इन्स्टीट्यूट के रॉस सेंटर फॉर सस्टेनेबल सिटीज के कार्यवाहक ग्लोबल डायरेक्टर रोजियर वान्डेनबर्ग कहते हैं कि शहर, कामयाब जलवायु न्यूनीकरण के सूक्ष्म ब्रह्मांड बन सकते हैं.

वो कहते हैं, "लोगों की भारी मौजूदगी के चलते शहरों में एक बड़ा अवसर मौजूद है, मतलब आप बड़े पैमाने पर कार्बनमुक्त हो सकते हैं. समाधान शहरों में ही बसता है."

लेकिन महत्त्वपूर्ण चुनौतियां कायम है, खासकर उच्च घनत्व वाले कॉम्पैक्ट शहरों को बनाने की- जहां लोग एक दूसरे के करीब रहें और कारों की जरूरत कम कर दी जाए. एक लोकप्रिय आंकड़े के मुताबिक 15 मिनट के दायरे में पैदल या साइकिल से सभी सुविधाओं तक पहुंच हासिल कर लेने का लक्ष्य रखा गया है.

महामारी के बाद इस बारे में प्रयोग शुरू भी हो चुके हैं कि किस तरह सफर का समय घटाया जाए और लोगों का रहना और काम करना नजदीकी दायरों में हो सके. मेलबर्न का 20 मिनट नेबरहुड और पेरिस का 15 मिनट सिटी ऐसे ही प्रयोग हैं.

वान्डेनबर्ग कहते हैं कि "हम लोग दशकों से जानते आए है कि वे शहर ज्यादा बेहतर काम करते हैं, ज्यादा साफ होते हैं, ज्यादा टिकाऊ होते हैं, ज्यादा न्यायसंगत होते हैं जिनमें आप लोगों के रहने की जगह के पास ही तमाम सेवाएं भी उपलब्ध करा देते हैं."

पेरिस की सड़कों पर पैदल और साइकिलों पर चलते लोगतस्वीर: Berzane Nasser/ABACA/picture alliance

एक नये शहरी नियोजन का सपना

लेकिन इसके लिए बहुत साहसी और स्पष्ट शहरी नियोजन दृष्टि की जरूरत है जो बहुत सारे प्रमुख वैश्विक शहरों में पहले से मौजूद क्षैतिज विस्तार वाली अवधारणा से कतई अलग हो. वान्डेनबर्ग कहते हैं, "आपको अपने नियोजन के बारे में, शहरों के पुनःसंयोजन के बारे में वाकई बहुत अलग सोचना होगा."

अगर अपेक्षाकृत गरीब शहरी समुदायों को जलवायु निरपेक्ष शहरों में रूपांतरित करना है तो एक सक्षम, काबिल, बिजलीचालित शहरी परिवहन तक न्यायसंगत और बराबर पहुंच भी बुनियादी भूमिका निभाएगी.

कम आय वाले देशों में नागरिक अपनी कमाई का करीब 35 फीसदी हिस्सा परिवहन में खर्च कर देते हैं. वान्डेनबर्ग इस बात को रेखांकित करते हैं कि इसकी आंशिक वजह है शहरी विस्तार और उन इलाकों में आवासीय व्यवस्था की कमी जहां लोग काम करते हैं.

2050 तक शहरों में जलवायु तटस्थता हासिल करने के लक्ष्य का समर्थन करने वाले द रॉस सेंटर फॉर सस्टेनेबल सिटीज़ का आंशिक फोकस, तेजी से बढ़ते अफ्रीकी शहरों में शहरी परिवहन के विद्युतीकरण पर भी है. इसमें बसें भी शामिल हैं. परिवहन के बुनियादी ढांचे का डिजिटलीकरण भी यात्रियों की जरूरतों के लिहाज से परिवहन को बेहतर बनाने की कोशिशों में केंद्रीय भूमिका निभाएगा.

वान्डेनबर्ग के मुताबिक वैसे तो शहरों में होने वाले उत्सर्जन के 20 फीसदी हिस्से की जिम्मेदार परिवहन सेवाएं हैं लेकिन सबसे बड़ी कुसूरवार हैं इमारतें जिनसे तीन गुना ज्यादा कार्बन उत्सर्जित होती है. ऊर्जा उपयोगिता बढ़ाने के लिए कम उत्सर्जन वाली इमारतों के निर्माण और पुरानी इमारतों के पुनःसंयोजन के लिए ज्यादा पूंजी बाजार और निवेशकों का समर्थन भी चाहिए.

इसमें टिकाऊ इमारतों के लिए निर्धारित अंतरराष्ट्रीय पैमाने भी शामिल हैं जो पेंशन फंडों से निवेश को प्रेरित करेंगे और उन्हें भी जो अपने पोर्टफोलियो को कार्बनमुक्त करना चाहते हैं. अर्थव्यवस्था के लिए लाभों को भी बेहतर ढंग से समझने की जरूरत है. वान्डेनबर्ग कहते हैं, फिलहाल प्रति दस लाख डॉलर निवेश को देखें तो अधिकांश नौकरियां पुनःसंयोजन वाली इमारतों में हैं.

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2030 तक कार्बन न्यूट्रल शहरों का यूरोपीय लक्ष्य

कोपेनहैगन जैसे यूरोपीय शहरों में ये सपना पहले ही आकार ले चुका है. डेनमार्क की राजधानी, 2025 तक जलवायु निरपेक्ष होने के रास्ते पर है. दस साल से जारी काम के तहत, एक नये स्मार्ट नवीनीकृत ऊर्जा ग्रिड के जरिए शहर का बीस लाख टन सालाना कार्बन फुटप्रिंट हटाया जा चुका है.

इस बीच 2030 तक यूरोपीय संघ के 100 शहरों को जलवायु तटस्थ बनाने के लिए एक कार्यक्रम शुरू किया गया है. आखिरी मकसद, तमाम शहरों में 2050 तक मुकम्मल रूप से जलवायु तटस्थता हासिल कर लेने का है.

स्वीडन की एक परामर्शदाता एजेंसी मैटेरियल इकोनॉमिक्स के अनुमानों के मुताबिक एक लाख लोगों के एक औसत शहर को 2030 तक जलवायु तटस्थ बनाने के लिए अधिकतम एक अरब यूरो (1.1 अरब डॉलर) का खर्च आ सकता है. यूरोपीय संघ का संकाय, नेट जीरो सिटीज- वित्त और तकनीकी जानकारी हासिल करने में मदद करेगा. 

ज्यादा स्वस्थ शहर

अनुमानों के मुताबिक 2050 तक 85 फीसदी यूरोपीय लोग, शहरी इलाकों मे रहेंगे. ईयू 100 क्लाइमेट न्यूट्रल सिटीज प्रोजेक्ट के मैनेजर मैथ्यू बाल्डविन का कहना है कि इसीलिए, शहरों के मेयर जलवायु तटस्थता के सह-लाभों को महसूस करने लगे हैं. इनमें ज्यादा साफ हवा, बेहतर स्वास्थ्य और ध्वनि प्रदूषण में कटौती जैसे लाभ शामिल हैं. 

वो कहते हैं, "शहरों में रहने वाले लोग जलवायु के प्रति काफी सचेत हैं." इसकी एक वजह ये है कि प्रदूषण की कीमतों को शहरवासी ही सबसे पहले जानते-समझते हैं. कई शहर बंदरगाहों पर बसे हैं और समुद्री जलस्तर में उभार का खतरा झेल रहे हैं.

नीचे से ऊपर की ओर लक्षित यूरोपीय संघ का जलवायु तटस्थता कार्यक्रम, नागरिकों को जलवायु कार्रवाई के लाभों के बारे में और जागरूक बनाने में भी मुब्तिला है. बाल्डविन कहते हैं कि नागरिकों को साथ लिए बिना आप कोई जलवायु निरपेक्ष कार्यक्रम नहीं चला सकते हैं. यूक्रेन में जारी युद्ध को देखते हुए ऐसी जागरूकता, ऊर्जा आत्मनिर्भरता की जरूरत तक चली जाती है. इसके तहत नवीनीकृत ऊर्जा क्षमताओं को और समृद्ध करना और फौरन लागू की जा सकने वाली निर्माण योग्यताएं हासिल करना शामिल है.

बाल्डविन कहते हैं, "यूरोपीय आयोग उन तमाम तरीकों के बारे मे पता लगा रहा है जिनके जरिए हम रूसी हाइड्रोकार्बन से मिलने वाली ऊर्जा को छोड़कर तत्काल नवीनीकृत ऊर्जा की तरफ जा सकें. इसकी शुरुआत के लिए शहरों से बेहतर जगह और क्या होगी, खासकर उनकी आबादी के घनत्व को देखते हुए. शहरो में आपको आवाजाही के लिए कम दूरी तय करनी पड़ती है, सार्वजनिक परिवहन का विकल्प चुनना या पैदल चलना, साइकिल से आना जाना या बिजली चालित यातायात ज्यादा आसान होता है."

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'रफ्तार और विस्तार में आगे रहते हैं शहर'

दुनिया भर में शहर, पेरिस समझौतों के उत्सर्जन लक्ष्यों के अनुरूप और बाजदफा उनसे आगे रहते हुए जलवायु तटस्थ बनने की अपनी महत्वाकांक्षा को लांघ रहे हैं.

2050 तक हजारों शहरों में नेट जीरो उत्सर्जन हासिल कराने के लिए चलाए जा रहे सी40 सिटीज अभियान के तहत कोई 30 शहर 2020 में ही पीक एमीशन हासिल कर चुके हैं. इनमें एथेंस, ऑस्टिन, बार्सीलोना, बर्लिन, न्यूयार्क, सैन फ्रांसिस्को, लॉस एंजेलिस, स्टॉकहोम और वारसॉ जैसे शहर शामिल हैं.

लॉस एंजेलिस शहर के मेयर और सी40 अभियान के अध्यक्ष एरिक गारसेटी कहते हैं, "अक्षय ऊर्जा से अपने शहरों को चलाने की बुनियाद पर न्यायसंगत, शून्य कार्बन अर्थव्यवस्था खड़ी की जा सकती है." लॉस एंजिलिस में 40 फीसदी अक्षय ऊर्जा की खपत होती है और 2030 तक ये 80 फीसदी हो जाएगी. 2035 तक 100 फीसदी साफ ऊर्जा ग्रिड निर्मित कर देने का लक्ष्य है. उसी के साथ कोयला आधारित ऊर्जा के मुकम्मल फेजआऊट के तहत आखिरी संयत्र हाइड्रोजन में तब्दील हो जाएगा.

बाल्डविन कहते हैं, "राष्ट्रों के मुकाबले शहर जल्दी आगे जा सकते हैं और ज्यादा तेजी से आगे बढ़ सकते हैं. मेरे ख्याल से हम लोग अपेक्षा से अधिक तेजी के साथ आगे बढ़ रहे हैं."

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