जलवायु परिवर्तन के कारण घट रहे हैं प्रॉपर्टी के दाम
३ जुलाई २०२४
जलवायु परिवर्तन के कारण प्रॉपर्टी के दाम इतने ज्यादा घट सकते हैं कि अरबों डॉलर का सफाया हो जाए. इसका आम लोगों और अर्थव्यवस्था पर बहुत बुरा असर हो सकता है.
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ऑस्ट्रेलिया के एक कस्बे लिजमोर में दो साल पहले जब बाढ़ आई तो एंटीक स्टोर चलाने वाले एडम बेली को खासा नुकसान हुआ. उनकी दुकान का काफी सामान खराब हो गया जिनमें कई दुर्लभ और प्राचीन चीजें थीं, मसलन पहले विश्व युद्ध की तस्वीरें.
वह पूरा अनुभव इतना दर्दनाक था कि अब भी अगर रात को बारिश होती है तो बेली सो नहीं पाते. अपनी नई दुकान का बीमा करवाने के लिए उन्हें 80 हजार ऑस्ट्रेलियाई डॉलर यानी लगभग 45 लाख रुपये की जरूरत है. लेकिन उनके पास इतना धन नहीं है.
1988 से लिजमोर में रह रहे बेली कहते हैं, "मेरे पास किसी तरह का बीमा नहीं है और अगर फिर से बाढ़ आई तो मेरे लिए उसका मतलब होगा, पूरी तरह बर्बादी.” बात सिर्फ बीमे की नहीं है. उनकी प्रॉपर्टी की कीमत भी गिर चुकी है.
कीमतों में भारी गिरावट
44 हजार की आबादी वाले लिजमोर कस्बे में दो साल पहले आई बाढ़ के बाद प्रॉपर्टी की कीमतें 30 फीसदी तक गिर चुकी हैं. जलवायु परिवर्तन किस तरह प्रॉपर्टी की कीमतों को प्रभावित कर रहा है, लिजमोर उसकी एक मिसाल है.
नीति निर्माता, शोधकर्ता और प्रॉपर्टी बाजार के विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में जो लोग प्रॉपर्टी खरीद रहे हैं, वे जलवायु परिवर्तन के खतरों को ध्यान में नहीं रख रहे हैं. अपने खूबसूरत समुद्र तटों के लिए मशहूर इन देशों में बीच के करीब रहना बहुत से लोगों की ख्वाहिश होती है लेकिन जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ता समुद्री जल स्तर इस ख्वाहिश को एक बुरे सपने में बदल सकता है.
हो सकता है अरबों का नुकसान
जलवायु परिवर्तन के खतरों पर अध्ययन करने वाली संस्था क्रॉस डिपेंडेंसी इनिशिएटिव (एक्सडीआई) के आंकड़े कहते हैं कि कुदरती आपदाओं के कारण 2030 तक ऑस्ट्रेलिया के प्रॉपर्टी बाजार से लगभग 800 अरब डॉलर यानी लगभग 6,681 खरब रुपये का सफाया हो जाएगा. यह कुल कीमत का 6.7 फीसदी है.
हीटवेव से लड़ने में कैसे काम आए तकनीक
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क्लाइमेट सिग्मा नाम के संगठन के मुताबिक न्यूजीलैंड में लगभग 20 फीसदी घर ऐसी जगहों पर हैं जहां बाढ़ का खतरा बना रहता है. एक्सडीआई में विज्ञान और तकनीक निदेशक कार्ल मैलन कहते हैं, "क्या अर्थव्यवस्था इसे झेल सकती है? शायद. क्या कुछ समुदायों को दूसरों के मुकाबले ज्यादा पीड़ा से गुजरना होगा? हां. यानी, इसका समुदायों पर बहुत गहरा असर हो सकता है. जब आपदाएं आती हैं तो वे उद्योगों और अर्थव्यवस्था को प्रभावित करती हैं.”
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पूरी दुनिया में असर
जलवायु परिवर्तन दुनियाभर के प्रॉपर्टी बाजार के लिए खतरा बनता जा रहा है. 2023 में ‘नेचर क्लाइमेट चेंज' पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन में बताया गया कि अमेरिका के तटीय शहरों में प्रॉपर्टी 121 अरब डॉलर से 237 अरब डॉलर तक ज्यादा महंगी हैं क्योंकि वहां बाढ़ के खतरों को दाम में नहीं गिना गया है. यानी, इन संपत्तियों के दाम इस हद तक गिर सकते हैं.
भारत का सबसे अफोर्डेबल शहर कौन सा है
प्रॉपर्टी कंसल्टेंसी नाइट फ्रैंक के अफोर्डेबिलिटी सूचकांक में 2030 तक भारत में अफोर्डेबल हाउसिंग की मांग और संभावनाओं का ताजा मूल्यांकन किया गया है. जानिये भारत का कौन सा शहर है सबसे ज्यादा अफोर्डेबल.
तस्वीर: Amit Dave/REUTERS
सबसे महंगा शहर
इस सूचकांक में किसी शहर में एक परिवार की औसत आमदनी के मुकाबले वहां होम लोन की ईएमआई के लिए कितनी रकम चुकानी पड़ती है इस आधार पर शहरों की रैंकिंग की गई है. इस लिहाज से मुंबई को सबसे महंगा हाउसिंग मार्केट पाया गया.
तस्वीर: Francis Mascarenhas/REUTERS
जरा हट के, जरा बच के
मुंबई के लिए ईएमआई और आमदनी का अनुपात 55 प्रतिशत पाया गया, यानी शहर में एक औसत परिवार की कमाई का आधे से ज्यादा हिस्सा ईएमआई चुकाने में चला जाता है. 50 प्रतिशत से ऊपर के अनुपात को अनअफोर्डेबल माना जाता है, क्योंकि इससे ज्यादा अनुपात की स्थिति में बैंक लोन नहीं देते हैं.
तस्वीर: Francis Mascarenhas/REUTERS
दूसरा सबसे महंगा शहर
सूचकांक में हैदराबाद को दूसरे सबसे महंगे शहर का स्थान दिया गया है. यहां ईएमआई से आमदनी का अनुपात 31 प्रतिशत है. सूचकांक में होम लोन की अवधि 20 साल मानी गई है.
तस्वीर: DW
राजधानी की कहानी
तीसरे स्थान पर है दिल्ली एनसीआर, जहां आपको एक मकान का मालिक बनने के लिए ईएमआई पर अपनी आमदनी का 30 प्रतिशत खर्च करना पड़ता है. सूचकांक में माना गया है कि मकान के मूल्य के 80 प्रतिशत के बराबर लोन लिया गया होगा.
तस्वीर: Charu Kartikeya/DW
चेन्नई, पुणे, कोलकाता में थोड़ी राहत
28 प्रतिशत अनुपात के साथ सूचकांक में चौथे नंबर पर है चेन्नई. 26 प्रतिशत अनुपात के साथ पुणे और कोलकाता को पांचवां स्थान हासिल हुआ है. सूचकांक में सभी शहरों में मकानों का साइज एक जैसा ही माना गया है.
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सबसे अफोर्डेबल शहर
इस सूचकांक में सबसे अफोर्डेबल शहर पाया गया अहमदाबाद. शहर में एक औसत परिवार को ईएमआई पर अपनी आय का 23 प्रतिशत खर्च करना पड़ता है, जो बाकी शहरों से काफी कम है.
तस्वीर: Amit Dave/REUTERS
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इससे पहले 2022 में एक रिसर्च कंपनी मिलीमैन ने एक अध्ययन में बताया था कि राष्ट्रीय स्तर पर प्रॉपर्टी की कीमतों में 520 अरब डॉलर की गिरावट आ सकती है. इस अध्ययन में कहा गया कि लगभग 35 लाख लोग ऐसे हैं जिनके घरों की कीमतें जलवायु परिवर्तन के कारण 10 फीसदी तक घट सकती हैं.
विशेषज्ञ इसे प्रॉपर्टी बाजार के ‘क्लाइमेट बबल' का नाम देते हैं. भारत में भी प्रॉपर्टी खरीदने वालों को इस बारे में जागरूक किया जा रहा है. ‘टाइम्स प्रॉपर्टी' पत्रिका में प्रकाशित एक लेख में कहा गया, "जलवायु परिवर्तन के खतरों को ध्यान में रखते हुए सुरक्षित रुख अपनाने से प्रॉप्रटी खरीदते हुए आप सही सूचनाओं के आधार पर फैसले कर सकते हैं. आपदाओं से सुरक्षित प्रॉपर्टी में निवेश करने से ना सिर्फ आपकी वित्तीय रूप से सुरक्षा होगी बल्कि आप भारत के और अपने समुदाय के लिए टिकाऊ भविष्य बनाने में भी मदद कर सकते हैं.”
बीमा कराना भी महंगा
प्राकृतिक आपदाओं के खतरे वाली संपत्तियों का बीमा कराना भी महंगा होता है और कई देशों में तो यह इस हद तक महंगा हो चुका है कि लोग इतना खर्चा उठा ही नहीं पा रहे हैं.
दिल्ली में रिकॉर्ड गर्मी के बीच बढ़ा दमकलकर्मियों का काम
भारत की राजधानी दिल्ली में इस साल रिकॉर्ड तापमान दर्ज किया गया. गर्मी के इस मौसम में आग लगने की घटनाएं भी करीब दोगुनी हो गईं. दमकलकर्मियों का कहना है कि उनके पास आग लगने के इतने मामले आ रहे हैं, जितने पहले कभी नहीं आए.
तस्वीर: Adnan Abidi/REUTERS
बिजली से जुड़े हादसे
दिल्ली ने इस दफा सबसे लंबे हीटवेव का अनुभव किया. बेतहाशा गर्मी के कारण एयर कंडीशनर की मांग काफी बढ़ गई. दमकल विभाग के मुताबिक, इलेक्ट्रिक फेलियर आग लगने के करीब 75 फीसदी मामलों की वजह बना.
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शॉर्ट सर्किट से आग का खतरा
2018 से 2023 के बीच दिल्ली में एसी की सालाना बिक्री में 14 फीसदी की बढ़ोतरी देखी गई. एसी जैसे बिजली की भारी खपत करने वाले उपकरणों के लगातार चलने से पुरानी वायरिंग पर दबाव बढ़ता है. दिल्ली दमकल विभाग के निदेशक अतुल गर्ग ने रॉयटर्स को बताया कि देखभाल की कमी के कारण केबल और उपकरणों से शॉर्ट सर्किट का खतरा रहता है, जो कि आग लगने की वजह भी बन सकता है.
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दमकल विभाग का सबसे व्यस्त सीजन
आग के कई मामले दिल्ली के पुराने इलाकों से जुड़े हैं. यहां संकरी गलियां, सटी हुई इमारतें, खुले में लटकतीं बिजली की तारों का झुंड जोखिम बढ़ाते हैं. अप्रैल से जून का समय दमकल विभाग के लिए बेहद व्यस्त रहा. समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक, इन तीन महीनों में आग लगने के लगभग 9,000 मामले आ चुके हैं. 2023 की तुलना में यह दोगुनी वृद्धि है. पिछले एक दशक में आग से होने वाली मौतों में तीन गुना तक वृद्धि हुई.
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बढ़ रही है भीषण गर्मी
एक तो प्रचंड गर्मी, ऊपर से आग लगने की कई घटनाएं. कई कर्मचारी बताते हैं कि वे बेहद मुश्किल हालात में काम कर रहे हैं. भारतीय मौसम विभाग ने जून के नौ दिनों को हीटवेव की श्रेणी में रखा. पहले आमतौर पर महीने में एक दिन हीटवेव होता था. वैज्ञानिकों का कहना है कि इंसानी गतिविधियां जलवायु परिवर्तन के असर को बदतर बना रही हैं.
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बहुत दबाव में काम कर रहे हैं दमकलकर्मी
54 साल के इंदरवीर सिंह 32 साल से दिल्ली के दमकल विभाग में काम कर रहे हैं. इंदरवीर बताते हैं कि उन्हें याद नहीं आता कि पहले कभी इतनी जगहों पर आग बुझाने जाना पड़ा हो. मोटी जैकेट, भारी बूट्स और लाल हेलमेट पहनकर एक और मिशन पर रवाना होते हुए इंदरवीर बताते हैं कि वह एक के बाद एक कई बार आग बुझाने के लिए जा चुके हैं.
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दमकल विभाग में काम के लंबे घंटे
दमकल विभाग के कर्मचारियों की शिफ्ट 24 घंटे की होती है. एक पूरा दिन काम के बाद एक दिन की छुट्टी मिलती है. वरिष्ठ अधिकारी तीन दिन की शिफ्ट करने के बाद एक दिन की छुट्टी पाते हैं. उत्तर-पश्चिमी दिल्ली में एक दमकल अधिकारी अजय शर्मा ने रॉयटर्स को बताया, "कुछ हफ्ते तो ऐसे होते हैं जब सोने के लिए हमें छुट्टी लेनी पड़ती है."
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जान जोखिम में डालकर काम करते हैं दमकलकर्मी
भारतीय मौसम विभाग की वैज्ञानिक सोमा सेन रॉय बताती हैं कि ऊंचे तापमान और हवा में नमी की कमी के कारण चीजों की ज्वलनशीलता बढ़ जाती है. हाल ही में पुरानी दिल्ली की दुकानों में लगी आग बुझाते वक्त दमकलकर्मी राजेश डबास ने बताया, "ये कोई हल्का काम नहीं है. ये जान जोखिम में डालने जैसा है." इस आग की चपेट में आकर पांच दुकानें तबाह हो गईं.
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राजधानी के बुनियादी ढांचे पर भी सवाल
रजनीश सरीन, दिल्ली के सेंटर फॉर साइंस एंड एनवॉयरमेंट में सस्टेनेबल हैबिटेट प्रोग्राम चलाते हैं. उन्होंने रॉयटर्स से बातचीत में कहा, "दिल्ली का बुनियादी ढांचा मूल रूप से वैसी चरम घटनाओं का सामना करने के लिए नहीं बनाया गया, जिसे हम अभी देख रहे हैं." वहीं, अतुल गर्ग बताते हैं कि अगर आग लगने की घटनाओं में और वृद्धि हुई, तो कारगर तरीके से इनसे निपटना "बहुत ही ज्यादा" मुश्किल होगा.
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बेहतर तैयारी के लिए ढांचे में सुधार
दमकल विभाग ने प्रस्ताव दिया है कि वित्तीय इमारतों के लिए सालाना फायर ऑडिट देना अनिवार्य बनाया जाए. इससे दफ्तरों और कारखानों में वायरिंग का जायजा लिया जा सकेगा. इसके अलावा 350 नए दमकलकर्मियों को प्रशिक्षित भी किया जा रहा है. विभाग छोटे वाहन भी खरीद रहा है, ताकि तंग इलाकों में आसानी से पहुंचा जा सके. मुश्किल वाली जगहों तक पहुंचने के लिए रोबोट भी खरीदे जा रहे हैं.
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ऑस्ट्रेलिया में एक जांच के दौरान बीमा कंपनी आलियांज ऑस्ट्रेलिया ने बताया कि बाढ़ के खतरे वाले क्षेत्रों में रहने वाले लोगों में से 74 फीसदी लोगों ने बीमा नहीं कराया है. एक साल पहले यह आंकड़ा 63 फीसदी था. यानी लोग अब बीमा कम करवा रहे हैं. लिजमोर जैसी नदी के किनारे बसी जगहों में तो 90 फीसदी लोगों के पास बीमा नहीं है.
रिजर्व बैंक ऑफ न्यूजीलैंड में वित्तीय स्थिरता निदेशक केरी वॉट बताती हैं कि जलवायु परिवर्तन के खतरों और निर्माण खर्च के बढ़ने के कारण पिछले एक दशक में बीमा प्रीमियम दोगुना हो चुका है. वह कहती हैं, "हम यह चाहते हैं कि लोग जो प्रॉपर्टी खरीदना चाहते हैं, उसके बारे में खास खतरों को भी ध्यान में रखना शुरू करें.”