जलवायु परिवर्तन पर खास नजर रखने वाले वैज्ञानिकों और रिसर्चरों ने चेतावनी दी है कि धरती पर मौजूद जंगल और मिट्टी उतना कार्बन डाय ऑक्साइड सोखने की हालत में नहीं है, जितना इंसान पैदा कर रहा है.
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नेचर जर्नल में छपी रिपोर्ट में वैज्ञानिकों ने एक गलत धारणा की ओर ध्यान दिलाया है. उनका कहना है कि इस समय माना जाता है कि जमीन और उस जमीन पर लगे पौधे दोनों ही कार्बन वाली गैसें सोखने का काम करते हैं और जलवायु परिवर्तन को लेकर ज्यादातर अनुमान इसी आधार पर लगाए जाते हैं. स्टडी के मुख्य लेखक सीजर टेरेर बताते हैं, "या तो मिट्टी या पौधे ही लगातार बढ़ते कार्बन के स्तर के साथ उतना सीओटू सोख पाएंगे. लेकिन दोनों बराबर से ऐसी नहीं कर पाएंगे."
कैलीफोर्निया के लॉरेंस लिवरमोर नेशनल लैब में रिसर्च करने वाले टेरेर बताते हैं कि नए वृक्षारोपण कार्यक्रमों और पेड़ पौधों से ऐसी उम्मीदें लगाना सही नहीं होगा कि वे फॉसिल फ्यूल जलाने, खेती की प्रक्रिया और जंगल को तबाह किए जाने का सारा असर संभाल लेंगे. रिसर्चरों का कहना है कि जब एक तरफ सीओटू बढ़ने के कारण जंगलों और घास के मैदानों की वृद्धि तेज होती है, तो वहीं मिट्टी में उनका अवशोषण धीमा पड़ जाता है. अमेरिका के ही स्टैनफोर्ट स्कूल ऑफ अर्थ के रिसर्चर और स्टडी में शामिल वरिष्ठ लेखक रॉब जैकसन बताते हैं, "दुनिया भर में मिट्टी में उससे कहीं ज्यादा कार्बन जमा होता है जितना सारे पौधों को मिलाकर भी नहीं होगा."
अब तक हमारे टेरिस्ट्रियल ईकोसिस्टम यानि जमीन ने वातावरण में बढ़ते सीओटू उत्सर्जन की रफ्तार से तालमेल बैठा कर रखी है. पिछले 50 सालों में कार्बन डाय ऑक्साइड का उत्सर्जन दोगुने से भी ज्यादा हो गया है लेकिन उसमें से 30 फीसदी जमीन लगातार सोखती आई है. इसी दौरान बाकी के 20 फीसदी का अवशोषण सागरों में होता आया है. इन प्राकृतिक स्पंज जैसी संरचनाओं के बिना हमारे वातावरण में कई गुना गैस घुली होती और धरती का तापमान चार से छह डिग्री सेल्सियस तक ऊपर जा चुका होता.
नए क्लाइमेट मॉडल दिखाते हैं कि धरती का तापमान केवल 1.1 डिग्री सेल्सियस बढ़ने भर से इसे कई खतरनाक मौसमी घटनाएं जैसे बाढ़, भयंकर लू के थपेड़े वगैरह झेलने पड़े हैं. इस नई स्टडी ने इस बात के सबूत पेश किए हैं कि हम जमीन से जितने कार्बन को अपने में समा सकने की उम्मीद कर रहे थे, उनके बारे में नए सिरे से सोचने की जरूरत है. टेरेर और उनके रिसर्चरों की टीम ने मिट्टी में कार्बन से स्तर, पौधों की वृद्धि और कार्बन डाय ऑक्साइड की मात्रा के बारे में हुए 100 से भी अधिक प्रकाशित हो चुके प्रयोगों का डाटा इस्तेमाल किया. इस विश्लेषण से मिले नतीजों से वे खुद भी हैरान हुए और बताया कि आने वाले समय में कार्बन सोखने वालों की भूमिका में घास के मैदानों का महत्व ज्यादा से ज्यादा बढ़ेगा. ग्लोबल कार्बन प्रोजेक्ट के कार्यकारी निदेशक पेप कानाडेल कहते हैं, "मिट्टी में जज्ब हुआ कार्बन पौधों में सोखे गए कार्बन से ज्यादा लंबे समय तक सुरक्षित रह सकता है. क्योंकि पौधों पर आग में जलने से लेकर दूसरी कई तरह की परेशानियां आने की संभावना ज्यादा होती है."
आरपी/आईबी (एएफपी)
बदलेगा मौसम तो ऐसा होगा मंजर..
जलवायु परिवर्तन हमारी जिंदगी को आश्चर्य से भर देगा. न केवल पर्यावरण पर इसका असर होगा बल्कि यह इंसानों के मस्तिष्क को भी प्रभावित करेगा. बिजली कड़केगी, ज्वालामुखी फटेगा और हो सकता है कि रेगिस्तान की मिट्टी भी उड़ जाये.
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आकाश में बढ़ेगी हलचल
ब्रिटेन की एक स्टडी के मुताबिक जलवायु परिवर्तन का असर विमानों की उड़ान पर भी होगा. विमानों को आकाश में अधिक हलचल (टर्ब्युलेंस) का सामना करना होगा. इसमें तकरीबन 149 फीसदी की वृद्धि होगी.
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जहाजों के रास्ते होंगे बाधित
विशेषज्ञों के मुताबिक जलवायु परिवर्तन के चलते बड़े ग्लेशियर टूट सकते हैं, जो समुद्री यातायात प्रभावित करेंगे. असर कितना होगा, इस पर मोटा-मोटी कुछ कहना फिलहाल मुश्किल है.
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बिजली की कड़कड़ाहट बढ़ेगी
ताप ऊर्जा, तूफानी बादलों के लिये ईंधन का काम करती है. आशंका है कि अगर तापमान बढ़ता रहा तो आकाश में बिजलियों की कड़कड़ाहट बढ़ जायेगी, जिसके चलते जंगली आग एक समस्या बन सकती है.
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ज्वालामुखी होंगे सक्रिय
निष्क्रिय अवस्था में पड़े ज्वालामुखी सक्रिय हो सकते हैं. ग्लेशियर पिघलने से पृथ्वी की भीतरी परत पर पड़ने वाला दबाव घटेगा, जिसका असर मैग्मा चेंबर पर पड़ेगा और ज्वालामुखियों की गतिविधियों में वृद्धि होगी.
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आपका गुस्सा बढ़ेगा
हमारा मूड भी बहुत हद तक मौसम पर निर्भर करता है. शोधकर्ताओं के मुताबिक जैसे-जैसे तापमान में वृद्धि होगी लोगों में गुस्सा बढ़ेगा. यहां तक कि हिंसा की प्रवृत्ति में भी इजाफा होगा.
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समुद्रों में बढ़ेगा अंधेरा
कयास हैं कि जलवायु परिवर्तन का सबसे अधिक असर समंदरों में दिखेगा. तापमान बढ़ने से जलस्तर बढ़ेगा साथ ही इनका अंधेरा और भी गहरा होगा. कई इलाकों में वार्षिक वर्षा के स्तर में भी वृद्धि होगी.
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एलर्जी की समस्या
आपको न सिर्फ जल्दी गुस्सा आयेगा बल्कि इंसानों में एलर्जी की शिकायत भी बढ़ेगी. तापमान बढ़ने से मौसमी क्रियायें बदलेगी, पर्यावरण का रुख बदलेगा और बदले माहौल में ढलना इंसानों के लिये आसान नहीं होगा.
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पशुओं का आकार घटेगा
तापमान का एक असर स्तनपायी जीवों के आकार पर दिखेगा. एक अध्ययन के मुताबिक लगभग 5 करोड़ साल पहले जब तापमान बढ़ा था तब स्तनपायी जीवों का आकार घटा था, जो भविष्य में भी नजर आ सकता है.
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रेगिस्तान में रेत होगी कम
रेगिस्तान में कुछ ऐसे बैक्टरीया होते हैं जो मिट्टी के क्षरण को रोकने के लिये बायोक्रस्ट जैसी मजबूत परत का निर्माण करते हैं लेकिन तापमान बढ़ने से इनका आवास स्थान प्रभावित होगा और मिट्टी का क्षरण बढ़ेगा.
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चींटियों का व्यवहार बदलेगा
चींटियां पारिस्थितिकी के संतुलन में अहम भूमिका अदा करती है. अध्ययन बताते हैं कि चींटियां खेतों में कीड़े-मकौड़ों का सफाया करती हैं और मिट्टी के पोषक तत्वों को बनाये रखने में मददगार साबित होती है.
रिपोर्ट- इनेके म्यूल्स