पाकिस्तान के बंदरगाह शहर ग्वादर में भारी बारिश से प्रभावित हजारों लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया जा रहा है. यहां कुछ घंटों में रिकॉर्ड बारिश दर्ज की गई.
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पाकिस्तान के तटीय शहर ग्वादर में पिछले दिनों हुई भारी बारिश के कारण एक बड़े इलाके में बाढ़ आ गई है और असामान्य तीव्रता की इस बारिश से हजारों लोग प्रभावित हुए हैं. स्थानीय मीडिया के मुताबिक बुधवार दोपहर तक बारिश का यह सिलसिला शुरू हुए 26 घंटे से ज्यादा का समय बीत चुका था.
मीडिया रिपोर्टों में बताया गया है कि इस बारिश के दौरान शहर के दक्षिण से कई परिवारों को नावों में सुरक्षित स्थानों पर ले जाया गया और बाजारों और घरों से पानी निकालने का काम जारी है.
स्थानीय अधिकारियों के एक प्रवक्ता ने समाचार एजेंसी डीपीए को बताया कि करीब 10,000 लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया है. प्रवक्ता ने आगे कहा कि प्रभावित इलाकों से लोगों को निकालने के इस मिशन में सेना की बचाव एजेंसियां और अर्धसैनिक बल के जवान हिस्सा ले रहे हैं. इस बारिश में अभी तक किसी जानमाल के नुकसान या घायल होने की रिपोर्ट नहीं है.
कुछ घंटों में रिकॉर्ड बारिश
पाकिस्तान के मौसम विभाग के मुताबिक ग्वादर शहर में हाल ही में हुई बारिश पिछले 15 वर्षों में सबसे भारी है. विभाग के पूर्वानुमान के मुताबिक शुक्रवार से शहर में और बारिश होने की संभावना है और आने वाले दिनों में ग्वादर में बारिश जारी रहने की आशंका है.
ग्वादर के अलावा केच जिले और बलूचिस्तान के अन्य हिस्सों में भारी बारिश ने कहर बरपाया है. ग्वादर जिला प्रशासन ने बारिश से प्रभावित इलाकों में आपातकाल की स्थिति घोषित कर दी है.
मौसम विभाग के प्रवक्ता के मुताबिक इतनी बेमौसम बारिश जलवायु परिवर्तन का नतीजा है. उन्होंने आगे कहा, "सर्दियों के मौसम में दुनिया के इस हिस्से में इतनी भारी बारिश असामान्य है."
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जलवायु परिवर्तन का पाकिस्तान पर असर
संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक पाकिस्तान जलवायु परिवर्तन से सबसे अधिक खतरे वाले दस देशों में से एक है. पाकिस्तान के अधिकारियों के अनुसार, पाकिस्तान वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के एक प्रतिशत से भी कम के लिए जिम्मेदार है. जबकि वह जलवायु परिवर्तन से सबसे अधिक प्रभावित देशों में से एक है.
2022 में पाकिस्तान में भीषण बाढ़ और बारिश से लगभग 1,800 लोग मारे गए थे और देश का कम से कम एक चौथाई हिस्सा डूब गया था.
पिछले साल यूनिसेफ ने कहा था कि पाकिस्तान में विनाशकारी बाढ़ के एक साल बाद भी लाखों बच्चे अभी भी मदद के इंतजार में हैं. यूनिसेफ ने एक बयान में कहा था कि बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में 15 लाख बच्चों को जीवनरक्षक खाद्य सहायता की जरूरत है, जबकि लगभग 40 लाख बच्चों को स्वच्छ पेयजल तक पहुंच नहीं है.
राहत प्रयासों के लिए धन की कमी की चेतावनी देते हुए पाकिस्तान में यूनिसेफ के प्रतिनिधि अब्दुल्ला फाजिल के मुताबिक, "बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में रहने वाले कमजोर बच्चों ने एक भयानक साल का सामना किया है. पीड़ितों के पुनर्वास के लिए प्रयास जारी हैं लेकिन कई प्रभावित बच्चे पहुंच योग्य नहीं हैं और ऐसे में पाकिस्तान के इन बच्चों को भुला दिए जाने का डर सता रहा है."
एए/वीके (डीपीए)
गिलगित-बल्तिस्तान के पिघलते ग्लेशियरों से बड़ा खतरा
ग्लेशियर, ताजे पानी के सबसे बड़े भंडार हैं. दुनिया में हर चार में से एक इंसान, ऐसे इलाके में रहता है जो पानी के लिए ग्लेशियर और मौसमी बर्फ पर निर्भर है. अकेले एशिया में ही 10 बड़ी नदियां हिमालयी क्षेत्र से निकलती हैं.
तस्वीर: Volodymyr Goinyk/Design Pics/IMAGO
पृथ्वी को ठंडा रखते हैं ग्लेशियर
ग्लेशियर एक सुरक्षा कवच की तरह हैं. ये सूर्य से आने वाली अतिरिक्त गर्मी को वापस अंतरिक्ष में भेज देते हैं. नतीजतन, ये हमारे ग्रह को ठंडा रखने में अहम भूमिका निभाते हैं. ग्लेशियरों की परत एकाएक नहीं जमी. ये सैकड़ों-हजारों सालों की जमापूंजी हैं. लेकिन अब ग्लेशियर नाटकीय रफ्तार से पिघल रहे हैं. तस्वीर: तिब्बत का सापु ग्लेशियर
तस्वीर: zhang zhiwei/Zoonar/picture alliance
कोई भी हिस्सा अछूता नहीं
वैज्ञानिक कहते हैं, जो चीजें आमतौर पर पृथ्वी की जिंदगी के एक लंबे हिस्से के दौरान होती हैं, वो हमारे सामने कुछ ही साल में घट रही हैं. कुछ दशकों में ग्लेशियरों का एक बड़ा हिस्सा गायब हो चुका होगा. शोधकर्ताओं का कहना है कि मध्य और पूर्वी हिमालयी क्षेत्र के ज्यादातर ग्लेशियर शायद अगले एक दशक में मिट जाएंगे. तस्वीर: स्विट्जरलैंड में ग्लेशियरों को पिघलने से बचाने के लिए उन पर इंसूलेटेड कंबल रखा गया.
तस्वीर: Vincent Isore/IMAGO
कुछ देशों पर ज्यादा जोखिम
कुछ हिस्सों पर खतरा ज्यादा तात्कालिक और गंभीर है. ग्लेशियरों के पिघलने और इसके कारण आने वाली बाढ़ से जिन देशों को सबसे ज्यादा जूझना होगा, उनमें पाकिस्तान भी है. काराकोरम पर्वत श्रृंखला में पिघलते ग्लेशियरों के कारण नई झीलें बनने लगी हैं. तस्वीर: गिलगित-बल्तिस्तान की यासिन घाटी. एक ग्लेशियर झील के नजदीक का यह इलाका बाढ़ से बुरी तरह प्रभावित रहा.
तस्वीर: AKHTAR SOOMRO/REUTERS
डेढ़ करोड़ लोगों पर मंडरा रहा है जोखिम
नेचर कम्युनिकेशंस नाम के जर्नल में छपे शोध के मुताबिक, दुनिया में करीब डेढ़ करोड़ लोगों पर ग्लेशियर झीलों में संभावित बाढ़ का खतरा मंडरा रहा है. इनमें लगभग 20 लाख लोग पाकिस्तान में हैं. तस्वीर: गिलगित-बल्तिस्तान की हुंजा घाटी का एक गांव. यहां ग्लेशियर से बनी झील में आई बाढ़ के कारण काफी नुकसान हुआ.
तस्वीर: AKHTAR SOOMRO/REUTERS
पस्सु गांव के साथ ऐसा ही हुआ
जलस्तर बढ़ने पर झील का पानी किनारा तोड़कर निकलेगा और ढेर सारा पानी हरहराता हुआ नीचे भागेगा. ऐसे में रास्ते के रिहायशी इलाकों को बड़ा नुकसान हो सकता है. 2008 में पस्सु गांव के साथ ऐसा ही हुआ. तब से यहां रहने वालों की हिफाजत के लिए जल्दी चेतावनी देने की एक व्यवस्था बनाई गई है.
तस्वीर: Akhtar Soomro/REUTERS
ग्लोबल वॉर्मिंग का असर
बढ़ती गर्मी का असर काराकोरम में बहुत गहराई तक दिखता है. यह दुनिया की सबसे ऊंची पर्वत श्रृंखलाओं में है. एवरेस्ट के बाद दूसरी सबसे बड़ी चोटी के2 है, जो इसी काराकोरम श्रृंखला का हिस्सा है. इसके अलावा ब्रॉड पीक, गाशेरब्रुम 1 और गाशेरब्रुम 2, यहीं हैं. ये सभी 26,000 फुट से ज्यादा ऊंची चोटियां हैं. सोचिए, ग्लोबल वॉर्मिंग इन ऊंचे पहाड़ों पर क्या कहर बरसा रही है. तस्वीर: स्विट्जरलैंड का एक ग्लेशियर
तस्वीर: GIAN EHRENZELLER/Keystone/picture alliance
जोखिम का जल्द अंदाजा लगाकर बच सकती हैं जानें
यह अंदाजा लगाना बड़ा मुश्किल है कि झील से पानी कब उफनने लगेगा. फिर भी, एक्सपर्ट्स इसपर काम कर रहे हैं. तारिक जमील, हुंजा घाटी की निगरानी करने वाले जोखिम प्रबंधन केंद्र के प्रमुख हैं. उनकी टीम अर्ली वॉर्निंग सिस्टम विकसित करने पर काम कर रही है. जोखिम की घड़ी में लोगों को सुरक्षित बाहर निकालने की भी योजना बनाई जा रही है.
तस्वीर: Akhtar Soomro/REUTERS
ग्लेशियरों के नुकसान की भरपाई नहीं
ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण अगली सदी, यानी 2100 तक हिमालयी ग्लेशियरों का 75 फीसदी हिस्सा खत्म हो सकता है. जानकारों के मुताबिक, ये ऐसा नुकसान है जिसकी शायद ही कोई भरपाई हो सके. इस इलाके में 200 से ज्यादा ग्लेशियर झीलें खतरनाक मानी जा रही हैं. संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक, इनसे होने वाले हादसों के कारण बचाव और पुनर्निर्माण के लिए हर साल कम-से-कम 200 अरब डॉलर चाहिए होगा. तस्वीर: तिब्बत का सापु माउंटेन