“सिविल सोसाइटी एटलस” का नवीनतम संस्करण एक हैरान करने वाली प्रवृत्ति को दर्शाता है. इसके मुताबिक, दुनिया भर में अधिकार और स्वतंत्रता को कम किया जा रहा है- खासकर यूरोप में भी.
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नागरिक समाज में जुड़ाव कई रूप ले सकता है- जैसे, पर्यावरणीय सक्रियता, लैंगिक समानता के लिए संघर्ष, स्वदेशी समूहों का सेना में शामिल होना इत्यादि. लोग बेहतर कामकाजी परिस्थितियों के लिए एकजुट होते हैं, अपने सेक्सुअल जीवन को स्वतंत्र रूप से जीना चाहते हैं, विभिन्न प्रकार के उत्पीड़न से अपना बचाव करते हैं....और भी बहुत कुछ.
कभी-कभी सरकारों द्वारा इन चीजों का स्वागत किया जाता है. जैसे कि जब नागरिक शरणार्थियों की देखभाल के लिए राज्य की मदद करते हैं, जैसा कि जर्मन यूक्रेन से भागे लाखों लोगों की मदद करने के लिए आगे बढ़ रहे हैं. लेकिन कई अन्य ऐसा नहीं कर रहे हैं.
इस प्रभाव को दुनिया भर में लोग महसूस कर रहे हैं. जर्मनी स्थित गैर-सरकारी संगठन ब्रोट फुर डी वेल्ट (ब्रेड फॉर द वर्ल्ड) में ह्यूमन राइट्स एंड पीस यूनिट की प्रमुख सिल्के फाइफर कुछ चौंकाने वाले आंकड़ों के साथ डीडब्ल्यू को बताते हैं, "दुनिया की आबादी में केवल 3 फीसद लोग ही भाग्यशाली हैं जो उन देशों में रहते हैं जहां नागरिक समाज के लिए स्थितियां अनुकूल हैं.”
भ्रष्टाचार के मामले में कहां खड़े हैं अलग अलग देश
ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल ने 180 देशों का सर्वे करने के बाद एक नई लिस्ट जारी की है. लिस्ट सरकारी तंत्र में मौजूद भ्रष्टाचार की रैंकिंग है. जिस देश के जितने कम अंक, यानि वहां उतना ज्यादा भ्रष्ट तंत्र.
दुनिया में लगभग 8 अरब लोगों में से नागरिक समाज के लिए खुले माने जाने वाले देशों में सिर्फ दो अरब चालीस करोड़ लोग ही रहते हैं. दूसरी ओर अधिकतर लोग उन देशों में रहते हैं जहां सरकार की आलोचना करने वालों को प्रताड़ित किया जाता है, सताया जाता है और हिरासत में लिया जाता है और जहां उनके मौलिक अधिकारों का हनन किया जाता है.
ये आंकड़े नवीनतम "सिविल सोसाइटी एटलस” से लिए गए हैं, जिन्हें ब्रोट फु डी वेल्ट अब पांचवीं बार जारी कर रहा है. यह हाल ही में बर्टेल्समैन ट्रांसफॉर्मेशन इंडेक्स और एमनेस्टी इंटरनेशनल की वार्षिक रिपोर्ट में बताई गई प्रवृत्तियों की पुष्टि करता है- यानी दुनिया भर में लोकतंत्र कमजोर हो रहा है, कई देशों में मानव और नागरिक अधिकार दबाव में आ रहे हैं.
सिविल सोसाइटी एटलस का एक अनिवार्य घटक CIVICUS मॉनिटर है. गैर-सरकारी संगठन CIVICUS का मुख्यालय दक्षिण अफ्रीका के जोहानिसबर्ग में है और यह विश्व स्तर पर भागीदार संगठनों के साथ-साथ सार्वजनिक स्रोतों की रिपोर्टों का लगातार मूल्यांकन करता है. इसके आंकड़ों के आधार पर, विभिन्न देशों को ‘'खुले' से लेकर ‘बंद' तक 5 श्रेणियों में बांटा गया है. उनकी पिछली रिपोर्ट की तुलना में, केवल एक देश में सुधार हुआ है. यह देश है मंगोलिया, जिसकी स्थिति ‘रिस्ट्रिक्टेड' श्रेणी से ‘इम्पेयर्ड' श्रेणी में अपग्रेड हुई है.
यूक्रेन बॉर्डर पर शरणार्थियों की मदद करते भारतीय
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यूरोप को धक्का
इसी दौरान 14 देशों की रैंकिंग नीचे चली गई है, जिसमें दो यूरोपीय संघ के सदस्य देश भी शामिल हैं. ये देश हैं चेक गणराज्य और बेल्जियम जो ‘ओपेन' से ‘इम्पेयर्ड' श्रेणी में पहुंच गए हैं. सिल्के फाइफर बताती हैं, "बेल्जियम के मामले में साल 2020 के अंत में और 2021 की शुरुआत में शांतिपूर्ण विधानसभाओं पर हुई पुलिस की कार्रवाई के कारण ऐसा हुआ है.”
बेलारूस में, निकारागुआ की तरह CIVICUS मॉनिटर ने बताया कि स्थिति इतनी खराब हो गई है कि दोनों देशों को सबसे खराब श्रेणी में डाल दिया गया जिसे ‘बंद' श्रेणी कहते हैं. इस श्रेणी में उत्तर कोरिया, चीन और सऊदी अरब जैसे 23 अन्य देश शामिल हैं.
रूस की स्थिति दूसरी सबसे खराब श्रेणी वाली है जिसे ‘सप्प्रेस्ड' श्रेणी कहा गया है यानी जहां स्थिति पिछले कुछ समय से लगातार खराब होती जा रही है. सिल्के फाइफर कहती हैं, "यूक्रेन के खिलाफ जब से रूस का आक्रामक रवैया शुरू हुआ है, तब से यह स्थिति और खराब हुई है.”
फेक न्यूज पर एशियाई देशों के सख्त नियम
कई देशों में "फेक न्यूज" का नाम नेताओं के मुंह से सुना जाने लगा है. आलोचकों को डर है कि इसका इस्तेमाल सरकार विरोधी खबरों को दबाने के लिए भी किया जा सकता है. एक नजर एशियाई देशों में "फेक न्यूज" के खिलाफ उठाए गए कदमों पर.
तस्वीर: DW/Vladdo
मलेशिया
मलेशिया के कानून के मुताबिक फेक न्यूज की वजह से अगर मलेशिया या मलेशियाई नागरिक को नुकसान हुआ तो इसे फैलाने वाले पर करीब 123,000 अमेरिकी डॉलर का जुर्माना और छह साल की सजा हो सकती है. इसके दायरे में समाचार संस्थान, डिजिटल पब्लिकेशन और सोशल मीडिया भी आते हैं.
तस्वीर: Imago/Richard Wareham
भारत
भारत में सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने फेक न्यूज फैलाने का दोषी पाए जाने पर सरकारी मान्यता वाले पत्रकार की मान्यता पहले अस्थायी और बार बार ऐसा करने पर स्थायी रूप से रद्द करने की घोषणा की. हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रेस की आजादी में बाधा बता कर फैसले को रद्द करने का आदेश दिया है.
तस्वीर: Reuters/UNI
सिंगापुर
सिंगापुर में एक संसदीय कमेटी "जान बूझ कर ऑनलाइन झूठ" फैलाने से रोकने के कदमों पर विचार कर रही है. इसके लिए सिंगापुर के इतिहास की अब तक की सबसे लंबी आठ दिन की सुनवाई 29 मार्च को पूरी हुई. कमेटी इस मामले में रिपोर्ट बना कर नया विधेयक मई में पेश करेगी.
तस्वीर: picture-alliance/Sergi Reboredo
फिलीपींस
राष्ट्रपति रोड्रिगो डुटैर्टे का न्यूजसाइट रैपलर पर से "भरोसा उठ गया" और उन्होंने इसे उनके सभी आधिकारिक कार्यक्रमों को कवर करने पर रोक लगा दी. राष्ट्रपति इसे फेक न्यूज आउटलेट कहते हैं. देश में गलत जानकारी फैलानों वालों को 20 साल तक की कैद की सजा का प्रावधान करने की तैयारी चल रही है.
तस्वीर: Reuters/R. Ranoco
थाइलैंड
थाइलैंड में पहले से ही सेक साइबर सिक्योरिटी लॉ है. इसके तहत गलत सूचना फैलाने पर सात साल तक की कैद की सजा हो सकती है. इसके अलावा सैन्य सरकार बड़ी सख्ती से लेसे मजेस्टिक कानूनों का भी पालन करती है जो लोगों को शाही परिवार का अपमान रोकने के लिए बनाया गया है.
तस्वीर: Reuters
पाकिस्तान
पाकिस्तान में 2016 में प्रिवेंशन ऑफ इलेक्ट्रॉनिक साइबरक्राइम्स एक्ट पास किया. इसके तहत नफरत फैलाने वाले भाषण, इस्लाम की गरिमा को ठेस पहुंचाने, महिलाओं की इज्जत पर हमला करने वाली सामग्री, आतंकवाद की साजिश रचने जैसी गतिविधियों पर रोक लगाई गई. इसके लिए जेल और जुर्माना दोनों का प्रावधान है.
वो कहती हैं, "जो लोग आक्रमण का विरोध करने के लिए सड़कों पर उतर आए हैं, उन्हें सामूहिक रूप से गिरफ्तार किया जाता है, मीडिया आउटलेट बंद कर दिए जाते हैं, कुछ चीजों को अब रिपोर्ट करने की अनुमति नहीं है. मानवाधिकार जैसे मुद्दों पर मुखर रहने वाले लोग अब विदेश जाने के लिए मजबूर हैं.”
उन्हीं आवाजों में से एक हैं एंजेलिना डेविडोवा. मार्च के अंत से ही, रूस की ये पत्रकार और नागरिक समाज विशेषज्ञ व पर्यावरण कार्यकर्ता बर्लिन में हैं. उन्होंने कई अन्य लोगों की तरह इस्तांबुल के रास्ते रूस छोड़ दिया. डेविडोवा ने हाल के वर्षों में नागरिक समाज द्वारा झेले जा रहे बढ़ते दबाव और कार्यकर्ताओं के दमन का वर्णन किया है.
डेविडोवा पिछले साल के अंत में देश के सबसे प्रसिद्ध मानवाधिकार संगठन, मेमोरियल इंटरनेशनल के प्रतिबंध के कारण ‘भारी सदमे' की बात करती हैं क्योंकि यह सिर्फ एक संकेत था कि उनके काम को सरकार शत्रुतापूर्ण मानती है. मेमोरियल इंटरनेशनल सोवियत काल में स्थापित किया गया था और साल 2004 में इसके काम के लिए इसे वैकल्पिक नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.
डेविडोवा कहती हैं कि इन बढ़ती कठिनाइयों के बावजूद, कई कार्यकर्ताओं ने देश में ही रहने का विकल्प चुना है. वह चाहती हैं कि पश्चिमी देश रूसी नागरिक समाज के साथ संवाद बनाए रखें और यह कभी न भूलें कि ‘रूस में ऐसे लोग भी हैं जो अलग तरह से सोचते हैं और नागरिक समाज की पहल महत्वपूर्ण हैं.'
सिविल सोसाइटी एटलस में एक प्रमुख विषय डिजिटलीकरण है. मैकेनाटा फाउंडेशन के नागरिक समाज विशेषज्ञ रूपर्ट ग्राफ स्ट्रैचविट्ज के अनुसार, "पिछले तीस वर्षों में नागरिक समाज इतनी मजबूती से यदि विकसित हो पाए, तो बिना किसी 'द्वारपाल' के सूचना के प्रसार की संभावना भी इसका एक बड़ा कारण था.”
डिजिटल मीडिया की शक्ति इस बात से भी प्रदर्शित होती है कि सत्तारूढ़ दल किस हद तक अपनी तकनीकी क्षमता को उन्नत कर रहे हैं. लक्ष्य यह है कि डिजिटल स्पेस में मजबूत जगह बनाई जाए.
एटलस के अनुसार, एक विशेष रूप से कठोर उपाय का बहुत ही सामान्य तरीके से उपयोग किया जा रहा है, और यह उपाय है- इंटरनेट को पूरी तरह से बंद करना. उदाहरण के लिए, तंजानिया में कई सोशल मीडिया साइटों को साल 2020 के राष्ट्रपति चुनाव के दौरान बंद कर दिया गया था. भारत में भी जो खुद को ‘दुनिया में सबसे बड़े लोकतंत्र' के रूप में कहलाना करना पसंद करता है, पिछले साल 100 से ज्यादा बार विभिन्न क्षेत्रों में सूचना के प्रवाह पर लगाम लगाने की कोशिश की गई.
डिजिटलीकरण के नकारात्मक पक्ष में गलत सूचना और अभद्र भाषा का प्रसार भी शामिल है. एटलस के अनुसार, यूक्रेन पर आक्रमण शुरू होने से पहले ही रूस बड़े पैमाने पर झूठ को हथियार बना रहा था. सूचना का अधिकार, हालांकि, एक मौलिक मानव अधिकार है और एक गतिशील नागरिक समाज के लिए एक आवश्यक शर्त है. सिल्के फाइफर बताती हैं, "अगर झूठी रिपोर्ट के प्रसार से इस अधिकार को कम किया जाता है, तो यह नागरिक समाज की भागीदारी के लिए एक महत्वपूर्ण आधार को नष्ट कर देता है.”
दुनिया के दस सबसे अच्छे देश
अमेरिकी समाचार संस्थान यूएस न्यूज एंड वर्ल्ड रिपोर्ट ने दुनिया के सर्वश्रेष्ठ देशों की एक लिस्ट जारी की है. आधुनिकता, आबादी, भूगोल, अर्थव्यस्था आदि कई पैमानों पर आंकने के बाद इन देशों को रैंक दिए गए.
अमेरिका का पड़ोसी कनाडा दुनिया का सबसे अच्छा देश माना गया है. इसका कुल स्कोर 100 रहा है. दक्षता और तेजी से बदलाव और व्यापार की सुविधाओं के मामले के मामले में यह तीसरे नंबर पर रहा जबकि जीवन की गुणवत्ता के मामले में सबसे ऊपर.
तस्वीर: Carlos Osorio/REUTERS
नंबर 2, जापान
जापान की सबसे बड़ी खूबी रही आंत्रप्रेन्यरशिप, जिसमें यह दुनिया में अव्वल है. जीवन की गुणवत्ता में 13वें नंबर पर रहा लेकिन जीवन पर सांस्कृतिक प्रभाव में इसका नंबर छह रहा. इसका कुल स्कोर 99.1 रहा.
तस्वीर: Ralf Hirschberger/dpa/picture-alliance
नंबर 3, जर्मनी
98 के स्कोर के साथ जर्मनी तीसरे नंबर पर है. आंत्रप्रेन्योरशिप में नंबर दो और तेजी से बदलाव के मामले में ये नंबर चार पर है. शक्तिशाली होने के मामले में यह नंबर चार पर है.
96.6 के स्कोर के साथ ऑस्ट्रेलिया को सूची में पांचवां स्थान दिया गया. फुर्ती से हालात के मुताबिक खुद को ढालना इस देश की सबसे बड़ी खूबी है जिसमें यह दुनिया में दूसरे नंबर पर है. लेकिन यहां बिजली की हालत खस्ता बताई गई और नंबर रहा 16.
तस्वीर: Joel Carrett/AAP Image/AP Photo/picture alliance
नंबर 6, अमेरिका
अमेरिका का स्कोर है 93.3. इसे दुनिया का सबसे शक्तिशाली देश होने का मान भी दिया गया है और तेजी से खुद को बदलने में भी यह देश नंबर एक पर है. लेकिन व्यापार की सुविधाओं के मामले में इसका 45वां नंबर है.
ऑस्ट्रेलिया के पड़ोसी न्यूजीलैंड को अंक मिले 92.2. इसकी सबसे बड़ी खूबी रही व्यापार के लिए उपलब्ध सुविधाएं जिनमें यह छठे नंबर का देश है. इसे एडवेंचर के मामले में सातवां नंबर मिला.
तस्वीर: Rafael Ben-Ari/Chameleons Eye/Newscom/picture alliance
नंबर 8, युनाइटेड किंग्डम
नंबर 8, युनाइटेड किंग्डम 92.3 अंकों के साथ यूके नंबर आठ पर रहा. इसकी सबसे अच्छी बात है जीवन पर सांस्कृतिक प्रभाव और आंत्रप्रेन्योरशिप. दोनों ही मामलों में यह दुनिया में चौथे नंबर पर रहा.
तस्वीर: imago images/Cavan Images
नंबर 9, स्वीडन
कुल स्कोर 90.6 वाले स्वीडन में जीवन की गुणवत्ता बेहतरीन है जबकि सामाजिक मकसद और व्यापार के मामले में भी उसकी रैंकिंग ऊंची रही.
तस्वीर: JONATHAN NACKSTRAND/AFP
नंबर 10, नीदरलैंड्स
नीदरलैंड्स को अंक मिले 88.3. इसकी सबसे अच्छी बात है सामाजिक मकसद जिसमें दुनिया में यह पांचवें नंबर पर रहा. जीवन की गुणवत्ता के मामले में नीदरलैंड्स दुनिया में सातवें नंबर का देश रहा.